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ग्राउंड रिपोर्ट

राष्ट्रीय आय एवं योग्यता आधारित परीक्षा में भदोही के 183 बच्चों ने सफलता पाई लेकिन खाली रह गईं एसटी की सभी सीटें

छात्रवृत्ति निर्धन बच्चों के आगे की पढ़ाई के लिए बहुत बड़ा आधार होती है। राष्ट्रीय आय एवं योग्यता आधारित छात्रवृत्ति परीक्षा में सफलता पाकर बहुत से बच्चों ने अपनी मंज़िलें पाई है। विगत वर्षों की तरह इस बार भी भदोही जिले के 183 बच्चों ने सफलता पाई है। हालांकि अनुसूचित जनजाति के कोटे की चार सीटें खाली ही रह गईं।

भदोही। एक लंबे इंतजार के बाद राष्ट्रीय आय एवं योग्यता आधारित छात्रवृत्ति योजना परीक्षा 2024 का परिणाम घोषित कर दिया गया। उत्तर प्रदेश के राजकीय सहायता प्राप्त और स्थानीय निकाय के स्कूलों में आठवीं में पढ़ने वाले छात्र-छात्राओं के लिए निर्धारित 15143 सीटों में से 14896 सीटों पर मेधावियों को सफलता मिली है। गौरतलब है कि ये सभी विद्यार्थी अत्यंत गरीब घरों से आते हैं। इस छात्रवृत्ति से इनके भविष्य का एक सुगम रास्ता तैयार होता है।

भदोही जिले के लिए कुल 187 सीटे निर्धारित थीं, जिनमें से 183 सीटों पर बच्चों ने सफलता पाई लेकिन 4 सीटें अनुसूचित जनजाति के कैंडिडेट नहीं मिलने के कारण खाली चली गईं। राष्ट्रीय आय एवं पात्रता परीक्षा 2024 में भदोही के

183 बच्चों का चयन हुआ है। परीक्षा में इतनी बड़ी संख्या में बच्चों के चयन पर भदोही के बेसिक शिक्षा अधिकारी भूपेन्द्र  नारायण सिंह कहते है ‘मेरी तरफ से उन सारे अध्यापकों को बधाई जिन्होंने इन बच्चों को परीक्षा के लिए तैयार किया। विद्यालयों में अतिरिक्त समय देकर इन बच्चों को इस परीक्षा के काबिल बनाया की  वे परीक्षा में सफलता अर्जित किए। साथ ही उन बच्चों को ढ़ेर सारी बधाई जिन्होंने इस परीक्षा में अथक मेहनत करके सफलता प्राप्त की। बीएसए भूपेन्द्र   नारायण सिंह एसटी के बच्चों की सीट खाली रह जाने के बारे में पूछंने पर बोले ‘इस के लिए ये बच्चे अभी मिले ही नहीं। मेरी कोशिश रहेगी कि अगर एक भी बच्चा इस कैटेगरी का मिल जाय तो उसको इस तरह से तैयार किया जाय कि वह भी इस परीक्षा में सफलता को प्राप्त करे।’

BSA Bhadohi
भूपेन्द्र नारायण सिंह, बसिक शिक्षा अधिकारी, भदोही

 डॉलर सिटी के निर्धन परिवारों के बच्चे

भदोही जिले की पहचान जहां कालीन व्यवसाय के चलते डॉलर सिटी के रूप में है वहीं उसकी विशाल आबादी आज भी बुनियादी समस्याओं से जूझ रही है। विगत वर्षों में कालीन व्यवसाय में अनेक तरह की तब्दीलियाँ हुईं जिनके कारण बड़ी संख्या में लोग बेरोजगार हो गए। ज़ाहिर है कि इसका बुरा असर उनकी ज़िंदगी और भविष्य पर पड़ा। इनमें से भी पढ़ने-लिखने वाले बच्चों का भविष्य जोखिम भरा हो गया है। भले ही प्राथमिक स्तर पर बच्चे स्कूल तक पहुँच रहे हों लेकिन घर के आर्थिक हालात के चलते आगे की राह उनके लिए बहुत कठिन होती जाती है लेकिन विगत कुछ वर्षों से राष्ट्रीय आय एवं योग्यता आधारित छात्रवृत्ति पाकर अनेक बच्चों ने अपनी आगे की राह आसान बना ली है।

