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मृतक छेदी सिंह हाज़िर हों वरना उनकी ज़मीनें बंजर कर दी जाएँगी

शायद इक्का-दुक्का लोगों को ही इस बात की जानकारी थी कि उनकी जमीनों के कुछ हिस्सों को सरकार ने बंजर घोषित कर आदेश निकाल दिया है। लेकिन किसी के पास पक्की खबर नहीं थी कि वास्तव में मामला क्या है। कुछ लोगों ने बताया कि हाँ, हमारे गाँव में ड्रोन से सर्वे हुआ है। लेकिन उसका क्या उद्देश्य है इसके बारे में कुछ भी नहीं पता। रोज अखबारों में बड़ी-बड़ी परियोजनाओं की खबरें और सब कुछ को आधार-पैन से जोड़कर हर धोखाधड़ी और फर्जीवाड़े से निपटने के सरकारी दावों ने लोगों को इतना अधिक भरमा दिया है कि शायद ही किसी को चिंता हो कि उसके पाँव के नीचे से ज़मीन खिसकनेवाली है। ऐसे में यहाँ अगर ऐसी बात है कि हर कोई किसी बड़ी सरकारी कार्यवाही से अनजान है तो आश्चर्य ही क्या है।

वाराणसी। मिल्कोपुर गाँव के बड़े से प्रवेश द्वार को पूर्व प्रधान धर्म दत्त सिंह चौहान के कार्यकाल में बनाया गया था और उसे गाँव का रास्ता बताने वाले आम बोलचाल में चौहान गेट बोलते हैं। मिल्कोपुर चौहान बहुल गाँव है इसलिए यह गेट इस जाति के आइकॉन पृथ्वीराज चौहान के नाम पर बनवाया गया है। हालांकि नई पीढ़ी के लिए गेट पर लिखा नाम ‘सम्राट पृथ्वीराज चौहान’ नाकाफी लगता है और इसे थोड़ा और विस्तार देने की कोशिश की गई है। गेट के ठीक सामने दूसरी पटरी पर बनी एक दुकान के ऊपर ‘हिन्दू हृदय सम्राट पृथ्वीराज चौहान गेट’ लिखवाया गया है। इस समय के राजनीतिक पर्यावरण को देखते हुये बेशक इसके विशिष्ट निहितार्थ हैं। लेकिन अभी दूसरी विपदा पर बात किए जाने की जरूरत है।

मिल्कोपुर का प्रवेश द्वार

गाँव में घुसने पर पूर्व प्रधान धर्म दत्त सिंह चौहान के घर का रास्ता लोग एक सवाल ‘नए प्रधान कि पुराने’ के साथ तुरंत बता देते। जब मैं उनके घर का बड़ा सा गेट खोल कर अंदर गई और उनको पूछा तब उनकी पत्नी ने कहा वे तो दुकान पर हैं और दो मिनट में ही वे गुड़-पानी और नमकीन ले आईं और चूल्हे पर चाय चढ़ा दिया। मेरे लिए यह सुखद आश्चर्य था कि उन्होंने अपरिचित होने का तनिक भी आभास नहीं होने दिया। जब मैंने उनसे मिल्कोपुर की ज़मीनों के बंजर करने और बिना मुआवज़ा प्रशासन द्वारा लिए जाने की बात की तो उन्होंने इस विषय में अधिक जानकारी न होने की बात बताई और बच्चों की पढ़ाई-लिखाई की बात करने लगीं। थोड़ी देर में उनकी सास अमिरता देवी आ गईं। मैं उनका फोटो लेने लगी तो वे अपने पोपले चेहरे से मुस्कराईं। बेशक वे बहुत सुंदर हैं और बहुत कर्मठ और ममतालू भी।

