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सनातन और हिन्दू धर्म

हिंदू धर्म का नाम किस प्रकार प्रचलन में आया। सनातन धर्म के लिए हिंदू धर्म नाम ज्यादा प्रचलित है। इस धर्म के अनुयायियों को हिंदू या सनातनी कहा जाता है। शास्त्रों में सनातन धर्म का ही जिक्र मिलता है। हिंदू नाम बहुत बाद में प्रचलन में आया। 4 वेद, 18 पुराण, उपनिषद, गीता, महाभारत, रामायण […]

हिंदू धर्म का नाम किस प्रकार प्रचलन में आया। सनातन धर्म के लिए हिंदू धर्म नाम ज्यादा प्रचलित है। इस धर्म के अनुयायियों को हिंदू या सनातनी कहा जाता है। शास्त्रों में सनातन धर्म का ही जिक्र मिलता है। हिंदू नाम बहुत बाद में प्रचलन में आया। 4 वेद, 18 पुराण, उपनिषद, गीता, महाभारत, रामायण आदि में कहीं हिन्दू शब्द आया ही नहीं है।

क्या आप जानते हैं कि सनातन धर्म का नाम हिंदू धर्म कैसे पड़ा? कैसे प्रचलन में आया हिंदू धर्म?

धर्म का अर्थ होता है- सही काम करना या नियम संगत तरीके से जीवन शैली का अनुपालन करना। कहा जाता है कि सबसे प्राचीन धर्मों में से सनातन धर्म एक है। धर्म का अर्थ होता है- सही काम करना या अपने कर्त्तव्य पथ पर चलना। धर्म को नियम भी कहा जा सकता है। हर धर्म के अपने कुछ विशेष नियम और रीति-रिवाज होते हैं। जिससे उस धर्म को एक अलग पहचान मिलती है। दुनिया में कई धर्म पाए जाते हैं, जैसे- सनातन, यहूदी, पारसी, इस्लाम, सिख और ईसाई आदि एवं जो प्रकृतिवादी होते हैं, उन्हें रेसलर कहा जाता है।

सनातन धर्म का परिचय और उसका अर्थ

‘सनातन’ का शाब्दिक अर्थ है – शाश्वत या ‘सदा बना रहने वाला’, यानी जिसका न आदि है न अन्त। सनातन धर्म को हिन्दू अथवा वैदिक धर्म के नाम से भी जाना जाता है। इसे दुनिया के सबसे प्राचीनतम धर्म के रूप में भी जाना जाता है। भारत की सिंधु घाटी सभ्यता में हिन्दू धर्म के कई चिह्न मिलते हैं। यह धर्म, ज्ञात रूप से लगभग 12000 वर्ष पुराना है, जबकि कुछ पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, हिंदू धर्म 90 हजार वर्ष पुराना है। लेकिन पुराण में कोई ऐतिहासिक तथ्य नहीं है और पुराणोक्त बहुत सारे तथ्य सत्यता से परे और अतिशयोक्तिपूर्ण कथन हैं। पुराणों में एक ही कथानक को अलग-अलग तरीके से प्रस्तुत किया गया है, जिसमें तमाम तरह के विरोधाभास दिखाई देते हैं। उदाहरणार्थ- निषाद उत्पत्ति प्रकरण को अलग-अलग पुराणों में अलग-अलग तरीके से प्रस्तुत किया गया है।

गीता के अनुसार सनातन का अर्थ-

गीता में भी सनातन धर्म का वर्णन मिलता है। श्री कृष्ण कहते हैं-

अच्छेद्योऽयमदाह्योऽयमक्लेद्योऽशोष्य एव च।

नित्य: सर्वगत: स्थाणुरचलोऽयं सनातन:।।

अर्थात- हे अर्जुन! जो छेदा नहीं जाता, जलाया नहीं जाता, जो सूखता नहीं, जो गीला नहीं होता, जो स्थान नहीं बदलता, ऐसे रहस्यमय व सात्विक गुण तो केवल परमात्मा में ही होते हैं। जो सत्ता इन दैवीय गुणों से परिपूर्ण हो, वही सनातन कहलाने के योग्य है। इस श्लोक के माध्यम से श्रीकृष्ण कहते हैं कि जो न तो कभी नया रहा। न ही कभी पुराना होगा। न ही इसकी शुरुआत है। न ही इसका अंत है। अर्थात ईश्वर को ही सनातन कहा गया है।