भदोही जिले के ही कम्पोजिट विद्यालय अमावामाफी यादव बस्ती के अध्यापक विनोद कुमार बिंद अपने विद्यालय के बारे में बताते हैं ‘हमारे यहां से राष्ट्रीय आय एवं पात्रता परीक्षा में तीन बच्चे चयनित हुए हैं।’ इन बच्चों की तैयारी कैसे करवाते हैं? इस सवाल के जवाब में विनोद कुमार बिंद  बताते हैं कि ‘जुलाई में जब स्कूल शुरू होता है तभी से हम ऐसे बच्चों को खोजकर उनको इस परीक्षा के लिए तैयार करना शुरू कर देते हैं। हम इन बच्चों को कुछ पुस्तकें खुद से उपलब्ध करवाते हैं और कुछ किताबें बच्चे भी खरीद लेते हैं। स्कूल की छुट्टी होने के बाद हम इन बच्चों को डेढ़ से दो घंटे का अतिरिक्त समय देते हैं।

इस दौरान हम बच्चों को गणित,विज्ञान और रीजनिंग पर ज्यादा फोकस करते हैं। कुछ बच्चों की पकड़ विज्ञान और गणित पर अच्छी होती है, लेकिन रीजनिंग में वे कमजोर होते हैं। तब हम ऐसे बच्चों को रीजनिंग का ज्यादा से ज्यादा अभ्यास करवाते हैं। ठीक इसी प्रकार से गणित और विज्ञान में कमजोर बच्चों को इन्हीं विषयों  पर फोकस करके हम उनकी कमियों को दूर कर, उन्हें परीक्षा के काबिल बनाते हैं।’

उच्च प्राथमिक विद्यालय चकवीरा के प्रधानाध्यापक देवी प्रसाद अपने विद्यालय के 12 छात्रों के चयन को बच्चों और अध्यापकों की कड़ी मेहनत का परिणाम बताया। बोले ‘एक तरफ जहां इन बच्चों ने इस परीक्षा को पास करने के लिए दिन-रात एक कर दिया वहीं दूसरी ओर विजय कुमार यादव और प्रमोद कुमार जैसे अध्यापकों ने इन्हें तराशने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। जुलाई की शुरुआत  से इन अध्यापकों ने दो से ढ़ाई घंटे का अतिरिक्त समय देकर बच्चों को पढ़ाया। उनकी इसी मेहनत का परिणाम है कि आज हमारे विद्यालय से जिले के सर्वाधिक बच्चे राष्ट्रीय आय एवं पात्रता परीक्षा में सफल हुए है।’

भदोही के उच्च प्राथमिक विद्यालय कोइलरा औराई की अध्यापिका ज्योति बताती है ‘इस बार की परीक्षा में हमारे विद्यालय के दो ही बच्चे सेलेक्ट हुए हैं। जबकि 2023 की परीक्षा में 4 बच्चे और 2022 की परीक्षा में 7 बच्चे चयनित हुए थे। इन बच्चों को परीक्षा के लिए तैयार करने के सवाल पर ज्योति बोली ‘चूंकि हमारे यहां जो भी बच्चे आते हैं वे बेहद गरीब घर के होते हैं। इनमें से कुछ बच्चे पढ़ाई के प्रति बहुत सजग होते हैं और कुछ तेज होने के बावजूद भी अपने भविष्य के प्रति जागरूक नहीं होते। तो ऐसे बच्चों को तैयार करने में थोड़ी दिक्कत होती है। लेकिन हम बच्चों के मां-बाप से इस परीक्षा और उसके महत्व के बारे में बताते हैं। बच्चों को समझाते हैं। तब जाकर बच्चे कठिन मेहनत के लिए तैयार होते हैं। हम इन बच्चों को पूर्व में टॉप किए बच्चों के बारे में भी बताते हैं।’

