Wednesday, July 16, 2025
Wednesday, July 16, 2025




Basic Horizontal Scrolling



पूर्वांचल का चेहरा - पूर्वांचल की आवाज़

होमग्राउंड रिपोर्टवाराणसी : पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र में निजी स्कूलों की मनमानी,...

इधर बीच

ग्राउंड रिपोर्ट

वाराणसी : पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र में निजी स्कूलों की मनमानी, बच्चों की पढ़ाई अभिभावकों के लिए बनी चुनौती

कोई भी स्कूल तभी अपने यहां फीस वृद्धि कर सकता है जब सीपीआई (उपभोक्ता सूची सूचकांक) में बढ़ोत्तरी होती है। यही नहीं कोई भी स्कूल अभिभावक को किसी भी विशेष दुकान से कापी-किताब खरीदने के लिए बाध्य नहीं कर सकता, उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा लागू किए गए अध्यादेश की खुलेआम धज्जियां उड़ाई जा रही हैं।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में प्राइवेट स्कूलों की मनमानी फीस वृद्धि के बोझ से अभिभावकों की कमर टूटती जा रही है। अभिभावकों की मानें तो उनसे हर साल एडमिशन के नाम पर एक मोटी रकम ली जाती है। यही नहीं स्कूल द्वारा तय की गई दुकान से कॉपी-किताब और ड्रेस खरीदने की बाध्यता भी थोपी जाती है।

इस बारे में लंका निवासी बृजेश कहते हैं, ‘नई कक्षा में प्रवेश के दौरान प्राइवेट स्कूल वाले अभिभावकों से मनमानी लूट कर रहे हैं। इन पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है। सरकार चाहे तो इनकी मनमानी रुक सकती है लेकिन सरकार भी कुछ नहीं कर रही है।’ बृजेश जनरल स्टोर की दुकान चलाकर अपना परिवार चलाते हैं। दुकान से जो कमाई होती है उसी से परिवार को चलाने के अलावा दो बच्चों को पढ़ा भी रहे हैं।

बृजेश बताते हैं, ‘इम्पिरियल पब्लिक स्कूल में मेरे दोनों बच्चे पढ़ते हैं। बड़े वाले बेटे का दसवीं और छोटे वाले का चौथी कक्षा में एडमिशन कराया है। दोनों के एडमिशन में ही 20 हजार से अधिक रुपये खर्च हो चुके हैं। अभी कॉपी-किताब और स्कूल का ड्रेस खरीदना बाकी है। एडमिशन में ही हालत खराब हो गई।’ बृजेश आगे बताते हैं कि सबसे ज्यादा दिक्कत प्रवेश (एडमिशन) फीस देने में होती है।

‘इन स्कूलों ने एक व्यवस्था बना रखी है जिसके तहत एक खास दुकान पर ही उनकी किताबें मिलेंगी। इन दुकानों पर स्कूल संचालकों का कमीशन तय रहता है। यहां भी अभिभावक लूटे जाते हैं। यही हाल बच्चों की ड्रेस खरीद में भी होता है। कपड़े की गुणवत्ता एकदम घटिया रहती है लेकिन दाम बहुत अधिक होते हैं।’ उदास चेहरे के साथ बृजेश आगे कहते हैं, ‘दुकान से जो भी कमाई होती है वह सब बच्चों की पढ़ाई में ही चली जा रही है। उम्र भी धीरे-धीरे बढ़ रही है। बचत के नाम पर कुछ भी नहीं बच रहा है। आने वाले समय के बारे में सोचकर कभी-कभी रात में नींद नहीं आती है।’

अस्सी घाट निवासी अभिभावक बृजेश

रिपोर्टिंग के दौरान अधिकतर लोग स्कूलों की व्यवस्था पर बोलने से कतराते रहे। अभिभावकों के बीच यह डर है कि यदि वे संस्थान के खिलाफ बोलेंगे तो स्कूल प्रबंधन उनके बच्चों को चिन्हित करके परेशान करेगा। गिलट बाजार की रहने वाली कल्पना सिंह (बदला हुआ नाम, मूल रूप से गाजीपुर जिले की रहने वाली) ने पहचान गुप्त रखने की शर्त पर बताया कि ‘वाराणसी के संत अतुलानंद स्कूल मे प्रवेश फीस बहुत ज्यादा है। सबके यहां तो एडमिशन फीस एक बार लगती है लेकिन संत अतुलानंद हर साल एडमिशन के नाम पर भारी भरकम फीस बच्चों के अभिभावकों से वसूल रहा है।’

