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दशकों पहले मृत व्यक्ति के नाम नोटिस और वर्तमान किसानों की ज़मीन को बंजर बताकर हड़पने की साज़िश

वाराणसी की सदर तहसील के एसडीएम ने वाराणसी के पूर्वी छोर पर स्थित जाल्हूपुर परगना के चार गाँवों तोफापुर, मिल्कोपुर, कोची और सरइयाँ की कुल सौ एकड़ से भी ज्यादा (109) ज़मीन को बंजर घोषित करने और कब्जे में लेने का एक फरमान निकाला। लोग कहते हैं कि यहाँ बस अड्डा बनेगा। ये गाँव रिंग रोड फेज तीन के किनारे हैं और अब यहाँ की ज़मीन काफी ऊँची कीमत पर बिक रही है।

आज भारत के पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की जयंती है। उनके द्वारा किसानों के लिए किए गए तमाम कार्यों के कारण उन्हें  सम्मानपूर्वक याद करने के लिए प्रतिवर्ष 23 दिसंबर को राष्ट्रीय किसान दिवस मनाया जाता है। आज का दिन किसानों को समर्पित रहता है। चौधरी चरण सिंह ने किसानों के हित को ध्यान में रखते हुए अनेक  कल्याणकारी योजनाएं लागू की थी। 

किसान जिन्हें अन्नदाता और धरती पुत्र कहा जाता है, जिनके बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती  लेकिन इधर कुछ वर्षों से  विकास के नाम पर सरकार की पूरी नजर उनकी उपजाऊ ज़मीनों पर है। सरकार किसी भी तरह किसानों की जमीनें हड़पकर उसे कॉर्पोरेट को सौंपना चाहती है, जिसकी वजह से किसान आज सड़क पर आंदोलन करने को मजबूर हैं। वाराणसी की सदर तहसील के एसडीएम ने वाराणसी के पूर्वी छोर पर स्थित जाल्हूपुर परगना के चार गाँवों तोफापुर, मिल्कोपुर, कोची और सरइयाँ की कुल सौ एकड़ से भी ज्यादा (109) ज़मीन को बंजर घोषित करने और कब्जे में लेने का एक फरमान निकाला आसपास ही ऐसे अनेक गाँव हैं जहां किसानों की जमीनें या तो सरकार द्वारा कब्जा कर ली गईं हैं या कब्जे में लेने की शुरुआत हो चुकी है। सच्चाई क्या है? पढ़िए  अपर्णा की ग्राउन्ड रिपोर्ट – 

वाराणसी। इस साल के मार्च महीने में वाराणसी में चल रहे तमाम शहरी शोर-शराबों के बीच इस जिले के गाँवों में एक अलग तरह का भूचाल आया हुआ था। यह बेदखली का भूचाल था, जिसकी काली छाया कई गांवों पर पड़ रही थी। मोहनसराय के पास मिलकीचक, करनाडांडी और बैरवन आदि गाँवों की ज़मीन पर ट्रांसपोर्ट नगर बनाने लिए वाराणसी विकास प्राधिकरण (VDA) बड़ी संख्या में पुलिस-पीएसी के साथ जेसीबी और बुलडोजर लेकर पहुँचा। यह मार्च की सोलह-सत्रह तारीख थी, जब कब्जे के लिए गए अमले के खिलाफ गाँववालों ने प्रतिरोध किया एवं बदले में पुलिस ने बैरवन के निहत्थे स्त्री-पुरुषों और बूढ़ों पर बर्बरता से लाठियाँ बरसाई।

ठीक उन्हीं दिनों वाराणसी की सदर तहसील के एसडीएम ने वाराणसी के पूर्वी छोर पर स्थित जाल्हूपुर परगना के चार गाँवों तोफापुर, मिल्कोपुर, कोची और सरइयाँ की कुल सौ एकड़ से भी ज्यादा (109) ज़मीन को बंजर घोषित करने और कब्जे में लेने का एक फरमान निकाला। लोग कहते हैं कि यहाँ बस अड्डा बनेगा। ये गाँव रिंग रोड फेज तीन के किनारे हैं और अब यहाँ की ज़मीन काफी ऊँची कीमत पर बिक रही है।

गौरतलब है कि इन गाँवों में चकबंदी हो चुकी है। दीवानी मामलों के जानकार अधिवक्ता कहते हैं कि जिन गाँवों में चकबंदी हो चुकी है, वहाँ बंजर, नाली अथवा सड़क का मामला पहले से हल हो चुका होता है। पट्टीदारों का आपसी झगड़ा भले चल रहा हो, लेकिन बंजर नहीं निकल सकता, क्योकि चकबंदी का बंदोबस्त अधिकारी ऐसे सभी मामलों को निपटाकर ही आगे बढ़ता है। लेकिन इन चारों गाँवों में एक सौ नौ एकड़ का रकबा बंजर निकल जाना कोई मामूली बात नहीं है। दूसरी बात यह कि इतना बड़ा रकबा बंजर निकलने के बाद इन पर क़ाबिज़ काश्तकारों को कोई नोटिस नहीं तामील कराई गई कि आपकी ज़मीन में इतना बंजर है, जिसे हासिल करने के लिए सरकारी अधिकारी और कर्मचारी ज़मीन का सर्वे करेंगे। समाजवादी नेता अफलातून कहते हैं कि ‘यह दीवानी अदालत का मामला है और इसमें संबन्धित व्यक्ति को नोटिस पाने और प्रतिवाद दाखिल करने का अधिकार है। सरकार, प्रशासन अथवा कोई भी संस्था इस अधिकार का हनन नहीं कर सकती। लेकिन इस आदेश के बारे में इन गाँवों में किसी को कोई सूचना ही नहीं दी गई।’ दीवानी और रेवेन्यू के वरिष्ठ अधिवक्ता राम राजीव सिंह कहते हैं कि ‘नोटिस दी गई लेकिन ऐसे आदमी को दी गई, जिसका कोई अता-पता नहीं है। उस ज़मीन पर जो वर्तमान खातेदार हैं, उनको कोई नोटिस नहीं दी गई। जबकि स्वाभाविक न्याय कहता है कि जिनकी संपत्ति जा रही है, उनको नोटिस दी जाय और उनकी बात सुनी जाए।’

