डॉ अंबेडकर नेकहा था, ‘हिन्दू धर्म एक ऐसी राजनैतिक विचारधारा, जो पूर्णतः प्रजातंत्र विरोधी है और जिसका चरित्र फासीवाद/ नाजी विचारधारा जैसा ही है। अगर हिन्दू धर्म को खुली छूट मिल जाए। हिन्दुओं के बहुसंख्यक होने का यही अर्थ है – तो वह उन लोगों को आगे बढ़ने ही नहीं देगा, जो हिन्दू नहीं हैं या हिन्दू धर्म के विरोधी हैं। यह केवल मुसलमानों का दृष्टिकोण नहीं है। यह दमित वर्गों और गैर-ब्राहमणों का दृष्टिकोण भी है । (सोर्स मैटेरियल ऑन डॉ आंबेडकर, खंड -1, पृ 241, महाराष्ट्र शासन प्रकाशन।)
‘बाबा साहब ने जिस हिन्दू राज को किसी भी कीमत पर रोकने का आह्वान किया था, उसका असल रूप हाल के कुछ महीनों में एकाधिक बार सामने आया है, खासतौर से 12 अप्रैल को आगरा में जो रूप सामने आया है, उसे देखकर दलित बहुजनों में आंबेडकर जयंती मनाने का उल्लास काफी हद तक कम हो गया है : वे हिन्दू राष्ट्र के खतरे को लेकर भयाक्रांत हो गए है।
सदियों से तीर-तलवार से हिन्दू धर्म की रक्षा का भार उठाने वाले क्षत्रियों के एक संगठन : करणी सेना की ओर से 12 अप्रैल को आगरा के गढ़ीरामी गाँव में ‘रक्त स्वाभिमान सम्मलेन’ का आयोजन किया गया, जिसमे विभिन्न प्रान्तों के क्षत्रियों को डंडे और झंडे के साथ पहुँचने का आह्वान किया था। पर, उस दिन सुबह से उत्तर प्रदेश के साथ राजस्थान, हरियाणा, गुजरात, दिल्ली और पंजाब समेत 10 राज्यों के क्षत्रिय डंडा और भगवा झंडा ही नहीं तलवार, फरसे, भाले जैसे खतरनाक हथियारों के साथ के साथ पहुँचने लगे थे गढ़ीरामी और देखते ही देखते उनकी संख्या 80-90 हजार तक पहुँच गई। कहने को तो यह सम्मलेन राणा साँगा की जयंती मनाने के लिए आयोजित किया था पर, असल मकसद सपा के सांसद रामजीलाल राणा सांगा पर की गई टिप्पणी को लेकर विरोध प्रकट करना रहा।
सम्मलेन स्थल पर 9 कम्पनियां पीएसी की और 2 कम्पनियाँ आरएएफ की तैनात रहीं। करीब 5 से 6 हजार पुलिसकर्मियों ने कार्यक्रम को कवर किया। कार्यक्रम में फूलन देवी की हत्या के दोषी रहे शेर सिंह भी पहुंचे और कहे कि रामजीलाल सुमन पर एनएसए लगाकर सदस्यता रद्द कर जेल भेजा जाय।‘ पूर्व राजपूत करणी सेना अध्यक्ष सुखदेव सिंह गोगामेड़ी की पत्नी शीला गोगामेड़ी ने कहा, ’हमें गर्व है कि हम राणा सांगा के वंशज हैं। अगर कोई गद्दार हमारे भगवान् पर सवाल उठाता है, तो उसे देश में रहने का अधिकार नहीं।’ सम्मलेन में पहुंचे अधिकाश क्षत्रियों का उदगार शेर सिंह और शीला गोगामेड़ी जैसा ही रहा। सम्मलेन समाप्त होने के बाद करणी सेना के लोग हाईवे पर आकर ट्राफिक जाम लगा दिए। पुलिस ने करणी सेना के समर्थकों को रामजीलाल सुमन के घर की और जाने से रोका। आगरा में करणी सेना के इस प्रदर्शन ने कानून व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। एक ओर खुलेआम तलवारें लहराई गईं, दूसरी ओर पुलिस के सामने ही नारेबाजी और धमकी भरे बयान दिए गए। अब देखना यह होगा कि प्रशासन इस मामले में क्या कार्रवाई करता है और कानून की धारा के तहत कैसे कार्रवाई की जाती है।
