Monday, December 2, 2024
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Varuna River

Varanasi : वरुणा नदी में कई नालों का पानी गिरने से अब पानी खेती के लायक नहीं रहा

बनारस में वरुणा नदी के बहुत अधिक प्रदूषण के कारण किसान खेत की सिंचाई भी इस पानी नहीं कर पाते. यदि इसी तरह वरुणा प्रदूषित होती रही तो जल्द ही नाले में तब्दील हो जाएगी.

मछुआरों की उपेक्षा भी है नदी प्रदूषण का एक बड़ा और गम्भीर कारण

नदी एवं पर्यावरण संचेतना यात्रा अब गाँव से शहर की तरफ बढ़ने लगी है। 31 जुलाई दिन रविवार को शास्त्री घाट से निषाद राज...

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के बारे में चिंतन और चर्चा के साथ नदी एवं पर्यावरण संचेतना यात्रा की पहल

यह रिपोर्ट जब मैं लिख रहा था तो उस समय रामजी भैया बगल में बैठकर नवनिर्वाचित राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के शपथ ग्रहण का वीडियो...

लोग भी चाहते हैं कि वरुणा फिर से लहलहाती हुई बहती रहे

काशी हिंदू विश्वविद्यालय में अध्ययन के दौरान मैं गंगा नदी के किनारे अक्सर घूमा करता था। कभी घाटों की सीढ़ियों पर, कभी नदी उस...

छोटी-छोटी नदियां विलुप्त होने की कगार पर हैं

नदी एवं पर्यावरण संचेतना के लिए छठवीं नदी यात्रा अपनी प्रकृति और पर्यावरण की कविताओं के लिए प्रसिद्ध युवा कवि राकेश कबीर अपनी एक कविता...

वरुणा का हाल-अहवाल संकलित कर रही नदी एवं पर्यावरण संचेतना यात्रा

पाँचवीं नदी यात्रा गाँव के लोग सोशल एंड एजुकेशन ट्रस्ट द्वारा वरुणा नदी किनारे से नदी एवं पर्यावरण संचेतना यात्रा 10 जुलाई, रविवार को सुबह...

वरुणा नदी यात्रा : पर्वत की चिट्ठी तू ले जाना सागर की ओर!

जबकि सदियों से हमारे देश में मनुष्य और प्रकृति के द्वारा जल का संचय होता आया है। लेकिन आज यह स्थिति बदल गई है। इसमें सरकारी तंत्र पर समाज के आश्रित हो जाने ने अहम भूमिका निभाई है। इसका परिणाम जल प्रबंधन में सामुदायिक हिस्सेदारी के पतन के रूप में सामने आया। नदी के किनारे बस रहे लोगों को पर्यावरण के प्रति अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह करना होगा।

अब जहाँ देखो ये अजूबे इंसान, पानी को ही घेरकर मारने में लगे हैं!

पक्के रास्ते धीरे-धीरे कच्चे और उबड़-खाबड़ होते जा रहे थे। कुछ ही समय में हम उस बाँस के पुल के पास पहुँच गए जिसे पहली यात्रा में नदी के उस पार से देखा था। पिछली बार की तरह ही लोग यहाँ नहान कर रहे थे। एक आदमी अपनी बड़ी-सी नाव पर अलकतरा लगा रहा था। वहाँ पहुँचे एक ग्रामीण ने उसकी फिरकी लेते हुए कहा- 'घबरा मत, तू अब जेल जईबा।' यहाँ नदी में नाव चलाने के लिए लाइसेंस बनवाना पड़ता है, शायद इसीलिए यह मजाक किया गया था।

वरुणा की दूसरी यात्रा

एक मंदिर पर यात्रा का थोड़ी देर के लिए ठहराव हुआ। इस मंदिर के आसपास काफी शांत माहौल था जिसे हम लोगों ने भंग कर दिया था। यह रैदास का मंदिर था। नीचे दो लोग नदी में स्नान कर रहे थे। उनमें से एक सज्जन गमछे की लुंगी बांधे ऊपर आये। उन्होंने पूछा ई का? तूफानी ने उनसे कुछ मजाक शुरु किया। उन सज्जन ने हम लोगों को सम्मान के साथ रुकने के लिए कहा।

वाराणसी को पहचान देने वाली ‘वरुणा’ और ‘असि’ की उखड़ती साँसें क्यों नहीं सुन पा रहे मोदी

वरुणा कॉरिडोर बनवाकर सपा सुप्रीमो अखिलेश ने साल 2016 में खूब सुर्खियां बटोरी थी। उस समय इस नदी को बचाने के लिए मुहिम चला रहे जनसरोकारीय संगठनों और स्थानीय लोगों में उम्मीद जगी कि नदी साफ हो जाएगी। सत्ता बदली तो जैसे इस नदी के नसीब ही फूट गए। इसका भाग्य संवारने के लिए कोई दूसरा भगीरथ नहीं आया। अब जनवादी संगठन पदयात्रा निकाल रहे हैं और इस नदी के पुनरुद्धार के लिए मुहिम चला रहे हैं।

नदियों को लेकर जनता में जागृति फैलाएगी यह मुहिम

नदियों में पानी बहुत कम रह गया है और जो है वह बहुत ही दूषित है। यह बड़ी नदियों के लिए भी नुकसानदेह है। यह स्थिति पेड़, पहाड़ और जंगल के लिए भी खतरनाक है। अभी हाल ही में येल सेंटर फॉर एनवायर्नमेंटल लॉ एंड पॉलिसी के सेंटर फॉर इंटरनेशनल अर्थ साइंस इनफार्मेशन नेटवर्क द्वारा प्रकाशित 2022 पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक (EPI) में भारत 180 देशों में सबसे निचले पायदान पर रहा, जो कि चिंताजनक है। इस सूचकांक में डेनमार्क प्रथम, ब्रिटिश द्वितीय और फिनलैंड तृतीय स्थान पर रहा। भारत की यह स्थिति पर्यावरण के संकट पर सोचने और उसे बचाने के लिए ध्यान आकर्षित करता है।

हमें पानी की एक-एक बूँद की कीमत का अहसास है लेकिन प्रकृति के कोप से सबक नहीं लेते

नदी में सीवर और ड्रेनेज खुलेआम बहते देखा जा सकता है। लोहता, कोटवा क्षेत्र से मल और घातक रसायन सीधे नदी में बहाये जा रहे हैं। नदी यात्रा के दौरान ही लगभग छह नाले सीधे नदी में गिर रहे थे। वही शहरी क्षेत्र में लगभग 137 नाले प्रत्यक्षत: वरुणा में मल और गंदगी गिराते देखे जा सकते है।

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