कहा जाता है कि ड्रोन से सर्वे कराकर उपजिलाधिकारी सदर (वाराणसी) ने आदेश जारी किया और फिर काश्तकारों को लेखपालों के माध्यम से मौखिक सूचना मिली।

लेखपाल के माध्यम से ही महेंद्र जायसवाल को जब यह सूचना मिली तो उनके पैरों तले ज़मीन खिसक गई। महेंद्र जायसवाल एक कॉलेज चलाते हैं और कई साल पहले उन्होंने परगना जाल्हूपुर के अंतर्गत कुछ गाँवों में कई एकड़ ज़मीन खरीदी थी और उनका इरादा वहाँ डीम्ड (मानद) यूनिवर्सिटी बनाने का है। ग्रामसभा मिल्कोपुर में जायसवाल की साढ़े तीन एकड़ ज़मीन है, जिसमें से दो एकड़ को बंजर घोषित कर दिया गया है। अब वह अपनी ज़मीन बचाने के लिए अदालत की शरण में हैं।

लेकिन जब मैं मिल्कोपुर गाँव गई तो वहाँ इस विषय में अधिकतर लोगों को कुछ पता ही नहीं था। जब मैंने पूछा कि यहाँ किन-किन लोगों की ज़मीन से बंजर निकल रहा है तो उन लोगों ने कहा कि कुछ सुन तो रहे हैं लेकिन पक्का पता नहीं है कि वास्तव में क्या स्थिति है। वर्तमान प्रधान अमृत चौहान ने पहले तो कहा कि उन्हें कुछ नहीं मालूम। फिर बोले सरकार की ज़मीन है तो सरकार लेगी ही लेकिन कुछ देर बाद उन्होंने उस आदेश की कॉपी दिखाई जो मिल्कोपुर, सरैया, कोची और तोफापुर की ज़मीनों में से चिन्हित किए गए बंजर को लेकर जारी हुआ है।

जिस समय मैं मिल्कोपुर के प्रधान अमृत चौहान की दुकान पर थी उसी समय तोफापुर की ग्राम प्रधान सयाली यादव के पति और उनके प्रतिनिधि राहुल यादव आ गए। जब मैंने उनसे पूछा तो उन्होंने कहा कि मुझे कुछ भी मालूम नहीं है कि तोफापुर की आबादी की ज़मीन जा रही है। इसके बारे में लेखपाल को ही पता होगा। लेकिन लेखपाल इस मामले को गोपनीय बताते हुये कोई भी जानकारी देने से इन्कार कर देते हैं।

इन चारों गाँवों में सैकड़ों किसान हैं जिनके पास ज़मीन की भूमिधरी है। चकबंदी होने के बाद सबकी ज़मीनों की खतौनी पर उनका नाम मौजूद है लेकिन इनमें से किसी के पास भी तहसील अथवा राजस्व विभाग की कोई नोटिस नहीं आई। इसलिए अगर वे कहते हैं कि इस विषय में उनको कोई जानकारी नहीं है तो आश्चर्य किस बात का। ऐसे में कोई प्रतिवाद अथवा आपत्ति दाखिल करने का सवाल ही कहाँ पैदा होता है। ये गाँव साधारण किसानों के गाँव हैं जो अधिकतर खेती, मजदूरी और छोटे-मोटे व्यवसाय से अपनी आजीविका चलाते हैं। कानूनी दाँवपेंच अथवा अन्य दुरभिसंधियों से उनका खास लेना-देना नहीं रहता।

भोजूबीर में दवा की दुकान चलाने वाले नंदलाल उपाध्याय का कहना है कि इन गाँवों में ज़्यादातर लोग मेहनत-मजदूरी करते हैं। बहुत पढे-लिखे भी नहीं हैं इसलिए वे इस बात से क्या मतलब रखेंगे कि सरकार क्या गुल खिला रही है। दूसरी बात यह कि जब गाँव में चकबंदी हो चुकी है तब उन्हें शंका भी कैसे हो सकती है कि उनकी काश्त की ज़मीन में बंजर निकाला जाएगा।

स्वयं उपाध्याय की मिल्कोपुर गाँव में ज़मीन है और जिन दिनों तहसील में इस तरह की कार्यवाहियाँ की जा रही थीं उन्हीं दिनों उन्हें इस बात की भनक लग गई कि जिलाधिकारी के निर्देश पर एस डी एम ने चार गाँवों की एक सौ नौ एकड़ ज़मीनों को लेने की योजना बना ली है और चूंकि ज़मीनों को बंजर करार देकर लिया जाएगा इसलिए किसी को कोई मुआवजा अथवा पुनर्वास का कोई प्रावधान ही नहीं होगा।

नन्दलाल उपाध्याय

सारी बात समझ में आते ही नंदलाल उपाध्याय, लालचन्द यादव और सूर्यभान सिंह आदि ने 14 जुलाई 2023 को उपजिलाधिकारी सदर वाराणसी को प्रार्थनापत्र के साथ वकालतनामा पेश किया जिसमें कहा गया कि बिना संबन्धित पक्षों को नोटिस दिये ही पत्रावली आदेश में सुरक्षित कर ली गई है इसलिए एक बार प्रार्थीगण की बात सुनी जाय और अभिलेखीय साक्ष्यों और सबूतों के मद्देनजर तथ्यों पर विचार करते हुये आदेश पारित किया जाय। लेकिन उपजिलाधिकारी ने इनका प्रार्थनापत्र निरस्त कर दिया।

