Sunday, May 19, 2024
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कर्नाटक में मुस्लिम आरक्षण खत्म करने का भाजपा का नया खेल

इस समय पूरे देश की निगाहें कनार्टक विधानसभा चुनाव प्रचार पर लगी हैं, जहाँ 10  मई को 224 सीटों के लिए वोट पड़ने हैं।वोटों की गिनती 13 मई को होगी। चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी के बीच सीधा मुकाबला है, जबकि जेडीएस के साथ बसपा, आम आदमी पार्टी जैसी छोटी पार्टियाँ भी अपने पक्ष में […]

इस समय पूरे देश की निगाहें कनार्टक विधानसभा चुनाव प्रचार पर लगी हैं, जहाँ 10  मई को 224 सीटों के लिए वोट पड़ने हैं।वोटों की गिनती 13 मई को होगी। चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी के बीच सीधा मुकाबला है, जबकि जेडीएस के साथ बसपा, आम आदमी पार्टी जैसी छोटी पार्टियाँ भी अपने पक्ष में माहौल बनाने में जुटी हुई हैं। इस चुनाव में जहाँ बीजेपी दक्षिण भारत के अपने इकलौते दुर्ग की रक्षा में सारी ताकत झोंक दी है, वहीँ कांग्रेस कर्नाटक की सत्ता में वापसी के लिए कोई कोर कसर छोडती नहीं दिख रही है। इनसे इतर जेडीएस एक बार फिर खुद को किंगमेकर की भूमिका लाने के लिए बेताब नजर आ रही है। बहरहाल 2024 के लोकसभा का सेमीफाइनल कहे जा रहे कर्नाटक चुनाव में राजनीति के पंडितों के मुताबिक कांग्रेस का पलड़ा भारी है और वह विजय हासिल कर सकती है,जबकि बीजेपी मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई के नकारेपन के चलते 50-70 सीटों तक सिमट सकती है। बीजेपी के विरुद्ध कर्नाटक का यह रिकॉर्ड भी जा रहा है कि वहां 1985 के बाद कोई भी राजनीतिक दल लगातार दो बार विधानसभा चुनाव में विजय दर्ज नहीं कर पाया है। शायद बीजेपी को भी इन सब बातों का भान हो गया है, इसलिए वह योगी आदित्यनाथ, शिवराज सिंह चौहान, राजनाथ सिंह, अमित शाह जैसे बड़े नेताओं  को प्रचार के मोर्चे पर तैनात कर दी है। इन पंक्तियों के लिखे जाने के दौरान खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वर्चुअल चुनाव प्रचार के जरिये वहां के 50 लाख कार्यकर्ताओं से संपर्क साध चुके हैं।  कर्नाटक चुनाव में उनकी कुल 15 रैलियां होनी हैं। बहरहाल बीजेपी ने कर्नाटक में दोबारा वापसी के लिए जो सबसे बड़ा दांव खेला है, वह है मुस्लिम आरक्षण के खात्मे का।