हिन्दू नाम कैसे मिला

असल में हिंदू नाम विदेशियों द्वारा दिया गया है। जब मध्य काल में तुर्क और ईरानी भारत आए तो उन्होंने सिंधु घाटी से प्रवेश किया। सिंधु एक संस्कृत नाम है। उनकी भाषा में ‘स’ शब्द न होने के कारण वह सिंधू कहने में असमर्थ थे। इसलिए उन्होंने सिंधु शब्द के उच्चारण के स्थान पर हिंदू कहना शुरू किया। इस तरह से सिंधु का नाम हिंदू हो गया। उन्होंने यहां के निवासियों को हिंदू कहना शुरू किया और इसी तरह हिंदुओं के देश को हिंदुस्तान का नाम मिला।

हिन्दू और हिन्दुत्व क्या है?

क्या आप जानते हैं कि हिन्दू एक गाली है? शायद आप नहीं जानते?

हिंदू कहलाने वालों के धर्मग्रंथों की लिस्ट में 4 वेद, 18 पुराण, 6 शास्त्र, 64 कला, इनका समावेश करने का शौक हिंदुत्ववादी लेखक गणों को हैं, लेकिन इसमें से एक भी ग्रंथ में हिंदू शब्द का कोई अस्तित्व नहीं है। हिंदू अगर धर्म होगा, तो हिंदू शब्द इनमें से सभी अथवा किसी भी धर्मग्रंथ में होना चाहिए था, लेकिन नहीं है। इतना ही नहीं हाल ही के समय के वैष्णव, शैव, शाक्त, चैतन्य, नाथ, लिंगायत, खालसा, ब्रह्म समाज, आर्य समाज आदि सम्प्रदायों के वान्ग्मयों में भी ‘हिंदू’ शब्द देखने को नहीं मिलता है। इसके विपरीत ‘आर्य और ब्राह्मण’ शब्द का वर्णन जगह-जगह मिलते हैं।

लिखित स्वरूप में हिंदू शब्द 1918 में पहली बार आता है तथा सिक्खों के गुरु गुरुनानक के लेखन में एवं तथाकथित हिंदू धर्म के अंदर जो भेदभाव और जातिवाद एवं आडंबर है, उसे दूर करने के लिए नानकदेव ने स्वतंत्र धर्म सिक्ख की स्थापना की, यह सर्वविदित है। गुरुनानक के  समय इस्लामी आगमन का समय था।

हिन्दू न तो मराठी शब्द है, न हिंदी है, न संस्कृत, न अंग्रेजी, न मगधी या न अन्य भाषा का शब्द है, यह शब्द भारतीय भी नहीं है। यह ‘परशियन’ और ‘फारसी’ का शब्द है।

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15वीं सदी में मुगल जब भारत में आये, वह धर्म से इस्लामिक थे, लेकिन उनकी बोली और लिखने की भाषा परशियन और फारसी थी। भारत आकर जब उन्होंने यहाँ के लोगों को हराया तब हारे हुए लोगो को ‘हिंदू’ (तुच्छास्पद) गाली दी। उसी वक्त से ‘हिंदू’ शब्द प्रचलित हुआ।

भारत में कलकत्ता में मोठी लायब्रेरी में परशियन डिक्शनरी है, उसमें हिन्दू शब्द का अर्थ आप देख सकते हैं- एनालिसिस ऑफ़ हिंदू: परशियन डिक्शनरी में हिन्दू शब्द का अर्थ हीनदू = गुलाम, चोर, गंदा, काले चेहरे वाला। एनालिसिस ऑफ हिंदुस्तान-हिन = तुच्छ, दलिद्र, गंदा; दून = लोग, प्रजा, जनता; स्थान= जगह।

हिंदू दो शब्दों से ही बना हुआ नहीं है, बल्कि यह तीन शब्दों {हि+न+दू} से बना हुआ है। उसी का अपभ्रंश होकर दो शब्दी हिंदू इस प्रकार बना है।