बहरहाल रक्त स्वाभिमान सम्मेलान में जिस तरह हजारों लोग हथियार लहराए, जिस तरह संविधान की धज्जियाँ उड़ाए , सोशल मीडिया पर उसकी विडियों देखकर लोग हक्का- बक्का रह गए और उनकी टिप्पणियों से सोशल मीडिया भर गई। प्रायः 70% लोगों लिखा कि आगरा में करणी सेना ने हथियारों के साथ जुलुस निकालकर बता दिया है कि हिन्दू राष्ट्र कैसा होगा। अधिकांश की राय रही कि भारत अब पूरी तरह जंगल राज में तब्दील हो गया है, जिसमें उच्च वर्ण बेख़ौफ़ होकर दलित-पिछड़ों और अल्पसंख्यकों पर निशाना साध रहा है। भारत जंगल राज में तब्दील हो गया है इसलिए हिन्दुओं का सक्षम तबका बेख़ौफ़ होकर मस्जिदों और गिरजा घरों पर भगवा फहरा रहा है; अल्संख्यकों की बस्तियों में पहुँचकर डीजे बजाते और तलवारें लहराते हुए उनके खिलाफ भद्दी-भद्दी गालियां उछाल रहा है। जंगलराज का यही प्रतिबिम्बन आगरा के रक्त सम्मलेन में हुआ जिसका फेसबुक पर बहुजन बुद्धिजीवियों की राय का प्रतिबिम्बन इन टिप्पणियों में देखा जा सकता है! ‘दलितों-पिछड़ों आपको भाजपा के राम राज्य में स्वागत है! जिन तलवारों को मुस्लिम समाज पर हमले के लिए हमने भाजपा को वोट देकर धारदार बनाया,वे तलवारें हमारी तरफ़ मुड़ गईं हैं, ये तो होना ही था। दलित समाज के सपा सांसद रामजी लाल सुमन के ख़िलाफ़ जातिवादी संगठन करनी सेना का हथियारबंद प्रदर्शन….. अखिलेश यादव को गोली मारने की खुला धमकी देना लक्षण है हिन्दू राष्ट्र का।’ ‘सिविल वार की तैयारी! खुलेआम हथियार लहराए जा रहे हैं। हत्या की धमकी दी जा रही है। पुलिस तमाशबीन बनी हुई है। मीडिया भी ऐसे आयोजन से उत्साहित है।
केंद्र सरकार के मंत्री और राज्य सरकार ऐसे आयोजन की सफलता पर खुशी जता रहे हैं। न्यायपालिका दूसरे कामों में व्यस्त है। यह पूरा सूरत-ए-हाल इस बात की तसदीक़ कर रहा है कि देश का समूचा सत्ता प्रतिष्ठान आम लोगों के एक बड़े हिस्से को लाशें देखने का शौकीन बना कर निश्चिन्त है।‘ पूरी कार्पोरेट-ब्राह्मणवादी मीडिया आज दलित-बहुजनों के खिलाफ जहर उगल रही है, जो कार्पोरेट-ब्राह्मणवादी मीडिया (जिसे कुछ लोग उनका असली चरित्र ढंकने के लिए गोदी मीडिया कहते हैं) पिछले 10 सालों से मुसलमानों के खिलाफ जहर उगल रही थी। उनके खिलाफ हिंदुओं को उकसा रही थी, उत्तेजित कर रही, हिंसा के लिए प्रेरित कर रही, लिंचिंग, दंगो,आगजनी, बुल्डोजर से घरों को घिराने को जायज ठहरा रही थी, वह आज दलित-बहुजनों के खिलाफ जहर उगल रही है, मनुवादियों-ब्राह्मणवादियों के साथ खुल खड़ी हो गई है, हिंदू होने का भी अपना नकाब उतार दिया है। खुलकर द्विज-सवर्णों की भाषा बोल रही है। दलित-बहुजनों को कटघरे में खड़ा करने की कोशिश कर रही। करणी सेना को जायज़ ठहराने और न्यायोचित ठहराने में लग गई है,कोई भी कार्पोरेट-ब्राह्मणवादी चैनल खोलकर देख लीजिए। हर चैनल पर करणी सेना के प्रवक्ता दहाड़ रहे हैं, एंकर उनका हौसला आफजाई कर रहे हैं। मुसलमानों के बाद अब निशाने पर दलित-बहुजन आ गए हैं। अब इन्हें उनकी औकात (मनु की व्यवस्था) में लाने के संघी-अभियान का ब्राह्मणवादी-कॉर्पोरेट मीडिया हिस्सा बनकर मैदान में उतर आई है।
