Saturday, July 27, 2024
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ट्रेनों के ठहराव के लिए चलता आंदोलन और रेल महकमे का कोरा आश्वासन

जौनपुर। नए निज़ाम में रेलवे राजनीति का एक माध्यम बनकर रह गया है। बुलेट ट्रेन को लेकर बनाए जा रहे बुलबुले के फूटने के बाद अब मोदी सरकार का सर्वाधिक ज़ोर वंदे भारत पर है। यह और बात है कि अभी तक मात्र 23 वंदे भारत ट्रेनें ही चलाई जा सकी हैं, जबकि टार्गेट 75 […]

जौनपुर। नए निज़ाम में रेलवे राजनीति का एक माध्यम बनकर रह गया है। बुलेट ट्रेन को लेकर बनाए जा रहे बुलबुले के फूटने के बाद अब मोदी सरकार का सर्वाधिक ज़ोर वंदे भारत पर है। यह और बात है कि अभी तक मात्र 23 वंदे भारत ट्रेनें ही चलाई जा सकी हैं, जबकि टार्गेट 75 ट्रेनों का है, जिससे आज़ादी का अमृत महोत्सव खास बनाया जा सके। इसके बरक्स सामान्य रेल संचालन में कई तरह की बाधाएँ खड़ी हो चुकी हैं, जिनके चलते मेल-एक्सप्रेस ट्रेनों के संचालन में लेट-लतीफी और दुर्व्यवस्थाएं आम हो चुकी हैं। ऐसे में पैसेंजर ट्रेनों का संचालन किस हाल में होगा इसका केवल अंदाज़ा लगाया जा सकता है।

जौनपुर औड़िहार रेलखंड पर स्थित केराकत एक महत्वपूर्ण स्टेशन है, जहां से हजारों लोग आस-पास के जिलों में दैनिक यात्रा करते हैं, लेकिन केराकत स्टेशन पर गाड़ियों के न रुकने से इन्हें भारी असुविधाओं का सामना करना पड़ रहा है। इसके मद्देनज़र केराकत स्टेशन पर ट्रेनों के ठहराव के लिए लंबे समय से आंदोलन चल रहा है, लेकिन इसका कोई माकूल हल नहीं निकला, बल्कि रेलवे अधिकारियों की लालफीताशाही और हठधर्मिता ही सामने आई है।

गौरतलब है कि रेलवे की नीतियों एवं जनप्रतिनिधियों के उपेक्षापूर्ण रवैए से त्रस्त केराकत के नागरिकों ने रेल यात्री सुविधाओं में बढ़ोत्तरी की मांग को लेकर इस साल (2023) 15 फरवरी से एक बार पुन: केराकत रेलवे स्टेशन के बाहर आमरण अनशन प्रारंभ कर दिया था लेकिन हद की बात है कि अपनी हठधर्मिता पर आमादा रेलवे महकमा आमरण अनशन के 4 दिन बाद भी नहीं  जगा। 4 दिनों से नागरिकों का खुले आसमान के नीचे आमरण अनशन जारी रहा। बाद में मछलीशहर (सुरक्षित) लोकसभा क्षेत्र के सांसद बीपी सरोज ने लोकलुभावन वादों की तरह अनशन पर बैठे नागरिकों को “जूस” और “आश्वासनों की घुट्टी” पिलाते हुए अनशन समाप्त कराने में कामयाबी पा ली थी।