अमिरता देवी

काफी देर के इंतज़ार के बाद किसान नेता लक्ष्मण प्रसाद मौर्य का फोन आया कि हम लोग गेट के बाहर सड़क पर हैं। आप यहीं आ जाइए। दरअसल यहाँ आने के एकमात्र सूत्र लक्ष्मण प्रसाद ही थे और उन्हें भी वस्तुस्थिति पूरी तरह मालूम नहीं थी। फिर भी उन्होंने समय निकाला और आ गए। जब मैं गेट पर पहुंची तब मधुबन (मऊ जिला) के किसान नेता सुरेश यादव, सुरेन्द्र सिंह और एक अन्य व्यक्ति भारतीय किसान यूनियन (टिकैत) की हरी टोपी लगाए वहाँ मिले जो वस्तुतः दो दिन बाद बनारस के शास्त्री घाट पर राकेश टिकैत के कार्यक्रम के लिए किसानों को बुलाने के उद्देश्य से आए थे।

मिल्कोपुर के किसी भी व्यक्ति से हममें से किसी का कोई सीधा परिचय नहीं लेकिन वह किसान नेता ही कौन जो गाँव में जाकर भी अनजान रह जाय। लिहाजा पाँच मिनट में ही वहाँ आधा दर्जन से अधिक लोग जुट गए। प्रायः सभी मिल्कोपुर और आसपास के गांवों के रहने वाले थे। उनमें से शायद इक्का-दुक्का लोगों को ही इस बात की जानकारी थी कि उनकी जमीनों के कुछ हिस्सों को सरकार ने बंजर घोषित कर आदेश निकाल दिया है। लेकिन किसी के पास पक्की खबर नहीं थी कि वास्तव में मामला क्या है। कुछ लोगों ने बताया कि हाँ, हमारे गाँव में ड्रोन से सर्वे हुआ है। लेकिन उसका क्या उद्देश्य है इसके बारे में कुछ भी नहीं पता। रोज अखबारों में बड़ी-बड़ी परियोजनाओं की खबरें और सब कुछ को आधार-पैन से जोड़कर हर धोखाधड़ी और फर्जीवाड़े से निपटने के सरकारी दावों ने लोगों को इतना अधिक भरमा दिया है कि शायद ही किसी को चिंता हो कि उसके पाँव के नीचे से ज़मीन खिसकनेवाली है। ऐसे में यहाँ अगर ऐसी बात है कि हर कोई किसी बड़ी सरकारी कार्यवाही से अनजान है तो आश्चर्य ही क्या है।

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सुरेश यादव और उनके दो साथियों के सिर पर टोपी और कंधे पर हरा गमछा देखकर लोगों में कुतूहल था कि ये कौन लोग हैं और कहाँ से आए हैं। इसलिए लोग रुकते और दरियाफ्त करते। चौहान गेट पर वे लोग यह योजना ही बना रहे थे कि पहले धर्म सिंह चौहान से मिला जाय तब तक दिलीप नाम के एक सज्जन आए और बताने लगे कि ‘हमारी ज़मीनें जा रही हैं। ड्रोन से सर्वे हुआ है और आदेश निकल गया है।’ उन्होंने कहा कि ‘यह केवल दलितों और पिछड़ों की ज़मीन को लेकर हो रहा है। सवर्ण बम बम हैं।’

धर्म सिंह चौहान अपनी दुकान पर नहीं मिले। वह किसी मरीज को देखने गए थे। सब लोग उनके कटरे में रखी बेंच पर बैठ गए। सुरेश यादव ने इस बात पर चिंता ज़ाहिर की कि ‘अब किसान आंदोलन कमजोर पड़ गया है और इसीलिए सरकार और प्रशासन की मनमानी बढ़ गई है।’ उन्होंने राजनारायण के दौर की बात उठाई और कहा कि ‘यदि आज वे होते तो यहीं अपना लाव-लश्कर लेकर बैठ जाते और जब तक फैसला न होता तब तक न उठते।’ लक्ष्मण प्रसाद ने कहा कि ‘अब वैसे लोग नहीं होंगे।’ सुरेन्द्र सिंह हर व्यक्ति से शास्त्री घाट पर होनेवाले कार्यक्रम में शिरकत होने की गुजारिश कर रहे थे।