दयानंद सरस्वती ने ‘आर्य समाज’ की स्थापना की। उनके सत्यार्थ प्रकाश पुस्तक में वह ‘हिंदू’, शब्द मुगलों द्वारा दी हुई गाली है। उसके बाद हिन्दू से ‘हिंदुस्थान’ मुगलों ने ही किया। ‘भारत’ कभी भी ‘हिंदुस्तान’ नहीं था और न ही है।

लगभग 130 ईस्वी में ब्राह्मण धर्म था, उसके चार वर्ण थे और उस समय महाभारत और रामायण थे। सबसे बड़ा सवाल यह है कि पाली प्राकृत अभिलेख लिखवाने वाला सातवाहन वंश जो एक बौद्ध राजवंश था और उनकी राजकीय भाषा प्राकृत व लिपि धम्मलिपि (ब्राह्मी) थी एवं लेणी में बुद्ध और बोधिसत्व की मूर्तियां, विहार, चैत्य और स्तूप बनवाने वाला क्या ब्राह्मण धर्म के बारे में लिखेगा? वह संस्कृत को छोड़कर धम्मलिपि में लिखेगा या ब्राह्मण धर्म के बारे में?

आज के अधिकतर तर्कशील वैज्ञानिक विचारधारा को मानने वाले और इतिहास में रूचि रखने वाले लोगों ने इस शिलालेख को तार्किक रूप में कभी सोचा ही नहीं और ज्यों का त्यों अपने लेखनों में छापते रहे हैं।

अगर बारीकी से देखा जाए तो ये अभिलेख लिखवाने वाला बौद्ध है और पाली प्राकृत में क्षत्रिय नहीं खत्तिय लिखा है, ब्राह्मण नहीं ब्रह्मण लिखा गया है। यहाँ बमन या बम्हण भी हो सकता है। जहाँ तक नाम की बात है तो केशव, राम, अर्जुन, भीमसेन आदि नाम तो जातक कथाओं मे पहले से ही प्रयोग होते आये हैं। बाकी चातुर्वर्ण का मतलब ब्राह्मणों के वर्ण व्यवस्था में ही हो, ऐसा नहीं है। इस चातुर्वर्ण के बारे में हमें सोचना होगा। यह चातुर्वर्ण शब्द एक संशोधन का विषय है। वास्तव में ‘बम्हण’ का सम्बोधन विद्वान शब्द से होता है, वह आज वाली जाति सूचक नाम ‘ब्राम्हण’ कतई नहीं है, क्योंकि ब्राम्हण जाति के बनाने से पहले उस समय के रहे सभी सम्राटों को जाति और वर्ण सूचक सम्बोधन वाले शब्दों में बांधते हुए नहीं देखा गया है। हमें अभिलेखों में कुल, वंश और गण देखने को मिलता है एवं जाति सूचक नाम ‘ब्राम्हण’ ये नागरी लिपि में ही लिखा जा सकता है, धम्मलिपि में लिखा नहीं। बमन को संस्कार करके ब्राह्मण बनाते हैं, तब वह संस्कृत का शब्द बनता है। वैसे देखा जाय तो 7वीं शताब्दी तक पूरा भारतीय उपमहाद्वीप बौद्ध था। 8वीं शताब्दी में आदिशंकराचार्य ने शैव संप्रदाय की स्थापना की और 11वीं शताब्दी में रामानुजाचार्य ने वैष्णव संप्रदाय की स्थापना की एवं 13वीं- 14वीं शताब्दी में तारा देवी, डाकिनी को काली दुर्गा बनाकर शाक्त संप्रदाय की स्थापना की गई। 8वीं शताब्दी से 12वीं शताब्दी के उत्तरार्ध तक ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, उपनिषद, पुराण, रामायण, महाभारत जैसे संस्कृत ग्रंथों का निर्माण हुआ। अवलोकितेश्वर और तारा देवी के विभिन्न प्रकारों की मूर्तियाँ गुप्त काल से लेकर पाल वंश तक व्रजयानियों ने बनाई थी, उनको कब्ज़ाकर ब्रम्हा-विष्णु-शिव, काली, दुर्गा में परिवर्तित किया। यही से ब्रम्हा- विष्णु-शिव, काली, दुर्गा की शुरुआत हुई, लेकिन कुछ इतिहासकार गुप्त वंश और पाल वंश को ही ब्राम्हणधर्मी बनाने के लिए तुले हुए हैं।