करणी सेना के हथियारबंद रक्त स्वाभिमान सम्मेलन ने आँख में अंगुली डालकर बता दिया है कि हिन्दू राष्ट्र कैसा होगा! जब रामजीलाल सुमन जैसे दलित सांसद और अखिलेश यादव जैसे पूर्व मुख्यमंत्री को जान से मारने की बेख़ौफ़ होकर धमकी दी जा सकती है तो हिन्दू राष्ट्र में आम दलित बहुजनों की क्या स्थिति हो सकती है, इसकी सहज कल्पना की जा सकती है। इसी बात को ध्यान रखते हुए बाबा साहेब डॉ आंबेडकर ने वर्षों पहले हिन्दू राज को रोकने का आह्वान किया था। बहरहाल आज जबकि हिन्दू राज खौफनाक आकार धारण कर हमारे सामने आ चुका है: हर आंबेडकरवादी का अत्याज्य कर्तव्य बनता है कि आज के दिन इसके ध्वंस का संकल्प ले!
लेकिन सवाल पैदा होता है कैसे हिन्दू राज के खतरे से वंचित बहुजनों को बचाया जाय? यह लेख लिखने के दौरान मैंने फेसबुक पर यह पोस्ट बाबा साहेब आंबेडकर के अनुसार अगर हिन्दू राज दलित-बहुजनों के लिए आफत है तो वह सामने आ चुकी है। आप बताये हिन्दू राज नामक आफत का मुकाबला दलित पिछड़ों को कैसे करना चाहिए? डालकर उपाय जानना चाहा
लोगों का उत्तर बहुत उत्साहवर्द्धक नहीं रहा! एक बहुजन पत्रकार ने लिखा,’भूमि पर अधिकार के लिए साझा संघर्ष ही उपाय है। इसी से जाति ख़त्म होगी और ब्राह्मणवाद का खात्मा होगा।‘ एक और लिखा, एकता और जागरूकता ही एक मात्र विकल्प है। ‘भाजपा हराओ, हिन्दू राष्ट्र का भूत भगाओ!’ एक राजनीतिक कार्यकर्ता का कहना रहा। एक मार्क्सवादी विचरक का उत्तर रहा, ‘बंदूक उठाने का समय आ गया है।‘ एक और का उत्तर रहा, ‘इस आफत के सहयोगी हैं तो भला मुकाबला क्या करें?’ तो समाज के जागरूक लोगों की यह राय है। बहरहाल करणी सेना के सम्मेलन से हिन्दू राज की आफत का जो नया रूप सामने आया है, उससे निजात का उपाय ढूंढते समय यह बात ध्यान में रखनी होगी कि हिन्दू राज का जो खौफनाक रूप आया है, उसके पृष्ठ में हैं वे सवर्ण जिनमें दलित,पिछड़ों और अल्पसंख्यकों इत्यादि के खिलाफ हाल के दिनों में नए सिरे से आक्रामकता आई है, जिसके चलते वे मस्जिदों और चर्च पर भगवा फहराने, अल्पसंख्यको को जलील करने और दलित पिछड़ों में रामजी लाल सुमन, अखिलेश यादव इत्यादि जैसे सक्षम लोगों तक को गोली मारने की धमकी देने में कहीं से बाधा नहीं आ रही है।
इसके कारणों की पड़ताल करते हुए हाल ही में देश के बड़े बहुजन विचारक ने लिखा है, ‘मोदी-योगी युग में द्विज-सवर्णों की मानसिकता पूरी तरह उलट गई, अब वे आक्रामक, मनबढ़ और विजयी मुद्रा में तलवार भांज रहे हैं- बात रामजीलाल सुमन तक सीमित नहीं है, आखिर यह क्यों और कैसे हुआ? इससे शायद ही कोई इंकार कर पाए कि द्विज-सवर्ण आजादी के बाद सबसे आक्रामक मानसिकता में हैं, एक तरह की विजयी मुद्रा में हैं। उन्हें लग रहा है कि उनके वर्चस्व को चुनौती देने वाली शक्तियां या तो उनके सामने शरणागत हो गईं हैं या इस स्थिति