गौरतलब है कि ब्रिटिश शासन काल में बना केराकत रेलवे स्टेशन देश की आजादी के बाद से अनवरत बुनियादी यात्री सुविधाओं से जूझता आ रहा है. पिछले ढाई दशक से रेल सुविधाओं को लेकर संघर्षरत रहने वाले सामाजिक कार्यकर्ता 55 वर्षीय विजय यादव की माने तो “केराकत रेलवे स्टेशन की उपेक्षा के लिए कोई और नहीं बल्कि महकमें के जिम्मेदार अधिकारी और स्थानीय जनप्रतिनिधि काफी हद तक जिम्मेदार है.  ” वह खुले तौर पर कहते हैं और सवाल भी खड़े करते हैं “कि यदि ऐसा न होता तो भला यह आमरण अनशन करने की नौबत ही क्यों उत्पन्न होती है?” युवा सामाजिक कार्यकर्ता अधिवक्ता अनिल सोनकर गांगुली भी अपना पक्ष रखते हुए बड़े ही बेबाकी से कहते हैं “जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों के गठजोड़ का ही प्रतिफल है कि केराकत रेलवे स्टेशन पर यात्री सुविधाओं का अभाव बना हुआ है।”

कोरे आश्वासनों से छले जाते रहे हैं नागरिक

21 फरवरी 2023 से प्रारंभ होकर 4 दिनों तक अनवरत चले केराकत संघर्ष समिति के बैनर तले क्षेत्र के व्यापारी, ग्रामीण, अधिवक्ता से लगाए श्रमिक वर्ग के लोग भी इस आंदोलन में अपनी सहभागिता सुनिश्चित करते हुए समय दिए। बावजूद इसके इस आंदोलन के 4 दिन बीतने के बाद तक न तो किसी जनप्रतिनिधि ने आंदोलनकारियों से वार्ता करना मुनासिब समझा था और ना ही रेलवे विभाग के जिम्मेदार मुलाजिमों ने इधर झांकना गंवारा समझा।

अलबत्ता, आंदोलन लंबा खींचने और आंदोलनकारियों की सख्त चेतावनी की आशंका से खुद अनशन स्थल पर पहुंचे मछलीशहर लोकसभा क्षेत्र के सांसद बीपी सरोज ने यह कहते हुए आश्वासन दिया कि वह होली के बाद केंद्रीय रेलमंत्री से मिलकर ट्रेनों के ठहराव की दिशा में संघर्ष समिति के प्रतिनिधियों के साथ वार्ता करेंगे, तब जाकर आश्वासन समाप्त हुआ था। हालांकि, यह आश्वासन पूर्ण हो पाएगा या फिर पूर्व के आश्वासनों की ही भांति बना रहेगा? इसको लेकर संशय बना हुआ था यह कहें कि जिस बात की आशंका जताई जा रही थी अब वही सामने आई भी है। आश्वासनों की घुट्टी पिलाते हुए उस वक्त तो सांसद ने अनशन समाप्त करने में सफलता पा ली, उन्होंने जो वादा किया था वह वादा धरा का धरा रह गया है. केंद्रीय रेल मंत्री से मिलने के बाद भी मांग के मुताबिक ट्रेनों का ठहराव संभव नहीं हो पाया है और ना ही सांसद इसे साकार कर पाने में सफल हुए हैं।

 बताते चलें कि केराकत रेलवे संघर्ष समिति के कार्यकर्ता ग्रामीणों, व्यापारियों के संग जौनपुर-औड़िहार रेलखंड पर स्थित केराकत (KCT) रेलवे स्टेशन से होकर चलने वाली समस्त ट्रेनों के ठहराव की मांग करते आ रहे हैं, लेकिन बार-बार आश्वासनों के सिवा इन्हें कुछ भी अभी तक हासिल नहीं हो पाया है।

