इन दिनों कांग्रेस के अंदर कुछ तो है, जो अंदर ही अंदर चल रहा है, जिसकी भनक राजनीतिक गलियारों तक भी नहीं पहुंच रही है, लेकिन कुछ संकेत तो मिल ही रहे हैं जिससे अनुमान लगाकर कांग्रेस की आंतरिक राजनीति का आकलन किया जा सकता है।
इस समय देश के पांच राज्यों में विधानसभा के चुनाव चल रहे हैं इन चुनावों में कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी की सक्रियता से ज्यादा कांग्रेस की राष्ट्रीय महामंत्री प्रियंका गांधी की सक्रियता नज़र आ रही है। जहां एक तरफ चुनाव में प्रियंका गांधी सत्ताधारी भा जा पा पार्टी और उसकी सरकार को चुनावों में घेर रही है तो वही कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी, चिंतन शिविर के माध्यम से, कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं को घेर रहे हैं जो नेता सार्वजनिक रूप से कांग्रेस को कमजोर बताने में जुटे हुए हैं। यही नहीं राहुल गांधी, जो नेता कांग्रेस को कमजोर बता रहे हैं उन नेताओं को कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल होने की बेबाकी से सलाह भी दे रहे ।
[bs-quote quote=”क्या पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के बाद पार्टी हाईकमान ठोस निर्णय लेने का मन बना चुकी है? क्या हाईकमान सबको चौका देने वाला निर्णय पार्टी के आंतरिक मामलों को सुदृढ़ करने के लिए ले सकती है। इसकी झलक गुजरात से देखने को मिली है, राहुल गांधी का बयान उन कांग्रेस के कद्दावर नेताओं के राजनीतिक अस्तित्व के लिए एक बड़ी चुनौती है जो कहा करते हैं कि कांग्रेस कमजोर हो गई है, कांग्रेस के पास भाजपा से लड़ने की ताकत नहीं बची है? क्या वह नेता अपनी राजनीतिक ताकत को बचा पाएंगे, यह सवाल राहुल गांधी के बयान के बाद खड़ा हो गया है?” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]
2014 के बाद से कांग्रेस के भीतर ऐसे नेताओं की संख्या अधिक बढ़ गई है जो नेता सत्ता के बगैर अपने आप को कुंठित महसूस कर रहे हैं। क्योंकि केंद्र की सत्ता पर लगभग 8 साल से कांग्रेस नहीं है, यही हाल कमोवेश राज्यों का है जहां कांग्रेस की सरकार नहीं है, बल्कि देश में कई राज्य तो ऐसे हैं जहां से कांग्रेस अपने नेताओं को राज्यसभा में भी नहीं भेज सकती है। क्योंकि कांग्रेस के पास राज्यसभा चुनाव लड़ने लायक सीट भी नहीं है।
ऐसे में कांग्रेस के वह नेता अधिक कुंठित दिखाई दे रहे हैं जो नेता लोकसभा के माध्यम से तो सांसद नहीं बन सकते हैं मगर वह नेता राज्यसभा के माध्यम से संसद में पहुंचते हैं, जो नेता लोकसभा से नहीं जाकर राज्यसभा से संसद में पहुंचते हैं, उन नेताओं की तादात कांग्रेस में अधिक है और उन्हीं नेताओं की तरफ से आवाज सुनाई देती है कि कांग्रेस पहले जैसी पार्टी नहीं रही है कांग्रेस कमजोर हो गई है। यही नेता पार्टी हाईकमान को सत्ता और संगठन में रहकर ज्ञान बांटा करते थे, मगर अब कांग्रेस के पास केंद्र में सत्ता नहीं है ऐसे में यह नेता हाईकमान को ज्ञान बांटने की जगह, हाईकमान का ध्यान भटकाने में लगे हुए हैं कि देश में देश की सबसे पुरानी कांग्रेस अब कमजोर हो गई है, अब कांग्रेस में भाजपा से लड़ने की ताकत नहीं बची है। इन नेताओं का ध्यान कांग्रेस को मजबूत करने की तरफ नहीं होकर सत्ताधारी भाजपा की सत्ता पर ध्यान अधिक है।
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यही वजह है कि कुछ नेता तो कांग्रेस छोड़कर अन्य पार्टियों में भी शामिल होने लगे हैं ज्यादातर नेता सत्ताधारी भाजपा पार्टी में शामिल हुए हैं और कई नेता कांग्रेस छोड़ने की कतार में हैं। शायद इसीलिए राहुल गांधी ने एक बार नहीं बल्कि दूसरी बात गुजरात के द्वारका में आहूत कांग्रेस के चिंतन शिविर में बेबाकी से कहा है कि जो नेता कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल होना चाहते हैं वह कांग्रेस छोड़ सकते हैं ! क्या राहुल गांधी का यह बयान उनका कठोर फैसला या निर्णय लेने वाला बयान है, क्योंकि कांग्रेस के बड़े नेता ही लंबे समय से राहुल गांधी और सोनिया गांधी पर अंगुली उठाकर बता रहे थे कि हाईकमान ठोस निर्णय नहीं ले पाता है इसके कारण कांग्रेस लगातार कमजोर होती जा रही है। क्या पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के बाद पार्टी हाईकमान ठोस निर्णय लेने का मन बना चुकी है? क्या हाईकमान सबको चौका देने वाला निर्णय पार्टी के आंतरिक मामलों को सुदृढ़ करने के लिए ले सकती है। इसकी झलक गुजरात से देखने को मिली है, राहुल गांधी का बयान उन कांग्रेस के कद्दावर नेताओं के राजनीतिक अस्तित्व के लिए एक बड़ी चुनौती है जो कहा करते हैं कि कांग्रेस कमजोर हो गई है, कांग्रेस के पास भाजपा से लड़ने की ताकत नहीं बची है? क्या वह नेता अपनी राजनीतिक ताकत को बचा पाएंगे, यह सवाल राहुल गांधी के बयान के बाद खड़ा हो गया है?
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क्योंकि राहुल गांधी के बयान के बाद लगता है कि कांग्रेस जल्दी ही बड़ा फैसला लेने जा रही है, जिसकी गाज उन नेताओं पर पड़ेगी जो नेता सार्वजनिक रूप से कांग्रेस को कमजोर बताकर अपनी स्वयं की कमजोरी को ढक रहे हैं। क्या सत्ता और संगठन में मलाई खाने वाले नेता, सितंबर में होने वाले कांग्रेस के आंतरिक चुनाव के बाद नए राष्ट्रीय अध्यक्ष की टीम का हिस्सा नहीं होंगे?
इसका अभी इंतजार करना होगा।
देवेंद्र यादव कोटा (राजस्थान) स्थित वरिष्ठ पत्रकार हैं।
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