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वाराणसी : रामनगर में जबरन चला बुलडोजर, आंदोलन कर रहे लोगों ने बताया ‘तानाशाही’ रवैया

वाराणसी। रामनगर-टेंगरा मोड़ से पड़ाव तक सड़क चौड़ीकरण को लेकर वीडीए का बुलडोजर चलाया गया। स्थानीय नागरिकों ने इसका काफी विरोध किया, लेकिन अफसरान अपनी कार्रवाई करते रहे। प्रशासन के आगे किसी की एक न चली। वर्षों से जिस छत के नीचे लोग रह रहे थे वह अपना आशियाना गिरते देखते रहे। चेहरे पर मायूसी […]

वाराणसी। रामनगर-टेंगरा मोड़ से पड़ाव तक सड़क चौड़ीकरण को लेकर वीडीए का बुलडोजर चलाया गया। स्थानीय नागरिकों ने इसका काफी विरोध किया, लेकिन अफसरान अपनी कार्रवाई करते रहे। प्रशासन के आगे किसी की एक न चली।

वर्षों से जिस छत के नीचे लोग रह रहे थे वह अपना आशियाना गिरते देखते रहे। चेहरे पर मायूसी थी और कई सवाल भी। सैकड़ों लोगों की बसी-बसाई गृहस्थी को पुलिस प्रशासन ने एक झटके में खत्म कर दिया।

इस दौरान एडीएम प्रशासन विपिन कुमार उस धमकी से लोग सहम गए जिसमें उन्होंने कहा- ‘सारे लोग दुकान-मकान खाली करें। हम सब नहीं रूकेंगे और ध्वस्तीकरण की कार्रवाई जारी रहेगी। कोर्ट ऑफ कंटेप्ट (न्यायालय की अवमानना) का मामला हम देख लेंगे।’

पड़ाव से रामनगर टेंगरा मोढ़ पर अतिक्रमण के नाम पर सैकड़ों लोगों को मकान ध्वस्त करने की कार्रवाई दो माह पहले की की गई थी लेकिन स्थानीय लोगों के विरोध के कारण प्रशासन उस दौरा पीछे हट गया था।

ग्रामीणों के आंदोलन का नेतृत्व रामनगर के फारुख़ कर रहे हैं। वह बताते हैं प्रशासनिक अधिकारी मन बनाकर आए थे कि तोड़फोड़ करना ही है। उन लोगों ने अकॉर्डिंग टू लॉ को महत्व ही नहीं दिया। जब हमारा वाद हाइकोर्ट में चल रहा है तो तोड़फोड़ की कार्रवाई कैसे हो गई? अभी दर्ज़नों लोग इस मामले में वादी है, सभी का वाद भी सुरक्षित है।

फारुख बताते हैं कि कोर्ट का आदेश है कि पीड़ितों को बिना निगोशिएट (बातचीत) कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी। जबकि एडीएम प्रशासन विपिन ने कोर्ट के आदेश को नहीं माना। तोड़फोड़ के दौरान उन्होंने कह दिया कि ‘बहुत सारे मुकदमें देख रहा हूँ एक और सही।’

‘प्रशासन ने कानून को अपने जूतों तले रौंद दिया।’ फारुख आगे कहते हैं कि हम इस मनमानी कार्रवाइ के लिए कोर्ट ऑफ कंटेप्ट करेंगे। आमजन को प्रताड़ित करके शहर का विकास किसको कबूल होगा?

हाईकोर्ट के आदेश के मुताबिक, बीते 29 दिसम्बर को लोक निर्माण और राजस्व विभाग ने तीन दिन शिविर लगाया था, जिसमें 194 लोगों ने मुआवजे के लिए आवेदन किया है। उसमें भी कानूनी प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया गया। आदेश के अनुसार प्रशासन ने नागरिकों से कोइ बातचीत नहीं की सिर्फ फॉर्म भरवा दिया।

स्थानीय लोगों का आरोप है कि यह फॉर्म मुआवजा नहीं बल्कि सहमति के लिए दिया गया था। हमें मुआवजा मिलेगा या नहीं यह सवाल हमारे मकानों की तरह की ढह गया है।

लोगों ने कहा कि ‘हम लोग दो-ढाई वर्षों से रह रहे हैं, हमें एक दिन में इनलीगल कर दिया गया। हमारे पास बिजली, पानी, मकान का बिल है। ज़मीन के कागज भी हैं, लेकिन प्रशासन ने सभी का नज़रअंदाज कर दिया।’

गुरुवार को रामनगर में वीडीए की टीम ने हल्के बल का प्रयोग कर विरोध कर रहे लोगों को पीछे हटने पर बाध्य कर दिया। जिसके बाद वीडीए अधिकारियों ने पुलिस के सहयोग से चौड़ीकरण की राह में बाधक बने मकानों और दुकानों को ध्वस्त करने की कार्रवाई की। इस कार्रवाई में उन लोगों के निर्माण भी नही बख्शे गए, जिन्होंने हाइकोर्ट से राहत पाई थी।

स्थानीय लोगों ने लगाया आरोप

पड़ाव से रामनगर टेंगरा मोढ़ तक अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई प्र्रशासन ने दो माह पहले भी की थी। स्थानीय लोगों के अनुसार, उस दौरान हम लोगों ने विरोध किया तो प्रशासनिक अमला बैरंग हो गया। इसी बीच लगभग 40 लोगों ने कोर्ट की शरण ली। कोर्ट के आदेश पर डीएम ने सहमति के आधार पर मुआवजा और क्षतिपूर्ति की प्रक्रिया शुरू की।