क्या हैं क्षेत्रीय जनता की माँगें

उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल को बिहार से जोड़ने वाले रेल मार्गों में जौनपुर-औड़िहार रेल मार्ग का भी अपना एक महत्वपूर्ण स्थान रहा है जो आज भी है। लेकिन कहते हैं कि “जैसे-जैसे दवा की, वैसे-वैसे मर्ज भी बढ़ता गया” की तर्ज पर जैसे-जैसे इस रेलमार्ग में विकास की किरण दिखलाई देनी शुरू हुई है वैसे-वैसे ही यात्री सुविधाओं के नाम पर रेलवे बोर्ड के अधिकारी अपने लालफीताशाही रवैए के चलते मनमानी करते नजर आए हैं। जिसका परिणाम यह है कि लोगों को अक्सर जन आंदोलन का सहारा लेना पड़ता रहा है। मौजूदा समय में इस रेल मार्ग पर तीन जोड़ी पैसेंजर व एक जोड़ी एक्सप्रेस ट्रेन का ठहराव केराकत रेलवे स्टेशन पर किया जाता है। जबकि कई प्रमुख ट्रेनों का आवागमन होता है जिनमें बरौनी-गोंदिया एक्सप्रेस, बांद्रा टर्मिनल गाजीपुर सिटी एक्सप्रेस, मऊ आनंद विहार सुपरफास्ट एक्सप्रेस, गाजीपुर आनंद विहार सुपरफास्ट, सुहेलदेव सुपरफास्ट एक्सप्रेस, माता वैष्णो देवी कटरा गाजीपुर सिटी एक्सप्रेस, बलिया आनंद विहार एक्सप्रेस, सूरत-छपरा एक्सप्रेस, वलसाड मुजफ्फरपुर श्रमिक एक्सप्रेस प्रमुख ट्रेनें हैं। जिनके ठहराव की मांग यहां लंबे समय से हो रही है।

केराकत स्टेशन

जन आंदोलनों ने पाला है इस स्टेशन को 

गौरतलब हो कि ब्रिटिश शासन काल में 21 मार्च 1904 में जौनपुर-औड़िहार के बीच बिछाई गई छोटी रेलवे लाइन जहां तत्कालीन समय में भाप (कोयला) रेलगाड़ी का संचालन किया जा रहा था। वहीं उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल के जनपद प्रतापगढ़, सुल्तानपुर, रायबरेली, फैजाबाद, जौनपुर इत्यादि जनपदों के व्यापारियों का न केवल बिहार के छपरा से सीधा जुड़ाव था, बल्कि यूपी और बिहार के व्यापारियों के लिए यह रेलवे लाइन भी किसी सेतु से कम नहीं रही है। व्यापारिक दृष्टिकोण से लगाए यात्री सुविधाओं के लिहाज से भी यह छोटी रेलवे लाइन लोगों के लिए आवागमन का सशक्त माध्यम हुआ करती थी। यही कारण था कि जौनपुर-औड़िहार (गाजीपुर) के मध्य केराकत रेलवे स्टेशन पर भाप के इंजन को पानी देने के लिए पानी टंकी का निर्माण कराए जाने के साथ ही साथ भारी भरकम गोदाम का भी निर्माण कराया गया था जो कालांतर में खंडहर होकर अपनी उपयोगिता खो चुका है। बढ़ती आबादी को देखते हुए इस रेलवे स्टेशन और इस रेलमार्ग के विस्तार की भी योजना को मूर्त रूप देने की जब आवाज बुलंद होने लगी थी तो तत्कालीन केंद्रीय गृहमंत्री एवं जौनपुर के सांसद स्वामी चिन्मयानंद के अथक प्रयास से तथा केराकत रेलवे स्टेशन के विकास एवं यात्री सुविधाओं को लेकर संघर्षरत रहे वरिष्ठ पत्रकार स्वर्गीय श्याम सुंदर सर्राफ, सामाजिक कार्यकर्ता विजय कुमार यादव, वरिष्ठ पत्रकार रामदास यादव, कौशलेंद्र गिरी, आरिफ अंसारी, स्वर्गीय मिश्रीलाल लाल सोनकर, टीडी कॉलेज छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष चंद्रबली यादव, तत्कालीन लोजपा नेता मोहम्मद खान, रोजन अहमद इत्यादि के लंबे संघर्ष के परिणाम स्वरूप तत्कालीन रेल मंत्री नीतीश कुमार द्वारा छोटी रेलवे लाइन को बड़ी रेलवे लाइन में परिवर्तित किए जाने की घोषणा की गई थी। इसी के साथ ही इस रेलवे लाइन पर कोयला इंजन के स्थान पर डीजल रेल इंजन का भी प्रचलन शुरू हो गया था। रेलवे बोर्ड के अधिकारियों की नादिरशाही नीतियों के चलते अक्सर घाटे का सौदा दिखाकर इस रेलवे लाइन की न केवल उपेक्षा होती रही है, बल्कि जब-तब ट्रेनों को भी बंद कर दिया जाता था। भारत का शायद ही ऐसा कोई रेल मार्ग रहा होगा जहां रविवार को ट्रेनों का आवागमन बिल्कुल ठप्प रहता  रहा हो , यदि इस बात का उल्लेख होता है तो बरबस ही केराकत का नाम सामने आ जाता है। बाद में काफी संघर्ष, आंदोलनों के बाद इस रेलवे लाइन पर मेमू ट्रेन का प्रचलन शुरू किया गया था। कभी बंगाल एंड नॉर्थ वेस्टर्न रेलवे के अधीन रही यह रेलवे लाइन वर्तमान में पूर्वोत्तर रेलवे के वाराणसी मंडल अंतर्गत आने वाले जौनपुर-औड़िहार रेलखंड केराकत रेलवे स्टेशन को हांलाकी बदलने की कवायद की जा रही है, लेकिन यात्री सुविधाओं के नाम पर सिर्फ अभी तक छलावा ही किया जाता रहा है। कई प्रमुख ट्रेनों का ठहराव ना होने के कारण यहां के लोगों को जौनपुर-औड़िहार या डोभी रेलवे स्टेशनों के जरिए अपने गंतव्य की यात्रा करनी पड़ती है।

