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राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के बारे में चिंतन और चर्चा के साथ नदी एवं पर्यावरण संचेतना यात्रा की पहल

यह रिपोर्ट जब मैं लिख रहा था तो उस समय रामजी भैया बगल में बैठकर नवनिर्वाचित राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के शपथ ग्रहण का वीडियो देख रहे थे। बजरिए द्रौपदी मुर्मू, ‘मैं उस जनजाति से हूँ जहाँ हमारी पीढ़ियाँ हजारों वर्षों से प्रकृति के साथ तालमेल बनाकर जीवन को आगे बढ़ाती आ रही हैं। मैंने जंगल […]

यह रिपोर्ट जब मैं लिख रहा था तो उस समय रामजी भैया बगल में बैठकर नवनिर्वाचित राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के शपथ ग्रहण का वीडियो देख रहे थे। बजरिए द्रौपदी मुर्मू, ‘मैं उस जनजाति से हूँ जहाँ हमारी पीढ़ियाँ हजारों वर्षों से प्रकृति के साथ तालमेल बनाकर जीवन को आगे बढ़ाती आ रही हैं। मैंने जंगल और जलाशय के महत्व का अपने जीवन में महसूस किया है। हम प्रकृति से ज़रूरी संसाधन लेते हैं और उतनी ही श्रद्धा से प्रकृति की सेवा भी करते हैं। मुझे इस बात की प्रशंसा है कि भारत पर्यावरण और पर्यटन के क्षेत्र में पूरे विश्व का मार्गदर्शक बन रहा है।’ 18 मिनट 22 सेकेंड की अपनी स्पीच में लगभग 35 सेकेंड में द्रौपदी मुर्मू ने प्रकृति-पर्यावरण और मनुष्य के रिश्तों को बखूबी बयाँ कर दिया।

श्रीमती मुर्मू एक आदिवासी महिला हैं। उनकी बातों पर यकीन किया जा सकता है क्योंकि इन समुदायों का गाँव और जंगल से विशेष जुड़ाव है। हजारों वर्षों से आदिवासियों ने ही प्राकृतिक सम्पदाओं को आज तक सहेज कर रखा है। लेकिन मेरी चिंता है कि अगर सब कुछ इसी तरह चलता रहा तो आखिर कब तक यह सब सहेजा जा सकेगा?

खैर, मुर्मू के राष्ट्रपति बनने से देश की पर्यावरण और प्रकृति से जुड़ी समस्याओं के समाधान के मद्देनज़र अब सकारात्मक वातावरण बन सकेगा। इस बात का संकेत मुर्मू ने बतौर राष्ट्रपति पहली बार देश को संबोधित करते हुए अपने भाषण में दे दिया है।

कई इलाकों में सूखे की स्थिति बन गई है। समस्या के समाधान के लिए कोई कारगर उपाय होते नहीं दिख रहे। दूसरी तरफ पेड़-पौधों को काटकर बनाए जा रहे कंक्रीट के जंगल से लगातार जल स्तर कम होता जा रहा है। बनारस के कई तालाब और कुंड अपने वजूद के लिए जूझ रहे हैं, ऐसे में यह नदी यात्रा लोगों को जागरूक कर सचेत कर रही है।

मौसमे-बारिश की शुरुआत हुए लगभग 10 दिन बीत चुके हैं लेकिन बनारस में अभी तक मात्र दो या चार दिन बारिश हुई है वह भी 10 से 15 दिन के अंतराल पर। जब मैं यह खबर लिख रहा था तो फिर से बारिश होने लगी थी। दूसरी तरफ, मौसम की इस निराशाजनक स्थिति को मौसम विज्ञानी पर्यावरण की अनदेखी और पानी का अंधाधुंध दोहन बता रहे हैं। पहाड़ी इलाकों में बारिश के कारण इन दिनों यूपी की कई नदियों में बाढ़ आने लगी है। बनारस में तो गंगा उफान मारने लगी है। शवदाह, गंगा आरती के साथ अन्य पूजा-पाठ का स्थान बदल दिया गया है। उपनदी वरुणा की स्थिति भी कुछ इसी तरह है। गंगा के बढ़ाव का असर कई बार वरुणा पर होता है। आसपास के सैकड़ों गाँव जलमग्न हो जाते हैं।

