Friday, March 29, 2024
होमविचारन्यायपालिका में सेंध लगाकर बिछाई जाती नफरती सुरंगें!!

ताज़ा ख़बरें

संबंधित खबरें

न्यायपालिका में सेंध लगाकर बिछाई जाती नफरती सुरंगें!!

हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति करने वाले कॉलेजियम का दावा है कि 'विक्टोरिया गौरी के इस तरह के कथनों के बारे में इंटेलिजेंस ब्यूरो ने उन्हें कोई जानकारी नहीं दी थी, अब नियुक्ति की प्रक्रिया इतनी आगे बढ़ चुकी है कि वे कुछ नहीं कर सकते।' मगर मामला इतना सरल नहीं है। यह अनजाने में, धोखे से हुयी नियुक्ति नहीं है, बल्कि बाकायदा योजनाबद्ध तरीके से न्यायपालिका में सेंध लगाकर नफरती बारूद की सुरंग बिछाने का एक और उदाहरण है।

नीचे लिखे कथनों, बयानों पर गौर कीजिए

‘जहां तक भारत का मसला है, मैं कहना चाहूंगी कि यहाँ इस्लामिक समूहों की तुलना में ईसाई समूह ज्यादा खतरनाक हैं। धर्मांतरण, खासकर लव जिहाद के सन्दर्भ में दोनों ही एक बराबर खतरनाक हैं।’

‘अगर इस्लामी आतंक हरा आतंक है, तो ईसाई आतंक सफ़ेद आतंक है।’

‘ईसाई गानों पर नाच के लिए भरतनाट्यम की शैली का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहा चाहिए। आखिर नटराज भगवान की भंगिमा जीसस क्राइस्ट के नाम के साथ कैसे मेल खा सकती है।’

‘धर्मनिरपेक्षता, वैश्वीकरण और वैश्विक मार्केटिंग के नाम पर छद्म धर्मनिरेपक्षवादियों द्वारा हमारे देश के नैतिक मूल्यों पर धीमे-धीमे, अनवरत रूप से घुसपैठ की जा रही है। इस घुसपैठ ने समानता के संवैधानिक वायदे को ढोंग बनाकर रख दिया है।’

‘ईसाईयों के हमलों की सूची खत्म होने को ही नहीं आ रही है। उनके हमलों का लक्ष्य है कि जहां मंदिर हैं, वहां उतने ही चर्च होने चाहिए।’

अब भारत के संविधान और इस तरह के बयानों के बारे में आपराधिक कानूनों में लिखे-बताये पर गौर कीजिये-

पहली पढ़त में ही ये बोल वचन आपराधिक बोल वचन हैं। भारत के संविधान के उस मूल ढाँचे, जिसे अब संसद भी नहीं बदल सकती, में वर्णित मूलभूत अधिकारों का सरासर उल्लंघन है। भारत के संविधान के अनुच्छेद 25(1) में लिखा है कि ‘लोक व्यवस्था, सदाचार और स्वास्थ्य तथा इस भाग के अन्य उपबंधों के अधीन रहते हुए, सभी व्यक्तियों को अंतःकरण की स्वतंत्रता का और धर्म के अबाध रूप से मानने, आचरण करने और प्रचार करने का समान हक होगा।’

इतना ही नहीं इस तरह की बातें कहना दंडनीय अपराध भी है। भारतीय दण्ड संहिता (आईपीसी) की धारा 153 (क) कहती है कि व्यक्ति ‘बोले गए या लिखे गए शब्दों या संकेतों या दृश्यरूपणों द्वारा या अन्यथा विभिन्न धार्मिक, नस्लीय या भाषायी या प्रादेशिक समूहों, जातियों या समुदायों के बीच अ-सौहार्द्र अथवा शत्रुता, घॄणा या वैमनस्य की भावनाएं, धर्म, नस्ल, जन्म-स्थान, निवास-स्थान, भाषा, जाति या समुदाय के आधारों पर या अन्य किसी भी आधार पर संप्रवर्तित करेगा या संप्रवर्तित करने का प्रयत्न करेगा अथवा (ख) कोई ऐसा कार्य करेगा, जो विभिन्न धार्मिक, मूलवंशीय, भाषायी या प्रादेशिक समूहों या जातियों या समुदायों के बीच सौहार्द्र बने रहने पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाला है और जो लोक-शान्ति में विघ्न डालता है या जिससे उसमें विघ्न पड़ना सम्भाव्य हो’ उसके खिलाफ दंडात्मक कार्यवाही की जाएगी। (कठिन भाषा संविधान के हिंदी संस्करण से ली गयी है।) इस धारा के तहत दोषी पाए जाने पर 5 साल की जेल और  जुर्माना दोनों किया जा सकता है।