 पीछे हटने का सवाल ही नहीं, पर अड़े अनशनकारियों को छला गया

बताना महत्वपूर्ण होगा कि जब-जब क्षेत्र की जनता यात्री सुविधाओं को लेकर मुखर हुई है तब तक रेलवे बोर्ड के अधिकारियों से लगाए जनप्रतिनिधियों ने अपनी नाक बचाने के लिए कोरे आश्वासन का सहारा लेते हुए जन आंदोलन को समाप्त करने का प्रयास किया है। इसमें वह सफल भी हुए हैं, लेकिन अपने दिए गए आश्वासनों पर वह खरे नहीं साबित हुए हैं।जैसा कि पिछले महीने अनशनरत नागरिकों के साथ भी छलावा किया गया है। केराकत रेलवे स्टेशन पर कई प्रमुख एक्सप्रेस ट्रेनों के ठहराव की मांग को लेकर 4 दिनों से अनशन पर बैठे ग्रामीणों संग वकील अहमद ने बताया था  कि “इस बार पीछे हटने का सवाल ही नहीं होता। जब तक हमारी मांगे पूरी नहीं होंगी, रेलवे बोर्ड के अधिकारी या जनप्रतिनिधि मौके पर आकर ट्रेनों के ठहराव नहीं कराते  हैं तब तक पीछे हटने का कोई सवाल ही उत्पन्न नहीं होता है.” कृष्ण कुमार जायसवाल भी उनकी बातों का समर्थन करते हैं  कि “अब आर-पार की लड़ाई होगी, हम लोग मांग करते-करते थक हार चुके हैं, लेकिन रेलवे बोर्ड के अधिकारियों के कानों में जूं तक नहीं रेंग रहे हैं।ऐसे में अब इस बार आंदोलन तेज करने के सिवा और कोई रास्ता नहीं दिखता है।” अन्य आंदोलनरत लोगों में सभासद प्रतिनिधि राजू उपाध्याय, मनोज कमलापुरी, पूर्व प्रधान किशन यादव, सुभाष यादव फौजी, विनोद कनौजिया, शाहिद खान, अशफाक खान, नितिन सोनकर, राजेश यादव, विशाल मौर्य, संजय सरोज, संतोष सोनकर इत्यादि लोग भी इस बार आंदोलन से पीछे हटने को कदापि तैयार नहीं थे, सभी एक स्वर में आंदोलन तेज करने के साथ रेलवे बोर्ड और जनप्रतिनिधियों के प्रति उपेक्षा का आरोप लगाते हुए साफ शब्दों में बोले थे कि “जब तक इस मार्ग पर चलने वाली प्रमुख ट्रेनों का ठहराव सुनिश्चित नहीं किया जाता है तब तक अपने व आंदोलन से कदापि भी पीछे हटने वाले नहीं है। हालांकि क्षेत्रीय सांसद के काफी आग्रह और मान-मनौवल के पश्चात आंदोलन समाप्त कर दिया गया था, लेकिन चेतावनी भी दी गई थी कि यदि 13 मार्च के बाद उनकी मांगों को पूरा नहीं किया गया तो वह इस बार कई गांव के ग्रामीणों के साथ विशाल आंदोलन करने के लिए बाध्य हो जाएंगे जिसकी पूरी जिम्मेदारी रेलवे बोर्ड के अधिकारियों जनप्रतिनिधियों की होगी। लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि 13 मार्च क्या 29 जून भी बीतने को है ट्रेनों के ठहराव की बात तो दूर रही है सांसद अपने दिए गए वादों पर भी खरा नहीं उतर पाए हैं।

