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आंबेडकर जयंती के दिन मंडेला के लोगों से प्रेरणा लें : भारत के वंचित समुदाय 

आज हम बाबा साहेब डॉ. आंबेडकर की 134 वीं  जयंती एक ऐसे समय में मना रहे हैं, जब आंबेडकरवादियों को उस हिन्दू राज का भय बुरी तरह सता रहा है, जिसके खतरे से बचने के लिए बाबा साहब वर्षों पहले आगाह कर गए थे। उन्होंने हिन्दू राज के खतरे से आगाह करते हुए कहा था, ’अगर हिन्दू राज हकीकत बनता है, तब वह इस मुल्क के लिए सबसे बड़ा अभिशाप होगा। हिन्दू कुछ भी कहें, हिन्दू धर्म स्वतंत्रता, समता और बंधुता के लिए खतरा है। इस पैमाने पर वह लोकतंत्र के साथ मेल नहीं खाता है। इसलिए हिन्दू राज को किसी भी कीमत पर रोका जाना चाहिए।’

डॉ आंबेडकर के प्रति हिकारत के पीछे संघ-भाजपा की राजनीति क्या है

एक तरफ डॉ अंबेडकर ने जहां संविधान में समानता, बंधुत्व, स्वतंत्रता को शामिल किया, वहीं आरएसएस ने देश में हिंदुत्व को बढ़ावा देते हुए फासीवाद और ब्रह्मणवाद मार्का पर काम कर रहा है, जिसके बाद अम्बेडकरवादी विचारधारा पर लगातार हमला हो रहा है। 

जातिवादी व्यवस्था ही आरक्षण का आधार है

डॉ. अंबेडकर ने कब कहा कि हम ऐसा समाज बनेंगे जो आरक्षण देगा, लेगा नहीं? क्या आपने कभी पढ़ा है? आज के सामाजिक ठेकेदार और रलित समाज से आने वाले राजनेता बाबा साहेब से भी बड़े विद्वान हैं। वे उससे भी बड़े नेता हैं। यह दुनिया का सबसे बड़ा झूठ है कि हम देने वाला समाज बन जाएंगे। यह बिलकुल गलत है। जो हमें मिला है वह भी खत्म हो रहा है। हम उसे भी नहीं बचा पा रहे हैं। आपके बच्चे आत्महत्या कर रहे हैं। अगर हम शासक बन गए तो एक दिन में सब कुछ ठीक कर देंगे, यह सोचना मतिभ्रम नहीं तो और क्या है?

बाबा साहब का अधूरा काम जाति व्यवस्था को उखाड़ फेंकने की परियोजना है

आज बाबा साहब भीमराव अंबेडकर का 67वां परिनिर्वाण दिवस है। आजादी के बाद भारत के दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यक समाज को संविधान के माध्यम...

डॉ. अंबेडकर के मूल्यों पर हमला और उनकी मूर्ति पर माला चढ़ाने वाले आज ताकत के चरम पर हैं

भारतीय जाति-व्यवस्था की घृणास्पद, रूढ़िवादी परंपरा के शिकार अस्पृश्य जातियों के लोगों के लिए मुक्ति का उत्सव है, भीमा कोरेगाँव उत्सव। हजारों सालों से...

धुर विरोधी होने के बावजूद सिर्फ वोट के लिए आंबेडकर का गुणगान कर रहा है आरएसएस

आरएसएस और अम्बेडकर की विचारधाराएं भारतीय राजनीति के दो विपरीत ध्रुव हैं। जहाँ अम्बेडकर जाति के विनाश, प्रजातान्त्रिक मूल्यों की स्थापना और सामाजिक न्याय...

 बहुजन आर्थिक स्वतन्त्रता का नया प्रवेशद्वार, बिहार में नौकरी की बहार

3 अगस्त, 2023 को एक अखबार में  ‘बिहार में महागठबंन सरकार का बड़ा दाँव :चुनाव से पहले 1.78 लाख टीचर्स भर्ती की तैयारी, जल्द...

बहुजन समाज को कैसे मोहने वाली है भाजपा

2014 के चुनावों में कांग्रेस विरोधी हवा और मोदी के बड़े-बड़े वादों से प्रभावित होकर दलित समाज के पढ़े-लिखे हिस्से ने भारतीय जनता पार्टी...

सनातन के हर शोषित-पीड़ित को सनातन को उखाड़ फेंकने का अधिकार है

भारतीय इतिहास की सबसे बड़ी लड़ाई हिंदू धर्म में उदारवाद और कट्टरता की है, पिछले पांच हजार सालों से भी अधिक समय से चल रही है। उसका अंत अभी भी दिखाई नहीं पड़ता। इस बात की कभी कोशिश भी नहीं की गई। इस लड़ाई को मद्देनजर रखकर हिंदुस्तान के इतिहास को देखा जाए तो देश में जो कुछ भी होता है, उसका बहुत बड़ा हिस्सा इसी कारण होता है

राम मंदिर को लेकर बेवजह नहीं है उद्धव ठाकरे की चेतावनी

डीएमके के उदयनिधि स्टालिन के सनातन धर्म सम्बन्धी टिप्पणी के कुछ दिन बाद ही भाजपा ने एक बार फिर हमलावर रुख अख्तियार कर लिया...

बुद्ध और अंबेडकर अवसरवादी राजनीति के लिए तोता-रटंत टूलकिट क्यों बन गए हैं?

