दिल्ली। रविवार 27 जनवरी को नव दलित लेखक संघ की ओर से डॉ. सुशीला टाकभौरे के उपन्यास ‘वह लड़की’ पर ऑनलाइन परिचर्चा आयोजित की गई। गोष्ठी में मुख्य रूप से स्त्री शोषण की लंबी दासता और अनेक स्त्रियों के संघर्षों पर भी प्रकाश डाला गया। अधिकांश वक्ताओं ने कहा कि इस उपन्यास में स्त्री शोषण का पूरा मर्म चित्रित किया गया है।
परिचर्चा में बोलते हुए डॉ. प्रिया राणा ने कहा कि ‘वह लड़की’ उपन्यास में न सिर्फ दलित स्त्री की पीड़ा दर्ज हुई है बल्कि भारतीय समाज में शोषित प्रत्येक स्त्री की कहानी उपन्यास में आ समायी है।’ डॉ. पूनम तुषामड ने कहा कि ‘उपन्यास में अनेक स्त्रियों के संघर्ष को आक्रोश और विद्रोह के साथ बखूबी दर्ज किया गया है इसलिए इसका शीर्षक कुछ और बेहतर भी हो सकता था।’ इस अवसर पर प्रो. बबनराव ने कहा कि ‘उपन्यास में जहां स्त्री शोषण को दर्शाया गया है वहीं कई स्त्री पात्रों को बाबा साहब के बताए मार्ग पर चलकर स्वयं की प्रगति करते हुए भी दिखाया गया है।’
डॉ. रजनी दिसोदिया ने उपन्यास के तकनीकी पक्ष पर बात रखते हुए कहा कि ‘उपन्यास में सभी स्त्री पात्रों की सुनी सुनाई कहानी को लेखिका ने दर्ज किया है। इस कारण उपन्यास में अचानक जो कुछ भी घटित होता है उसके पीछे का कारण एकदम से समझ में नहीं आता है।’ प्रो. राजमुनि ने कहा कि ‘उपन्यास में स्त्री शोषण के पीछे के सामाजिक कारणों की पड़ताल की गई है। ये कारण आज के नहीं भारतीय समाज में सदियों से हुबहू चले आ रहे हैं।’ इनके अलावा हंसा संजय बागरे, डॉ. उषा यादव, अरविंद पासवान और मनीषा चावरे ने भी उपन्यास और परिचर्चा से संबंधित सारगर्भित टिप्पणियां की।
डॉ. सुशीला टाकभौरे ने परिचर्चा आयोजित करने के लिए नदलेस का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि ‘जिस वक्त उपन्यासकार उपन्यास लिख रहा होता है, उस समय बहुत सी बातों का उसे स्वयं भी पता नहीं होता। जब ये बातें प्रशंसा या आलोचना के रूप में सामने आती है तो उनसे उपन्यासकार भी बहुत कुछ सीखता है। इस नाते आज भी मैंने बहुत कुछ सीखा है।’ कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रही पुष्पा विवेक ने उपन्यासकार को हार्दिक बधाई देते हुए परिचर्चा गोष्ठी को पूर्णतः सफल बताया। कहा कि ‘वह लड़की’ उपन्यास न सिर्फ स्त्री शोषण की परते खोलता है बल्कि संघर्षशील महिलाओं की प्रगति का मार्ग भी प्रशस्त भी करता है।’ सभी उपस्थित गणमान्य वक्ताओं और श्रोताओं का अनौपचारिक धन्यवाद ज्ञापन डॉ. अमित धर्मसिंह ने किया।
गोष्ठी की अध्यक्षता पुष्पा विवेक ने की एवं संचालन डॉ. अमित धर्मसिंह ने किया। प्रो. राजमुनि, डॉ. रजनी दिसोदिया, प्रा. मीनाक्षी बबनराव, डॉ. पूनम तुषामड एवं डॉ. प्रिया राणा प्रमुख वक्ता रहे। हंसा संजय बागरे, डॉ. उषा यादव, मनीषा चावरे एवं अरविंद पासवान प्रमुख टिप्पणीकार रहे। गोष्ठी में उपन्यासकार सुशीला टाकभौरे उपस्थित रही जिनका संक्षिप्त परिचय डॉ. गीता कृष्णांगी ने प्रस्तुत किया। इनके अलावा देश भर से क्रमशः सविता कारकेरा, राधेश्याम कांसोटिया, अंजली दुग्गल, जलेश्वरी गेंदले, मधुर भारती, मनीष यादव, मामचंद सागर, इंगोले जी, अरुण कुमार पासवान, मंजू कुमारी, ज्ञानेंद्र सिद्धार्थ, बंशीधर नाहरवाल, डॉ. विपुल भवालिया, मदनलाल राज़, समय सिंह जौल, फूलसिंह कुस्तवार, सलीमा, तसलीमा, जोगेंद्र सिंह, बृजपाल सहज, जगदीश कश्यप आदि गणमान्य रचनाकार उपस्थित रहे।