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विश्व आदिवासी दिवस : धरती पर मासूमियत को जिंदा रखने का संघर्ष

विश्व के सभी आदिवासियों में जागरूकता फैलाने के साथ उनके अधिकारों के संरक्षण के लिए हर वर्ष 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस मनाया जाता है। संयुक्त रासत्र महासभा ने 1994 को पहली बार अंतर्राष्ट्रीय आदिवासी वर्ष घोषित किया था। विकास के नाम पर हमने आदिवासियों के लिए मापदंड तय कर दिए हैं। यदि वे अपनी मौलिकता, अद्वितीयता और अस्मिता खोकर ब्राह्मणवादी व्यवस्था की पोषक धर्म परंपरा को स्वीकार कर लें तो हम उन्हें देश की धार्मिक-सांस्कृतिक मुख्य धारा का अंग मान लेंगे। यदि वे सहर्ष अपना जल-जंगल-जमीन त्यागकर स्वामी से सेवक बन जाएं तो हम अपनी कल्याणकारी योजनाओं द्वारा उनका उद्धार करेंगे। यह लेख राजू पांडे द्वारा लिखित है, जिसे 9 अगस्त 2022 को gaonkelog.com में छापा था। आज यह लेख पुन: प्रकाशित किया जा रहा है।

‘हिंदू’ और ‘हिंदुत्व’ के जाल में न फंसें बहुजन 

पिछले 10-15 साल से देश की सियासत में बड़ा राजनीतिक बदलाव होता दिख रहा है। बीजेपी लंबे समय से हार्ड हिंदुत्व की पॉलिटिक्स करती...

मुस्लिम शासकों की देन नहीं है हिन्दू पितृसत्ता और हिन्दू स्त्रियों की गुलामी

आरएसएस का जन्म स्वाधीनता आन्दोलन से उपजे जातिगत और लैंगिक समानता की स्थापना के अभियान की खिलाफ हुआ था। उस समय भारत एक राष्ट्र...

सनातन और हिन्दू धर्म

हिंदू धर्म का नाम किस प्रकार प्रचलन में आया। सनातन धर्म के लिए हिंदू धर्म नाम ज्यादा प्रचलित है। इस धर्म के अनुयायियों को...

उदयनिधि का ‘सनातन धर्म को मिटाओ’ आह्वान वही है जो पेरियार, अंबेडकर चाहते थे

हिंदू धर्म कोई पैगंबर-आधारित धर्म नहीं है, न ही इसकी कोई एक किताब है, न ही हिंदू शब्द पवित्र ग्रंथों का हिस्सा है। यह...

लोकतंत्र ही नहीं देश का भविष्य भी खतरे में है

मुंबई की एक सोसाइटी में बकरीद के मौके पर एक मुस्लिम परिवार द्वारा कुर्बानी के लिए लाए गए बकरे को लेकर इतना बवाल हुआ...

हिन्दू राष्ट्रवाद की खंडित आस्था से उपजे उन्माद का स्वप्न है अखंड भारत

क्या देशों के बीच की सीमाएं हमेशा एक-सी बनी रहती हैं? या फिर समय के साथ बदलती रहती हैं? कई मौकों पर साम्राज्यों-सम्राटों और आधुनिक...

कुशीनगर में बुद्ध ने मुझे अलग दुनिया महसूस कराई

जो लोग पचास लोगों से प्रेम करते हैं, उनके पास खुश होने के पचास कारण हैं। जो किसी से प्रेम नहीं करता उसके पास, खुश...

नफरत और सांप्रदायिक हिंसा का बदलता चरित्र

क्‍या हम भविष्‍य से कुछ उम्‍मीदें बांध सकते हैं? क्‍या अल्पसंख्‍यक समुदाय के बुजुर्ग और समझदार लोग अपने युवाओं को भड़कावे में न आने के लिए मना सकते हैं? क्‍या विपक्षी पार्टियां शहरों और कस्‍बों में शांति समितियों का गठन कर सकती हैं? क्‍या वे यह सुनिश्‍चित कर सकती हैं कि धार्मिक जुलूस जान-बूझ कर मस्‍जिदों के सामने से न निकाले जाएं? अभी चारों तरफ घना अंधकार है। परंतु इसके बीच भी आशा की कुछ किरणें देखी जा सकती हैं। गुजरात के बनासकांठा के प्राचीन हिन्‍दू मंदिर में मुसलमानों के लिए इफ्तार का आयोजन किया गया।