दलित, आदिवासी या कोई भी अन्‍य किसी धर्म में धर्मांतरण करे या नास्तिक हो जाए, उसे हतोत्‍साहित करने का अधिकार राजनीति विशेष व पालतू छुटभैयों को कैसे मिल जाता है। क्‍या वे देश से अलग किसी और संविधान को मानते हैं? उन्‍हें यह अधिकार किसने दिया कि वे किसी का सिर काटने व पचास लाख का इनाम घोषित करें। 

निरंकुश सरकार से डाइवर्सिटी एजेंडा लागू करवाना बहुत बड़ी राजनीतिक जीत होगी

इच्छा शक्ति के अभाव में बहुजन नेतृत्व इसके सदव्यवहार से मीलों दूर रहे। क्रांति का अध्ययन करने वाले तमाम समाज विज्ञानियों के मुताबिक़ जब वंचित वर्गों में सापेक्षिक वंचना का भाव पनपने लगता है, तब उन में शक्ति संपन्न वर्ग के खिलाफ आक्रोश की चिंगारी फूट पड़ती है और वे शासकों को सत्ता से दूर धकेल देते हैं।

सामाजिक न्याय और समता के लिए लड़ता रहा बीसवीं सदी का यह लोककवि

सामाजिक न्याय सभी मनुष्यों को समान मानने पर आधारित है। इसके अनुसार किसी भी व्यक्ति के साथ सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक आधार पर किसी...

भारतीय राजनीति के विपरीत ध्रुव हैं अम्बेडकर और सावरकर

इंडियन एक्सप्रेस (3 दिसंबर, 2022) में प्रकाशित अपने लेख नो योर हिस्ट्री में आरएसएस नेता राम माधव लिखते हैं कि राहुल गांधी, अम्बेडकर और...

डॉ. अम्बेडकर परिनिर्वाण दिवस एवं बाबरी मस्जिद शहादत दिवस पर विचार गोष्ठी

दरभंगा। लोकतंत्र के अमर शिल्पी बाबासाहेब डॉ. अम्बेडकर के परिनिर्वाण दिवस तथा बाबरी मस्ज़िद शहादत दिवस के मौके पर जन संस्कृति मंच, दरभंगा द्वारा...

कैसे डॉ. अंबेडकर ने मेरी जीवनधारा बदली

मैं लल्लूभाई पार्क टेलीफोन एक्सचेंज अंधेरी के सरकारी आवास में रहता था। रविवार सुबह दस बजे के आसपास दरवाजे की घंटी बजी। मैंने खुद दरवाजा खोला। करीब 5-6 आशाराम बापू के भक्त, उनके नाम का कलेंडर, घड़ी और कुछ बुकलेट लिए मुझे अपना सदस्य बनाने के लिए खड़े थे। भगवान और आस्था को लेकर बातचीत होने लगी। स्वाभाविक है, तर्क-वितर्क काफी होने लगा। शिष्टाचार के नाते मैंने कहा बाहर डिस्कस करना ठीक नहीं है। आइए, अन्दर बैठ कर चाय-नाश्ता के साथ ढंग से बातचीत हो जाएगी। ठीक है। वे मान गए। मैंने दरवाजा खोला, अभी अन्दर दो ही लोग आए थे कि सबकी नजर सामने दीवाल पर लगे बाबा साहेब आंबेडकर की फोटो पर पड़ गई। अब क्या? सबकी बोलती बंद हो गई। सिर्फ एक-दो लोगों ने खड़े-खड़े पानी पिया होगा और बाकी तो आग्रह करने पर भी बिना पानी पिए ही उलटे पांव लौट गए।

अम्बेडकर के लिए काम कीजिये वर्ना लोग भूल जाएँगे

हिन्दू आरक्षण की काट आंबेडकरी आरक्षण से हो सकती थी, जो हुई भी। इसी आंबेडकरी आरक्षण से सही मायने में सामाजिक अन्याय के खात्मे की प्रक्रिया शुरू हुई। हिन्दू आरक्षण के चलते जिन सब पेशों को अपनाना अस्पृश्य-आदिवासियों के लिए दुसाहसपूर्ण सपना था, अब वे खूब दुर्लभ नहीं रहे। इससे धीरे-धीरे वे सांसद-विधायक, डॉक्टर, इंजीनियर, प्रोफ़ेसर इत्यादि बनकर राष्ट्र की मुख्यधारा से जुड़ने लगे। दलित-आदिवासियों पर आंबेडकरवाद के चमत्कारिक परिणामों ने जन्म के आधार पर शोषण का शिकार बनाये गए अमेरिका, फ़्रांस, न्यूजीलैंड, आस्ट्रेलिया, कनाडा, दक्षिण अफ्रीका इत्यादि देशों के वंचितों के लिए मुक्ति के द्वार खोल दिए।

संविधान और डॉ. अम्बेडकर

भारत की स्वतंत्रता कोई एकाकी घटना नहीं थी। वास्तव में इसके साथ आजादी के मायनों की गंभीर पड़ताल भी जुड़ी हुई है। इसी के...

डॉ. अंबेडकर की तस्वीर पर माला और उनकी 22 प्रतिज्ञाओं के विरोध की दोमुंही राजनीति

दिल्ली की ‘आप' सरकार में मंत्री राजेंद्र पाल गौतम से हाल में उनका इस्तीफा ले लिया गया। उन्होंने 5 अक्टूबर (अशोक विजयादशमी दिवस) को दिल्ली...

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