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वास्तव में ब्राह्मण का रूपांतरित रूप हिंदू है। जब 1911 में जनगणना हो रही तब ब्राह्मणों ने कहा था कि ‘हम हिंदू नहीं ब्राह्मण हैं और हमारा धर्म ब्राह्मण है। आर्य और ब्राह्मण इंडियन या भारतीय नहीं हैं।’ जब मुस्लिम और मुगल शासन काल में जजिया कर लगाया गया तो ब्राह्मण समाज ने कहा- हम भी आप की तरह बाहरी हैं, सो हम पर जजिया/ धार्मिक कर न लगाया जाए। बाल गंगाधर तिलक ने खुद लिखा है कि हमारे पूर्वज ध्रुव प्रदेश से आए हैं। केदारनाथ पांडेय उर्फ राहुल सांस्कृत्यायन ने वोल्गा से गंगा में लिखा है कि आर्य व ब्राह्मण मध्येशिया से इस भूभाग पर आए हैं।

क्या गैर ब्राह्मण आर्य, सनातनी और हिन्दू हैं? अगर ऐसा है तो ब्राह्मण परशुराम ने 21 बार पृथ्वी को क्षत्रिय विहीन क्यों किया, यहाँ तक क्षत्रिय महिलाओं का पेट चीरकर भ्रूण तक को क्यों मारा? क्या यही सनातन और हिन्दू धर्म है? महान विद्वान स्वामी विवेकानंद (कायस्थ) को विश्व धर्म सम्मेलन में जाने के लिए हिन्दू धर्म का प्रमाण पत्र जारी क्यों नहीं किया गया, क्या ये सनातनी और हिन्दू नहीं थे? शंबूक ऋषि का धड़ और निषाद पुत्र एकलव्य का अंगूठा क्यों काटा गया? कर्ण को सूतपुत्र कहकर अपमानित क्यों किया गया, द्रौपदी  के स्वयंवर से बाहर क्यों कराया गया? वीर शिवाजी का राज्याभिषेक करते समय गंगा भट्ट ने बाएँ पैर के अंगूठे से राजतिलक क्यों किया? प्रथम राष्ट्रपति डाॅ. राजेन्द्र प्रसाद द्वारा वाराणसी में 121 ब्राह्मणों का पैर क्यों धुलवाया गया, केंद्रीय मंत्री बाबू जगजीवन राम द्वारा सम्पूर्णानन्द की प्रतिमा पर माल्यार्पण के बाद गंगाजल से क्यों धुलवाया गया, क्या ये सनातनी और हिंदू नहीं थे?

अगर यही सनातन धर्म और हिन्दुत्व है, तो ओबीसी, एससी, एसटी हिंदू और सनातनी कैसे? गीता में योगेश्वर श्रीकृष्ण द्वारा कहलवाया गया है-

चातुर्वर्ण्यम् मया स्रृष्टम् गुणकर्म विभागशः।

और

वेदोक्त कथन है-

जन्मना जायते शूद्रः संस्कारात् द्विज उच्चयते।

वेदाध्यायी भवेत् विप्रः ब्रह्म जानातीति ब्राह्मणः।।

तो क्या यह कथन गलत है? अगर सही है तो कर्मणा भेदभाव न कर जन्मना क्यों किया जाता है? जिस धर्म में स्त्री शूद्रो नाधीयताम् (स्त्री और शूद्रों को शिक्षा का अधिकार नहीं) की व्यवस्था रही हो, वह कैसा हिन्दुत्व, सनातन और हिन्दु धर्म?