नंदलाल उपाध्याय कहते हैं कि जिन ज़मीनों की पक्की बंदोबस्ती हो चुकी है उनमें नए तरीके से बंजर निकालकर हड़पने का कोई अधिकार डीएम अथवा एसडीएम को है  ही नहीं। यह तानाशाहीपूर्ण षड्यंत्र है जिसके शिकार सैकड़ों किसान होनेवाले हैं। भूमि अधिग्रहण अधिनियम 2013 के मुताबिक बिना मुआवजा और पुनर्वास की व्यवस्था किए किसी की भी ज़मीन लेने का सरकार को कोई हक नहीं है। यदि सरकार ऐसा करती है तो वह संसद और महामहिम राष्ट्रपति की मर्यादाओं का उल्लंघन करती है।’

वह कहते हैं कि ज्ञात तथ्यों के अनुसार सन 1943 में जाल्हूपुर के ज़मींदार ने इन चारों गाँव की ज़मीन का रजिस्टर्ड पट्टा छेदी सिंह के नाम किया था। गौरतलब है कि 7 जुलाई 1949 को उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था विधेयक को विधानसभा में पेश हुआ। इस विधेयक का उद्देश्य प्रत्येक व्यक्ति के कृषि अधिकारों को कायम करना था। चाहे वह जमींदार हो काश्तकार हो या बंटाईदार हो। इस विधेयक का मुख्य उद्देश्य उत्पादन को प्रोत्साहित करना, उसके स्तर को बढ़ाना एवं जमीदारों को भी अपने लिए उत्पादन करने के लिए प्रेरित करना था जिन्होंने अब तक दूसरों को शोषण किया था या अब तक वे दूसरों के श्रम पर आश्रित थे। 1955 में छेदी सिंह से चारों गाँवों की वह ज़मीन अश्विनी, चम्पा, सलफ़ा और आनंददेव को स्थानांतरित हो गई। लोग कहते हैं कि छेदी सिंह को मरे हुये भी पचास साल से ऊपर हो गया है।  यहाँ तक कि ये चारों भी वर्षों पहले दिवंगत हो चुके हैं।

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इस बीच कई दशक बीते। देश और दुनिया में अनेक घटनाएँ हुईं। ज़मीन की खरीद-फरोख्त हुई और चकबंदी भी हो गई। ज़ाहिर है उपरोक्त ज़मीनों पर अब उन लोगों का अधिकार है जिन्हें वह विरासत, बैनामा आदि के माध्यम से मिली। लेकिन इन चारों गाँवों में ऐसे किसी भी आदमी को नोटिस नहीं दी गई और जिन्हें नोटिस दी गई न उनका कोई अता-पता था न उनके वारिसों का। यही इस कहानी का ट्विस्ट है।

उपजिलाधिकारी के आदेश में क्या है

दीवानी के अधिवक्ता देवेंद्र कुमार ने उपजिलाधिकारी सदर तहसील वाराणसी द्वारा जारी आदेश पत्र की जो प्रति उपलब्ध कराई है उसके मुताबिक बहुत सी ऐसी बातें समझ में आती हैं जिनका निहितार्थ यह है कि यदि कोई सरकार अथवा उसका प्रतिनिधि प्रशासन निरंकुशता और बेईमानी पर उतर जाय तो वह न केवल अपने ही बनाए क़ानूनों की धज्जियाँ उड़ा सकता है बल्कि अपने को सही साबित करने के लिए कुछ भी करने पर उतर सकता है। इस मामले में भी प्रशासन ने सत्तर साल के दौरान किसी भी बदलाव को न स्वीकारते हुये यह मान लिया कि जिन गाँवों से 109 एकड़ बंजर वह हासिल करने जा रहा है वह आज तक छेदी सिंह के नाम पर था। इससे एक सुविधा यह बन जाती है छेदी सिंह की ज़मीनें लेना कतई मुश्किल नहीं हो सकता क्योंकि छेदी सिंह आपत्ति दाखिल करने के लिए स्वर्ग से तो आ नहीं सकते। लेकिन उड़ान चाहे कितनी भी ऊँची हो उतरना ज़मीन पर ही होता है। यही अंतिम सच है।

उपजिलाधिकारी सदर तहसील, वाराणसी द्वारा जारी आदेश पत्रक वाद संख्या 13137/2023 (कम्प्यूटरीकृत वाद संख्या – टी 202314700117137) सरकार बनाम छेदी, विमल, अश्विनी के नाम से है। छेदी, विमल और अश्विनी कौन हैं और इस समय कहाँ हैं? इसे इन चारों गाँवों में कोई नहीं जानता। स्वयं प्रशासन भी नहीं जानता कि ये तीनों कहाँ हैं? इसलिए आदेश के खिलाफ कोई आपत्ति नहीं प्राप्त हुई। तब यह आदेश अखबार में छपवाया गया, ताकि सनद रहे कि प्रशासन ने सूचना दे दी है। लेकिन अखबार में छपने के बावजूद छेदी सिंह, अश्विनी अथवा विमल कोई नहीं आया। इसके बावजूद थोड़ा और मौका दिया गया लेकिन तब भी ये लोग हाजिर नहीं हुये और न ही इनकी ओर से कोई आपत्ति ही दाखिल हुई, इसलिए उनकी पूरी ज़मीन को बंजर घोषित किया गया।