प्रवेश फीस के नाम पर अभिभावकों से मोटी वसूली

कल्पना सिंह आगे कहती हैं ‘मेरे दो बच्चे संत अतुलानंद में पढ़ते हैं। दोनों की एडमिशन फीस मिलाकर 35 हजार से ज्यादा पड़ी है। उसके बाद कॉपी-किताब और स्कूल ड्रेस अलग से। यही नहीं सांस्कृतिक कार्यक्रमों में अगर बच्चे ने भाग लिया है तो उसकी ड्रेस भी मां-बाप को ही खरीदनी पड़ती है। स्कूल की तरफ से बच्चों को कहीं घुमाने का कार्यक्रम है तो उसका पैसा अलग से मांगा जाता है। सुविधा के नाम पर ये कुछ भी नहीं दे रहे हैं। यह एक प्रकार की लूट है और इस पर रोक लगनी चाहिए।’

प्राइवेट स्कूलों की फीस के बारे में जानकारी जुटाने के लिए जब हम स्कूल में गए तो हमें बाहर ही रोक लिया गया। काफी प्रयास के बाद हम स्कूल फीस से जुड़ी जानकारी इकट्ठी कर पाए। छोटे से लेकर बड़े हाई क्लास स्कूलों ने अपने-अपने हिसाब से फीस का निर्धारण कर रखा है। स्कूलों की फीस में कोई समानता नहीं है। फीस निर्धारित करने का कोई मानक नहीं है, स्कूलों द्वारा मनमर्जी से फीस तय की जाती है और अभिभावकों से वसूली जाती है।

सनबीम स्कूल वरूणा में पहली कक्षा में एडमिशन लेने वाले बच्चे के माता-पिता से 25 हजार रुपये की फीस जमा कराई जाती है। इसके अलावा प्रति महीना फीस 7,805 रुपये है। डालिम्स सनबीम ग्लोबल स्कूल में पहली कक्षा में पढ़ाई के लिए बच्चे की एडमिशन फीस 20 हजार है। इसके अलावा महीने की फीस 7,165 रुपये है।

डालिम्स सनबीम एवं सनबीम वरुणा स्कूल का फीस स्ट्रक्चर

सेठ आनंदराम जयपुरिया स्कूल की पहली कक्षा में प्रवेश पर 30 हजार रुपये की एडमिशन फीस देनी होती है। इसी प्रकार से संत अतुलानंद में पहली कक्षा में की एडमिशन फीस 18,110 रुपये तथा त्रैमासिक फीस 9,810 है। इसी प्रकार से नवरचना पब्लिक स्कूल की एडमिशन फीस 6 हजार रुपये तथा प्रति महिना फीस 1500 रुपये है। यानी हर स्कूल की अपनी अलग फीस।

ड्रेस और किताबों के नाम पर कमीशन का खेल

अभिभावकों के शोषण की कहनी यहीं खत्म नहीं होती है। इसके अलावा हर स्कूल का अपना ड्रेस कोड है जो उस स्कूल द्वारा तय की गई दुकान पर ही मिलता है। इसके अलावा कॉपी और किताबें भी स्कूल द्वारा तय एक निश्चित दुकान से खरीदनी पड़ती हैं।

भक्तिनगर पहड़िया निवासी श्रवण तिवारी कहते हैं ‘विशेष दुकानों पर किताब और कॉपी मिलने की वजह के पीछे का कारण सभी को मालूम है। स्कूल वालों का इन दुकानदारों से कमीशन का चक्कर रहता है। ये दुकानदार ऊंचे दामों पर ड्रेस बेचेंगे, खुद मुनाफा कमाएंगे और स्कूल को भी मुनाफा देंगे।’ क्या निजी स्कूलों की इस मनमानी पर रोक लगनी चाहिए, पूछे जाने पर वे कहते हैं, ‘यह सब सरकार की नांक के नीचे हो रहा है। सरकार भी इस तथ्य से भली-भांति वाकिफ़ है। ये स्कूल-कॉलेज सरकार को पैसा पहुंचा रहे हैं। सरकार का इसमें फायदा है इसलिए वह चुप है और इस तरफ से आंखे मूंदे हुए है।’