गाँव के लोग सोशल एंड एजुकेशनल ट्रस्ट के तत्वावधान में नदी एवं पर्यावरण संचेतना यात्रा के क्रमिक सातवें आयोजन में वरुणा नदी में पानी का बढ़ाव देखा गया। ग्रामीणों ने भी वरुणा नदी में पानी बढ़ने का कारण बाढ़ को ही बताया। इस कारण जलकुम्भी के साथ गंदगी की धार भी पानी में बहे जा रही थी। इस बार गाँव के लोग सोशल एंड एजुकेशनल ट्रस्ट के मैनेजिंग ट्रस्टी रामजी यादव, अपर्णा के साथ, वरिष्ठ कहानीकार संतोष कुमार, गोकुल दलित, रिहाई मंच के महासचिव  राजीव यादव, लालजी यादव, श्यामजीत यादव, युवा लेखक दीपक शर्मा, सामाजिक कार्यकर्ता मनोज यादव एक साथ चल रहे थे। नदी यात्रा के दौरान बुजुर्ग ग्रामीणों ने वरुणा नदी की स्थिति पहले भी बताई थी। एक समय था जब वे सभी इसी का पानी जीवन के हर उपयोग में लाते थे लेकिन वर्तमान इसके ठीक उलट है। वरुणा का पानी सिर्फ जानवरों के उपयोग तक ही सीमित रह गया है। खेती-बारी के लिए भूजल का उपयोग किया जाता है। कुछ लोगों ने पानी का विषैला होना बताया तो कुछ ने डीजल और बिजली की महंगाई का कारण।

सातवीं यात्रा के दौरान गाँव के लोग सोशल एंड एजुकेशनल ट्रस्ट की टीम

उत्तर प्रदेश के प्रयागराज, जौनपुर और प्रतापगढ़ जिले की सीमा से फूलपुर के पास स्थित मैलहन झील से वरुणा नदी का उद्गम हुआ है। नदी यात्रा में जो मैंने महसूस किया कि सैकड़ों गाँवों को जीवन प्रदान करने वाली वरुणा का अस्तित्व उपेक्षा के कारण अब खतरे में है। नदी बड़े नाले जैसी हो गई है। मीडिया रिपोर्ट्स पर ध्यान दें तो, गंगा स्वच्छता अभियान के विस्तार के तहत इस बार यूपी सरकार ने गंगा की सहायक नदियों को भी स्वच्छ और संरक्षित करने की घोषणा की है। इस योजना के अनुसार, सबसे पहले वरुणा नदी का सर्वे कराकर उसकी एक रिपोर्ट तैयार की जाएगी। उसके बाद मनरेगा के तहत नदी की साफ-सफाई कराएगी जाएगी। आवश्यकतानुसार ज़रूरत पड़ने पर खोदाई भी कराई जाएगी और उसकी मिट्टी से बंधे का आकार दिया जाएगा, जहाँ बड़े पैमाने पर पौधरोपण की भी योजना है।

अधिकारियों का कहना है कि यूपी सरकार के ड्रीम प्रोजेक्ट पर योजना के अनुसार काम हुआ तो नदी स्वस्थ नज़र आएगी। मैं तो यही कहूँगा कि यह योजना अगर भ्रष्टाचार की भेंट न चढ़े तो बढ़िया काम हो सकता है। खासतौर से शहरी इलाकों में इसकी ज़्यादा ज़रूरत है। गाँवों में हरियाली और पर्यावरण का मापदंड अभी भी बना हुआ है लेकिन ज़रूरत सिर्फ नदी किनारे साफ-सफाई की है। पक्के घाट बनाकर उसकी साफ-सफाई और सुरक्षा ग्रामीणों को ही सौंप देनी चाहिए। नदी यात्रा में मैंने देखा कि जिस तरीके से ग्रामीणों ने अपनी सम्पदा को सहेजा हुआ है उसी तरह पक्के घाट की व्यवस्था भी वे बखूबी सम्हाल सकते हैं।

उकरोमा से रामेश्वर तक के लिए शुरू हुई इस यात्रा के दौरान वरुणा नदी और गाँव की सुंदरता एवं हरियाली को निहारते हुए मैं आगे बढ़ा तो सबसे पहले मेरी मुलाकात पंचदेव चौधरी से हुई। बी. फार्मा की पढ़ाई कर रहे पंचदेव ने ही बात की शुरुआत की। वे औसानपुर गाँव में 15 बरस पहले आए थे।

बाढ़ के कारण गंदगी भी आ रही है

‘ये कैसा निरीक्षण हो रहा है सर?’