 मुस्लिम आरक्षण के खात्मे का दांव

मार्च में मुख्यमंत्री बसवराज ने एक कैबिनेट मीटिंग बुलाई, जिसमें कई महत्वपूर्ण मसलों पर चर्चा हुई। इनमे सबसे अहम मसला था मुस्लिम आरक्षण का। उस बैठक के बाद 24 मार्च को एक सरकारी आदेश जारी हुआ। इस आदेश के तहत सरकार ने ओबीसी आरक्षण से मुस्लिम कोटे को बाहर कर दिया। कर्नाटक में ओबीसी आरक्षण कुल 32 प्रतिशत था, जिसमे 4 प्रतिशत कोटा मुस्लिमों का था। नए आदेश के तहत नौकरियों और शिक्षा में मुस्लिम कोटे का 4 फीसद आरक्षण वीरशैव-लिंगायत और वोक्कालिगा में दो–दो प्रतिशत बांट दिया गया है। दरअसल, वहां ओबीसी आरक्षण पहले पांच कैटेगरी में बंटा था। सरकार ने इसमें बदलाव करते हुए अब चार कैटेगरी- 1,2(ए), 2(सी), और 2(डी ) में बाँट दिया और 2(बी) को ख़त्म कर दिया है। मुस्लिमों  को आरक्षण से महरूम करने के पीछे सरकार ने यह दलील दी है कि संविधान में अल्पसंख्यकों के लिए कोई प्रावधान नहीं है.फिलहाल सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप से ओबीसी कोटे के नए विभाजन पर 9 मई तक के लिए रोक लगा दी गयी है। बहरहाल चुनाव को देखते हुए भाजपा ने मुस्लिम आरक्षण को ख़त्म करने का जो निर्णय लिया, उसका सदव्यवहार  करने के लिए वह अपने स्टार प्रचारकों के जरिये मैदान में कूद चुकी है। इसके जरिये वह खुद को हिन्दू हितैषी और कांग्रेस को मुस्लिमपरस्त बताने में जुट चुकी है।

[bs-quote quote=”कर्नाटक के बैलगावी पहुंचे रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कांग्रेस पर हमला करते हुए कहा है कि उसने सत्ता में आने के लिए धर्म का इस्तेमाल किया है। भारत के इतिहास में अगर कोई पार्टी है, जिसने सत्ता में आने के लिए धर्म का सहारा लिया है तो वह कांग्रेस है। यह हिन्दू, मुस्लिम, इसाई की राजनीति करती है। इस तरह की राजनीति कभी नहीं की जानी चाहिए। अमित शाह ने कर्नाटक के चुनावी सभाओं में घोषणा किया है कि 10 मई को होने वाला विधानसभा चुनाव प्रधानमंत्री मोदी के विकास की राजनीति बनाम कांग्रेस के तुष्टिकरण की राजनीति के बारे में है। कांग्रेस आज भी तुष्टिकरण की राजनीति कर रही है। कांग्रेस द्वारा मुसलमानों को दिया गया चार प्रतिशत आरक्षण भाजपा ने समाप्त कर दिया है और उसने लिंगायत, वोक्कालिंगा, एससी और एसटी के लिए आरक्षण बढ़ा दिया है।” style=”style-2″ align=”center” color=”#1e73be” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

क्या सिर्फ दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यक बनेंगे योगी ‘टेरर के टारगेट’