आधा घंटा बैठने के बाद भी धर्म सिंह चौहान नहीं आए। उनके बेटे से पूछने पर पता चला कि वे किसी गाँव में मरीज देखने गए हैं। लेकिन किस गाँव में गए हैं यह पक्का पता नहीं है। मैंने जब-जब उनको फोन किया तब-तब पूरी घंटी जाने के बावजूद उन्होंने नहीं उठाया। देर होती देख लोगों ने तय किया कि जब तक धर्म सिंह चौहान नहीं आते तब तक अमृत प्रधान से मिल लिया जाय।

मिल्कोपुर के वर्तमान ग्राम प्रधान अमृत चौहान की हार्डवेयर और बालू-गिट्टी की दुकान है और संयोग से वह दुकानदारी करते मिल गए। 35-40 साल के युवा अमृत सिंह चौहान से मैंने ज़मीन के बारे में पूछा तब उन्होंने पहले तो अनभिज्ञता ज़ाहिर की लेकिन बाद में विस्तार से बताते हुये राजस्व विभाग की मुहर लगा हस्तलिखित आदेश दिखाया।

मिल्कोपुर के प्रधान अमृत चौहान

वह बताते है कि ‘हमको इसकी जानकारी हुई है कि गाँव की ज़मीनों को बंजर करने का मामला चल रहा है। हमारे मित्र ने कचहरी से फ़ोन किया और बताया कि आपके ग्रामसभा में एक सौ एकड़ की जमीन बंजर होने जा रही है। मिल्कोपुर के चार गांव, तोफापुर, कोची और सरैया की ज़मीनें भी बंजर की जा रही हैं। । जब हमको मालूम हुआ तो मैंने तुरंत जाकर पेपर निकलवाया। किस-किस नंबर पर कितना है और किसका कितना बंजर है और सरकार कितना लेना चाहती है? जब ये बात सबको पता चली कि किसी का 8 एयर तो किसी का 36 एयर जा रहा है। किसी-किसी नंबर की तो पूरी ही जमीन बंजर करने के लिए सरकार ने आदेश निकाला है जिससे किसान बहुत परेशान हैं। इस परेशानी को देखते हुए नंदलाल उपाध्याय और गाँव के ही 7-8 लोगों ने मिलकर वाद दाखिल किया हुआ है। अब देखना यह है कि क्या फैसला आता है।  तभी हम लोग कुछ बोल सकते हैं।

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मुझे गाँव के लोगों से मिलकर यह जानना था कि इतनी बड़ी घटना को लेकर उनकी क्या प्रतिक्रिया है? यह एक दो का नहीं बल्कि दर्जनों किसानों का मामला है। क्या सभी को पता है। अगर पता है तो वे क्या कर रहे हैं?

अमृत चौहान के पास कोई योजना नहीं है कि आगे क्या किया जा सकता है। वे अपनी दुकानदारी में लगे रहते हैं। बीच-बीच में किसी लेन-देन के फोन-संदेश को भी सुनते और जवाब देते हैं। सुरेन्द्र सिंह कहते हैं कि ‘अब समय आ गया है जब किसानों को एकजुट हो जाना चाहिए। इसलिए परसों शास्त्री घाट पर अधिक से अधिक लोग जुटिए।’ चाय पीकर सुरेश यादव और लक्ष्मण प्रसाद मौर्य आदि शास्त्री घाट की तैयारी के लिए सारनाथ चले गए। सुरेन्द्र मेरे साथ पुनः मिल्कोपुर गाँव में आए।