में नहीं हैं कि उनके विजय अभियान या आक्रामता को रोक सकें या उनका सामना कर सकें। उन्हें लग रहा है कि आर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक और धार्मिक तौर, विशेष तौर पर सांगठनिक मामले में इतने शक्तिशाली हो गए हैं कि कोई उनका सामना नहीं कर सकता है। वह पुन: खोते से दिख रहे अपने वर्चस्व को पूरी तरह कायम कर सकते हैं, साधारणीकरण करते हुए सरल भाषा में कहें तो मनुस्मृति के मूल बातों को लागू रख सकते हैं। संविधान बदलकर या बदलने बिना। आर्थिक सत्ता, सामाजिक सत्ता, सांस्कृतिक और धार्मिक सत्ता काफी हद तक पहले ही उनके हाथ में थी, अब राजनीतिक सत्ता भी उनके हाथ में पूरी तरह आ गई है, न केवल केंद्र में बल्कि राज्यों में या तो वे सत्ता में या मुख्य विपक्षी राजनीतिक शक्ति हैं।’ वास्तव में सवर्णों में जो नए सिरे से आक्रामकता का उभार हुआ है, उसके पृष्ठ में है अर्थ-ज्ञान और धर्म के साथ राजसत्ता पर अभूतपूर्व कब्जा!
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के पहले आर्थिक, धार्मिक , सांस्कृतिक, शैक्षिक पर सवर्णों का कब्ज़ा ठीक-ठाक था, पर राजनीतिक क्षेत्र में कमजोर होने के कारण वे मायावती, रामबिलास पासवान, लालू यादव, मुलायम यादव के शरणागत रहने के लिए अभिशप्त रहे। लेकिन मोदी के सत्ता में आने के बाद स्थितियां बहुत बदल गई हैं। मोदी के ए टू जेड : हर पॉलिटिकल मूव का चरम लक्ष्य हिन्दू ईश्वर के उत्तमांग से जन्मे 7.5 % आबादी के स्वामी सवर्णों के हाथ में शक्ति के समस्त स्रोत- आर्थिक, राजनीतिक, शैक्षिक और धार्मिक- सौंपना रहा है। चूँकि हिन्दू धर्म में शक्ति के समस्त स्रोतों के भोग के दैविक अधिकारी सिर्फ ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्यों का पुरुष वर्ग रहा है।
इसलिए हिन्दू धर्म के ठेकेदार संघ प्रशिक्षित नरेंद्र मोदी ने धर्म शास्त्रों में आस्था रखते हुए अपनी सारी नीतियाँ इस तरह अख्तियार की जिससे राजसत्ता का प्रायः समस्त उपयोग सवर्ण पुरुषों के हिस्से में गया। विपरीत इसके जिन दलित, आदिवासी, पिछड़ों और विधर्मियों के लिए शक्ति के स्रोतों का भोग अधर्म रहा, वे मोदी राज में बद से बदतर स्थिति में पहुँचते गए। यदि ठीक से अध्ययन हो तो साफ़ दिखेगा कि अर्थ- सत्ता, राजसत्ता, धर्मसत्ता के साथ ज्ञानसत्ता पर सवर्ण पुरुषों का प्रायः 80 से 90 % कब्जा हो गया है। शक्ति के समस्त स्रोतों 80 से 90 % एकाधिकार के कारण सवर्णों में इतना प्रचंड आत्मविश्वास आया है, जिस कारण उनमें आक्रामकता, मनबढई और विजयी भाव शिखर पर पहुँच गया है। उन्हें पता है वह कुछ भी करेंगे, कानून उनके खिलाफ नहीं जायेगा। इन सब कारणों से ही वे बेख़ौफ़ होकर रामजी लाल सुमन की गर्दन काटने तो अखिलेश यादव को गोली मारने की धमकी दे देते है। कानून से खुद को ऊपर समझने के कारण ही उन्हें अल्पसंख्यकों के देवालयों पर अपना झंडा फहराने तथा उनकी गलियों में घुसकर उनके खिलाफ भद्दी-भद्दी गालियां उछालने में कोई भय नहीं होता!