मुसलमानों के खिलाफ चल रही है नफरत की आंधी

अपने नफरती भाषणों के लिए मशहूर यूपी के सीएम योगी ने पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौडा के नेतृत्व वाले जदएस के मजबूत गढ़ और वोक्कालिंगा बहुल क्षेत्र, मांड्या में अपनी पहली चुनावी सभा के जरिये सन्देश दिया है, ‘कांग्रेस पॉपुलर फ्रंट ऑफ़ इंडिया(पीएफआई) का तुष्टिकरण करती है और धर्म के आधार पर आरक्षण  देती है, जो संविधान के विरुद्ध है।’ उन्होंने आगे कहा है, ‘1947 में भारत का बंटवारा धर्म के आधार पर हुआ था। देश धर्म के आधार पर आरक्षण का समर्थन नहीं कर सकता और हम एक और विभाजन के लिए तैयार नहीं हैं।’  योगी  की भांति कर्नाटक के बैलगावी पहुंचे रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कांग्रेस पर हमला करते हुए कहा है कि उसने सत्ता में आने के लिए धर्म का इस्तेमाल किया है। भारत के इतिहास में अगर कोई पार्टी है, जिसने सत्ता में आने के लिए धर्म का सहारा लिया है तो वह कांग्रेस है। यह हिन्दू, मुस्लिम, इसाई की राजनीति करती है। इस तरह की राजनीति कभी नहीं की जानी चाहिए। अमित शाह ने कर्नाटक के चुनावी सभाओं में घोषणा किया है कि 10 मई को होने वाला विधानसभा चुनाव प्रधानमंत्री मोदी के विकास की राजनीति बनाम कांग्रेस के तुष्टिकरण की राजनीति के बारे में है। कांग्रेस आज भी तुष्टिकरण की राजनीति कर रही है। कांग्रेस द्वारा मुसलमानों को दिया गया चार प्रतिशत आरक्षण भाजपा ने समाप्त कर दिया है और उसने लिंगायत, वोक्कालिंगा, एससी और एसटी के लिए आरक्षण बढ़ा दिया है। कांग्रेस के डीके शिवकुमार ने कहा था कि अगर उनकी पार्टी सत्ता में आती है तो वे एक बार फिर मुसलमानों के लिए आरक्षण लायेंगे। मैं कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष डीके शिवकुमार से पूछना चाहता हूँ, आप एक बार फिर मुस्लिम आरक्षण लाने के बारे में बोल रहे हैं, लेकिन आप किसका हिस्सा कम करेंगे? कर्नाटक के लोगों को जवाब दें! क्या आप वोक्कालिंगा या लिंगायत या एससी/ एसटी के आरक्षण को कम करेंगे। कुल मिलाकर यदि कोई कर्नाटक विधानसभा चुनाव में भाजपा के प्रचार पर ध्यान दे तो लगेगा कि वहां मुसलमानों के खिलाफ नफरत की आंधी चल रही है।

स्त्रियों पर हिंसा का कारण पितृसत्ता ही है

दरअसल कर्नाटका विधानसभा चुनाव में भाजपा ने मुस्लिम आरक्षण के खात्मे के जरिये एक बार फिर डॉ. हेडगेवार द्वारा ईजाद उस हेट पॉलिटिक्स(नफरत की राजनीति) का दांव चल दिया है, जिसके सहारे ही कभी वह दो सीटों पर सिमटने के बावजूद नयी सदी में अप्रतिरोध्य बन गयी। अडवाणी-अटल, मोदी-शाह की आक्रामक राजनीति से अभिभूत ढेरों लोगों को यह पता नहीं कि जिस हेट पॉलिटिक्स के सहारे आज भाजपा विश्व की सर्वाधिक शक्तिशाली पार्टी के रूप में इतिहास के पन्नों में नाम दर्ज करा चुकी है, उसके सूत्रकार रहे 21 जून,1940 को इस धरा का त्याग करने वाले चित्तपावन ब्राहमण डॉ. हेडगेवार,जिन्होंने 1925 में उस राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की थी, जिसका राजनीतिक विंग जनसंघ आज की भाजपा का रूप अख्तियार किया है। अपने लक्ष्य को साधनेके लिए उन्होंने एक भिन्न किस्म के वर्ग-संघर्ष की परिकल्पना की थी।

[bs-quote quote=”हेडगेवार से यह गुरुमंत्र पाकर संघ लम्बे समय से चुपचाप काम करता रहा। किन्तु मंडल की रिपोर्ट प्रकाशित होने के बाद जब बहुजनों के जाति चेतना के चलते सत्ता की बागडोर दलित-पिछड़ों के हाथ में जाने का आसार दिखा, तब संघ ने राम जन्मभूमि मुक्ति के नाम पर, अटल बिहारी वाजपेयी के शब्दों में आजाद भारत का सबसे बड़ा आन्दोलन खड़ा कर दिए, जिसमें हिन्दू-धर्म-संस्कृति के जयगान और खासकर मुस्लिम विद्वेष के भरपूर तत्व थे।” style=”style-2″ align=”center” color=”#1e73be” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

