आदिवासियों के बीच ईसाई मिशनरियों और ईसाई धर्मांतरित लोगों को आरएसएस से जुड़े संगठनों द्वारा निशाना बनाया जा रहा है और यह तो जगजाहिर है ही कि बहु-प्रचारित घर वापसी कार्यक्रम आदि के जरिए पिछले कुछ सालों में इन पर हमले भी बढ़े हैं। मोदी सरकार के शासन के एक दशक में आरएसएस संगठनों के काम का विस्तार आरएसएस के इस आख्यान को मजबूत करने के लिए हुआ है कि "वनवासी" ऐतिहासिक रूप से वृहद हिंदू परिवार का हिस्सा हैं। आदिवासी समुदायों के हिंदूकरण के ये नए तरीके हैं, जिसमें राज्य की शक्ति का इस्तेमाल करके पारंपरिक आदिवासी प्रमुखों के हिस्सों को विभिन्न तरीकों से अपने साथ शामिल किया जाता है और उन पर दबाव भी बनाया जाता है। वे आदिवासी रीति-रिवाजों को हिंदू प्रथाओं के साथ जोड़ने, पारंपरिक मंत्रों के बीच हिंदू देवताओं का जश्न मनाने वाले नारे लगाने, आदिवासी इलाकों में मंदिरों का निर्माण और हिंदू त्योहारों को मनाने, हिंदू धार्मिक नारों के साथ भगवा झंडे फहराने, अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए पवित्र आदिवासी क्षेत्रों से मिट्टी लाने आदि की रणनीति के साधन बन गए हैं। इसलिए जनगणना में आदिवासी/एसटी धर्म शीर्षक से एक अलग कॉलम जोड़ा जाना चाहिए, जिसमें आदिवासी अपने विशेष विश्वास को दर्ज कर सकें। इस तरह आदिवासी धर्म उल्लिखित अन्य छह धर्मों के बराबर हो जाएंगे।
राहुल गांधी के सामाजिक न्याय के बड़े दावों के बावजूद, हरियाणा में दलितों तक पहुंचने के लिए कोई सामूहिक प्रयास नहीं किया गया। ऐन वक्त पर अशोक तंवर की एंट्री पार्टी में दलित वोट वापस नहीं ला सकी और वजह साफ है। कांग्रेस को समझना होगा कि राजनीतिक दल सामाजिक न्याय का आंदोलन नहीं हैं। एक आंदोलन एक विशेष एजेंडे पर एक वर्ग को लक्षित करके चल सकता है लेकिन राजनीति को समावेशी होना चाहिए और सभी समुदायों के साथ जुड़ाव सुनिश्चित करना चाहिए।
अठाहरवीं लोकसभा चुनाव में जनता के बड़े हिस्से ने जिस तरह से सामाजिक न्याय के मुद्दे को प्रमुख प्रश्न में तब्दील किया है, उससे अब यह साफ हो गया है कि आने वाले समय में जाति जनगणना को ज्यादा देर तक रोका नहीं जा सकता। जाति जनगणना भारतीय समाज के कई तालों को खोलने वाली चाभी साबित हो सकती है।
इधर कुछ वर्षों से लगातार जाति जनगणना की बात उठाई जा रही है। हमारे देश में इसका कराया जाना जरूरी है क्योंकि आरक्षण का प्रावधान बहुत वर्ष पहले लागू किया गया था। अब जबकि देश की जनसंख्या में वृद्धि हुई है, ऐसे समय में इस कराते हुए जातियों के नए प्रतिशत के हिसाब से आरक्षण दिया जाना होगा। जिससे सामाजिक और आर्थिक स्थिति में समानता आए और सभी सममानपूर्वक जीवन के हकदार हों सकें।
मंडल आयोग ने पूरी योजना लागू करने के बीस साल बाद इसकी समीक्षा करने की भी सिफारिश की थी। आरक्षण की समीक्षा की बात होती है पर मंडल आयोग की नहीं। सामाजिक-शैक्षणिक पिछड़ापन, गरीबी का मुख्य कारण जाति के कारण उत्पन्न बाधाएं हैं तो ऐसे में मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू कर सामाजिक न्याय कायम किया जाए. वर्ण-जाति श्रेणी क्रम आधारित असमानता तोड़ने या कम करने का अभी तक केवल आरक्षण ही कारगर उपाय साबित हुआ है।
हैदराबाद, (भाषा)। ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने बुधवार को कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जाति के आधार पर मतदान...
मिर्जापुर का यह उद्योग कहने को तो गरीबों का गोल्ड तराश रहा है पर अफसोस की इसके निर्माता से लेकर मजदूर तक सब की जिंदगी में गर्म आग और बुझी हुई राख़ के सिवा अब कुछ भी नहीं है। व्यवसायी अपने हित लाभ के लिए सरकार से उम्मीद लिए बैठे हैं पर अपने पीतल के बर्तनों में चमक लाने वाले मजदूरों के जीवन में चमक लाने की उनकी कोई सोच नहीं दिखती है।
उन्होंने इस मामले में मोदी से निजी हस्तक्षेप करने का अनुरोध करते हुए कहा कि प्रस्तावित राष्ट्रीय दशकीय जनगणना के साथ जाति आधारित गणना को एकीकृत करने से समाज की जातीय संरचना और सामाजिक-आर्थिक संकेतकों में इसके असर के संबंध में समग्र और विश्वसनीय आंकड़े मिल सकते हैं।