इसी के साथ आईपीसी की एक और धारा 295 (क) है, जिसके अनुसार ‘अगर कोई व्यक्ति भारतीय समाज के किसी भी वर्ग के धर्म या धार्मिक विश्वासों का अपमान करता है या उनकी धार्मिक भावनाओं को आहत करने के इरादे से जान-बूझकर और दुर्भावनापूर्ण कार्य करता है या इससे संबंधित वक्तव्य देता है, तो वह आईपीसी यानी भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 295 ए के तहत दोषी माना जाएगा।’ इसमें 2 वर्ष के कारावास और जुर्माना, दोनों के प्रावधान है। आज की प्रचलित भाषा में यह हेट स्पीच के दायरे में आता है और अभी पिछली साल अक्टूबर में ही भारत का सर्वोच्च न्यायालय केंद्र और राज्य सरकारों को फटकारते हुए उन्हें निर्देश दे चुका है कि इस तरह की हेट स्पीच के मामलों में उन्हें बिना कोई देरी किये तुरंत, प्रभावी कार्यवाही करनी चाहिए।

अब इस पृष्ठभूमि में इस खबर पर गौर कीजिये।

ऊपर लिखे नफरती बयान और कथन, एक बार नहीं 2012, 2013 और 2018 में और उसके बाद भी सार्वजनिक रूप से देने वाली, आरएसएस के मुखपत्र ऑर्गनाइजर में इससे भी ज्यादा उकसावेपूर्ण भाषा में लिखने वाली और इस तरह ऊपर वर्णित संदर्भों के अंतर्गत भारत के संविधान के मूलभूत अधिकारों की खुलेआम अवज्ञा करने वाली और नफरती कथनों के लिए कम-से-कम 7 वर्ष की सजा और जुर्माने की पात्रता रखने वाली तमिलनाडु की एक वकील लक्ष्मन्ना चंद्रा विक्टोरिया गौरी को मद्रास हाईकोर्ट की न्यायाधीश नियुक्त कर दिया गया है।

यह भी पढ़ें…

बुनकरी के काम में महिलाओं को न्यूनतम मजदूरी भी नहीं मिल पाती

यदि सब कुछ ऐसा ही रहा, तो मोहतरमा आने वाले 13 वर्षों तक मद्रास हाईकोर्ट की जज रहेंगी, वे पदोन्नत होकर सर्वोच्च न्यायालय में भी जा सकती हैं। उनकी दीदादिलेरी इतनी है कि जब उनसे इन बयानों के बारे में पूछा गया, तब भी न तो उन्होंने इनका खंडन किया, ना ही कोई खेद जताया, बल्कि ‘मुझसे कहा गया है कि मैं कोई इंटरव्यू वगैरा न दूँ’ कहकर टाल दिया।

हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति करने वाले कॉलेजियम का दावा है कि ‘विक्टोरिया गौरी के इस तरह के कथनों के बारे में इंटेलिजेंस ब्यूरो ने उन्हें कोई जानकारी नहीं दी थी, अब नियुक्ति की प्रक्रिया इतनी आगे बढ़ चुकी है कि वे कुछ नहीं कर सकते।’ मगर मामला इतना सरल नहीं है। यह अनजाने में, धोखे से हुयी नियुक्ति नहीं है, बल्कि बाकायदा योजनाबद्ध तरीके से न्यायपालिका में सेंध लगाकर नफरती बारूद की सुरंग बिछाने का एक और उदाहरण है। सर्वोच्च न्यायालय के जिस कॉलेजियम ने विक्टोरिया गौरी की नियुक्ति की सिफारिश की है, उसकी केंद्र सरकार ने फौरन पुष्टि कर दी है।

