पत्रकारों पर बढ़ रहा है हमला, सरकार की दिखती है मौन सहमति

अमन विश्वकर्मा

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वाराणसी। प्रदेश में अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता पर लगातार हमले बढ़ रहे हैं। पत्रकार अमित मौर्या ‘निर्भीक’ को सत्ता समर्थित दबंगों द्वारा मारपीट और गाली-गलौज का मामला प्रकाश में आया है। इधर कुछ वर्षों से पत्रकारों के खिलाफ जो दमनात्मक कार्रवाईयाँ की जा रहीं हैं वह पत्रकारिता के भविष्य के लिए काफी खतरनाक है।

पत्रकार अमित मौर्या ने हिन्दू देवी दुर्गा के लिए एक टिप्पणी की, उन्होंने मार्कंडेय पुराण से ली गई दुर्गासप्तशती के एक श्लोक का ज़िक्र करते हुए दुर्गा के एक प्रकरण विशेष में वैश्यावतरण का उल्लेख कर दिया। उन्होंने अपने वीडियो में दुर्गा सप्तशती के संदर्भ का पूरा उल्लेख भी किया था। बावजूद इसके, कुछ लोगों की धार्मिक कट्टरता इस वीडियो से आहत हो गई और वह लोग विरोध के किसी संवैधानिक रास्ते को अख़्तियार करने के बजाय दबंगई का रास्ता अख़्तियार करते हुये अमित मौर्या के आवास पर पहुँच गए और उनके साथ मारपीट करते हुये उन्हें थाने ले गए। थाने में पुलिस के सामने भी उन लोगों द्वारा अमित को पीटा गया, गलियाँ दी गईं, बावजूद इसके मौके पर मौजूद पुलिस ने उन दबंगों के खिलाफ कोई एक्शन नहीं लिया। इस बीच शिवपुर थाने में दबंगों द्वारा तहरीर दी गई, जिसको संज्ञान में लेकर पुलिस ने उन्हें जेल भेज दिया। इस मामले में छह लोगों ने पत्रकार अमित मौर्या ‘निर्भीक’ के खिलाफ तहरीर दी है।

अमित मौर्या मामले में शिवपुर थाना प्रभारी रविशंकर त्रिपाठी ने कहा कि  उन्होंने (अमित मौर्या) बड़ा कांड किया है, तो सजा तो भुगतनी होगी। फ़िलहाल सम्बंधित लोगों से पूछताछ की जा रही है। थाना परिसर में दबंगों द्वारा अमित के खिलाफ गली-गलौज पर कार्रवाई की गई या नहीं? थाना प्रभारी ने कहा कि किसी ने इसकी कोई शिकायत नहीं की है और ऐसा कोई वीडियो भी सामने नहीं आया है।  भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत लिखित और मौखिक रूप से अपना मत प्रकट करने हेतु अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का प्रावधान किया गया है। बावजूद इसके उन लोगों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई जिन लोगों ने अमित मौर्या को मारा-पीटा। दूसरी तरफ, इस मामले में पुलिस ने अपनी गोपनीय रिपोर्ट शासन को भेज दी है।

वाराणसी में सितम्बर 2023 में भी बीएचयू में खबर कवर कर रहे पत्रकार ओमकार विश्वकर्मा के साथ सुरक्षाकर्मियों द्वारा मारपीट का मामला सामने आया था। कुछ साल पहले भी सितम्बर 2019 में मीरजापुर के चर्चित नमक-रोटी कांड को उजागर करने वाले पत्रकार पवन जायसवाल के खिलाफ एफआईआर की कार्रवाई की गई थी। मई 2022 में बलिया के पेपर लीक मामले में पत्रकार दिग्विजय सिंह, अजीत ओझा और मधुसूदन सिंह के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई और उनकी गिरफ्तारी हुई।