हेडगेवार ने अंग्रेजों की जगह मुसलमानों को बनाया हिन्दुओं का  वर्ग शत्रु

वर्ग-संघर्ष के सिद्धान्तकर मार्क्स ने कहा है कि दुनिया का इतिहास वर्ग संघर्ष का इतिहास है। एक वर्ग वह है जिसका उत्पादन के साधनों पर कब्ज़ा है और दूसरा वह है, जो इससे बहिष्कृत व वंचित है। इन उभय वर्गों में कभी समझौता नहीं हो सकता। इनके मध्य सतत संघर्ष चलते रहता है। कोलकाता की अनुशीलन समिति, जिसमे गैर-सवर्णों का प्रवेश निषिद्ध था, के सदस्य रहे हेडगेवार के समय पूरा भारत अंग्रेजों को अपना ‘वर्ग- शत्रु’ मानते हुए, उनसे भारत को मुक्त कराने में संघर्षरत था। किन्तु हेडगेवार ने एकाधिक कारणों से मुसलमानों के रूप में एक नया ‘वर्ग-शत्रु’ खड़ा करने की परिकल्पना की। उन्हें पता था भारत अंग्रेजों के लिए बोझ बन चुका है और वे जल्द ही भारत छोड़कर चले जायेंगे। ऐसे में उन्होंने आजाद भारत की सत्ता ब्राहमणों के नेतृत्व में सवर्णों के हाथ में देने के लिए हिन्दुओं को एक वर्ग में संगठित करने की योजना बनाया। उन्हें पता था जिन ब्राह्मणों को तिलक-नेहरु इत्यादि ने विदेशी प्रमाणित किया है, उनको आजाद भारत का बहुसंख्य समाज ब्राहमण के नाम पर हरगिज वोट नहीं देगा, वोट दे सकता है सिर्फ हिन्दू के नाम पर। ऐसे में उन्होंने आजाद भारत की सत्ता सवर्णों के हाथ में देने के लिए अंग्रेजों की जगह ‘मुसलमानों को प्रधान शत्रु’ चिन्हित करते हुए उनके विरुद्ध जाति-पाति का भेदभाव भुलाकर सवर्ण-अवर्ण सभी हिन्दुओं को ‘हिन्दू-वर्ग’ (संप्रदाय) में उभारने का बलिष्ठ प्रयास किया। उन्हें पता था असंख्य भागों में बंटे हिन्दू आसानी से तभी एक होते हैं, जब उनके समक्ष मुसलमानों का खौफ खड़ा किया जाता है।

इस दूरगामी सोच के तहत ही हेडगेवार ने ‘हिन्दू धर्म-संस्कृति के जयगान और मुख्यतः मुस्लिम विद्वेष के प्रसार की हेट पॉलिटिक्स के आधार पर आरएसएस को खड़ा करने की परिकल्पना किया। हेडगेवार से यह गुरुमंत्र पाकर संघ लम्बे समय से चुपचाप काम करता रहा। किन्तु मंडल की रिपोर्ट प्रकाशित होने के बाद जब बहुजनों के जाति चेतना के चलते सत्ता की बागडोर दलित-पिछड़ों के हाथ में जाने का आसार दिखा, तब संघ ने राम जन्मभूमि मुक्ति के नाम पर, अटल बिहारी वाजपेयी के शब्दों में आजाद भारत का सबसे बड़ा आन्दोलन खड़ा कर दिए, जिसमें हिन्दू-धर्म-संस्कृति के जयगान और खासकर मुस्लिम विद्वेष के भरपूर तत्व थे। राम जन्म भूमि मुक्ति आन्दोलन के जरिये मुस्लिम विद्वेष का जो गेम प्लान किया गया, उसका राजनीतिक इम्पैक्ट क्या हुआ इसे बताने की जरुरत नहीं है। एक बच्चा भी बता देगा कि मुख्यतः मुस्लिम विद्वेष के प्रसार के जरिये ही भाजपा केंद्र से लेकर राज्यों तक में अप्रतिरोध्य बनी है, जिसमें संघ के अजस्र आनुषांगिक संगठनों के अतिरक्त साधु-संतों, मीडिया औरपूंजीपतियों की भी जबरदस्त भूमिका रही।