उसी केंद्र सरकार ने सौरभ कृपाल, जॉन सत्यम और सोम शेखरन सुंदरेसन- तीन अन्य नाम वापस लौटा दिए। सौरभ कृपाल के मामले में उनके निजी जीवन की पसंद-नापसंद को आधार बनाया गया, तो सत्यम के मामले में एक साल पुरानी सिफारिश को इसलिए वापस लौटा दिया गया, क्योंकि बकौल आईबी रिपोर्ट ‘वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आलोचक हैं।’ आईबी रिपोर्ट के मुताबिक़ सत्यम ने 2017 में मेडिकल शिक्षा की एक छात्रा अनिता की आत्महत्या के बारे में एक न्यूज़ वेबसाइट द क्विंट में छपी एक खबर को अपनी फेसबुक पर शेयर करते हुए इसे भारत के लिए शर्मसार करने वाली घटना बताया था।

सुंदरेसन में मामले में भी आईबी की इसी तरह की शिकायत थी कि वे सरकार और उसकी नीतियों के प्रति अपनी आलोचनात्मक राय सोशल मीडिया पर व्यक्त करते रहे हैं। कितने अचरज की बात है कि जिस आईबी को सत्यम की एक सामान्य-सी फेसबुक पोस्ट और सुंदरेसन की सोशल मीडिया पर व्यक्त राय नागवार और उन्हें अपात्र करार देने लायक लगी थी, उसी आईबी को विक्टोरिया गौरी की अनेक आपत्तिजनक पोस्ट्स और आपराधिक कथन नजर नहीं आये। ये दोनों ही जज किसी भी राजनीतिक संगठन से नहीं जुड़े थे। जबकि विक्टोरिया गौरी भाजपा की नेता, उसकी महिला विंग की पदाधिकारी और इस विंग की केरल शाखा की प्रभारी सब कुछ थीं और उनकी ये पदवियाँ उनके सोशल मीडिया अकाउंट पर बाक़ायद खुद उनके द्वारा लिखी गयी थीं, 2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा और आरएसएस द्वारा अपने नाम के आगे चौकीदार लगाने के अभियान के दौरान अपनी ट्विटर आईडी पर वे स्वयं को चौकीदार विक्टोरिया गौरी तक लिखने लगी थीं। किन्तु कॉलेजियम को भेजी आईबी रिपोर्ट में इनका भी जिक्र नहीं था।

यह भी पढ़ें…

उत्तन पाली में मछलियों की गंध से तेज फैलती जा रही है कूड़े की बदबू

उन्हें कैसे भी हो, जज बनाने की हड़बड़ी किस कदर थी, यह इससे भी समझा जा सकता है कि इधर सुप्रीम कोर्ट गौरी की नियुक्ति को चुनौती देने वाली रिट याचिका पर सुबह दस बजे से सुनवाई करने वाला था। उधर उसी सुबह साढ़े नौ बजे गौरी को शपथ दिलाई जा रही थी। गौरी पहली भाजपा नेत्री नहीं है, महाराष्ट्र हाईकोर्ट में एक और भाजपा नेत्री महिला वकील को जज बनाया गया है।

न्यायपालिका में नफरती बारूद की सुरंगे बिछाने का काम लगातार जारी है।

प्रधानमंत्री, भाजपा यहां तक कि आरएसएस तक का गुणगान करने वाले सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट के जजों की सूची लगातार बढ़ती चली जा रही है। इस तरह के शुद्ध असंवैधानिक विचलन को मोदी सरकार ने ऐसे जजों को उपकृत करके प्रोत्साहित किया है।