द वायर के अनुसार, ‘पेपर लीक मामले में पीड़ित पत्रकार इस बात से नाराज हैं कि उन्हें गिरफ्तार कराने की साजिश रचने वाले अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई।’ वहीं द प्रिंट के अनुसार, ‘मीरजापुर के एक सरकारी स्कूल में बच्चों को नमक-रोटी दिए जाने का खुलासा करने वाले स्थानीय अखबार के पत्रकार पवन जायसवाल पर ही मुकदमा दर्ज कर दिया गया। इस मामले के बाद पवन कैंसर की बीमारी का सामना करते रहे और एक वर्ष बाद उनकी मौत हो गई। उन्हें कोई सरकारी सहायता भी नहीं दी गई।’

अमित मौर्या अपने समाचार पत्र में रूढ़िवादी, अवैज्ञानिक विचारों के विरोध में खबर छापने के साथ प्रशासकीय तथा शासकीय विभागों की कार्यप्रणाली के खिलाफ भी लिखते रहे हैं। हाल ही में शुरू किए यूट्यूब चैनल पर भी वह अपने वैचारिक आग्रह को ताकतवर अंदाज में पेश करते थे। जिसकी वजह से जहां उनके समर्थक बढ़ रहे थे वहीं उनका विरोध भी बढ़ रहा था। अमित मौर्य के खिलाफ हुए इस मारपीट के मामले को सरकार से जुड़े लोगों की दबंगई और मनबढ़ई के हिसाब से भी देखा जा रहा है। लालपुर-पांडेपुर थाने में रंगदारी माँगने को लेकर पूर्वांचल ट्रक ओनर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष प्रमोद सिंह ने अमित के खिलाफ तहरीर दिया था। इसके पहले भाजपा के पिंडरा विधायक अवधेश सिंह के भतीजे गौरव सिंह पिंचू द्वारा वाराणसी में चलाए जा रहे ‘स्पा सेंटर’ के खिलाफ खबर छापना भी एक जाति विशेष के हित को आहत कर गया था। वर्तमान प्रकरण की जड़ें पूर्व के इन प्र्करणों से भी जुड़ी हुई दिखती हैं। उससे भी पहले मोदी-योगी के विचारों का विरोध करना अमित मौर्या को भारी पड़ गया।

इस मामले में भड़ास 4 मीडिया ने यह सवाल उठाया है कि जो लोग, जिसमें ज़्यादातर लोग एक ही जाति विशेष के थे, वह अमित मौर्या को मारते-पीटते हुए थाने ले जा रहे थे, माँ-बहन की गलियाँ दे रहे थे, वे क्या सही काम कर रहे थे? क्या किसी को मारना-पीटना कानूनन जुर्म नहीं है। जो लोग दुर्गा पर अमित मौर्या की टिप्पणी को नकारात्मक कह रहे थे, वह उनकी की माँ-बहन को गाली दे रहे थे, क्या यह जायज है? ये बहुत अराजक स्थिति है। तहरीर देने वालों में राजराजेश्वरी नगर विकास समिति के अध्यक्ष सुभाष चंद्र शर्मा, सचिव आनंद सिंह सहित एक जाति विशेष के लोग ही शामिल हैं।

वायरल वीडियो में देखा जा सकता है कि सुभाष चंद्र शर्मा और आनंद सिंह समेत अन्य लोग अमित मौर्या को घर से पीटते हुए उन्हें थाने ले जा रहे हैं। सत्ता के दम्भ से भरे इन लोगों की भाषा अशोभनीय है और चरित्र दबंग दिखता है। उन लोगों ने तहरीर में यह आरोप लगाया है कि अमित मौर्य, हमारे देवी-देवताओं पर अभद्र टिप्पणी करते हैं। यहाँ सवाल उठाना लाजमी है कि क्या इससे धर्म से जुड़े लोगों को किसी को भी मारने-पीटने और उसके साथ गाली-गलौच देने का अधिकार मिल जाता है।

चंदौली के पत्रकार अलीम हाशमी ने कहा कि अमित मौर्य समाज के ढकोसलावादी विचारों और प्रशासन के भ्रष्टाचार के खिलाफ तथ्यों के साथ खरी-खरी लिखते रहे हैं। उनके इसी लिखावट से भ्रष्टाचार करने वालों के धंधे बंद तो नहीं होते थे लेकिन प्रभावित जरूर हो जाते थे। धंधे में होने वाला घाटा इन भ्रष्टाचारियों को कतई कबूल नहीं था। यह भी कहा जा सकता है कि अमित मौर्या बहुत से लोगों के लिए गले की हड्डी बन चुके थे। मौका मिलते ही उन सब ने एकजुट होकर अमित मौर्या के  ऊपर हमला कर दिया।