आदेश की कॉपी का पहला पेज

सरसरी नज़र से इस आदेश का अवलोकन कर लेना ज़रूरी होगा। निर्णय संबंधी भाग के अनुसार 9 मार्च 2023 के जिलाधिकारी वाराणसी के आदेश पर अमल करने के क्रम में सदर तहसील के उपजिलाधिकारी ने 18 मार्च 2023 को बंदोबस्त अधिकारी को आदेश दिया कि वह चार गाँवों मिल्कोपुर, तोफापुर, कोची और सरइयाँ की ज़मीन के संबंध में समस्त अभिलेखों सहित अपनी आख्या प्रस्तुत करें। इस आदेश के संलग्नक के रूप में उपजिलाधिकारी महोदय ने बंदोबस्त अधिकारी चकबंदी द्वारा 3 मार्च 2023 को जिलाधिकारी महोदय को लिखे गए उस पत्र (संख्या 89/एसटी/ब.अ.च.- 2023) को भी जोड़ा जिसके अनुसार जांच तहसीलदार सदर वाराणसी से कराई गई।

इसके बाद तहसीलदार साहब ने उ. प्र. राजस्व संहिता 2006 की धारा 32/38 के तहत मान्य क़ानूनों के अनुसार अभिलेखों संशोधित करने के लिए उपलब्ध कराया जिस पर वाद दर्ज़ करके उ. प्र. राजस्व संहिता -2006 की धारा 31/32/ उ. प्र. भू राजस्व अधिनियम 1901 की धारा 33/39 के अंतर्गत कार्यवाही शुरू की गई।

इस कार्यवाही में जांच के बाद 27 मई 2023 को तहसीलदार, सदर वाराणसी ने जो आख्या प्रस्तुत की उसमें निम्नलिखित निष्कर्ष सामने आए –

  • ग्राम कोची की 1359 फ़सली खतौनी के खाता संख्या 68 की ज़मीन बंजर खाते में थी जिस पर परगना जाल्हूपुर के हाकिम के 24 फरवरी 1953 के फैसले के बाद छेदी सिंह आदि का नाम दर्ज़ किया गया। भूमि की नवैयत (प्रकार) जम्मन 9 (इसके तहत वह आराजी होती है जिस पर मौरूसी (वंशानुगत) कब्ज़ा हो और कब्जेदार को विशेषाधिकार प्राप्त हो। इस ज़मीन की वरासत हो सकती है तथा इसका इस्तमरारी बंदोबस्त अर्थात स्थायी निराकरण अथवा Permanent Settlement किया जा सकता है) थी।
  • इसी प्रकार ग्राम मिल्कोपुर की 1359 फ़सली खतौनी के खाता संख्या 89 के बंजर ज़मीन पर नवैयत जम्मन 9 के तहत छेदी सिंह का नाम दर्ज़ किया गया।
  • ग्राम सरैयाँ की 1359 फ़सली खतौनी के खाता संख्या 52 के बंजर ज़मीन पर भी जाल्हूपुर परगना के हाकिम के 18 अगस्त 1953 के फैसले के तहत नवैयत जम्मन 9 के तहत छेदी सिंह का नाम दर्ज़ किया गया।
  • ग्राम तोफापुर के संबंध में यहाँ कोई उल्लेख नहीं है।

आगे बताया गया है कि चूंकि ज़मींदारी विनाश के पूर्व 1359 फ़सली खतौनी में हाकिम परगना के आदेश से छेदी सिंह का नाम दर्ज़ था इसलिए जब ज़मींदारी विनाश के पश्चात नई खतौनी 1361 और 1362 फ़सली बनाई गई तो छेदी सिंह आदि का नाम भूमिधर के तौर उनमें भी दर्ज़ किया गया।

चूंकि हाकिम परगना के आदेश से ही सारा काम हुआ था इसलिए जब छेदी सिंह ने इन ज़मीनों को बेचा तो इसी आदेश के आधार पर खरीदने वाले अश्विनी कुमार आदि का नाम 1363 से 1365 फ़सली खतौनी पर तत्कालीन तहसीलदार द्वारा जारी किए गए नामांतरण आदेश के बाद दर्ज़ हुआ है। (मुझे लगता है कि 1359, 1361, 1362 अथवा 1363 एवं 1365 फ़सली आदि के संबंध में भारत के किसान अच्छी तरह जानते होंगे लेकिन शहरी पाठकों की सुविधा के लिए यह बता देना ज़रूरी है कि हिजरी अथवा इस्लामी कैलेंडर के अनुसार, ये संख्याएँ वर्ष का प्रतिनिधित्व करती हैं। इनमें 594 जोड़ने पर जो योग होगा वह ईसाई कैलेंडर के अनुसार वर्ष माना जाएगा। मसलन 1359 =1953 या 1361=1955 आदि।–संपादक)

तहसीलदार महोदय अपनी आख्या में आगे कहते हैं कि इसके पहले इस मामले की जांच चकबंदी बंदोबस्त अधिकारी (SOC) ने चकबंदी अधिकारी (प्रथम) से कराई थी जिसके निष्कर्ष के रूप में उन्होंने कहा था कि यद्यपि खतौनी 1359 फ़सली पर परगनाधिकारी के आदेश का रिकॉर्ड फर्जी नहीं मालूम देता है फिर भी यदि महोदय को शंका हो तो हाकिम परगना के आदेश और पट्टा इस्तमरारी के आधार पर खातेदारों और बैनामादारों की प्रविष्टि की जांच उ. प्र. राजस्व संहिता की धारा 32/38 के तहत की जा सकती है।