हाल में जस्टिस मजीर की नजीर इसकी  ताज़ी नजीर है। नोटबंदी पर गोलमोल फैसला देने वाले जस्टिस एस अब्दुल नजीर बाबरी मुकदमे का फैसला सुनाने वाले दूसरे जज हैं, जिन्हें सेवानिवृत्ति के फ़ौरन बाद सौगात से नवाजा गया है और आंध्रप्रदेश का राज्यपाल नियुक्त कर दिया गया है।

इस पीठ की अध्यक्षता करने वाले जस्टिस रंजन गोगोई पहले ही राज्यसभा में पहुंचाए जा चुके हैं। अमित शाह के वकील का सुप्रीम कोर्ट तक पहुँचने सहित ऐसी मिसालें अनेक हैं।

इस तरह के पारितोषिक प्रतिदान से बाकी न्यायपालिका के लिए साफ़ सन्देश है कि मजदूर, किसान, कर्मचारी और नौजवान को उसकी मेहनत का सिला भले न मिले, सरकार के प्रति वफादारी और उसकी विचारधारा के प्रति जुड़ाव के इजहार का भुगतान पसीना सूखने से पहले ही कर दिया जाएगा।

नियुक्तियों में देरी, चुनिंदा जजों के मामलों में कॉलेजियम की सिफारिशों को रोकना या अनिश्चितकाल तक लटका कर रखना न्यायपालिका को नियंत्रित करने का एक तरीका है, एकमात्र नहीं। मौजूदा जजों को भी ‘ऐसे नहीं, तो वैसे सही’ अपने अनुकूल बनाने की तिकड़में अपनाई जा रही हैं।

यह भी पढ़ें…

पाकिस्तान की वर्तमान बदहाली से भारतवासियों को कितना खुश हो लेना चाहिए?

2014 के बाद से सुप्रीम कोर्ट सहित न्याय प्रणाली को अपने मन मुताबिक ढालने के सभी संभव-असंभव जरिये अपनाये गए हैं। इनमें से एक तो “लोया कर दिया जाना” के मुहावरे में भी बदल चुका है। अमित शाह से जुड़े प्रकरण की सुनवाई कर रहे जज ब्रजकिशन हरिगोपाल लोया की संदिग्ध हालत में हुयी मौत, जिसे उनके परिवार सहित अनेक ने हत्या करार दिया था, के मामले को निबटाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में जिस तरह के हथकंडे अपनाये गए थे, वे इतने असामान्य थे कि उन्हें लेकर खुद इस सर्वोच्च अदालत के चार वरिष्ठतम जजों को पत्रकार वार्ता करने का असाधारण कदम उठाना पड़ा था। इन्होंने प्रेस के जरिये पूरे देश को बताया था कि किस तरह ख़ास-ख़ास मामलों में सरकार और किसी खास पक्षकार के पक्ष में फैसला करवाने  के लिए न्यायालयीन परम्परा को ताक पर रखकर कुछ ख़ास-ख़ास जजों की खंडपीठ का गठन किया जाता है। वरिष्ठों की बजाय कनिष्ठों को प्रकरण सौंप दिए जाते हैं। इन मामलों में जज लोया की हत्या भर का मामला नहीं था, गुजरात हिंसा से जुड़े प्रकरणों से लेकर अडानी के हजारों करोड़ रुपयों की माफी तक के मामले शामिल थे।

यह कुशल प्रबंधन, जिन मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के कार्यकाल में हुआ, वे भारत के पहले ऐसे मुख्य न्यायाधीश बने, जिन्हें हटाने के लिए उनके खिलाफ महाभियोग तक लाया गया। एक अन्य मुख्य न्यायाधीश के मामले में एक महिला कर्मचारी की कथित शिकायत का भी जिस कुशलता के साथ इस्तेमाल किया गया उसके नतीजे उन्हीं जज साहब के अनेक फैसलों में पढ़े जा सकते हैं।