[bs-quote quote=”भाजपा के लोग कर्नाटक के लिंगायत, वोक्कालिगा, दलितों इत्यादि को लगातार सन्देश देने की कोशिश कर रहे हैं कि वह मुसलमानों का आरक्षण छीनकर हिन्दुओं को दे रही है। कर्नाटक में जिस तरह मुसलमानों का आरक्षण ख़त्म कर हिन्दुओं की पिछड़ी जातियों के मध्य वितरित किया गया है, वह जबरदस्त हिन्दू ध्रुवीकरण का सबब बन सकता है। दरअसल हिन्दू धर्म-संस्कृति के आक्रान्ता के रूप में मुसलमानों प्रचारित कर भाजपा जितना लाभ उठा सकती थी, उठा चुकी है।” style=”style-2″ align=”center” color=”#1e73be” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

मंडल उत्तरकाल में भाजपा ने केंद्र से लेकर राज्यों तक जितने भी चुनाव जीते हैं, वह अधिकांशतः  मुसलमानों के खिलाफ नफरत की राजनीति के जरिये ही जीते गए हैं। मोदी राज में 24 घंटे चुनावी मोड में रहने वाली भाजपा मुसलमानों के खिलाफ नफरत को बढ़ावा देने में लगातार मुस्तैद रही है। उन के खिलाफ नफरत को बढ़ावा देने के लिए ही भाजपा की ओर से विगत वर्षों में अनुच्छेद 370  के खात्मे, सीएए, एनपीआर और एनसीआर मुद्दा खड़ा किया गया। इसी मकसद से उसने 2020 के अगस्त में कोरोना के जोखिम भरे दौर में प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी से राममंदिर निर्माण का भूमि पूजन कराया। इसी मकसद से 2021 के 13 दिसंबर को बहुत ही तामझाम से प्रधानमंत्री द्वारा काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का लोकार्पण कराया गया। मुसलमानों के खिलाफ नफरत का माहौल पैदा करने लिए ही पिछले वर्ष  देश के राजनीति की दिशा तय करने वाले यूपी विधानसभा चुनाव को 80 बनाम 20 पर केन्द्रित किया गया। इसी मकसद से  कर्नाटक में मुसलमानों की खिलाफ नफरत की आंधी पैदा की जा रही है। लेकिन मुस्लिम विद्वेष को बढ़ावा देकर कर्नाटक  में चुनाव जीतने की रणनीति में भाजपा ने इस बार एक नया बदलाव किया है।