सोशल मीडिया पर अमित मौर्या के समर्थन में की गई टिप्पणी

श्लोक की सचाई पर एक जाति विशेष को क्यों होती है हैरानी

अमित मौर्या को हिरासत में लिए जाने को लेकर उत्तर प्रदेश सरकार के पूर्व मंत्री एडवोकेट डॉ. राकेश मौर्या कड़ी नाराजगी ज़ाहिर करते हुए कहते हैं कि यह कार्रवाई व्यक्तिगत रंजिश की तहत की गई है, जो एकतरफा भी है। अभिव्यक्ति की आज़ादी पर यह बड़ा हमला है। पत्रकार न होते हुए भी अगर कोई व्यक्तिगत तौर पर किसी भी धर्म के खिलाफ कोई टिप्पणी करता है तो पहले प्रशासन को मामले की पूरी सचाई जान लेनी चाहिए। एडवोकेट राकेश वर्मा ने कहा कि सोशल मीडिया पर चले इस वीडियो में अमित ने वही कहा जो श्लोक के माध्यम से मार्कंडेय पुराण में वर्णित है। मार्कंडेय पुराण की दुर्गासप्तशती के अध्याय 8 के पेज 135, श्लोक छह में मौर्य समाज के विषय में लिखा-पढ़ी की गई है। उस श्लोक को इन्हीं बड़े लोगों (एक जाति विशेष) ने लिखा है। उनके अनुसार-

कालका दौर्हृदा मौर्या: कालकेयास्तथासुरा:। युद्धाय सज्जा निर्यांतु आज्ञया त्वरित मम।।6।।

इस श्लोक का अर्थ है कि कालकेय, दौहरीद, मौर्य आदि असुर सेनाएँ शस्त्रों से सुसज्जित होकर मेरी आज्ञा से मैदान में दुर्गा के विरुद्ध युद्ध के लिए तुरंत प्रस्थान करें।

यहाँ सवाल उठता है कि मौर्या अगर असुर हैं तो देवता कौन हैं? देवताओं का भाष्य करने वाले आर्य समाज के संस्थापक दयानंद सरस्वती की किताब सत्यार्थ प्रकाश के पेज 135 श्लोक 6 और 11वें समुल्लास में-

देवाधीनं जगत सर्वे मंत्राधीना च देवता। ते मंत्रा ब्राह्मणाधीना तस्मात ब्राह्मण देवता।।

जिसका अर्थ है समस्त संसार देवता के अधीन हैं और देवता मंत्रों के अधीन हैं। सभी मंत्र ब्राह्मणों के अधीन हैं, इसलिए ब्राह्मण देवता हैं। स्पष्ट हो गया कि ब्राह्मण ही देवता होता है बाकी सारी जातियाँ असुर। यही इनके बीच संघर्ष की वजह भी दिखती है।

डॉ. राकेश बताते हैं कि परस्पर हितों के अंतरण का लिखित प्रमाण दस्तावेज़ कहलाता है। दस्तावेज चार प्रकार के होते हैं। रेखांकन अथवा प्लानिंग, पहला प्रकार है। इससे गणितीय समीकरण हल होते हैं। वह बताते हैं चित्र में दुर्गा और उनका शेर ऊपर रहता है। महिषासुर और भैंसा नीचे रहता है। उसमें एक श्लोक भी होता है जिसका गणितीय समीकरण है, उसका योग करने पर अंक 20 आएगा। अब देशभर के ब्राह्मण विद्वान बताए कि इसकी दस्तावेजी परिभाषा क्या है?