उच्च प्राथमिक विद्यालय वैराखाट के छः बच्चों ने इन बार राष्ट्रीय आय एवं पात्रता परीक्षा में सफलता प्राप्त की है। इस विद्यालय के सहायक अध्यापक अखिलेष बताते हैं इस बार इस परीक्षा में कुल 22 बच्चे सम्मिलित हुए थे। जिसमें से 6 बच्चों ने सफलता प्राप्त की। परीक्षा की तैयारी के लिए बच्चों को कैसे तैयार करते हैं ? सवाल पर अखिलेश बोले ‘इस परीक्षा के लिए बच्चों को तैयार करने में ही सबसे ज्यादा मशक्कत करनी पड़ती है। एक बार जब मानसिक रूप से ये बच्चे तैयार हो जाते हैं तो फिर दिक्कत नहीं होती। इन बच्चों को जुलाई में स्कूल खुलते ही सुबह में एक घंटा और शाम को स्कूल बंद होने के बाद एक घंटा का समय दिया जाता है। टेस्ट लेकर हम इन बच्चों की विषयवार कमजोरियों का पता लगाते हैं और फिर उसी को दूर करने पर फोकस करते हैं।’

भदोही के कम्पोजिट विद्यालय कसियापुर के अध्यापक शीतलादीन बताते हैं उनके विद्यालय के 4 बच्चे इस बार की राष्ट्रीय आय एवं पात्रता परीक्षा में चयनित हुए हैं। 2023 की इसी परीक्षा में यहां के 5 बच्चों ने बाजी मारी थी। श्रेष्ठा की परीक्षा के लिए भी उनके यहां के दो बच्चों ने फार्म भरा है जिसमें सफल होने वाले बच्चे देश के किसी भी नामी गिरामी स्कूल में शिक्षा प्राप्त करने के हकदार हो जाएंगे। ऐसे बच्चों की पढ़ाई का सारा खर्च एमएचआरडी वहन करेगा। बातचीत के दौरान अध्यापक शीतलादीन कुछ मां-बाप से नाराज भी दिखे बोले ‘कुछ बच्चे काफी तेज होते हैं लेकिन जब उनके मां-बाप से फार्म भरने की बात करिए तो बच्चे का फार्म ही नहीं भरने देते।’

 बड़वापुर विद्यालय के बच्चों ने फिर लहराया परचम

भदोही जिले के अन्य विद्यालयों की तुलना में बड़वापुर विद्यालय के बच्चों की संख्या ज्यादा है। बड़वापुर विद्यालय के अध्यापक रामलाल सिंह यादव स्कॉलरशिप की तैयारी करने वाले बच्चों के बीच बहुत लोकप्रिय हैं क्योंकि उन्होंने अपनी टीम के साथ अब तक दर्जनों बच्चों को छात्रवृत्ति पाकर उच्च शिक्षा के लिए उनका मार्ग प्रशस्त किया है। उन्होंने बताया कि इस वर्ष अंजलि महिला एवं बाल विकास समिति के सहयोग से 20 बच्चों को उनके द्वारा निशुल्क शिक्षा देकर पूरे वर्ष अलग से तैयारी कराई गई। इनमें बड़वापुर विद्यालय के साथ-साथ चकसुंदरपुर, छत्रसाहपुर  आदि विद्यालयों के बच्चों को 2 घंटे का अतिरिक्त समय देकर पढ़ाया गया जिसका परिणाम यह रहा कि अंकित कुमार 156, आनंद यादव 145, राज तिवारी 130, सत्यम यादव, 127, अमित 129, पायल 125, राधिका 124, शुभम 125, अभय 120, शुभम 121, अंकित यादव 119,  उजाला 118, अनुराग कुमार 117, श्रद्धा कुमारी 107 आदि में सफलता प्राप्त की।

पिछले दिनों रामलाल यादव जिन बच्चों की तैयारी करा रहे थे उनमें से कइयों से गाँव के लोग ने बातचीत की तो उन्होंने जिस उत्साह से अपने अध्यापक के अध्यापन कौशल और अपने प्रति लगाव के बारे में बताया वह एक सुखद अनुभव था। अलग-अलग विद्यालयों में पढ़नेवाले बच्चों यह बताया कि रामलाल सर ने पढ़ाई में हमारी अभूतपूर्व दिलचस्पी जगाई। अब वे न केवल अपने पाठ्यक्रम बल्कि सामान्य ज्ञान के दूसरे विषयों में भी पारंगत हो रहे हैं।

उनकी एक छात्रा राधिका कनौजिया ने बताया कि ‘पहले मैं इंगलिश मीडियम में पढ़ती थी लेकिन मुझे कुछ आता नहीं था। तब सर ने मुझे अपने यहाँ बुलाया और कहा बेटा अगर यहाँ पर पढ़ लोगी तो तुम्हें कुछ आ जाएगा। तब मैं यहाँ आ गई और मैंने एएनएम की परीक्षा दी है। उसमें मैंने 106 नंबर का सवाल हल किया है। मुझे उम्मीद है कि मैं पास हो जाऊँगी।’

