बिहार और झारखंड सरकार भी बालिका शिक्षा को लेकर कई महत्वाकांक्षी योजनाएं चला रही है। इसके बावजूद आज भी ग्रामीण क्षेत्र में अशिक्षा, जागरूकता, गरीबी, पिछड़ेपन, रूढ़ियां आदि की वजह से लड़कियों को शिक्षा के अधिकार से अपने ही परिवार वाले महरूम रखते हैं। बिहार के मुजफ्फरपुर जिले से 65 किमी दूर साहेबगंज प्रखंड अंतर्गत पंचरुखिया गांव की लड़कियों को पहले पढ़ाया नहीं जाता था।
यही वह प्रस्थान बिंदु बना जिसने एक नए सुरेन्द्र प्रसाद सिंह को रचना, गढ़ना शुरू किया। जिले के अन्य शिक्षक जहां इस सर्वे का प्रारूप ही नहीं तैयार कर पा रहे थे वहीं सुरेन्द्र प्रसाद सिंह ने सर्वे का पूरा फार्मेट सेट कर दिया था। इनके बनाये हुये सर्वे का फार्मेट ही सर्वे का माडल पत्र बन गया। उसी प्रारूप को प्रिंट कराकर पूरे जिले में वितरित किया गया। यह सर्वजनिक जीवन में पहला ऐसा बड़ा काम था जिसकी प्रसंशा की गई और सुरेन्द्र प्रसाद सिंह वाराणसी शिक्षा विभाग की एक नई उम्मीद भी बने।
शिक्षक समस्याओं के निराकरण हेतु राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ ने महानिदेशक को सम्बोधित ज्ञापन बेसिक शिक्षा अधिकारी को सौंपा
भदोही। उत्तर प्रदेश में परिषदीय विद्यालयों के...
सह-शैक्षिक संदर्भों में लड़कों की तुलना में लड़कियों के भाग लेने की संभावना अधिक होती है। लेकिन पाठ्येतर समूहों और गतिविधियों में नेतृत्व की भूमिका निभाने की संभावना कम होती है। बालिका स्कूलों में लड़कियां नेतृत्व की भूमिकाओं को अपनाने में कम हिचकिचाहट दिखाती हैं और स्कूल समुदाय के भीतर संभावित अवसरों के प्रति अच्छी प्रतिक्रिया देती हैं।
उत्तर प्रदेश और वाराणसी में शिक्षा एवं स्कूलों में गड़बड़ी की यह कोई पहली शिकायत नहीं है। इससे पहले भी निजी स्कूलों में दाखिले के लिए वसूली की बात सामने आई थी। वहीं, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में निजी स्कूलों की मनमानी के खिलाफ अभिभावक लगातार शिकायत कर अपना विरोध जता रहे हैं।
बेसिक शिक्षा अधिकारी को ज्ञापन सौंपा गया
वाराणसी। जिले के विभिन्न संगठनों से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ताओं एवं अभिभावकों ने बेसिक शिक्षा अधिकारी कार्यालय के समक्ष धरना...
बनारस के सामाजिक कार्यकर्ताओं ने प्रधानमंत्री को भेजा पत्रक
नालंदा में मदरसा अग्निकांड में संलिप्त गुंडों के तत्काल गिरफ्तारी की मांग
वाराणसी। इतिहास और साहित्य...
एनसीईआरटी की 256 पन्नों की एक किताब 65 रुपये की है जबकि निजी प्रकाशक की 167 पन्नों की किताब 305 रुपये में मिल रही है। ऐसी कौन की किताबें स्कूल पढ़ा रहा है जो 500 से 600 रुपये में मिल रहीं हैं। इतनी महंगी तो बीए-एमए की किताबें भी नहीं आतीं। पहले बड़े बच्चे की किताबों से उनका छोटा बच्चा पढ़ लेता था क्योंकि किताबें वही रहती थी। अब बड़े बच्चों की किताबें छोटा बच्चा प्रयोग नहीं कर पाता क्योंकि हर साल जान-बूझकर किताबों में कोई न कोई बदलाव कर दिए जाते हैं।
2660 बच्चे हुए शामिल, 234 का प्रदर्शन रहा उल्लेखनीय
सरकारी प्राथमिक विद्यालयों में अध्ययनरत बच्चों की प्रतिभा को पहचानने और उन्हें प्रोत्साहित करने के उद्देश्य...