चित्र में दुर्गाजी महिषासुर को मार रही हैं और उनका शेर भैंसे को मार रहा है। वह मंत्र विज्ञान, जिसका योग 20 है। इस पर मैं सारे ब्राह्मण विद्वानों को चुनौती देता हूँ, मुझसे तर्क करें कि इस श्लोक का अर्थ क्या है? मेरे अनुसार-

यह बात आम्रपाली, वैशाली की नगर वधु आचार्य चतुर्सेन की किताब में लिखी है कि राजाओं-महाराजाओं को मारने के लिए विष कन्याएँ तैयार की जाती थीं और उसी रुप में दुर्गा का भी इस्तेमाल हुआ है। सोनागाछी (कलकत्ता) की वैश्याओं ने भी एक समय में अपने यहाँ की मिट्टी दुर्गापूजा के लिए देने से मना कर दिया था।

झारखंड हाईकोर्ट ने इस पर एक ऑर्डर भी पास किया है कि राक्षसों का जो अपमान किया जा रहा है, इसके खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए। यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 19, 21, 25 और 29 का खुला उल्लंघन है। मूल अधिकारों के उल्लंघन में बनाई गई विधियाँ, पारित आदेश-निर्देश और की गई कार्रवाईयाँ, उल्लंघन की मात्रा भी संविधान के अनुच्छेद 13 के प्रकाश में स्वत: शून्य हो जाती हैं। अमित मौर्या के खिलाफ कार्रवाई करने और कराने वालों के विरुद्ध दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 340, 195 फर्स्ट बी के तहत तत्काल कार्रवाई करनी चाहिए। इस मामले में उन सभी लोगों को पार्टी बनाना चाहिए जो लोग इसमें शामिल हैं।

2011 के शम्भु कुमार उर्फ शम्भू लाल मेहता बनाम बिहार सरकार के मामले का ज़िक्र करते हुए डॉ. राकेश वार्मा बताते हैं कि अमित मौर्या का मामला इसी केस की तरह है। इस मामले में पटना हाईकोर्ट के न्यायाधीश धर्मीधरन का एक फैसला है, जिसमें थाना प्रभारी से लेकर डीजीपी के खिलाफ कार्रवाई की गई थी।

एडवोकेट प्रेमप्रकाश यादव के अनुसार, ‘पत्रकार अमित मौर्या की पिटाई का मामला अभिव्यक्ति की आज़ादी से जुड़ा है। एक जाति विशेष के लोग यहीं चाहते हैं कि कोई भी उनके तथाकथित देवी-देवताओं के खिलाफ कुछ न बोले। जबकि वह हमारे महापुरुषों पर टिप्पणियाँ करते रहते हैं। अमित मौर्या दुर्गा से जुड़े हुए जिस श्लोक की बात कर रहे थे वह तो सत्य है। ऐसे कई श्लोक वेदों-पुराणों में वर्णित हैं, जिनका सही अर्थ समाज में रख दिया जाए तो एक जाति विशेष आग बबूला हो ही जाएगा। कहावत ही है कि सच कड़वा होता है।’

अभिव्यक्ति की आज़ादी पर पहले भी लगी हैं बंदिशें

अभिव्यक्ति की आज़ादी की बात की जाए तो भाजपा सरकार भी अब इस पर बंदिशें लगाने लगी है। 2019 में एक्स (उस वक्त ट्विटर) को संसदीय बोर्ड की तरफ से सोशल मीडिया पर लोगों के अभिव्यक्ति की आज़ादी को दबाने के लिए नोटिस भेजा है।

पार्लियामेंट द्वारा भेजे गए इस नोटिस में तत्कालीन ट्विटर इंडिया (अब X) को 11 फरवरी को दोपहर 3 बजे बोर्ड के सामने पेश होने के लिए कहा गया था। इंफार्मेशन व टेक्नोलॉजी मामले पर अनुराग ठाकुर के नेतृत्व में गठित संसदीय कमेटी ने ट्विटर इंडिया को यह नोटिस भी भेजा था।

सोशल मीडिया पर भी अक्सर प्रगतिशील लेखकों के खिलाफ एक पक्षपातपूर्ण रवैया रखने का आरोप लगता रहा है। विगत दिनों ट्विटर ने कुछ हैंडल्स को सिर्फ इस कारण से प्रतिबंधित कर दिया था, क्योंकि वो प्रगतिशील  विचारधारा रखते थे। इसके विरोध में कुछ लोगों ने ट्विटर इंडिया कार्यालय के बाहर धरना प्रदर्शन भी किया था।

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