‘निरीक्षण नहीं, यह नदी यात्रा है। इससे नदी और पर्यावरण को लेकर ग्रामीणों को जागरूक किया जा रहा है।’

‘आप इस वक्त क्या कर रहे हैं यहाँ?’

‘धान लगा रहे हैं। पानी चालू है न..’

‘खेती की जानकारी है?’

‘हाँ, पिताजी ने सिखाया है।’

‘आप, खेती में वरुणा के पानी का उपयोग करते हैं कि नहीं?’

‘नहीं सर, मेरा खेत थोड़ी दूरी पर है और नदी का पानी गंदा भी रहता है।’

‘तो पानी की व्यवस्था कैसे हो रही है?’

‘मशीन से जमीन का पानी निकालते हैं।’

‘ठीक है खेती-बारी करिए, मैं चलता हूँ।’

आगे बढ़ने पर नदी किनारे कई महिलाएँ और बच्चे खेतों में काम करते हुए दिखे। ढेर सारी बकरियाँ खेतों में चर रहीं थीं। इस यात्रा में नदी किनारे इतने लोग पहली बार दिखे थे। धान की खेती का समय था इसीलिए। अपर्णा मैम, दीपक, मनोज और मैं, वहाँ मौजूद एक-एक व्यक्ति से बातचीत करने लगे। एक बच्ची जो बकरी चरा रही थी। उससे बात करने की कोशिश की तो वह शरमा कर दूर चली गई। दूसरी बच्ची, जिसका नाम आकांक्षा है, शरीर पर टी-शर्ट और लोवर, पाँव में हवाई चप्पल जो लगभग घिस चुकी थी, पहने थी। हाथ में खुरपी लेकर आकांक्षा घास काट रही थी। अपना नाम उसने पहले ही बता दिया था।

खेती के बाद घर का काम फिर पढ़ाई करती है नन्हीं आकांक्षा

‘घास का क्या करोगी आकांक्षा?’

‘बकरी और गइया के लिए ले जा रही हूँ।’

‘कितने में पढ़ती हो?’

‘कक्षा चार में।’

‘नदियों के बारे में पढ़ाया जाता है कि नहीं?’

‘हाँ…’

‘क्या पढ़ाया जाता है?’

चेहरे पर हल्की-सी मुस्कान लिए आकांक्षा मेरी बातों का जवाब दिए जा रही थी — ‘यही कि नदी को साफ रखना चाहिए उसमें साबुन-सरफ नहीं डालना चाहिए।’

‘अच्छा और क्या बताया गया नदी के बारे में।’

‘बस, इतना ही।’

कहकर वह फिर खुरपी से घास काटने लगी।

खेत में काम कर रहीं अन्य महिलाओं से मनोज फेसबुक पर लाइव होकर बातचीत कर रहे थे।

लाइव के दौरान रामजी यादव ने कहा कि हम लोगों की यह सातवीं यात्रा है। उद्गम से संगम तक की यह यात्रा वरुणा नदी की स्थिति के साथ उसके आसपास के जनजीवन की भी रिपोर्टिंग कर रही है। हम यात्रा के माध्यम से लोगों को पर्यावरण और नदी के लिए जागरूक कर रहे हैं। बच्चों को बताया जा रहा है उनके जीवन में नदी की क्या उपयोगिता है। इधर मौसम के उतार-चढ़ाव के कारण मानसून में भी परिवर्तन आया है जिसका कारण पेड़-पौधों की कटाई है। आने वाले दिनों में हम लोग नदी किनारे ही लगभग 200 पेड़ लगाएँगे ताकि पर्यावरण का संतुलन बना रहे। इसके साथ ही हम नदी किनारे रह रहे लोगों से उनकी परेशानियों के बारे में पूछ रहे हैं — जैसे खेती-बारी और वरुणा के पानी की उपयोगिता आदि के बारे में।

खेतों में काम कर रही दो महिलाओं से मेरी बातचीत हुई। एक का नाम था चाँदनी। उनसे बातचीत के कुछ अंश-

‘आप लोग वरुणा नदी का पानी उपयोग करती हैं?’