मिल्कोपुर पहुँचने पर एकत्रित हुई स्त्रियाँ

साल भर से गाँवों में जब मैं रिपोर्टिंग के लिए जाती हूँ तो प्रायः महिलाएं जुट आती हैं और वे अपनी दुनिया की जिन सबसे बड़ी समस्याओं को साझा करती हैं उनमें सरकारी सस्ते गल्ले की दुकान से मिलनेवाला राशन, आवास, शौचालय, विधवा और वृद्धावस्था पेंशन को लेकर शिकायतें होती हैं। राशन वाले की घटतौली और सरकारी कर्मचारियों के भ्रष्टाचार के कारण उन्हें ठीक से सुविधाएं नहीं मिलतीं और वे मुझे इस उम्मीद में अपनी बातें बताती हैं जैसे मैं उनकी खबर ऊपर तक पहुंचा दूँगी।

मिल्कोपुर में भी यही हुआ। दर्जन भर स्त्रियाँ आ गईं। जब मैंने उनसे जिलाधिकारी और एसडीएम द्वारा उनकी ज़मीनों में से बंजर निकालकर सरकारी योजनाओं के लिए ज़मीन लेने की बात की और कहा कि बंजर निकालने से वे किसी को एक पैसा मुआवजा न देंगे तब अचानक उनका सुर बदल गया।

रामधारी गोंड़ अपनी बखरी दिखाकर बताते हैं कि उनकी बखरी चकऑउट पर बनी है। जब इनके बाबा थे तब की है।  तब से छः पीढ़ियाँ बीत गई हैं। उस समय चक नही कटा था।  अब हम लोगों के समय चक कटा गया है ।

रामधारी गोंड़ और उनकी पत्नी

मिल्कोपुर के भूतपूर्व ग्राम प्रधान राधेश्याम सिंह चौहान अपने घर में अधलेटे आराम कर रहे थे लेकिन बात करने के लिए उठ बैठे। सरकार द्वारा बंजर जमीन लेने के मामले पर उन्होंने कहा कि ‘अगर सरकार किसानों से जमीन ले रही है तो उसको उस जमीन की कीमत भी दे। अगर किसानों की जमीन से बंजर निकलता भी है तो एक-दो बीघा में एक-आध बिस्सा ही न बंजर हो सकता है, पूरा खेत थोड़े ही बंजर निकल सकता है।’ वह बताते हैं कि 1982 से 2002 तक मैंने प्रधानी की मुझे तो कहीं पर भी बंजर नहीं दिखा लेकिन अब सरकार को कहाँ से जमीन बंजर दिखने लगी। वह गलत कह रही है, क्योंकि जमीन की रजिस्ट्री करने वाले ने रजिस्ट्री किया, लिखाने वाले ने लिखाया, जोतने वाला जमीन जोत रहा है तो वह जमीन कैसे बंजर हो सकती है? जो जमीन मुझे  बंजर दिखी थी मैंने उसे गरीबों में पट्टा कर दिया था। जब कोई जमीन खरीदता है तो जमीन के कागज पर स्टाम्प लगवाता है और टेक्स भरता है। ज़मीन लिखा-पढ़ी के साथ ली जाती है।  तो वह जमीन बंजर कैसे हो सकती है और हम सुने हैं बंजर जमीनों पर बस स्टाप बनाया जायेगा।’