राधिका ने अपने घर के हालात के बारे में बताते हुये कहा कि ‘मेरे माता-पिता बहुत मेहनत करते हैं। वे सोचते हैं कि हमारी बेटी कुछ कर ले लेकिन मेरी माँ की तबीयत लगातार खराब रहती है। उनके इलाज में बहुत पैसा खर्च होता है। उनकी चिंता रहती है कि परिवार कैसे चलेगा। मेरी माँ कहती हैं कि बेटा जब हम मर जाएंगे तब भी तुम अपनी पढ़ाई मत छोड़ना। यह बात मुझे लग गई और मैंने ठान लिया कि मैं कुछ करके दिखाऊँगी। मैं घर का काम करके स्कूल आती हूँ। सर ने मुझे बहुत प्रोत्साहित किया। मैं लगातार कोचिंग में पढ़ने आती हूँ।’

छोटूपुर गाँव के निवासी अभिषेक यादव कहते हैं कि एक बार मेरे स्कूल में रामलाल सर आए थे लेकिन तब मैं वहाँ नहीं था इसलिए मुलाक़ात नहीं हो पाई। बाद में मेरे सर ने बताया कि जाओ वहाँ रामलाल सर कोचिंग पढ़ाते हैं, वहाँ पढ़ो और प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करो।’

अभिषेक ने राष्ट्रीय आय एवं योग्यता आधारित छात्रवृत्ति परीक्षा की काफी तैयारी की लेकिन ऐन मौके पर परीक्षा रद्द कर दी गई। अभिषेक के साथ और तीस बच्चे भी तैयारी कर रहे थे लेकिन सबको मन मारकर संतोष करना पड़ा। अभिषेक भरे गले से बताते हैं कि रामलाल सर ने हमें निराश नहीं होने दिया और आगे की तैयारी के लिए प्रोत्साहित किया।

कक्षा आठ में पढ़नेवाली शिवानी यादव कहती हैं कि मैं अपने मामा के घर रहती हूँ। मेरे पिता दूध का काम करते हैं। परिवार का गुजारा मुश्किल से होता है। रामलाल सर जब हमारे स्कूल में आए तब पता चला कि नेशनल स्कॉलरशिप प्राप्त करके अपनी पढ़ाई का खर्च चलाया जा सकता है। सर ने मुझे अच्छी तरह पढ़ना लिखना सिखाया। यहाँ आकर मैने बहुत कुछ सीखा। अब रिजनिंग, इतिहास भूगोल, भाषा सबकुछ अच्छी तरह आता है।’

जगापुर की रहनेवली आयुषी पांडे कहती हैं ‘मैं पहले पढ़ाई में बहुत फिसड्डी थी लेकिन जब सर हमारे स्कूल में आए तो उनकी बातों से मुझे लगा कि शायद वे मुझे अच्छी तरह पढ़ा सकेंगे। तब मैं उनके यहाँ आने लगी और अब तो पढ़ाई में मेरी बहुत हो गई है। मैं बड़ी होकर पुलिस बनना चाहती हूँ।’

जयेश तिवारी विभूति नारायण राजकीय इंटर कॉलेज में कक्षा दस के विद्यार्थी हैं। पहले उनके पिता इंदौर मध्य प्रदेश में रहकर व्यवसाय करते थे। जयेश ने वहीं से सातवीं तक पढ़ाई की लेकिन कोरोना काल में उनके पिता की आर्थिक स्थिति बिगड़ी तब वे सपरिवार अपने गाँव आ गए। जयेश कहते हैं कि ‘यहाँ आने पर मेरे पिता ने मेरा एडमिशन बड़वापुर प्राइमरी स्कूल में कराया। यहाँ मेरे अध्यापक रामलाल सर ने पढ़ाई में मेरी बहुत सहायता की। यहाँ मैंने सभी विषयों में कुशलता प्राप्त की। एक बार मैं राष्ट्रीय स्कॉलरशिप की तैयारी की लेकिन परीक्षा नहीं दे पाया। बाद में मैंने सर की कोचिंग जॉइन की और पढ़ रहे हैं। मैं आईएएस बनना चाहता हूँ।

