पब्लिक को समझनी होगी हकीकत, सफाई कर्मचारी नहीं बनाता नाला-नाली
सड़कें ऊंची और ढलानदार नाली-नाला नहीं बनेंगे तो हमेशा होगा जलभराव
जलनिकासी की समस्या दूर करने के लिए तालाबों का बचाना होगा अस्तित्व
फतेहपुर। शहर की बाधित जल निकासी एवं जलभराव की समस्या नई नहीं है। इसके पीछे नेताओं व ठेकेदारों की खाऊ-कमाऊ नीति है। जबकि इसका ठीकरा सफाई कर्मियों पर फोड़ा जाता है। बार-बार मानक विहीन सड़कें और टेढ़े मेढ़े नाला-नाली बनाने से भी समस्या का समाधान होने वाला नहीं है। नगर पालिका परिषद फतेहपुर को आत्मबल से काम लेना होगा और प्रत्येक नाली व नाले को अतिक्रमण मुक्त कराते हुए तालाबों से अवैध कब्जे हटवाने होंगे। साथ ही सड़कों और नालों का निर्माण गुणवत्तापरक करना होगा। यह बात अखिल भारतीय सफाई मज़दूर संघ के प्रदेश उपाध्यक्ष एवं पालिका के पूर्व सभासद धीरज कुमार ने कहा कि शहर की जल निकासी व्यवस्था धड़ाम होने की मुख्य वजह यह है कि नाला-नाली का बहाव दुरुस्त नहीं है। कारण साफ है कि विकास कार्यां में नेताओं को लम्बा कमीशन चाहिए और ठेकेदार को बचत। ऐसे में ढाल सही करने के लिए कोई ठेकेदार क्यों अधिक निर्माण सामग्री लगायेगा। वह भी लीप पोतकर बराबर कर देता है। वीआईपी रोड का वन-वे मार्ग भी इसका उदाहरण है। निर्माण के दौरान जल निकासी की व्यवस्था को दुरुस्त नहीं किया गया। दिखावटी कार्य से जनता के धन का बंदरबांट कर सफाई कर्मचारियों के सिर साफ-सफाई न करने का ठीकरा फोड़ने वाला काम किया जाता है, जो सही नहीं है। जब भी जोरदार बारिश होती है तो शहर के जलनिकासी की पुरानी समस्या सामने आ जाती है। पब्लिक सफाई कर्मचारियों को जिम्मेदार ठहराती है, जो कि सरासर गलत है। छत की स्लेब में ढाल नहीं होगा तो चाहे जैसे पानी उलचा जाये। पानी खाली नहीं होगा।
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नाला-नालियों पर अतिक्रमण और खत्म होते तालाब भी हैं कारण
अखिल भारतीय सफाई मज़दूर संघ के प्रदेश उपाध्यक्ष एवं पूर्व सभासद धीरज कुमार ने कहा कि शहर का भौगोलिक जायजा लेंगे तो ज्ञात होगा कि पनी व चौका का पानी अरबपुर होकर नजबुद्दीन शाह बाबा वाले नाले से आगे जाता था। वर्मा चौराहे का पानी गढ़ीवा एवं ज्वालागंज का पानी तालाब में जाता था। लेकिन फैले हुए अतिक्रमण और तालाबों के बिगड़े स्वरूप ने रास्ते बन्द कर दिये, जिससे जलभराव की समस्या बढ़ गयी। उन्होंने कहा कि राजनीतिक कारणों से फतेहपुर शहर का अतिक्रमण साफ नहीं हो पा रहा है और तालाब कब्जा करने वालों के खिलाफ कार्रवाई भी नहीं होती है। नाला-नालियों के निर्माण में छोटे को बड़ा और बड़े को छोटा किया गया। उदाहरण के तौर पर अरबपुर में मासूक की पुलिया से सीधा पूरब की ओर देखें तो पता चल जायेगा कि अतिक्रमण के चलते सफाई नहीं हो पाती है। लगभग 10 साल से सफाई नहीं हुई है। अधिकतर नालों का यही हाल है। अधिकतर नालों में अतिक्रमण है। उन्होंने कहा कि अतिक्रमण हटा रहे और कूड़ा नालों में न डाला जाये तो जलनिकासी की समस्या का इतना जटिल रूप सामने न आये। बताया कि ज्वालागंज से बसन्त टाकीज तक का नाला- आधा अधूरा बनाया गया, फिरतोड़ा गया और बनाया गया।
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जो भी नाले बन रहे हैं टेढ़े- मेढ़े बनाये जा रहे हैं। उन्होंने अपने सभासद कार्यकाल का जिक्र करते हुए कहा कि महेश तिलक के घर से नजबुद्दीन शाह बाबा तक नाला बनाने का प्रस्ताव किया था। लेकिन नाला मासूक की पुलिया तक ही बना गया। वह भी मानक के विपरीत था। कई बार लिखा पढ़ी भी की। मानकविहीन वह नाला मोहल्ले के लिए अभिशाप है। उसे टूटना चाहिए। उन्होंने वर्षा ऋतु के पूर्व चलने वाले सफाई अभियान पर सवाल खड़ा करते हुए कहा कि सफाई का सही समय मार्च-अप्रैल में होना चाहिए। लेकिन ऐसा न कर जून में टेण्डर किया जाता है और तभी सफाई शुरू होती है। अप्रैल-मई में अगर सफाई हो जाये तो भी जलभराव की समस्या कम होगी।
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बताया कि एक समय ऐसा था कि नालों में बंधा लगाकर तली तक सिल्ट निकाली जाती थी। अब ऐसा नहीं होता है। जो ठेकेदार ठेका लेते हैं वह नगर पालिका के सफाई कर्मी से ही काम लेते हैं। जबकि ठेकेदारों को अलग से मज़दूर लगाकर सफाई करानी चाहिए और उनकी पूरी सुरक्षा भी होनी चाहिए। परन्तु साफ-सफाई के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं दिये जाते हैं। सवाल वही अधिक से अधिक पैसे की बचत के चलते सफाई कर्मचारी के जीवन से खिलवाड़ किया जाता है।
सफाई कर्मचारियों की कमी भी आती आड़े
अखिल भारतीय सफाई मज़दूर संघ के प्रदेश उपाध्यक्ष एवं पूर्व सभासद धीरज कुमार ने कहा कि पालिका में चार प्रकार के सफाई कर्मी हैं। जिसमें स्थाई सफाई कर्मी, जिनकी संख्या लगभग 130 है और वेतन 50 से 55 हजार रुपये हैं। दूसरे संविदा सफाई कर्मी हैं, जिनकी संख्या लगभग 140 और वेतन 22 हजार के करीब है। तीसरे सफाई कर्मी ठेकेदारी पर काम करने वाले हैं, उनकी संख्या ठेकेदारों व बाबू की मर्जी पर आधारित है और उनका मानदेय 9500 रुपये है। चौथे डोर-टू-डोर सफाई कर्मी हैं, इनकी संख्या भी ठेकेदार की मर्जी पर आधारित है, इनका मानदेय 7 हजार रुपये प्रतिमाह के करीब है।
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उन्होंने बताया कि नगर पालिका परिषद सदर में सभी प्रकार के कर्मचारियों की संख्या लगभग 500 है। जबकि शहर की सफाई के लिए आवश्यकता कम से कम 800 कर्मचारियों की है। 300 कर्मचारियों का कम होना, शहर की सफाई के लिए बहुत बड़ी रूकावट है। जो कर्मचारी काम देख रहे हैं उनको तीन से चार माह की सैलरी व पीएफ एवं एरियर भी समय से नहीं मिल रहा है।