अगले बिन्दु के रूप में यह उल्लिखित है कि शोमू और मटरू ने जिलाधिकारी के समक्ष दिनांक 8 जनवरी 2023 को एक प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किया जिसके संबंध में बंदोबस्त अधिकारी ने अपनी आख्या पेश की कि मलिकाने से संबन्धित कोई भी अपील चकबंदी बंदोबस्त अधिकारी के न्यायालय में विचारधीन नहीं है।

मिल्कोपुर में बंजर की गई जमीनों का आदेश

आगे कहा गया है कि ग्राम मिल्कोपुर से संबन्धित राजस्व अभिलेखागार में उपलब्ध गोसवारा रजिस्टर में ग्राम की खतौनी 1359 फ़सली के खाता संख्या 89 पर अंकित अमलदरामद हाकिम परगना साहब बहादुर से संबन्धित पत्रावली गोसवारा रजिस्टर में नहीं पाई गई। इसी तरह ग्राम कोची की खतौनी 1359 फ़सली के खाता संख्या 68 और ग्राम सरैया की भी खतौनी 1359 फ़सली के खाता संख्या 52 पर अंकित अमलदरामद हाकिम परगना साहब बहादुर से संबन्धित पत्रावली गोसवारा रजिस्टर में नहीं पाई गई। जबकि ग्राम तोफापुर से संबन्धित राजस्व अभिलेखागार में बस्ता सील होने के कारण अभिलेख नहीं मिला। इसके संबंध में अलग से आख्या पेश करने की बात कही गई है।

इन परिस्थितियों के कारण उपरोक्त खतौनी और खातों पर किए गए आदेश को संदिग्ध मानते हुये उन आदेशों और उनके आधार पर हुई खरीद-बिक्री की (चकबंदी के दौरान और चकबंदी के पश्चात) पुनः जांच और अभिलेख संशोधित किए जाने की सिफ़ारिश की गई है।

खुद ही वादी खुद ही मुंसिफ़

इस क्रम में जिलाधिकारी वाराणसी, उपजिलाधिकारी सदर, बंदोबस्त अधिकारी चकबंदी और राजस्व विभाग ने अपने तरीके से प्रक्रियाओं का संचालन किया और निर्णय दिया। जिस तरह से कहानी बनाई गई है उस तरह से देखा जाय तो सिर्फ इन चार गाँव के भूमिधर ही नहीं बल्कि बनारस के बड़े-बड़े लोग बेदखल हो जाएंगे।

आदेश पत्र में प्रशासन की गढ़ी गई कहानी आगे बढ़ती है और दिनांक 29 मई 2023 को वाद दर्ज़ करके छेदी सिंह आदि के नाम एक नोटिस भेजी गई कि आपका पट्टा फर्जी है जिसे हम निरस्त करने जा रहे हैं इसलिए आपको इस पर कोई आपत्ति हो तो दर्ज़ कराएं। लेकिन छेदी नहीं आए इसलिए इसे अखबार में छपवाया गया। वे फिर नहीं आए। 15 जून 2023 को इस पर सुनवाई रखी गई और उस मौके पर सरकार द्वारा नामित अधिवक्ता आए। उन्हें नोटिस सुनवा दी गई और यह तय पाया गया कि छेदी सिंह आदि को सूचना पहुँच गई। अगली सुनवाई 26 जून 2023 को हुई और मौके पर पेशकार ने बार-बार पुकारा कि छेदी सिंह वगैरह हाज़िर हों। लेकिन छेदी सिंह नहीं आए। इस पर न्यायालय ने कहा कि बस्स! बहुत हो चुका। अब नोटिस नहीं दी जाएगी। और एकपक्षीय कार्यवाही करते सरकार द्वारा नामित अधिवक्ता को विस्तार से सुनते हुये पत्रावली आदेश सुरक्षित कर ली गई।

कोची में बंजर की गई जमीनों का आदेश

इसका परिणाम यह हुआ कि चार गांवों में लगभग 80 एकड़ ज़मीन को बंजर बना दिया गया और आगे की कार्रवाई के लिए अग्रेषित कर दिया गया। इस आदेश पत्र के अलग-अलग हिस्सों में आई मालिकाना दावेदारियों में 1378 फ़सली खतौनी तक मामला पहुँचता दिखता है अर्थात 1378+594=1972। यानी आज से 51 वर्ष पहले तक। उसके बाद के किसी मामले का ज़िक्र नहीं। 1972 के मामले को भी प्रशासन ने खारिज कर दिया। उदाहरण के रूप में इस आदेश में बताया गया है 1368 फ़सली में एक एकड़ का रकबा मथुरा वल्द रमेस्वर तथा डेढ़ एकड़ का रकबा देवनाथ पुत्र भगवानदास के नाम सिरधारी है लेकिन प्रशासन ने सघन जांच में यह पाया कि इसके बारे किस अदालत और किस अधिकारी ने आदेश किया था यह स्पष्ट नहीं है। प्रशासन ने और गहराई से जांच की तो पता चला कि अगली खतौनियों 1370 फ़सली से 1372 फ़सली बनाई गई तब भी मथुरा पुत्र रमेस्वर और देवनाथ पुत्र भगवानदास का नाम उन पर दर्ज़ है। जब चकबंदी हुई तब चक उड़ान की प्रक्रिया में ऐसी जगह आ गया जहां 1359 फ़सली में बंजर था। इसलिए स्पष्ट है कि यह रकबा बंजर है।