मिल्कोपुर के भूतपूर्व ग्राम प्रधान राधेश्याम सिंह चौहान

एक और ग्रामवासी कहते हैं कि ‘जिला प्रशासन ने बिना किसान की जानकारी के जमीन बंजर घोषित कर दी है। इस विषय पर संयुक्त किसान मोर्चा में हम लोग मीटिंग करने वाले थे लेकिन राकेश टिकैत का भी कार्यक्रम भी नजदीक आ गया था तो ये हुआ कि पहले ये कार्यक्रम हो जाता है तो इसके बाद हम लोग फिर मीटिंग करेंगे क्योंकि जिस पर किसान खेती करते हैं उन किसानों की जमीन सरकार ले रही है। मेरा मानना है कि जिस ज़मीन पर किसान खेती कर रहा है उस पर सिर्फ किसान का ही अधिकार होना चाहिए न कि कोई दूसरी एजेंसी  आकर जमीन पर अतिक्रमण करे और अपना अधिकार जमाए। यह बेहद अन्यायपूर्ण है।’ वह आगे कहते हैं कि ‘यह सरकार की तरफ से जमीन हड़पने की नीति है और हम जमीन हड़पने की नीति का विरोध करते हैं। साथ ही साथ ये सारे गाँवों का सवाल है। सैकड़ों एकड़ जमीन का सवाल है। अभी आन्दोलन में तेजी नहीं दिख रही है लेकिन आने वाले दिनों में हम लोग यहाँ के किसानों के साथ मिलकर आन्दोलन करेंगे।’

मधुबन (मऊ जिला) के किसान नेता सुरेश यादव, लक्ष्मण मौर्या और सुरेन्द्र सिंह

किसान यूनियन से जुड़े कमलेश कुमार राजभर का कहना है कि ‘मैं किसान का बेटा हूँ। मजदूरी भी करता हूँ।  गरीबी में पला हूँ, गरीबी जानता हूँ। मैं सदा किसान-कारीगर-मजदूर-आदिवासी या महिलाओं की कोई भी समस्या होती है तो मैं इन लोगों के पास जाता हूँ। मैं सोचता हूँ इन लोगों भला हो लेकिन सरकार की नवैयत सबको फंसा कर के मारना है। वह हम ही लोगों की कमाई खाती है हम ही लोगों को परेशान भी करती है और हम ही लोगों को घर से बेघर करती है लेकिन जिस दिन किसान खेती नहीं करेगा तो लोग खाना खा नही पाएंगे। लोगों को आनाज नहीं मिलेगा। लोग भूखे मरेंगे इसलिए किसान को इज्जत और सम्मान और उनको उनका हक़ मिलना चाहिए।’

किसान यूनियन से जुड़े कमलेश कुमार राजभर

तोफापुर निवासी रमेश मिस्त्री का काम करते हैं। वह बताते हैं कि ‘हमलोगों की जितनी जमीन और घर-द्वार है,  सब जाने वाला है। यह बात हमलोगों को 20-25 दिन पहले पता चली है। अब हमलोग कहां जाएंगे।  हमलोग क्या करें कुछ समझ में नहीं आ रहा है। अभी तो फ़िलहाल कोर्ट में विरोध का केस दर्ज किए हैं। हम लोगों की जितनी जमीन जाने वाली है उसका हमलोगों को नोटिस दिया गया है। मेरे और भाई का मिलाकर ढाई बीघा जमीन जाने वाली है।’

उसी गांव के संदीप पाल कहते हैं कि ‘अभी कुछ दिन पहले ही हम लोगों के पास जमीन जाने की नोटिस आई है। नोटिस आने के बाद हम लोग लेखपाल के पास गए। वहां जाकर पता किया तो उन्होंने बताया कि सर्वे हुआ है। सर्वे के अनुसार जितने लोगों की जमीन जानी है उन लोगो को नोटिस दे दिया गया है।’

रमेश मिस्त्री और संदीप पाल

वह आगे बताते हैं ‘कि मेरे बड़े पापा और मेरे पिता जी के खेत जहां तक जाने हैं वहां तक निशान लगा दिया गया है। फिलहाल तो अभी हमलोगों को नोटिस मिला है लेकिन इसके बाद अगर वो लोग आगे की कार्यवाही करते हैं, तो हम लोग एकजुट होकर धरना प्रदर्शन करेंगे।’

कुछ दूसरे लोगों ने हमें बताया कि जिला प्रशासन ने एसडीएम सदर के जरिये आदेश निकलवाकर चकबंदी की हुई जमीनों में से लगभग 85 एकड़ जमीनें बंजर घोषित कर दिया है। समाजवादी नेता अफलातून ने 109 एकड़ जमीन का जिक्र किया। सरकार द्वारा जारी आदेश का पता गिने-चुने लोगों को ही था।