राधा किशन नामक यूनिफार्म की दुकान चलाने वाले अभिजीत बताते हैं,  ‘संत अतुलानंद कॉन्वेंट स्कूल की पांचवीं और छठवीं क्लास की ड्रेस बनवाने में पांच लाख रुपये खर्च हो जाते हैं। जब हम इतना पैसा खर्च कर रहे हैं तो मैं कमाई भी तो करना चाहूंगा। मैं यहां समाज सेवा के लिए नहीं बैठा हूं। मेरा भी घर परिवार है, दो पैसे कमाऊंगा नहीं तो परिवार कैसे चलेगा।’

कोइराजपुर हरहुआ निवासी विनोद कुमार सिंह निजी स्कूलों की मनमानी की बाबत कहते हैं ‘हरहुआ में रमा पब्लिक स्कूल है जहां पर हर साल एनुअल चार्ज के नाम पर 1200 रुपये लेते हैं। प्रति महीने एक बच्चे की फीस 800 है जो समय को देखते हुए ज्यादा नहीं है पर एनुअल फीस देना भारी पड़ता है।’ विनोद कुमार सिंह सरकार से मांग करते हुए कहते हैं ‘एनुअल फीस का निर्धारण स्कूलों की बजाय सरकार की ओर से किया जाना चाहिए। इससे स्कूलों की मनमानी रूकेगी और अभिभावकों से होने वाली लूट पर भी अंकुश लगेगा।’ विनोद की दो बेटियां हैं और दोनों ही रमा पब्लिक स्कूल में पढ़ती हैं।

वाराणसी में कुछ ऐसे निजी शिक्षण संस्थान हैं जो हर साल बच्चों के अभिभावकों से एनुअल फीस के नाम पर मोटी कमाई करते हैं। वहीं दूसरी तरफ कुछ ऐसे भी बड़े स्कूल-कॉलेज हैं जो सिर्फ एक बार ही एनुअल फीस जमा करवाते हैं। हर साल एडमिशन फीस जमा करवाने में संत अतुलानंद कान्वेंट स्कूल सबसे आगे है। कुछ ऐसे भी स्कूल हैं जो एक-दो साल के अन्तराल पर एडमिशन फीस लेते हैं।

यूपी के सरकारी स्कूलों के कब सुधरेंगे हालात

‘निजी शिक्षण संस्थानों की मनमानी के बावजूद अभिभावक अपने बच्चों को इन्हीं निजी शिक्षण संस्थानों में क्यों पढ़ा रहे हैं?’ इस सवाल के जवाब में श्रवण तिवारी कहते हैं, ‘सरकारी प्राथमिक विद्यालयों का हाल बुरा है। सारे सरकारी काम स्कूलों के अध्यापकों से लिए जाते हैं। सांड पकड़ने से लेकर कांवरियों के लिए जलपान की व्यवस्था भी सरकारी शिक्षकों से कराई जा रही है। चुनाव में भी सरकारी शिक्षकों की ड्यूटी लगाई जाती है।’

श्रवण तिवारी आगे कहते हैं, ‘जब सारी जिम्मेदारी इन्हीं अध्यापकों के ऊपर रहेगी तब ये बच्चों को क्या पढ़ाएंगे ? इस बात को हर आदमी जान चुका है इसलिए वह अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में नहीं भेजते। अभिभावकों की मजबूरी का फायदा ये निजी स्कूल वाले उठा रहे हैं।’

अभिभावक श्रवण तिवारी

श्रवण तिवारी शिक्षा व्यवस्था के सवाल पर दिल्ली का उदाहरण देते हैं, ‘सरकारी स्कूलों की पढ़ाई देखनी हो तो दिल्ली की देख लीजिए। वहां पर कोई मां-बाप अपने बच्चों को प्राइवेट में नहीं पढ़ाना चाहता। वहां के सरकारी यहां के प्राइवेट स्कूलों को मात दे रहे हैं।’