अधिवक्ता राम राजीव सिंह कहते हैं ‘इसमें कंट्रास्ट यह है की 1359 फसली की जो खतौनी है उसमें क्या है क्या नहीं है यह किसी को पता नही है। आपको भी अगर अपनी कोई जमीन लेनी होगी तो करेंट खतौनी ही देखेंगे।  बहुत करेंगे तब 59 फसली तक जाकर देखेंगे कि कहीं पोखर-तालाब या बंजर तो नहीं है। तो 59 फसली में क्या था क्या नहीं था यह किसी ने चेक नही किया। यह किसी को पता नहीं है जिन लोगों की जमीन चली आ रही है 59 फसली के बाद उसका क्या सीन रहा है। फिर चकबंदी आई तो यह काम हुआ पुराने नंबर को मिलाकर नए नंबर बने। उनकी मालियत लगी। चकबंदी सरकार के द्वारा की जाती है। तो सरकार देखती है कि उसकी जमीन कौन सी है, कौन सी नहीं है। इसलिए चकबंदी जहाँ हुई रहती है, वहां चकबंदी आकार पत्र देख करके यह निर्णय देना कि ये सब तब से आ रहा है, सही है।’

सरैयां में बंजर की गई जमीनों का आदेश

वर्तमान भूमिधरों का कहना है कि न हमें नोटिस मिला न सुनवाई हो रही है

मिल्कोपुर, तोफापुर, कोची और सरइयाँ के किसी भी सामान्य किसान को कोई नोटिस नहीं मिली इसलिए किसी को कुछ नहीं मालूम है कि उनकी ज़मीन को लेकर प्रशासन क्या करने जा रहा है। असल बात तो यही है कि इनमें से किसी को कोई नोटिस जारी ही नहीं की गई। नोटिस तो पचास साल पहले मरे छेदी सिंह के नाम से भेजी गई थी और ज़ाहिर है कि छेदी सिंह को नोटिस तामील करवाना संभव नहीं था।

वर्तमान भूमिधरों में से किसी को नोटिस न भेजने का एक उद्देश्य संभवतः यही रहा होगा कि इससे सैकड़ों किसानों द्वारा की जानेवाली आपत्तियों का सामना करने से साफ बचा जा सकता है और उन्हें न केवल पुराने जमाने की खतौनी पर नाम न होने के कारण आसानी से उलझाया जा सकता है और न ही किसी मुआवजे और पुनर्वास की जवाबदेही का सामना करना पड़ेगा। जब मैं इन गांवों के किसानों से मिलने गई थी तब उन्हें इस बात पर बात पर माथा पीटते देखा कि अब यह कौन सी विपत्ति आ रही है।

नंदलाल उपाध्याय कहते हैं कि ‘C.O. ने फैसला सुना दिया, लेकिन उनका अधिकार ही नहीं है यह करने का। 31/32 में तो उनको करना ही नहीं चाहिए, नियमित रूप से जिस चीज का फैसला 1977 में हो गया और उसमें बंजर और ग्रामसभा सब लगे हुए हैं तो फिर आप नए सिरे से कैसे बंजर निकाल देंगे? यह चार गाँव का मामला है और ये जबरदस्ती किये हैं। बहुत लोगों को तो यह भी नहीं पता है कि क्या मामला चल रहा है?

‘वकील साहब से जब मेरी बात हुई तो उन्होंने बताया कि ये किये क्या हैं। 59, 61, 62 फसली लेकर के ऑर्डर कर दिए हैं और जिसको आर्डर किये हैं उसकी मृत्यु 50 साल पहले ही हो गई है। छेदी सिंह नाम के उस आदमी ने 1955 में सुनील कुमार, चम्पा और आनंद देव के नाम रजिस्ट्री किया था। वह जमीन छेदी सिंह ने जमींदार से 1943 में पट्टा करवाया था।

‘और जब सब गाँव वाले लड़े तो चक कटा। तो इनको न सुनना चाहिए कि मरे हुए आदमी को फैसला दे रहे हैं। आप किसी को सुनकर के बंजर करिए या न करिए, लेकिन पार्टी को नोटिस तो दीजिये। इसी बात की लड़ाई है कि आप पूरा गाँव का गाँव कैसे बंजर करवा दे रहे हैं। 109 एकड़ का मामला है। चार गांवों की बात है। आप अधिकारी हैं तो क्या आप अपने मन का कर देंगे। अगर कुछ गड़बड़ी हो तो उसके लिए आप नोटिस भेजिए।’

तोफापुर में बंजर की गई जमीनों का आदेश

महेंद्र जायसवाल का कहना है कि ‘हमने ख़रीदा नन्द लाल उपाध्याय से और खतौनी में आज के डेट में मेरे ट्रस्ट का नाम चल रहा है। दाखिल ख़ारिज वगैरह हुए आज 15 साल से ऊपर हो गया। कम से कम हमें तो नोटिस भेजना चाहिए।’ जायसवाल ने बताया कि ‘जिस जमीन को हमने 18 लाख रुपये बिस्वे में खरीदा था। मेरी दो बीघे जमीन के लिए 7 लाख रुपया बिस्वा का रेट दे रहे हैं। समस्या इस बात की है कि यदि पैसा नहीं लेते हैं तो इसे ठंडे बस्ते में डालकर झेला देंगे। इसलिए पैसा लेना मजबूरी हो जाती है। नहीं लेंगे तब भी इनका निर्माण काम चलता रहेगा और हमारा पैसा भी डूब जाएगा। इसलिए जो मिलता है वह लेकर मामला खत्म कर देते हैं। सरकार से कौन लड़े?

