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बालिका शिक्षा के लिए समाज की भूमिका भी अहम

भारत में शिक्षा को लेकर आज़ादी के बाद से ही काफी गंभीरता से प्रयास किये जाते रहे हैं। केंद्र से लेकर देश की सभी राज्यों की सरकारों ने इस दिशा में काफी सकारात्मक पहल की है। जिसका वैचारिक और राजनीतिक रूप से विरोध करने वाले विपक्षियों ने भी हमेशा साथ दिया है। यह एक ऐसा […]

भारत में शिक्षा को लेकर आज़ादी के बाद से ही काफी गंभीरता से प्रयास किये जाते रहे हैं। केंद्र से लेकर देश की सभी राज्यों की सरकारों ने इस दिशा में काफी सकारात्मक पहल की है। जिसका वैचारिक और राजनीतिक रूप से विरोध करने वाले विपक्षियों ने भी हमेशा साथ दिया है। यह एक ऐसा मुद्दा रहा है जिस पर सभी एकमत रहे हैं। मुख्य रूप से सभी सरकारों का मूल उद्देश्य देश में साक्षरता की दर को सुधारना रहा है। इसके लिए समय समय पर शिक्षा नीति भी बनाई जाती रही है। देश में सबसे पहले 1968 में शिक्षा नीति लागू की गई। इसके बाद 1986 में नई शिक्षा नीति लागू की गई और साल 2020 की नई शिक्षा नीति इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हुई है। इन सबके बीच वर्ष 2000, 2005 और शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 शिक्षा के क्षेत्र में इसकी गुणवत्ता को बढ़ाने में मील का पत्थर साबित हुआ है। इन्हीं प्रयासों के कारण ही देश की साक्षरता दर में लगातार सुधार होता रहा है।

शिक्षा की संपूर्ण व्यवस्था के साथ साथ बालिका शिक्षा पर भी विशेष फोकस किया जाता रहा है, जिसका भी बहुत ही सकारात्मक परिणाम देखने को मिलते रहे हैं। अगर हम आज़ादी से लेकर अब तक महिला साक्षरता की दर को देखें तो इसमें काफी सुधार देखने को मिला है। देश के कई ऐसे राज्य हैं, जहां महिला साक्षरता की दर में अप्रत्याशित सुधार हुआ है। इसके लिए जहां केंद्र सरकार की योजनाओं को इसका कारक माना जाए तो वहीं राज्य सरकारों द्वारा भी बालिका शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए अपने-अपने स्तर पर चलाई जा रही विभिन्न योजनाएं भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। लेकिन केवल सरकार के ही एकतरफा पहल से बालिका शिक्षा के क्षेत्र में सुधार नहीं होने वाला है। इसमें समाज की भूमिका भी बहुत अहम किरदार निभाती है। जिस समाज ने भी महिला सशक्तीकरण और बालिका शिक्षा को बढ़ावा देने में आगे बढ़कर पहल की है, वहां इसके बहुत ही सकारात्मक सुधार देखने को मिले हैं। लेकिन अब भी हमारे देश के कई ऐसे ग्रामीण समाज हैं जहां बालिका शिक्षा के प्रति लोगों की सोच अब भी नकारात्मक है। जहां लड़कियों को पढ़ाने से अधिक पूरा समाज उसकी शादी की न केवल फ़िक्र करता है बल्कि बाल विवाह का मूक समर्थन भी करता है।

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लड़कियों की शिक्षा के प्रति उदासीन समाज का विकास थोथा है

ऐसा ही समाज उत्तराखंड के बागेश्वर जिला स्थित गरुड़ ब्लॉक का जोड़ा स्टेट गांव है। ब्लॉक से करीब 22 किमी और जिला मुख्यालय बागेश्वर से करीब 48 किमी दूर इस गांव की कुल जनसंख्या 1784 है। गांव में अधिकतर उच्च जातियों की संख्या है और इसकी साक्षरता दर लगभग 50 प्रतिशत है। इसके बावजूद गांव में अधिकतर लड़कियों की शादी 12वीं के बाद कर दी जाती है। हालांकि, गांव की महिलाएं और किशोरियां जहां लड़कियों की उच्च शिक्षा को बढ़ावा देने की बात करती हैं, तो वहीं समाज 12वीं से आगे उनकी शादी की बात करता है। इस संबंध में कक्षा 11 में पढ़ने वाली एक किशोरी कविता बिष्ट कहती हैं कि आज हर एक लड़की को शिक्षित होना बहुत जरूरी है, क्योंकि बिना पढ़ाई के जीवन में कुछ भी नहीं है। आज हम देखते हैं कि हमारी माताएँ जो अशिक्षित हैं, वह अपने भविष्य के लिए कुछ भी नहीं कर पाईं। अपने ढंग से उन्हें अपनी बात कहना भी नहीं आता है। वह किसी के सामने अपनी बात भी नहीं कह पाती हैं। कई महिलाएं हमारे आसपास ऐसी हैं, जिन्हें हस्ताक्षर करने भी नहीं आते हैं। वह कहती है कि हर एक लड़की के लिए पढ़ाई बहुत जरूरी है। यह शादी से पहले और शादी के बाद भी काम आता है। शादी के बाद हमारे जीवन में कुछ गलत हो जाता है तो इसी शिक्षा की बदौलत हम अपने पैरों पर खड़े हो सकते हैं। नौकरी करके अपना जीवन गुजार सकते हैं। हमें किसी के आगे हाथ फैलाने की जरूरत नहीं पड़ेगी।