असुविधाजनक माने जाने वाले जजों के तबादले तो इस दौर की आम बात हो गयी है। यह हुकूमत का साथ न देने की वजह से किये जा रहे हैं। यह सन्देश पूरी तरह एकदम स्पष्टता से पहुँच जाए, इस बात का भी ख़ास ख्याल रखा जाता है। मद्रास हाईकोर्ट जैसे देश के सबसे बड़े और पुराने हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को हटाकर मेघालय का चीफ जस्टिस बनाना ऐसी ही एक बानगी थी। कई दूसरे जजों के मामले में भी यही हुआ।

यह भी पढ़ें…

बकरे की माँ यहाँ खैर नहीं मनाती

दिल्ली हाईकोर्ट के मुखर न्यायाधीश जस्टिस एस. मुरलीधर का प्रकरण इसका एक और उदाहरण है। रातो-रात इनका तबादला दिल्ली से पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट कर दिया गया, क्योंकि इन्होंने फरवरी 2020 में उत्तर-पश्चिम दिल्ली में हुए दंगों में पुलिस की शर्मनाक भूमिका को लेकर कड़े सवाल किये थे। भाजपा नेताओं अनुराग ठाकुर, प्रवेश वर्मा, अभय वर्मा, कपिल मिश्रा के दंगे भड़काने वाले भाषणों को लेकर एफआईआर तक दर्ज न किये जाने पर सख्त आपत्ति की थी। उन्होंने दिल्ली पुलिस से 24 घंटे में जवाब माँगा था। दिल्ली पुलिस के जवाब से पहले खुद उनका तबादला आदेश आ गया था। जस्टिस मुरलीधर के तबादले के खिलाफ हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने मुखर प्रतिवाद किया था मगर कान पर जूं तक नहीं रेंगी। इनके ओड़िसा हाईकोर्ट का मुख्य न्यायाधीश बन जाने के बाद भी सरकार अब भी उन्हें बख्शने के लिए तैयार नहीं है।

बाद के चीफ जस्टिस बोबड़े द्वारा पद पर रहते हुए दिए गए बयानों और न्यायपीठ पर बैठकर बोले गए कथनों ने भी न्यायपालिका की निष्पक्षता को विवादित ही बनाया।

यह एक बड़े और व्यापक एजेंडे का हिस्सा है। क़ानून मंत्री रिजीजू द्वारा लगभग हर तीसरे दिन सुप्रीम कोर्ट को डपटा जाना, उसे अपनी सीमाओं में रहने की हिदायत देना एक नियमित काम बन गया है। यह सब अब इतने निचले स्तर तक पहुँच गया है कि खुद न्यायाधीशों और कॉलेजियम को भी सार्वजनिक रूप से बोलना पड़ रहा है। इसी एक व्यापक एजेंडे- संविधान के मौजूदा स्वरुप को ही उलट देने के एजेंडे की पैरवी संवैधानिक पदों पर बैठे व्यक्तियों से भी करवाई जा रही है।

हाल ही में उप-राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का बयान इसी श्रृंखला में हैं। धनखड़, जो स्वयं भी एक बड़े वकील रहे हैं, ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट का केशवानंद भारती फैसला गलत है। केशवानंद भारती केस सुप्रीम कोर्ट की अब तक की सबसे बड़ी संविधान पीठ का एक ऐतिहासिक फैसला है, जिसका कहना है कि संसद संविधान में संशोधन करने का अधिकार रखती है, मगर यह अधिकार अबाध नहीं है, इसकी सीमा है, और वह सीमा यह है कि संविधान के मूल चरित्र, बुनियादी आधार में फेरबदल नहीं कर सकती। मौजूदा हुक्मरानों के लिए यह फैसला इसलिए और अधिक असुविधाजनक है, क्योंकि इसके बाद की संविधान पीठ साफ़-साफ़ कह चुकी है कि धर्मनिरपेक्षता, संसदीय लोकतंत्र और नागरिकों के मूलभूत अधिकार भारत के संविधान का मूल चरित्र है। संसद भी इसे नहीं बदल सकती। धनखड़ और उनका विचार कुनबा जानता है कि संविधानपीठ का यह निर्णय धर्माधारित राष्ट्र बनाने की उनकी कल्पना को कभी साकार नहीं होने देगा- इसलिए अब उन्हें यह फैसला नहीं चाहिए।