तो हिन्दू राज नामक आफत की सृष्टि शक्ति के स्रोतों पर सवर्णों के बेहिसाब वर्चस्व के कारण पैदा हुई है। इस वर्चस्व के कारण ही वे कानून और संविधान की धज्जियाँ उड़ाते हुए जंगल राज कायम करने में सफल हो गए हैं। लेकिन शक्ति के स्रोतों पर बेपनाह कब्जे के कारण वे पूरे गैर- सवर्ण समाज पर खौफ पैदा करने में जरुर कामयाब हो गए हैं। पर, यही वर्चस्व उनके ध्वंस का कारण भी बन गया है, इसका उन्हें इल्म ही नहीं है। और इल्म इसलिए नहीं है क्योंकि शक्ति के स्रोतों पर उनके बेहिसाब वर्चस्व से जिस सापेक्षिक वंचना के तुंग पर पहुचने लायक हालात भारत में पैदा हो चुके हैं, अज्ञानतावश वंचित समुदायों के नेता और बुद्धिजीवी उसका सद्व्यवहार करने के लिए आगे ही नहीं बढ़ रहे हैं। यदि वंचित समुदायों के नेता सवर्ण वर्चस्व से उपजे हालात का सद्व्यहार करने के लिए आगे बढ़ते हैं तो पता चलेगा जो सापेक्षिक वंचना क्रांति की आग में घी का काम करती है, उसके तुंग पर पहुचने लायक जो हालात वर्तमान भारत में हैं, वैसे हालात फ़्रांसिसी क्रांति पूर्व न तो फ़्रांस में रहे और न ही वोल्सेविक क्रांतिपूर्व रूस में। शक्ति के स्रोतों पर सवर्णों का आज जैसा वर्चस्व भारत में है, वैसा ही वर्चस्व नब्बे के दशक पूर्व दक्षिण अफ्रीका में था, जिसके फलस्वरूप मंडेला के लोगों में सापेक्षिक वंचना का ऐसा उभार हुआ कि बंदूक के बल पर लम्बे समय से कायम गोरों की सत्ता हमेशा के लिए ख़त्म हो गई और आज वे दक्षिण अफ्रीका से भागकर दूसरे देशों में शरण लेने के लिए विवश हैं।
शक्ति के स्रोतों के मामले में भारत के सवर्णों और दक्षिण अफ्रीका के गोरों में कितनी साम्यता रही, इसका अनुमान पिछले साल मई में आई वर्ल्ड इन इक्वालिटी लैब की रिपोर्ट से लगाया जा सकता है, जिसमें बताया गया था कि देश की धन-दौलत पर सामान्य वर्ग अर्थात सवर्णों का 89 % कब्जा है, जबकि विशाल ओबीसी आबादी 9 % तो दलित 2. 8 % धन-दौलत पर गुजारा करने के लिए विवश हैं। इसके पहले 2006 से वर्ल्ड इकॉनोमिक फोरम की ओर से प्रकाशित हो रही ‘ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट’ 2020 से लगातार बता रही है कि भारत के आधी आबादी स्थिति नेपाल, म्यांमार, पकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका इत्यादि से बदतर है और उसे आर्थिक रूप से भारत के पुरुषों की बराबरी में पहुंचने में 250 साल से भी अधिक लगने हैं। कुल मिलाकर सवर्णों के हाथों में शक्ति के समस्त स्रोत सौंपने के चक्कर में मोदी सरकार से जो बड़ी चूक हुई है, उससे दलित, आदिवासी, पिछड़े, अल्पसंख्यकों और आधी आबादी में सापेक्षिक वंचना का भाव पनपने का मंडेला के लोगों से भी बेहतर अवसर मिल गया है। ऐसे में भारत में के बहुजन नेता, बुद्धिजीवी और छात्र यदि मंडेला के लोगों से प्रेरणा लेकर सपेस्क्षिक वंचना के भाव को शिखर पहुँचाने का सम्यक प्रयास करें तो भारत के सवर्ण भी दक्षिण अफ्रीका के गोरों जैसी विकट स्थिति का सामना करने के लिए विवश हो जायेंगे। अतः जरुरत है आज भारत के वंचित बाबा साहेब की जयंती के दिन मंडेला के लोगो से प्रेरणा लें।