15वीं शताब्दी के पहले हिंदू शब्द किसी भी ग्रंथ में, बोलने में, यहां तक कि लिखने में भी आया ही नहीं था। इसी के कारण तो ब्राह्मणी ग्रंथ-रामायण, महाभारत, उपनिषद, भगवतगीता, ज्ञानेश्वरी, श्रुति, स्मृति, मनुस्मृति, 4 वेद, 18 पुराण, 64 शास्त्र, उपनिषद और संतों के अभंग वाणी में, गाथाओं में, दोहों में कहीं भी ‘हिंदू’ शब्द नहीं मिलता है।

सन् 1819 से पहले किसी शूद्र (गैर-ब्राह्मण, एससी, एसटी) की शादी होती थी तो ब्राह्मण दुल्हन को उसका शुद्धीकरण करने हेतु 3 दिन अपने पास रखते थे, उसके उपरांत उसको घर (ससुराल) भेजते थे और इसी कारण ब्राह्मण महिलाओं की दूसरी शादी नहीं कराते थे, क्योंकि यदि दूसरी शादी करायेंगे तो उस (भोग-विलास युक्त) स्त्री को भी 3 दिनों के लिए घर ले जाना होगा। इस परिस्थिति से बचने के लिए अपने ग्रंथों में महिलाओं की दूसरी शादी का प्रावधान ही नहीं रखा। किंतु इस प्रथा को अंग्रेजों ने 1819 ईस्वी में बंद करवाया। चरक पूजा अंग्रेजों ने 1863 में बंद कराई, इसमें यह होता था कि कोई पुल या भवन बनने पर शूद्रों (ओबीसी, एससी,एसटी) की बलि दी जाती थी। नरबलि जो कि शूद्रों (ओबीसी, एससी, एसटी) की दी जाती थी, अंग्रेजों ने इसे रोकने के लिए 1830 में कानून बनाया था। शूद्रों को अंग्रेजों ने 1835 ईस्वी में कुर्सी पर बैठने का अधिकार दिया था, इससे पहले शूद्र कुर्सी पर नहीं बैठ सकते थे।

सन् 1919 ईस्वी में अंग्रेजों ने ब्राह्मणों के जज बनने पर रोक लगा दी थी। अंग्रेजों ने कहा था कि इनका चरित्र न्यायिक नहीं होता है, जातीय पक्षपात करते हैं।

शासन व्यवस्था पर ब्राह्मणों का अनियंत्रित 100 परसेंट कब्जा था। अंग्रेजों ने इन्हें 2.5 परसेंट पर लाकर खड़ा कर दिया था। भीमराव अम्बेडकर के प्रयासों से शुद्रों को 1927 में सार्वजनिक जगहों पर जाने का हक मिला था। शूद्रों का पहला लड़का ब्राह्मण गंगा में दान करवा दिया करते थे, क्योंकि वह जानते थे कि पहला बच्चा हष्ट-पुष्ट पुष्ट होता है, क्योंकि शादी के बाद प्रथम तीन रात्रि शादी-शुदा लड़की उनके घर रहती है, इसलिए प्रथम संतान उनका ही खून होता है, जो कभी भी उनके सामने विरोधी बन न जाये, इसीलिए उसको गंगा में दान करवा दिया करते थे। अंग्रेजों ने इस प्रथा को रोकने के लिए 1835 में एक कानून बनाया था।

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देवदासी प्रथा अंग्रेजों ने ही बंद कराई। इस प्रथा में यह होता था कि शूद्र समाज की सुन्दर लड़कियों को धर्म और भगवान के नाम पर मंदिरों में देवदासी के रूप में रखा जाता था और उनसे जो बच्चा पैदा होता था, उसे हरिजन कहते थे। इसीलिए हरिजन एक गाली है।

अंग्रेजों ने अधिनियम 11 के तहत शूद्रों (ओबीसी, एससी, एसटी) को 1795 ईस्वी में संपत्ति रखने का अधिकार दिया था।

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 330/342 के अनुसार, भारत के एससी/एसटी/ओबीसी हिन्दू नहीं हैं। ये भारत के मूल निवासी हैं। संविधान में INDIA that is BHARAT का स्पष्ट रूप से उल्लेख है।

(लेखक सामाजिक न्याय चिंतक और भारतीय ओबीसी महासभा के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं।)

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