‘नाही भइया, इ त गंदा हो गयल हौ, बाढ़ भी आवत हौ।’

‘बाढ़ से दिक्कत होती है?’

‘हाँ, तब का, खेतवा में घुस जाला पनिया। बड़ी नरक हो जाला इधर। खेती-बारी चौपट हो जाला।’

‘वरुणा का पानी पहले कैसा था और अब कैसा है?’

‘ए भइया, पहिले त यही में सब लोग नहात रहलन, अब त नहइले पर खुजली हो जाला। बाऊ पहिले आवत रहलन अब ना अवतन।’

इन महिलाओं ने वरुणा नदी के साथ अपने अनुभव को किया साझा

आगे बढ़ने पर गाँव के डीह-डीहवार के मंदिर पर हम लोग एकत्र हुए। आसपास की कुछ महिलाएँ हम लोगों को देखकर चली आईं। उनमें यह जानने की उत्सुकता साफ झलक रही थी कि गाँव के इस वीराने में हाथ में बैनर लिए हम लोग क्या करने आए हैं। उन लागों से बातचीत की शुरुआत अपर्णा मैम ने ही की। मैं थोड़ा पीछे रह गया था।

पूनम, रीता, अंजना और मताबी इन चार महिलाओं ने वरुणा नदी पर कुछ खास बातचीत तो नहीं की लेकिन इतना कहा कि घर से जब पानी नहीं ला पातीं तो इसका पानी उपयोग कर लेती हैं। गाँव में सरकारी योजनाओं को बुरा हाल है। इस समस्या पर उन्होंने खुलकर बोला। इसके लिए सरकारी मशीनरी और ग्राम प्रधान बेचन कनौजिया को जिम्मेदार ठहराया। इन चार महिलाओं के अलावा भी खेती-बारी कर रही अन्य महिलाओं के साथ ही पुरुषों ने भी किसान सम्मान निधि न मिलने की शिकायत की। यह मुद्दा नदी यात्रा से इतर है लेकिन मामला गम्भीर है। सरकार की कई ऐसी योजनाएँ हैं जो बुनियादी लोगों तक नहीं पहुँच पाती हैं। यह बात अलग है कि अखबार में दो या चार ग्रामीणों की फोटो लगाकर सरकारी योजनाओं के शत-प्रतिशत लाभ पहुँचाने का ढिंढोरा पीट दिया जाता है। इस कारण चुनाव भी जीत लिए जाते हैं। महंगाई का बोझ इतना बढ़ गया है कि ज़्यादा कमाने और थोड़ा खाने में ही आदमी परेशान है, भ्रष्टाचार और सरकारी उदासीनता जैसे मुद्दों पर बातचीत करने के लिए किसी के पास फुरसत कहाँ है?

खेत में हेंगी खींचते किसान_Photo Credit_Aparnaa

सामाजिक कार्यकर्ताओं ने की गाँव के लोग सोशल एंड एजुकेशनल ट्रस्ट के पहल की तारीफ

रिहाई मंच के महासचिव राजीव यादव बनारस में मौजूद थे। जिज्ञासावश नदी यात्रा में शामिल हुए, हालाँकि लगातार आते जा रहे फोन के कारण वे बार-बार पीछे छूट जा रहे थे। बातचीत में उन्होंने कहा कि ‘वाराणसी का नाम वरुणा और असि नदी से ही बना है। असि तो विलुप्त हो गई है और वरुणा की दशा भी सरकार खराब करने पर तुली हुई है। नदियों के किनारे एक्सप्रेसवे बनाकर इसका अस्तित्व खतरे में डाला जा रहा है। पर्यावरण पर पूँजीवादियों का कब्जा होता जा रहा है। अभी छत्तीसगढ़ में आदिवासियों की जमीनों को अडानी ग्रुप को दिया जा रहा है और उसकी लड़ाई वहाँ के आदिवासी आज भी लड़ रहे हैं। यह नदी यात्रा ऐसे आंदोलनों के लिए मील का पत्थर साबित होगी और एक अच्छा संदेश भी जाएगा। इस यात्रा के माध्यम से किनारे के लोगों के साथ अन्य लोग भी जान पाएँगे कि हमारे जीवन में नदियों व पर्यावरण का क्या महत्व है, इसे कैसे बचाया जाए। इसके लिए मैं रामजी भाई और उनकी पूरी टीम को इस पहल के लिए धन्यवाद देता हूँ।’

