कृषि के अविष्कार में महिलाएं करीब से जुड़ी रही हैं। कई सामाजिक वैज्ञानिक तो यहां तक मानते हैं कि महिलाओं ने ही कृषि की खोज की होगी। लेकिन बाद के दौर में कृषि को केवल पुरुषों के पेशे के तौर पर प्रस्तुत किया गया। हालांकि खेतों में महिलाएं पुरुषों के बराबर ही काम करती हैं। विश्व में 40 करोड़ से अधिक महिलाएं कृषि के काम में लगी हुई हैं, लेकिन 90 से अधिक देशों में उनके पास भूमि के स्वामित्व में बराबरी का अधिकार नहीं हैं।
राजस्थान के विभिन्न ग्रामीण क्षेत्रों में भी स्वयं सहायता समूह संचालित किए जा रहे हैं। इसमें बीकानेर जिला स्थित लूणकरणसर ब्लॉक का बिंझरवाड़ी गांव भी शामिल है, जहां सफलतापूर्वक स्वयं सहायता समूह संचालित की जा रही है। इसमें गांव के गरीब परिवारों को जहां आर्थिक सहायता मिल रही है, वहीं गांव के हर परिवार का भी विकास हो रहा है।
हमारा समाज जितना ज्ञान लड़कों को देने के लिए व्याकुल रहता है, उतना ही अगर लड़कियों को दी जाए तो वह न केवल सशक्त होंगी, बल्कि देश से महिलाओं पर अत्याचार और शोषण का खात्मा भी मुमकिन हो सकता है। हालांकि, राज्य से लेकर केंद्र सरकार तक किशोरियों की शिक्षा के लिए कई महत्वाकांक्षी योजनाएं चलाई जा रही हैं। उन्हें मैट्रिक, इंटर, यूजी, पीजी आदि करने के लिए प्रोत्साहन राशि और स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड भी दिए जा रहे हैं।
अनुसूचित जनजाति बहुल इस क्षेत्र में सही अर्थों में विकास नहीं हो पाता है और लोगों को बुनियादी सुविधाओं का लाभ नहीं मिल पाता है। अलग-अलग मैदानी और पहाड़ी क्षेत्र में रहने के कारण संपूर्ण विकास की स्थिति नहीं बनती है। यही कारण है कि स्कूल भी गांव से दूर स्थापित हैं। इसके विपरीत इस क्षेत्र में सामान्य और पिछड़ा वर्ग की करीब 20 प्रतिशत आबादी भी विधमान है, जिनमें साक्षरता की दर 70 से अधिक है।
अपवाद छोड़ दें तो स्त्रियों को यदि जिम्मेदारीपूर्ण काम दिए जाएँ और किसी निर्णय लेने में शामिल किया जाए तो वे उस काम को बहुत ही बेहतर तरीके से ख़ुशी-ख़ुशी पूरा करती हैं। लेकिन अक्सर घर-परिवार-समाज में उन्हें इंसान का नहीं, बल्कि एक स्त्री का दर्जा दिया जाता है। हमेशा उन्हें घर के अंदर शारीरिक मेहनत वाले काम ही सौंपे जाते हैं। बात-बेबात कमअक्ल और बाहर की दुनिया से अनभिज्ञ समझा ही नहीं जाता, बल्कि इस बात का गाहे-बगाहे ताना भी दिया जाता है।