मुसलमान बने आरक्षण के नए हकमार वर्ग

राम जन्मभूमि मुक्ति आन्दोलन के ज़माने से भाजपा ने मुसलमानों के खिलाफ नफरत का जो लगातार माहौल पैदा करने की कोशिश किया, उसमें उसने उनको विदेशी आक्रान्ता, हिन्दू धर्म-संस्कृति का विध्वंसक, आतंकवादी, पाकिस्तानपरस्त, दर्जनों बच्चे पैदा करने वाले जमात इत्यादि के रूप में चिन्हित करने की स्क्रिप्ट लिखी। किन्तु कर्नाटक में उन्हें एक नए रूप में चिन्हित करने का प्रयास हो रहा है। यहां उन्हें आरक्षण का अपात्र बताकर हिन्दुओं के आरक्षण के हकमार-वर्ग के रूप में  चिन्हित करने का प्रयास हो रहा है, जैसे भाजपा यादव, कुर्मी,  जाटव, चमार, दुसाध इत्यादि को दलित-पिछड़ों के आरक्षण के हकमार वर्ग के रूप में चिन्हित कर बहुजन समाज की अनग्रसर जातियों को इनके खिलाफ आक्रोशित कर चुकी है। भाजपा के लोग कर्नाटक के लिंगायत, वोक्कालिगा, दलितों इत्यादि को लगातार सन्देश देने की कोशिश कर रहे हैं कि वह मुसलमानों का आरक्षण छीनकर हिन्दुओं को दे रही है। कर्नाटक में जिस तरह मुसलमानों का आरक्षण ख़त्म कर हिन्दुओं की पिछड़ी जातियों के मध्य वितरित किया गया है, वह जबरदस्त हिन्दू ध्रुवीकरण का सबब बन सकता है। दरअसल हिन्दू धर्म-संस्कृति के आक्रान्ता के रूप में मुसलमानों प्रचारित कर भाजपा जितना लाभ उठा सकती थी, उठा चुकी है। अब उसे नए उपाय तलाशने होंगे और इसकी शुरुआत उसने कर्नाटक से कर दी है। अतः जो विपक्ष अबतक भाजपा के ध्रुवीकरण की राजनीति की काट ढूंढने में असहाय रहा है, कर्नाटक चुनाव ने उसकी सिरदर्दी में और इजाफा कर दिया है। वह आने वाले हर चुनाव में ओबीसी के कोटे में मिलने वाले मुसलमानों के आरक्षण के खात्मे का मुद्दा उठाकर हिन्दुओं को ललचा सकती है। इस लेखक का यह दावा कोई ख्याली पुलाव नहीं, तथ्यों पर आधारित है, इस बात का साक्ष्य तेलगाना है।

बहुरूपिया कला जवानी में तो ज़िंदा है लेकिन बुढ़ापे में मर जाती है

तेलंगाना में होने जा रहा है कर्णाटक का प्रयोग

बीजेपी ने मुस्लिम आरक्षण को तेलंगाना में केसीआर के खिलाफ एक हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया है। दरअसल केसीआर की पार्टी मुस्लिमों को मिलने वाले आरक्षण को बढ़ाकर 12% करने की कोशिश कर रही है। भारतीय राष्ट्र समिति के घोषणापत्र में भी इसका वादा किया गया था, हालांकि फिलहाल मामला सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है। अब बीजेपी ने इसी मुद्दे को पलट दिया है और मुस्लिम आरक्षण को खत्म करने की बात कर केसीआर पर निशाना साधा है। अमित शाह ने सीधे ये मैसेज दिया है कि तेलंगाना सरकार दलितों के हितों का खयाल नहीं रख रही है और धर्म के नाम पर राजनीति कर रही है। उन्होंने कहा है कि धर्म के आधार पर आरक्षण नहीं दिया जाना चाहिए। भारतीय जनता पार्टी की सरकार आएगी तो इस गैर-संवैधानिक मुस्लिम आरक्षण को हम समाप्त करेंगे। एससी, एसटी और ओबीसी को अपना अधिकार मिलेगा। अर्थात मुसलमानों के कारण दलित, आदिवासी, ओबीसी अपने अधिकारों से महरूम हैं, तेलंगाना में ऐसा सन्देश भाजपा की ओर से दे दिया गया है।और जिस दिन भाजपा लाखों साधु-संतो, लेखक-पत्रकारों और चैनलों में छाए सुधीर चौधरियों, अंजना ओम कश्यपों, रुबिया लियाकतों के सहारे मुसलमानों से दलित,आदिवासी,ओबीसी को अधिकार दिलाने का मुद्दा लेकर सडकों पर उतरेगी। हिन्दू ध्रुवीकरण का ऐसा एक नया सैलाब उठेगा, जिसमें विपक्ष बह जायेगा। ऐसे में विपक्ष को कर्नाटक और तेलंगाना से सबक लेकर भविष्य में मुसलमानों के खिलाफ उठने वाले नफरत के सैलाब की काट ढूंढने में लग जाना चाहिए। विपक्ष अगर कर्नाटक में नफरत की राजनीति की काट पैदा करने के प्रति गंभीर है तो ऐसे मुद्दे की तलाश करनी होगी, जिससे मुसलमानों की जगह कोई और बहुजनों के वर्ग-शत्रु की जगह ले ले। और विपक्ष खासकर, सामाजिक न्यायवादी दल चाह दें तो आजाद भारत में सवर्णवादी सत्ता की साजिशों से प्रायः सर्वहारा की स्थिति में पहुंचे मुसलमानों की जगह भाजपा के चहेते वर्ग को बहुत आसानी से दलित, आदिवासी , पिछड़ों के वर्ग- शत्रु के रूप में खड़ा किया जा सकता है।