स्थानीय पीड़ितों ने आरोप लगाया कि इसके बाद पुलिस प्रशासन ने हमें कोई सूचना नहीं दी और गुरुवार को बुल्डोजर, जेसीबी लेकर आ गए। लगभग 100 की संख्या में शासन-प्रशासन के लोग थे। एसडीएम, एडीएम प्रशासन के साथ लोक निर्माण विभाग के अधिकारी भी मौजूद थे। स्थानीय लोगों की एक भी न सुनी गई और उनके मकानों को तोड़ दिया गया।

वाराणसी के रामनगर में खुद का मकान टूटते हुए देखते रहवासी

रामनगर के युवा पत्रकार आनंद कश्यप का मकान भी चौड़ीकरण की ज़द में आ गया है। वह अपने मकान का आगे से 22 फुट का हिस्सा खुद तोड़वा रहे हैं। वह बताते हैं कि मेरा मकान बाप-दादा के समय से बना हुआ था। शिविर में मैंने अपने मकान की रजिस्ट्री दिखाई थी, लेकिन उसे अमान्य कर दिया गया। मुआवजे के सवाल पर अधिकारियों ने चुप्पी साध ली।

आनंद बताते हैं कि शिविर में जो आवेदन फॉर्म दिया गया है वह एक प्रकार से सहमति-पत्र है। इस कारण मैंने उसे नहीं भरा। वैसे भी इस समय तानाशाहों की सरकार है। कुछ भी बोलना खतरे से खाली नहीं है। फिलहाल मैंने मुआवजे के लिए कोर्ट का रुख कर लिया है। ज़मीन के कागज़ात ज़मा कर दिए गए हैं।

वह बताते हैं कि पड़ाव से रामनगर टेंगरा मोढ़ तक चौड़ीकरण का आदेश होते ही स्थानीय लोग चिंतित हो गए थे। यहाँ कई ऐसे परिवार हैं, जो ढाई-तीन सौ वर्षों से रह रहे हैं। विकास के नाम पर इनकी भी बलि चढ़ा दी गई। एक झटके में उन्हें हटा दिया गया। इनको मुआवज के लिए भी कोई आश्वासन दिया गया है।

चंदा इकट्ठा कर हाइकोर्ट गए थे लोग

रामनगर के व्यापारियों ने बताया कि दो माह पहले जब तोड़फोड़ की कार्रवाई की गई थी तभी हम लोगों न विरोध कर प्रशासन को रोक दिया था। मामला कोर्ट में अभी विचाराधीन है तब तक प्रशासन न मनमानी कार्रवाई कर दी। रामनगर के व्यापार मंडल ने इस कार्रवाई को प्रशासनिक तानाशाही बताया है।

व्यापारी अशोक कुमार बताते हैं कि मध्यम वर्ग का व्यापारी इस कार्रवाई से ज़्यादा परेशान हुआ है। इंसाफ़ पाने लिए हम लोग चंदा इकट्ठा कर हाइकोर्ट गए थे। लाखों रुपये खर्च हो गए। यह सारी बातें प्रशासन को मालूम हैं, लेकिन बुलडोज़र की कार्रवाई के दौरान हमारी कोई बात नहीं सुनी गई।

ठिठुरती ठंड में कैसे होगा गुज़ारा

प्रशासन के बुलडोज़र की कार्रवाई में ऐसे कई लोगों के मकान टूटे हैं जिनके पास उसके मरम्मत के लिए पैसे नहीं हैं। शीतलहरी और ठंड के बीच ऐसे लोग कैसे जीवनयापन करेंगे, यह भी सवाल है। पुलिसकर्मियों ने गरीबों के कपड़ों को बाहर फेंक दिया। टूटे दीवाल के नीचे रजाई, कम्बल दब गए। गंदे हो गए। परिवार के लोगों ने किसी तरह कम्बल, रजाई और अन्य गर्म कपड़ों को निकाला लेकिन वह गंदे हो गए थे। इस भीषण ठंड में बिना धोऐ इन कपड़ों का प्रयोग करना भी मजबूरी बन गई।

मजदूरों को लगवाकर तोड़े गए घर

इस बाबत एडीएम प्रशासन विपिन कुमार ने गाँव के लोग डॉट कॉम को बताया कि हमें जो आदेश मिला है उस पर काम तो करना पड़ेगा। रामनगर में जो लोग तोड़फोड़ की कार्रवाई की ज़द में आए है उन्होंने मुआवजे के लिए आवेदन किया हुआ है। उस पर अधिकारी विचार कर रहे हैं।

गौरतलब है कि पड़ाव से रामनगर तक सड़क चौड़ीकरण का कार्य प्रस्तावित है। इस बाबत दो माह पहले पीएसी तिराहे के आस पास अवैध अतिक्रमण हटाए गए थे। जिसे लेकर व्यवसाइयों ने भारी विरोध किया था। हंगामा बढ़ते देख प्रशासन ने तत्काल कार्रवाई रोक दी थी।

एक-दो बार प्रयास किया भी लेकिन विरोध के चलते प्रशासन को बैकफुट पर जाना पड़ गया था। इस बीच 40 लोगों ने उच्च न्यायालय की शरण ली थी। न्यायालय ने जिलाधिकारी को निर्देश दिए थे कि सहमति के आधार पर मुआवजा या क्षतिपूर्ति देने की प्रक्रिया शुरू करें।

अमन विश्वकर्मा
अमन विश्वकर्मा
अमन विश्वकर्मा गाँव के लोग के सहायक संपादक हैं।

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