एक महिला ने सामने के हरे-भरे धान के खेत की ओर इशारा किया कि ‘बताइये यह बंजर है कि खेत है?’ मेरे पास एसडीएम के आदेश की कॉपी मौजूद थी। मैंने उन्हें दिखाया और बताया कि चार गांवों से सौ एकड़ से ज्यादा बंजर निकला है लेकिन वे ज़मीनें छेदी सिंह की हैं। आप में से किसी का नाम उसमें नहीं है।

तोफापुर में बंजर बंजर जमीनों की नापजोख के साथ आदेश

‘कौन है छेदी सिंह ?’ किसी ने यह पूछा। जवाब में सब एक दूसरे का मुंह देखने लगे। वहाँ मौजूद सबसे बुजुर्ग व्यक्ति को भी छेदी सिंह का नाम नहीं मालूम था।

तो फिर छेदी सिंह कौन हैं और कहाँ रहते हैं? यह सवाल गंभीर होता जा रहा था। मैंने सोचा कुछ और लोगों से मिलूँ तो शायद छेदी सिंह का कुछ सुराग मिले।

छेदी सिंह के बारे में काफी खोजबीन शुरू हुई और पता चला कि पचास साल से ज्यादा हुये छेदी सिंह मर गए। जाल्हूपुर के जमींदार ने छेदी सिंह को चार गाँव की ज़मीनें पट्टा की थी। यह 1943 की बात है। बाद में छेदी सिंह ने उस जमीन को दूसरे लोगों को बेच दिया। उन लोगों ने भी कई अन्य लोगों को बेचा। चकबंदी आने के पहले तक ये ज़मीनें कई बार बेची और खरीदी गई थीं। अब उनके मालिकान बिलकुल अलग-अलग लोग हैं। लेकिन एसडीएम सदर ने जो आदेश निकाला उसमें ज़मीन के नए मालिकों का कोई ज़िक्र ही नहीं है बल्कि उसमें पचास साल पहले मर चुके छेदी सिंह को पार्टी बनाकर यह बताया गया 1943 में छेदी सिंह को जो ज़मीन पट्टा की गई थी वह दरअसल बंजर खाते की ज़मीन थी। हालांकि इसी आदेश में उन्होंने यह भी कहा कि इस ज़मीन पर छेदी सिंह का ऐसा विशेषाधिकार था कि वे इसे अपने वारिसों को दे सकते थे और वारिस भी सुविधानुसार किसी को दे या बेच सकते थे।

मृतक छेदी सिंह और अन्य के नाम से जारी आदेश पत्र

ज़ाहिर सी बात है कि छेदी सिंह के उत्तराधिकारियों ने भी ज़मीन को नए लोगों को बेचा। यहाँ तक कोई विचित्र बात नहीं है। लेकिन आदेश में कुछ और बातें कहीं गई हैं। एक तो मालिकाना 1359 फ़सली सिद्ध किया गया है। दूसरे यह भी कहा गया है कि छेदी सिंह को हाकिम परगना जाल्हूपुर ने जो रजिस्ट्री पट्टा किया था उसका विवरण उनके गोसवारा रजिस्टर में है ही नहीं। तीसरी बात यह कि एसडीएम सदर साहब ने छेदी सिंह को पत्र लिखवाकर बुलवाया कि आकर इस बात पर आपत्ति दाखिल करें। लेकिन छेदी सिंह अथवा उनका कोई उत्तराधिकारी सामने नहीं आया। उन लोगों ने  पता नहीं कब ज़मीनें बेचकर परगना जाल्हूपुर को अलविदा कह दिया तब उनको कहाँ और किस पते पर चिट्ठी मिलती। लिहाजा कोई नहीं आया और फैसला हो गया कि छेदी सिंह की 1359 फ़सली वाली सारी ज़मीनें बंजर हैं।