नई बोतल में पुरानी शराब… है जाति पर भागवत का सिद्धांत

अछूत व्यवस्था लगभग पहली सदी ईस्वी में जाति व्यवस्था का अंग बनी। मनुस्मृति, जो दूसरी या तीसरी सदी में लिखी गई थी, में तत्कालीन लोक व्यवहार को संहिताबद्ध किया गया है और इससे पता चलता है कि उत्पीड़क वर्गों द्वारा पीड़ितों पर कितने घृणित प्रतिबंध और नियम लादे जाते थे।

बहुसंख्यकवादी राजनीति के उभार से असमंजस में भारतीय मुसलमान

सच्चर समिति की रपट प्रस्तुत होने के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने एक सामान्य-सी टिप्पणी की कि वंचित वर्गों, (जिनमें  मुसलमान भी शामिल हैं) का देश के संसाधनों पर पहला हक है।

अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा में राज्य की भूमिका

गत 26 फरवरी, 2023 को वाशी (नवी मुंबई) में एक विशाल हिन्दू जन आक्रोश रैली निकाली गई जिसमें लव जिहाद और लैंड जिहाद करने के लिए मुसलमानों के खिलाफ अभद्र नारे लगाए गए। गोदी मीडिया के एक जाने-माने एंकर ने एक चार्ट के जरिए यह समझाया कि भारत में कितने प्रकार के जिहाद हो रहे हैं।

कट्टरता विनाश की जननी है

प्रजातंत्र उन्हीं देशों में मजबूत रहता है जिनमें सभी धर्मों के अनुयायियों को बराबरी के अधिकार प्राप्त रहते हैं। हमारे देश के शासकों को सबक लेना चाहिए और ऐसा कुछ भी नहीं करना चाहिए जिससे धर्मनिरपेक्षता की जड़ें कमजोर हों और पाकिस्तान की एक शायरा (फहमीदा रियाज) का भारत के बारे में लिखी गई कविता गलत साबित हो कि तुम बिलकुल हम जैसे निकले।

सांप्रदायिकता और तानाशाही का जहरीला कॉकटेल है भागवत का साक्षात्कार

आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने आरएसएस प्रकाशन के के संपादकों को दिए एक साक्षात्कार में कई सवालों का जवाब दिया है। भागवत की टिप्पणियों...

शरद यादव की महत्ता और प्रासंगिकता के कई आयाम हैं

समाजवादी आन्दोलन की उपज शरद यादव का व्यक्तित्व-कृतित्व बिल्कुल खुला था। उनकी कथनी-करनी में कोई अंतर नहीं दिखाई दिया।वे शुरू से ही चौका और...

पूर्वान्चल में बुनकरों को सरकारी राहत योजनाओं के लाभ की वास्तविकता

एक लोकतान्त्रिक देश में वोट बहुत महत्वपूर्ण है और इसे नागरिक को जन्म से मिलने वाला बुनियादी अधिकार समझा जाता है। आंकड़ों के अनुसार 184 (90 प्रतिशत) लोगों के पास वोटर पहचान पत्र था। 20 लोगों (10 प्रतिशत) के पास वोटर कार्ड नहीं था। इनसे जब वोटर पहचान पत्र नहीं रहने के कारण के बारे में पूछा गया तो  कुछ लोगों ने फॉर्म भरने के बारे में कहा तो कुछ लोगों ने बताया कि कुछ तकनीकी कारणों से उनका आवेदन नहीं पूरा हुआ तो कुछ ने बताया कि कुछ गलतियों या उपयुक्त दस्तावेज नहीं रहने के कारण आवेदन खारिज कर दिया गया है।

हिन्दू धर्म त्यागकर क्यों प्रसन्न थे डॉ. अम्बेडकर

मैं आज बहुत ही प्रफुल्लित हूं। मैं जरूरत से ज्यादा प्रसन्न हूं। मैंने जिस क्षण हिन्दू धर्म छोड़कर बौद्ध धर्म स्वीकार किया है, मुझे...

बहुजन छात्रों के साथ नाइंसाफी का जिम्मेदार आखिर कौन है

23 जुलाई, 2022 के हिन्दू समाचार पत्र में एक महत्वपूर्ण ख़बर है कि मदुरई के कम्युनिस्ट पार्टी के सांसद एस वेंकटेशन के एक सवाल...

क्या भारत सरकार बदले की भावना से काम कर रही है?

देश की जनता को अगर आप ध्यान से देखें तो इस वक़्त आप इन्हें चार भागों में बाँट सकते हैं। एक वो लोग जो...

जनसंख्या विस्फोट एक और झूठ के सिवा कुछ भी नहीं

भारत में जनसंख्या विस्फोट को एक बड़ी समस्या के रूप में पेश करते हुए इस पर बहस हो रही है। बहुत से लोगों को...

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