एक अन्य किशोरी पूजा गोस्वामी कहती हैं कि हम लड़कियों के लिए पढ़ाई बहुत जरूरी है। इसके बिना जीवन अंधकारमय है। अगर हम पढ़े-लिखे होंगे तो हम अपने लिए कुछ जागरूक होंगे। अगर हमें ज्ञान ही नहीं होगा तो कुछ भी नहीं हो सकता है। जैसे आंखों के बिना हमारे जीवन में रोशनी नहीं होती वैसे ही बिना शिक्षा के हमारा जीवन व्यर्थ है। गांव की एक 40 वर्षीय महिला खष्टी देवी कहती हैं कि लड़कियों के लिए शिक्षा किसी वरदान से कम नहीं है। वह पढ़ी-लिखी होंगी तो अपने लिए अपने जीवन का फैसला खुद ले सकती हैं। वह जागरूक और सशक्त हो सकती हैं। वह कहती हैं कि हमारे समय में लड़कियों की शिक्षा के बहुत कम विकल्प थे। यही कारण है कि मैं पांचवीं से अधिक नहीं पढ़ पाई। लेकिन आज लड़कियों की शिक्षा को सरकार बढ़ावा दे रही है तो लड़कियों को भी इसका लाभ उठाते हुए खूब पढ़ना चाहिए। समाज क्या बोलता है और क्या सोचता है, उन्हें इसकी चिंता नहीं करनी चाहिए। पढ़-लिख कर सशक्त बनने की ज़रूरत है। मैं यह चाहती हूं कि मेरी दोनों बेटियां खूब पढ़े लिखें। वह अपने पैरों पर खड़ी होकर एक सफल इंसान बने। उन्हें मेरी तरह छोटी-छोटी चीजों के लिए तरसना ना पड़े। वह सही और गलत में फर्क समझें। अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठायें। यह केवल शिक्षा से ही संभव हो सकता है।

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शिक्षा को रोजगार परक बनाने की आवश्यकता

इस संबंध में गांव की 36 वर्षीय युवा ग्राम प्रधान सुशीला देवी अपने गांव जोड़ा स्टेट में लगातार बालिका शिक्षा को बढ़ावा देने पर ज़ोर दे रही हैं। वह कहती हैं कि पहले और आज के समय में बहुत अंतर है। संविधान में सभी को समानता का अधिकार दिया गया है। लोगों की सोच भी बदली है। अब गाँव में भी लड़का और लड़की को शिक्षा प्रदान की जा रही है। आज गांव की लड़कियां 12वीं तक तो पढ़ती हैं, लेकिन आगे की शिक्षा अभी भी उसके लिए मुश्किल है। जिसके लिए जागरूकता चलाने की बहुत ज़रूरत है। वह कहती हैं कि आर्थिक रूप से संपन्न परिवार तो कुछ हद तक लड़कियों को 12वीं से आगे पढ़ाने लगा है, लेकिन अधिकतर परिवार 12वीं के बाद लड़कियों की शादी कर दे रहे हैं, जिसे समाप्त करना बहुत बड़ी चुनौती है। हालांकि, केंद्र और राज्य सरकार की विभिन्न योजनाएं इस दिशा में महत्वपूर्ण साबित हो रही हैं, लेकिन इसमें समाज को बड़ी भूमिका निभानी होगी। जब तक घर के पुरुष किशोरियों की शिक्षा के महत्व को नहीं समझेंगे तब तक बदलाव मुमकिन नहीं है।

(सौजन्य से चरखा फीचर)

तनुजा भंडारी गरुड़ (उत्तराखंड) की युवा समाजसेवी हैं।

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