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सामाजिक कार्यकर्ता गोकुल दलित ने कहा कि ‘नदियाँ जीवन का अहम हिस्सा होती हैं। हमारी संस्कृति और परम्पराएँ इन नदियों से ही शुरू होती हैं और अगर ये विलुप्त हो जाएँगी तो हमारा जीवन भी विलुप्त हो जाएगा। इसका दोहन हम ही लोग कर रहे हैं लेकिन इसके बचाव को लेकर कोई गम्भीरता भी नहीं दिखाते हैं। गाँव के लोग सोशल एंड एजुकेशनल ट्रस्ट के तत्वावधान में लगातार सातवीं यात्रा निकाली गई जो काबिले तारीफ है। हर यात्रा में किनारेवासी हमसे जुड़ रहे हैं। हम उनसे बातचीत कर उन्हें जागरूक करते हैं। वरुणा के साथ सभी नदियों की अविरलता को बचाने के लिए अवेयरनेस की ज़रूरत है। इसी के माध्यम से नदी और पर्यावरण को लेकर लोगों को सचेत किया जा सकता है। इस यात्रा में मैंने यह देखा कि जैसे-जैसे हम गाँव के तरफ जा रहे हैं वरुणा नदी का पानी साफ है। नदी का बहाव भी बना हुआ है। हालांकि कहीं-कहीं पानी गंदा है लेकिन शहर की अपेक्षा यहाँ का पानी ज़्यादा साफ है।’

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लेखक संतोष कुमार ने कहा कि ‘कुछ साल पहले तक वरुणा नदी का पानी भी बिल्कुल साफ था, लोग अपनी फसल की सिंचाई और जानवरों को पिलाने के लिए इसी पानी का इस्तेमाल करते थे, लेकिन जब से इसमें फैक्ट्रियों और सीवर का पानी गिरना शुरू हुआ, इसकी हालत बदतर हो गई है। दिन-रात हो रहे जल के दोहन ने देश के सामने जल संकट खड़ा कर दिया है। ऐसे में लोगों को आज और अभी से सचेत हो जाना चाहिए। गाँव के लोग सोशल एंड एजुकेशनल ट्रस्ट इस समस्या को लेकर अच्छी पहल कर रहा है। बनारस में पेयजल की स्थिति बहुत खराब है। मीडिया रिपोर्ट्स को देखा जाए तो पिछले सात सालों में भू-जलस्तर एक से दो मीटर तक नीचे चला गया है। कई इलाकों में सूखे की स्थिति बन गई है। समस्या के समाधान के लिए कोई कारगर उपाय होते नहीं दिख रहे। दूसरी तरफ पेड़-पौधों को काटकर बनाए जा रहे कंक्रीट के जंगल से लगातार जल स्तर कम होता जा रहा है। बनारस के कई तालाब और कुंड अपने वजूद के लिए जूझ रहे हैं, ऐसे में यह नदी यात्रा लोगों को जागरूक कर सचेत कर रही है। लोगों को चाहिए कि पानी और पर्यावरण को लेकर जागरूक बने।’

अमन विश्वकर्मा
अमन विश्वकर्मा
अमन विश्वकर्मा गाँव के लोग के सहायक संपादक हैं।
3 COMMENTS
  1. बहुत सुंदर चित्रण किया है मन भैया जी आपने। जब नदी यात्रा की कहानी आप स्टार्ट किए तो पढ़ते हुए ऐसा लग रहा था कि हम लोग यह यात्रा कर रहे हैं।

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