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प्रमुख ट्रेनों के ठहराव होने से होंगे कई फायदे

जौनपुर जनपद का केराकत रेलवे स्टेशन तहसील और ब्लॉक मुख्यालय होने के साथ ही एक प्रमुख कस्बा भी है. व्यापारिक दृष्टिकोण से देखें तो यहां के व्यापारी वाराणसी, जौनपुर, गोरखपुर, गाजीपुर, आजमगढ़ और बिहार से भी तालुकात रखते हैं। ऐसे में इस स्टेशन पर प्रमुख ट्रेनों का ठहराव यात्री सुविधाओं के साथ साथ व्यापारिक दृष्टिकोण से भी कई मायने में प्रमुख माना जाता है।  प्रमुख ट्रेनों के ठहराव होने से लोगों को जहां सुगम रेल यात्रा का लाभ मिलेगा वहीं रेलवे के राजस्व में भी वृद्धि होगी।

केंद्रीय रेलमंत्री ने भी किया निराश

प्रमुख ट्रेनों के ठहराव की मांग को लेकर अनशन में अपनी सहभागिता सुनिश्चित करने वाले युवा सामाजिक कार्यकर्ता, अधिवक्ता अनिल सोनकर गांगुली गाँव के लोग डॉट कॉम के संवाददाता को बताते हैं कि सांसद मछलीशहर के आश्वासन पर धरना समाप्त करने के पश्चात निर्धारित तिथि पर उनके साथ केंद्रीय रेल मंत्री से भी दिल्ली में मुलाकात करते हुए क्षेत्र के आवाम को होने वाली समस्याओं से रूबरू करा प्रमुख ट्रेनों के ठहराव की मांग केराकत रेलवे स्टेशन पर किए जाने के संदर्भ में विस्तृत वार्ता कर ट्रेनों के ठहराव ना होने से होने वाली परेशानियों से भी अवगत कराया गया था, लेकिन दुःखद है कि ना तो उन्हें रेलवे मंत्री से संतोषजनक जवाब मिला और ना ही क्षेत्रीय सांसद से यूं कहें कि उनके साथ छलावा किया गया है। वह कहते हैं कि “इस बार अब आंदोलन आर-पार का होगा जनप्रतिनिधियों से उन्हें जो आस लगी हुई थी वह पूरी तरह से निराश हो चुकी है।

संतोष देव गिरी स्वतंत्र पत्रकार हैं।

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