ज्ञात हो कि दिसम्बर 2020 में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने यूपी के सरकारी स्कूलों की दुर्दशा पर सवाल खड़ा किया था। इसके बाद उत्तर प्रदेश के शिक्षा मंत्री सतीश द्विवेदी और दिल्ली के शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया के बीच जमकर बयानबाजी हुई। दिल्ली के शिक्षामंत्री मनीष सिसोदिया ने उस समय कहा था, ‘उत्तर प्रदेश के सरकारी स्कूल बनाम दिल्ली के सरकारी स्कूल’ पर खुली बहस के लिए मैं आ रहा हूं। मनीष सिसोदिया को उत्तर प्रदेश की सीमा में प्रवेश करते ही पुलिस द्वारा रोक लिया गया और उन्हें वहां से वापस लौटना पड़ा था।

पुलिस चौकी गिलट बाजार के पास के रहने वाले कान्ता प्रसाद सोनकर यूं तो अपने घर के बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में नहीं पढ़ाना चाहते लेकिन सरकारी स्कूलों की शिक्षा व्यवस्था को देखते हुए वे अपने घर के बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में पढ़ा रहे हैं। पैसे की बचत के लिए वे अपने घर के बच्चों को सगड़ी पर लादकर सुबह छोड़ते हैं और फिर दोपहर में छुट्टी होने पर पुनः वापस ले जाते हैं। वे बताते हैं, ‘मेरा एक पोता(पौत्र) सरकारी स्कूल में पढ़ता है। वहां ठीक ढंग से पढ़ाई होती नहीं है। बच्चों की देख-रेख नहीं होती। इसलिए घर के बाकी बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाने का फैसला किया। कान्ता सोनकर आगे बताते हैं, ‘सरकारी स्कूलों की पढ़ाई से सभी लोग भली-भांति परिचित हैं। सरकारी स्कूलों के अध्यापकों से पढ़ाई से ज्यादा दूसरे काम लिए जाते हैं। वहां की पढ़ाई-लिखाई की व्यवस्था को ठीक-ठाक करने लिए अध्यापकों से दूसरे प्रकार के काम लेने बंद करने होंगे।’ कान्ता सोनकर के दोनों बेटे दुकान चलाते हैं जबकि कान्ता स्वयं सगड़ी चलाते और अपना परिवार पालते हैं।

निजी स्कूलों की मनमानी फीस वृद्धि पर बेसिक शिक्षाधिकारी अरविन्द कुमार पाठक कहते हैं, ‘इस बारे में जब अभिभावक लिखित रूप से शिकायत करेंगे तो जिला विद्यालय निरीक्षक की देखरेख में बनी कमेटी जांच करेगी और आवश्यकतानुसार उचित कार्रवाई करेगी। क्या बगैर लिखित शिकायत के कार्रवाई नहीं की जा सकती? सवाल के जवाब में पाठक कहते है नहीं, जब तक लिखित शिकायत हमें प्राप्त नहीं होगी, हम कोई कार्रवाई नहीं कर सकते।’

प्रदेश सरकार के अध्यादेश का नहीं हो रहा पालन

इस बारे में अभिभावक संघ के प्रदेश अध्यक्ष हरिओम दुबे कहते हैं, ‘आज निजी स्कूल वाले हर साल मनमाने तरीके से फीस वृद्धि कर रहे हैं। कोई भी स्कूल तभी अपने यहां फीस वृद्धि कर सकता है जब सीपीआई (उपभोक्ता सूची सूचकांक) में बढ़ोत्तरी होती है। यही नहीं कोई भी स्कूल अभिभावक को किसी भी विशेष दुकान से कापी-किताब खरीदने के लिए बाध्य नहीं कर सकता, उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा लागू किए गए अध्यादेश की खुलेआम धज्जियां उड़ाई जा रही हैं।’

अपने बच्चों का भविष्य बेहतर बनाने की एक उम्मीद के साथ अभिभावक निजी स्कूलों का रूख कर रहे हैं, इन स्कूलों की भारी भरकम फीस के बोझ से अभिभावकों की कमर झुकती जा रही है। सरकार अभिभावकों की इन समस्याओं का संज्ञान लेते हुए निजी स्कूलों की मनमानी और फीस वृद्धि पर रोक लगाएगी या नहीं, यह एक बड़ा सवाल है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Bollywood Lifestyle and Entertainment