अभी आप क्या का रहे हैं? इसके जवाब में वह कहते हैं कि ‘अभी स्टे लेने के लिए जोर लगाए हुए हैं कि किसी तरह स्टे मिल जाए। मिलकोपुर में हमें इस जमीन को खरीदे 33 साल से ऊपर हो गया। मैं पाँचवाँ आदमी हूँ जो इस जमीन को खरीद हूँ। 1990 में मैंने इस जमीन को खरीदा था। उसमें हम एक डीम्ड यूनिवर्सिटी डालने का प्लान था, इसलिए अगल-बगल के जितने भी छोटे-छोटे रकबे  थे सबको खरीदते गए। उस जमीन के कुल 17 बीघा की बाउन्ड्री करा दिया। अब उसे पूरा बंजर ही घोषित कर दिए। मेन रोड पर स्थित यह जमीन बंजर बता दिया। जमीन खदते समय मैंने पता भी किया कि जिससे खरीद रहे हैं उसका नाम खतौनी में आ रहा है या नहीं। कृषि भूमि के नाम पर इसका बैनामा हुआ था।’

कानूनी पहलू

कानूनन यह आदेश पूरी तरह एकपक्षीय आदेश है। इसमें किसी भी तरह की कोई जांच नहीं की गई और न मौके पर मौजूद वर्तमान भूमिधरों की स्थिति का कोई आकलन किया गया और न तो नई बंदोबस्ती को ही विचार करने लायक समझा गया इसलिए किसी जीवित और वर्तमान भूमिधर को न तो नोटिस भेजा गया और न ही उनकी बात सुनने अथवा आपत्ति दाखिल करने का कोई मौका ही दिया गया। इस प्रकार भारत सरकार के वर्तमान भूमि क़ानूनों का भी निषेध किया गया। सात दशक के अंतराल में बदली हुई परिस्थियों पर न तो कोई ध्यान दिया गया और न ही उनका निषेध करने से होनेवाले प्रभावों का आकलन किया गया। बंजर हासिल करने की प्रक्रिया में कितने लोग अपनी संपत्ति से हाथ धो बैठेंगे और उनके साथ कितना बड़ा अन्य होगा।

इसके बरक्स अगर देखा जाय तो यह आदेश पत्र झूठ और षड्यंत्र का एक पुलिंदा है जिसे जबरन बंजर हासिल करने के लिए एक सुविधानुसार रास्ता बनाया गया है। बरसों पहले एक मरे हुये आदमी की कहानी बनाकर उसके नाम से नोटिस भेजना और कुछ दिन बाद अखबार में छपवाना जिलाधिकारी, उपजिलाधिकारी और तहसीलदार की किस मंशा का द्योतक है यह आसानी से समझा जा सकता है। क्या इस प्रकार दिवंगत छेदी सिंह अथवा अन्य लोग आपत्ति दाखिल कर सकते हैं? यह सारा ड्रामा अपने आप ने अनेक फर्जी तथ्यों और षड्यंत्रकारी उद्देश्यों से बुना गया है।

अधिवक्ता देवेंद्र कुमार

जमीन के मसले पर बहुत सारी जटिलताएँ सामने आ रही हैं। लोगों को पता नही है। जो मेहनत-मजूरी करने वाले लोग हैं वे ज्यादातर सिरदारी कानून तक ही जानते हैं।

अधिवक्ता देवेंद्र कुमार कहते हैं ‘जाल्हूपुर में चकबंदी आई और चली गई। अभी भी सरकार चौंसठ साल पहले के 1959 फ़सली के रिकार्ड के हिसाब से चल रही है। 1959 के बाद अनेक लोगों का नाम चढ़ा, नाम चढ़ने के बाद उन्होंने उसे बेच दिया। जब हकबंदी आ गई तो उनके नाम से अलग चक कट गए। चकबंदी का काम ही यह होता है कि छोटे-छोटे चक को मिलाकर बड़ा चक बना दें।’

वह महेंद्र जायसवाल का उदाहरण देते हुये कहते हैं ‘जैसे आपकी जमीन है साढ़े तीन एकड़, उसमें एक नंबर का बैनामा लिया था। वह लगभग दो एकड़ के आसपास है। अब उसे बंजर दिखा रहे हैं। अब साढ़े तीन एकड़ में से दो एकड़ बंजर निकाल ले रहे हैं। जितना बंजर निकाल पाएंगे। उतने का मुआवजा उनको नहीं देना पड़ेगा। अब यदि इनका साढ़े तीन एकड़ जमीन का रकबा इस योजना में आ गया तो सरकार को डेढ़ एकड़ का ही मुआवजा देना पड़ेगा। लेकिन कृषि भूमि को बंजर घोषित करने का कोई प्रावधान नहीं है।’

आगे वह कहे हैं कि ‘महेंद्र जी की आज की डेट की खतौनी को देखिए। इसको अपडेट करने का काम डीएम का है। चकबंदी हो चुकी तो कोई खतौनी गलत कैसे चल रही है। आज आपको जरूरत पड़ी तो उसको बंजर घोषित कर दे रहे हैं।’

राम राजीव सिंह कहते हैं कि ‘ये चार गाँव का मामला है। सरकार का यह कहना है की खतौनी 1359 फ़सली के खाता संख्या 89 पर अंकित अमलदरामद हाकिम परगना साहब बहादुर से सम्बंधित गोसवारा रजिस्टर में दर्ज नहीं पाया गया, जबकि पहले ये कह रहे हैं कि मिल्कोपुर के खाता नंबर 89 में हाकिम परगना के आदेश से बंजर के खाते में अंकित भूमि पर छेदी आदि का नाम नवैयत जम्मन 9 पट्टा दर्ज किया गया। यद्दपि इस आदेश में वाद संख्या एवं तारीख फैसला का उल्लेख नही है। उसके बावजूद डेढ़ एकड़ जमीन बंजर के नाम से घोषित कर दिया जिसमें से इनका जो रिकॉर्ड है, सबकी रिपोर्ट इन्होंने लगाई है।