शांति बिन्द बहुत सधी हुई भाषा में आत्मविश्वास के साथ बात करती हैं। उनके पिता मुंबई में रहकर ऑटो चलाते हैं लेकिन शारीरिक दिक्कतों के कारण बहुत अधिक काम नहीं कर पाते। शांति डॉ बनने की इच्छा रखती हैं। वह बताती हैं कि पहले मैं जहां पढ़ती थी वहाँ के अध्यापक बच्चों की पढ़ाई को लेकर जागरूक नहीं थे। लेकिन रामलाल सर ने मुझे हर विषय में पारंगत बनाया। मेरा भाई सर की कोचिंग में आता था। उसी ने मुझे यहाँ आने के लिए उत्साहित किया। अब मुझे पूरा विश्वास है कि चाहे जितनी भी मेहनत करनी हो मैं डॉक्टर जरूर बनूँगी।’

संजय कुमार बिन्द विभूति नारायण राजकीय इंटर कॉलेज में नौवीं कक्षा में पढ़ते हैं। वह बताते हैं कि पहले मैं ज्ञानपुर में इंगलिश मीडियम में पढ़ता था और अपने स्कूल का टॉपर था इसलिए मुझे इस बात का घमंड था कि मैं ही सबसे तेज हूँ। लेकिन जब मैं रामलाल सर के पढ़ाये कुछ विद्यार्थियों से मिला तब मुझे अहसास हुआ कि मैं सिर्फ सेलेबस में ही आगे हूँ। किसी प्रतियोगी परीक्षा में जाने के लिए और भी तैयारी की जरूरत है। बाद में मेरे पिताजी ने मुझे सर के सान्निध्य में भेजा। मैं पी एम यशस्वी की परीक्षा की तैयारी कर रहा था लेकिन किसी कारण से वह परीक्षा स्थगित हो गई। लेकिन अब मेरे पास कुछ बड़ा करने का सपना है।’

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राष्ट्रीय आय एवं योग्यता आधारित परीक्षा 2024 में चयनित सभी बालिकाएँ

रामलाल यादव हमेशा अपने विद्यार्थियों को प्रोत्साहित करते हैं। उनके पढ़ाये बच्चे तैयारी के साथ-साथ छोटे विद्यार्थियों को पढ़ाते हैं। बड़वापुर विद्यालय की अध्यापिका अमरीन बानो कहती हैं कि ‘पहले इस विद्यालय में बहुत बच्चे नहीं थे लेकिन जब रामलाल सर यहाँ आए तो वे घर-घर जाकर अभिभावकों से मिले और उनका नाम यहाँ लिखवाने के लिए प्रेरित किया। वह चाहते थे कि बच्चे सिर्फ नाम के लिए स्कूल न आयें बल्कि पढ़ाई के लिए आयें। जो लोग अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में भेजने लायक थे उन्हें समझाना थोड़ा मुश्किल था और जो गरीब थे उनके लिए निरंतर शिक्षा बहुत महंगी लगती थी। सर ने उन्हीं गरीब घरों के विद्यार्थियों पर ध्यान केन्द्रित किया और जल्दी ही उन्हें इतना सक्षम बना दिया कि वे छात्रवृत्ति परीक्षा में सफल होकर अपनी आगे की पढ़ाई आसानी से पूरी कर सकें।’

क्यों नहीं भर पा रही हैं एसटी सीटें 

जिन बच्चों ने सफलता प्राप्त की है उनके चेहरे पर भविष्य में कुछ बन जाने की खुशी है लेकिन एसटी सीटें क्यों खाली रह जा रही हैं यह चिंता का विषय है। इस संदर्भ में यह जानना जरूरी है कि जनजातीय समुदायों की जिले में संख्या कितनी है और उनके स्थायी निवास हैं अथवा नहीं? आमतौर पर यह मान लिया जाता है कि भदोही जिले में एस टी समुदाय अभी भी ख़ानाबदोश स्थिति में है जिसका सबसे बुरा असर उनके बच्चों के भविष्य पर पड़ रहा है। तमाम प्रोत्साहनों के बावजूद एसटी समुदाय के बच्चे बहुत पीछे छूट गए हैं और निश्चित रूप से सामाजिक न्याय के सामने एक बड़ा प्रश्नचिन्ह है।

 

अपर्णा
अपर्णा
अपर्णा गाँव के लोग की संस्थापक और कार्यकारी संपादक हैं।

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