[bs-quote quote=”मोदी राज में जिस तरह सवर्णों का बेहिसाब कब्ज़ा हुआ है, जिस तरह उनके खिलाफ दलित, आदिवासी, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों में सापेक्षिक वंचना का भाव तुंग पर पहुंचा है, उसे देखते हुए यदि विपक्ष यह घोषणा कर दें कि 2024 में सत्ता में आने पर हम जातीय जनगणना कराकर शक्ति के स्रोतों पर 70-80% कब्ज़ा जमायें।” style=”style-2″ align=”center” color=”#1e73be” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

मुस्लिम आरक्षण की काट के लिए विपक्ष सवर्णों को संख्यानुपात पर सिमटाने की घोषणा करे 

दुनिया जानती है कि भाजपा ब्राहमण, ठाकुर, बनियों की पार्टी है और उसकी समस्त गतिविधियां इन्हीं के हित-पोषण के पर केन्द्रित रहती है। अपने इसी चहेते वर्ग के लिए ही वह देश बेच रही है; इन्हीं के लिए वह देश को धर्म और जातियों के नाम पर विभाजन कराती है। चूंकि उसकी समस्त नीतियां सवर्ण हित को ध्यान में रखकर लागू की जा रही हैं, इसलिए आज सवर्णों का शक्ति के स्रोतों(आर्थिक, राजनीतिक, शैक्षिक, धार्मिक) पर बेहिसाब कब्ज़ा हो गया है। यदि कोई गौर से देखे तो पता चलेगा कि पूरे देश में जो असंख्य गगनचुम्बी भवन खड़े हैं, उनमें  80-90 प्रतिशत फ्लैट्स सवर्ण मालिकों के हैं। मेट्रोपोलिटन शहरों से लेकर छोटे-छोटे कस्बों तक में छोटी-छोटी दुकानों से लेकर बड़े-बड़े शॉपिंग मॉलों में 80-90 प्रतिशत दुकानें इन्हीं की हैं। चार से आठ-आठ, दस-दस लेन की सड़कों पर चमचमाती गाड़ियों का जो सैलाब नजर आता है, उनमें 90  प्रतिशत से ज्यादे गाडियां इन्हीं की होती हैं। देश के जनमत निर्माण में लगे छोटे-बड़े अख़बारों से लेकर तमाम चैनल्स प्राय: इन्हीं के हैं। फिल्म और मनोरंजन तथा ज्ञान-उद्योग पर 90 प्रतिशत से ज्यादा कब्ज़ा इन्ही का है। संसद विधान सभाओं में वंचित वर्गों के जनप्रतिनिधियों की संख्या भले ही ठीक-ठाक हो, किन्तु मंत्रिमंडलों में दबदबा इन्ही का है। मंत्रिमंडलों में लिए गए फैसलों को अमलीजामा पहनाने वाले 80-90 प्रतिशत अधिकारी इन्ही वर्गों से हैं। न्यायिक सेवा, शासन-प्रशासन,उद्योग-व्यापार, फिल्म-मीडिया, धार्मिक और नॉलेज सेक्टर में भारत के सवर्णों जैसा दबदबा आज की तारीख में दुनिया में कहीं भी किसी समुदाय विशेष का नहीं है। आंकडे चीख-चीख कर बताते हैं कि आजादी के 75 सालों बाद भी हजारों साल पूर्व की भांति सवर्ण ही इस देश के मालिक हैं। समस्त क्षेत्रों में इनके बेहिसाब कब्जे से बहुजनों में वह सापेक्षिक वंचना(रिलेटिव डिप्राईवेशन) का अहसास तुंग पर पहुच चुका है, जो सापेक्षिक वंचना क्रांति की आग में घी का काम करती है।