अधिवक्ता राम राजीव सिंह

‘हदबंदी के बाद जब किसी जमीन की चकबंदी आती है तो अपने नवैयत के हिसाब से चकबंदी में उनका नाम दर्ज किया जाता है। चकबंदी में वर्तमान काश्तकार का नाम दर्ज हुआ। उसी चकबंदी से फिर रेगुलर खतौनी में नाम आया, जो तहसील में दर्ज हुआ। और आप चकबंदी में नाम न करके अब ये दे रहे हैं छेदी के नाम से। छेदी रहे होंगे 50 साल 60 साल पहले। उनके नाम से पट्टा हुआ था और उस छेदी को इन्होंने नोटिस किया है। छेदी के नाम से सब कुछ किया है और इस बीच में तमाम क्रय-विक्रय हुआ है। चकबंदी अधिकारी ने भी रिपोर्ट लगाया है। यह जमीन जिसकी है, उसके पुराने नंबर को नए नंबर से कन्वर्ट किया है। अब आप 1359 फसली को लेकर छेदी के नाम से नोटिस जारी करते हैं और उनको बेदखल करते हैं, तो दरअसल आप छेदी को बेदखल करते हैं। जो मौजूदा समय में हैं उनको भी तो नोटिस जानी चाहिए और अगर यह बंजर रहता तो चकबंदी में क्यों नहीं हुआ बंजर। एक लाइन की बात है कि चकबंदी में क्यों नही हुआ बंजर? चकबंदी इसीलिए न होती है कि सरकार की जमीन को अलग कर दिया जाए और काश्तकार की जमीन को अलग कर दिया जाये। किसी की मालियत कम है तो उसको कन्वर्ट किया जाये। चकबंदी तो इसीलिए न बनी है। तो चकबंदी में तो आप खातेदार को दिखा रहे हैं और आज जो है 2023 में, आप कह रहे हैं कि बंजर हो गया है। कैसे बंजर हो गया? तब से कितने लोग उस पर मकान बनाये। कितने लोग रहे हैं। कितनी पीढियां बीत गईं। और आप खतौनी भी आज के डेट का लगाये हैं। कह रहे हैं कि फला व्यक्ति का नाम अंकित है। और उस व्यक्ति को आप नोटिस ही नही दे रहे हैं, जो अभी वहाँ हैं और जिसका वर्तमान खतौनी में नाम है!’

मुआवजे और पुनर्वास से बचने के लिए फर्जी ढंग से किसानों की ज़मीन को बंजर घोषित करने की सरकारी साज़िश

समाजवादी जन परिषद के राष्ट्रीय संगठन मंत्री अफलातून कहते हैं, ‘मिलकोपुर, कोची, तोफापुर और सरैयां की चकबंदी की हुई जमीनों में से सैकड़ों एकड़ जमीन को बंजर बताकर उसे हड़पने की तैयारी चल रही है। यह पूरी तरह से किसानों को बर्बाद करके सड़क पर ला देने का फरमान है। पूरे देश में कोई ऐसा प्रदेश नहीं होगा, जहां सरकार द्वारा भूमि अधिग्रहण का मामला न चल रहा हो, खासकर आदिवासी इलाके में। छतीसगढ़ की बात करें या ओडिशा की, उत्तर प्रदेश हो या फिर महाराष्ट्र, सभी जगह विकास के नाम पर सरकार किसानों, आदिवासियों की जमीनें लेने की कवायद में लगी हुई है। सरकार बजाफ़्ता साजिश करके लेने पर लगी हुई।

देश भर में जमीन के लिए किसान और आदिवासी संघर्ष कर रहे हैं। खतौनी और पट्टे निरस्त करने की प्रक्रिया तेजी से चल रही है। 2014 के बाद जब सारे कामों का डिजिटलीकरण होना शुरू हुआ, उसके बाद बहुत-सी गड़बड़ियाँ सुनाई देने लगीं। राजस्व और भू-लेखा विभाग में पट्टे और खतौनी की फाइलें ऑनलाइन दर्ज की गई हैं।

यह सब इसलिए बहुत तेजी से हो रहा है, क्योंकि मोदी सरकार देशी-विदेशी पूँजीपतियों के हाथों बिकी हुई है और किराये पर काम कर रही है। एक विदेशी कंपनी वॉटरहाउस प्राइज़ कूपर भारत सरकार को राय देती है कि किस तरह ज़मीनें लेनी है? कैसे हेर-फेर करना है और अगर जनता में कोई विद्रोह हो तो किस प्रकार उससे निपटना है? इन चारों गांवों की ज़मीन पर भी इसी तरह से वॉटरहाउस प्राइज़ कूपर द्वारा बनाई योजना के हिसाब से काम चल रहा है। सरकार के अभिलेखागार में जनता के सारे कागजात सुरक्षित हैं और सरकार उनमें आसानी से हेर-फेर करवा सकती है। आप जान लीजिये कि यह सब केवल इसलिए हो रहा है, ताकि अंबानी-अडानी को मुफ्त में ज़मीनें दी जा सकें। यह देश के किसानों को सड़क पर लाने की परियोजना है।’

बहुत तरह के सवाल खड़े हो रहे हैं। गाँव में जो लोग भी इसके बारे में सुन रहे हैं, उनके पाँव तले की ज़मीन खिसक रही है। वाराणसी के इन गांवों के किसानों पर जिस तरह धावा बोला जा रहा है उसका परिणाम बहुत भयानक होगा, क्योंकि जिनकी ज़मीनों से बंजर निकलेगा, उन्हें मुआवजे में एक फूटी कौड़ी भी नहीं मिलेगी। यह संभव है कि बहुतों के पास रहने की जगह भी न बचे।

 

अपर्णा
अपर्णा
अपर्णा गाँव के लोग की संस्थापक और कार्यकारी संपादक हैं।
7 COMMENTS
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