लेकिन यह तो सरकारी पक्ष है। जिन लोगों ने छेदी सिंह के वंशजों तथा उनके ख़रीदारों से ज़मीनें खरीदी असल में आदेश में तो उनका नंबर था। इसलिए उन्होंने प्रतिवाद दाखिल किया। इन्हीं में से एक महेंद्र जायसवाल भी हैं जो कोर्ट से स्टे लेने के लिए कचहरी के चक्कर काट रहे हैं। उन्होंने बताया कि ‘कई पीढ़ी पहले उन गांवों में छेदी सिंह थे लेकिन अब तो वे मर चुके हैं। मैंने पता किया तो मालूम हुआ कि छेदी सिंह समस्तीपुर के रहनेवाले थे। उसके बाद मैंने छेदी सिंह का एड्रेस लेकर के समस्तीपुर का रास्ता लिया। उस एड्रेस पर मालूम हुआ कि छेदी सिंह नालंदा जिला के जमींदार थे। मुझे देखकर ही उनके घर वाले भड़क जा रहे थे। वे किसी के सामने ही नहीं आ रहे थे कि पता नही आप कौन हैं। वे कुछ भी बताने या बात करने के लिए तैयार न हुये। पड़ोसियों से पता लगा कि छेदी सिंह सन अस्सी से पहले मर गए।

दीवानी मामलों से जुड़े वकीलों का कहना है कि यह अपने आप में अनोखा मामला है। आदेश में जिन-जिन नंबरों के रकबे से बंजर निकाला गया है उसके वर्तमान कब्जेदार अभी भी असमंजस और अफ़सोस में हैं। कुछ लोगों ने प्रतिवाद दाखिल किया था लेकिन उनके दावे निरस्त हो गए। जो गरीब और अनपढ़ किसान हैं वे यहाँ-वहां दौड़ भाग कर रहे हैं। जिनके दावे निरस्त हुए हैं वे एक तरफ हाईकोर्ट में जाने की बात कर रहे हैं ताकि आदेश गलत सिद्ध हो और दूसरी तरफ इस बात का इंतजार कर रहे हैं कि किसानों का मुद्दा कोई राजनीतिक पार्टी उठाये तो उनका भी भला हो।

मिल्कोपुर गाँव से लौटते हुए मैं वाराणसी रिंग रोड के तीसरे चरण की आठ लेन की सड़क और उसके पास ही पुल के लिए बीम आदि की ढलाई का दैत्याकार प्लांट लगा है। आसमान में हलकी बदली और वातावरण में मनहूसियत छाई है। मैं सोचती हूँ कि केवल मिल्कोपुर से बंजर के नाम पर बीस एकड़ ज़मीन निकल जाएगी तो वहां क्या बचेगा? जिनके रकबे से ज़मीन जाएगी उन्हें एक चवन्नी मुआवजा नहीं मिलेगा। लेकिन इतनी ज़मीन जाने पर वे क्या करेंगे? क्या मोहनसराय, सकलडीहा, मंदूरी और ताल रटोय(मधुबन, मऊ) की तरह वे प्रतिरोध करेंगे?

पता नहीं क्यों अनाज की घटतौली की शिकायत करती, पेंशन न मिलने पर दुखी औरतों को देखकर मुझे गाँवों के भविष्य का अँधेरा दिखाई देने लगा है। ऐसा अँधेरा जहाँ आत्मसम्मान और प्रतिरोध की जगह गिड़गिड़ाहट और दयनीयता अधिक दिखने लगी है। मिल्कोपुर के चौहान गेट के सामने दुकान पर लिखे ‘हिन्दू ह्रदय सम्राट पृथ्वी राज चौहान’ तो और भी बहुत कुछ कहता है।

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अपर्णा
अपर्णा
अपर्णा गाँव के लोग की संस्थापक और कार्यकारी संपादक हैं।

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