सत्ता पर काबिज कॉरपोरेट और हिंदुत्ववादी

साम्प्रदायिकता विधायिका को पहले ही विषाक्त बना चुकी है। कार्यपालिका को विधायिका किस तरह अपना मातहत बना चुकी है, इसके उदाहरण अनगिनत हैं। ताजा-ताजा मध्यप्रदेश का है, जहां के पन्ना जिले के कलेक्टर द्वारा भाजपा की चुनावी विकास यात्रा में भाषण दिया गया। अपने भाषण में आने वाले 50 वर्षों तक मोदी और भाजपा को ही जिताने की खुली हिदायत भी दी गयी। कथित चौथे खम्भे मीडिया की दशा के बारे में कुछ कहने-सुनने की जरूरत नहीं। उसी धजा में अब तेजी से न्यायपालिका को ढाला जा रहा है। यह संविधान को बिना बदले ही पूरी तरह बदल देने की सोची-समझी कुटिल योजना का एक आयाम है।

यह भी पढ़ें…

आखिर कब तक बुनकर सामान्य नागरिक सुविधाओं से वंचित किए जाते रहेंगे?

सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश जस्टिस वीआर कृष्ण अय्यर ने कहा था कि; ‘न्यायपालिका में नियुक्ति से पहले यह सुनिश्चित किया जाना चाहिये कि संबंधित व्यक्ति संविधान, लोकतन्त्र, धर्मनिरपेक्षता के बारे में पूरी तरह से प्रशिक्षित और अनुकूलित हो।’ उनका कहना था कि भारतीय सामाजिक परवरिश ऐसी नहीं है, जिसमे स्वतः ही समानता, बंधुत्व और धर्मनिरपेक्षता के संस्कार दिए जा सकें। इसलिए ‘ऐसी किसी भी नियुक्ति से पहले संबंधित व्यक्ति को लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता, जाति भेदभाव और (लैंगिक समानता सहित) समता की समझदारी का सघन प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए और इस आधार पर उसकी जांच की जानी  चाहिए।’

ठीक इसी तरह की आशंका संविधान सभा के आख़िरी भाषण में डॉ. अम्बेडकर ने जताई थी। इन चेतावनियों को गंभीरता से लेने और उनके अनुरूप सुधार करने, सावधानियां बरतने का काम तो खैर हुआ ही नहीं, उससे ठीक उलटी दिशा में देश को धकेले जाना जरूर शुरू कर दिया गया है, और यह एक अत्यंत ही गंभीर बात है।

नफरती बारूद की सुरंगों को बिछाकर हुक्मरान क्या करना चाहते हैं, इसे दोहराने की आवश्यकता नहीं है। जरूरत इस बात की है कि उनकी इस तरह की करतूतों से माहौल में व्याप्त हो रही सल्फर की विषाक्त शैतानी दुर्गन्ध को खदेड़-बुहार कर वातावरण की घुटन को घटाया कैसे जाए। जरूरत तो यह भी है कि उन्हें ऐसा करने से रोका किस तरह जाये।

जाहिर है कि यह काम जनता के बीच रहकर, उसके जीवन के सवालों से जोड़ते हुए सामाजिक और राजनीतिक दोनों मोर्चों पर लड़ते हुए ही किया जा सकता है। मजदूर-किसानों का देश भर में जारी साझा अभियान, जो 5 अप्रैल को दिल्ली में अपनी ताकत दिखाने तक पहुँचेगा, इसी तरह की एक कोशिश है। जरूरत ऐसी अनगिनत, बहुआयामी कोशिशों की है।

बादल सरोज
बादल सरोज साप्ताहिक 'लोकजतन' के संपादक और अखिल भारतीय किसान सभा के संयुक्त सचिव हैं।

2 COMMENTS

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

लोकप्रिय खबरें