प्लास्टिक सामग्रियां छीन रही हैं बसोर समुदाय का पुश्तैनी धंधा

मोदी राज में जिस तरह सवर्णों का बेहिसाब कब्ज़ा हुआ है, जिस तरह उनके खिलाफ दलित, आदिवासी, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों में सापेक्षिक वंचना का भाव तुंग पर पहुंचा है, उसे देखते हुए यदि विपक्ष यह घोषणा कर दें कि 2024 में सत्ता में आने पर हम जातीय जनगणना कराकर शक्ति के स्रोतों पर 70-80% कब्ज़ा जमायें। 7.5% आबादी वाले सवर्ण पुरुषों को अवसरों और संसाधनों के बंटवारे में उनके संख्यानुपात पर रोककर उनके हिस्से का 60-70% अतिरिक्त(सरप्लस) अवसर मोदी द्वारा गुलामों की स्थिति में पहुंचाये गए जन्मजात वंचित वर्गों के मध्य वितरित करेंगे, स्थिति रातों-रात बदल जाएगी। भाजपा की साजिश से मुसलमानों के खिलाफ बहुजन में पूंजीभूत हुई नफरत नाटकीय रूप से सवर्णों की ओर शिफ्ट हो जाएगी और विपक्ष द्वारा ऐसी घोषणा करना समय की पुकार है। अगर सवर्णों की आबादी 15 प्रतिशत है तो उसमे उनकी आधी आबादी अर्थात महिलाएं भी कमोबेश बहुजनों की भांति ही शक्ति के स्रोतों से बहिष्कृत व वंचित है। अगर ग्लोबल जेंडर गैप की पिछली रिपोर्ट के मुताबिक भारत की आधी आबादी को आर्थिक रूप से पुरुषों के बराबर आने में 257 साल लगने हैं तो उस आधी आबादी में सवर्ण महिलाएं भी हैं। सारी समस्या सवर्ण पुरुषों द्वारा सृष्ट है, जिन्होंने सेना, पुलिस बल  व न्यायालयों सहित सरकारी और निजी क्षेत्र की सभी स्तर की, सभी प्रकार की नौकरियों, राजसत्ता की संस्थाओं, पौरोहित्य, डीलरशिप, सप्लाई, सड़क-भवन निर्माण इत्यादि के ठेकों, पार्किंग, परिवहन; शिक्षण संस्थानों, विज्ञापन व एनजीओ को बंटने वाली राशि पर 70-80 प्रतिशत कब्ज़ा जमा कर भारत में मानव जाति की सबसे बड़ी समस्या आर्थिक और सामाजिक गैर-बराबरी को शिखर पर पंहुचा दिया है। सवर्णों को उनके संख्यानुपात में सिमटाने की घोषणा से बहुजनों में उनका छोड़ा 60 से 70 प्रतिशत अतिरिक्त अवसर पाने की सम्भावना उजागर हो जाएगी। ऐसे में वे मुस्लिम आरक्षण के खात्मे से सिर्फ नौकरियों में मिलने वाले नाममात्र के अवसर की अनदेखी कर सवर्णों को निशाने पर लेने का मन बनाने लगेंगे। इससे हेडगेवार द्वारा ईजाद मुस्लिम विद्वेष का वह हथियार भोथरा  हो जायेगा, जिसके सहारे भाजपा अप्रतिरोध्य बनी है!

लेखक बहुजन डाइवर्सिटी मिशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं।

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