दिनांक 31 जुलाई 2025 को शास्त्री घाट, कचहरी वाराणसी पर यूपी में हज़ारों स्कूल बंद करने के तुग़लकी आदेश के ख़िलाफ़ बनारस में जोरदार प्रदर्शन हुआ। प्रदर्शन स्थल पर सैकड़ों लोगों ने सीएम को सम्बोधित ज्ञापन देकर जनविरोधी निर्णय लेने को वापस लेने की मांग की गई। प्रदर्शन स्थल पर स्कूल बंद करने से मर्माहत जनों ने साझा संस्कृति मंच और जनांदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय यूपी के संयुक्त तत्वावधान में समान शिक्षा के पक्ष में नारे लगाए। सभा आयोजित करके शिक्षा विरोधी सरकारी नीतियों की आलोचना की गई। सभा के बाद ‘राष्ट्रपति का बेटा हो या हो चपरासी की संतान, सबकी शिक्षा एक समान’ के नारे लगाते हुए कचहरी सड़क पर मार्च निकाला गया। मुख्यमंत्री को सम्बोधित ज्ञापन पत्र बेसिक शिक्षा अधिकारी के माध्यम से भेजा गया।
ज्ञातव्य है कि योगी सरकार ने 5000 सरकारी स्कूलों को बंद करने का निर्णय लिया है। आश्चर्यजनक रूप से 2014 से 2024 तक मोदी सरकार ने 90,000 सरकारी स्कूलों को भारत भर में बंद कर दिया है। जिसमे से 25,000 स्कूल अपने उत्तर प्रदेश के थे। केवल 2022 से 2024 के बीच 55,00,000 बच्चों ने स्कूल जाना छोड़ दिया।
सभा में वल्लभाचार्य पाण्डेय ने कहा कि स्कूलों के विलय (मर्जर) के आदेश से 27,000 स्कूल प्रभावित होंगे, जिसके परिणामस्वरूप 1,35,000 शिक्षकों, 27,000 प्रधानाध्यापकों, शिक्षामित्र और रसोइयों की सेवाएं समाप्त होंगी। सवाल उठता है कि इन बंद हो रहे स्कूलों के बच्चे क्या नजदीकी स्कूलों में जा पाएंगे? या फिर प्राइवेट स्कूल की मंहगी फीस के चंगुल में फंस जाएंगे? खासकर लड़कियों की पढ़ाई पर क्या असर होगा? क्या शासन ने कोई आंकलन रिपोर्ट जाँच इत्यादि करवाई है?
प्रो प्रतिमा गौंड ने बताया कि सरकार हमें अशिक्षा और असमानता के उसी दलदल में क्यों धकेल रही है, जहाँ से हम सालों के संघर्ष के बाद बाहर निकले थे। गौर करने वाली बात यह है कि पिछले 10 वर्षों में 50,000 मंहगी फीस वाले नये प्राइवेट स्कूल खुले हैं।
जागृति राही ने बताया कि 1990 के दशक में भारत ने उदारीकरण (लिब्रलाइजेशन ) की नीति अपनाई। देश में प्राइवेट स्कूल खुलना शुरू हुए। यह देश में निजीकरण की शुरुआत थी। मोदी सरकार द्वारा 2020 में लाई गई नई शिक्षा नीति (एनईपी) ने निजीकरण की गति को बढ़ावा दिया है। निजी स्कूलों की बेतरतीब बढ़ोत्तरी ने शिक्षा को धंधा बना दिया है। सरकारी स्कूल खोलने का उद्देश्य था कि हर बच्चे को अनिवार्य व मुफ्त शिक्षा तक पहुँच मिले। सरकार को चाहिए था कि वह इन स्कूलों को बेहतर बनाती, ताकि हर जाति और वर्ग के बच्चे साथ मिलकर निशुल्क पढ़ते। ऐसी व्यवस्था उन्हें समानता का बोध कराती। निजी स्कूलों की दुकान बंद हो जाती।
कुसुम वर्मा ने कहा स्कूलों को बचाने के लिए हम सबको संकल्पबद्ध होना होगा। उन्होंने आगे बताया कि शिक्षा का अधिकार कानून लागू होने के बाद 25% गरीब बच्चों को निजी स्कूलों में दाखिला मिला। इसके चलते निजी स्कूलों में छात्रों की संख्या बढ़ी और सरकारी स्कूल खाली हुए। अब सरकार कह रही है कि ‘बच्चे कम हैं इसलिए स्कूल बंद कर रहे हैं।‘ आश्चर्य की बात है की मंहगी फ़ीस वाले निजी स्कूलों को खोलने की अनुमति दी ही क्यों गयी?
सभा के बाद निम्नलिखित मांगो के ज्ञापन पत्र को बीएसए को सौंपा गया –
सरकारी स्कूलों की बंदी/पेयरिंग को तुरंत रोका जाए।
एनईपी में किए गए वादे के अनुसार शिक्षा पर जीडीपी का 6% खर्च किया जाए। शिक्षा बजट में बढ़ोत्तरी की जाए।
वैज्ञानिक सोच की गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, किताब, बैग, छात्रवृत्ति और यूनिफार्म नियमित उपलब्ध हों। |
एमडीएम गुणवत्ता पूर्ण हो इसे सुनिश्चित किया जाए और स्कूल के सभी कर्मचारियों की नौकरी स्थायी की जाए।
शिक्षकों और कर्मचारियों की भर्ती प्रक्रिया पारदर्शी और ईमानदार की जाए।
स्कूलों में आधुनिक और वैज्ञानिक सोच की शिक्षा सुनिश्चित की जाए इसके लिए स्कूलों की जवाबदेही तय की जाए।
प्रदर्शन मार्च और मुख्यमंत्री को ज्ञापन पत्र सौंपने वालो में प्रमुख रूप से नन्दलाल मास्टर , सतीश सिंह ,वल्लभाचार्य पांडेय , प्रो महेश विक्रम, सुरेश , जागृति राही, कुसुम, सुजाता पारमिता, पूनम, नीति, इंदु, प्रो प्रतिमा गोंड, प्रेम नट, एकता शेखर, विनय शंकर राय मुन्ना, धनञ्जय, महेंद्र, अमित, राजकुमार, नीरज, राजेश, रामजनम, अफलातून, लक्ष्मण, सुमन, वन्दना, अनूप, सोनी, अनामिका, आरोही, आर्या, प्रेमा, रानी गुप्ता, रुकसाना, रेनू इत्यादि सैकड़ो लोग और संगठन शामिल रहे।(प्रेस विज्ञप्ति)
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