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ग्राउंड रिपोर्ट

मिर्ज़ापुर : हर घर नल जल योजना के दावे के बावजूद लोग पानी के लिए भटक रहे हैं

हर घर नल जल का वर्तमान देखकर यही कहा जा सकता है कि राजनीतिक घोषणाएँ और सरकारी दावे एक तरफ लेकिन वास्तविकता बिलकुल दूसरे ढंग से अपनी कहानी कहती है। मिर्ज़ापुर जिले के ग्रामीण इलाकों में पानी को लेकर कहीं कतार लगानी पड़ रही है तो कहीं पहाड़ों की खाक छाननी पड़ रही है। भीषण गर्मी के बीच महिलाओं को दो-दो, तीन-तीन किलोमीटर दूर से पानी लाकर चूल्हा-चौका करना पड़ रहा है।

दो साल पहले की बात है। मिर्ज़ापुर जिले के सिटी विकासखंड के गाँवों में स्वच्छ पेयजल आपूर्ति के लिए ग्रामसभाओं में पांच महिलाओं को पानी की गुणवत्ता परीक्षण के लिए टेस्ट किट दी गई थी। इसका उद्देश्य था घरों तक पहुंचने वाले पानी की गुणवत्ता की जांच की जाय जिससे अगर उसमें दूषित तत्व मिलें तो उनका शोधन किया जा सके। लेकिन कुछ ही समय बाद यह काम ठप्प पड़ गया और महिलाओं के पास रखी ये टेस्ट किट एक्सपायर हो गईं।

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रेखा देवी

इन महिलाओं में शामिल रेखा देवी और पार्वती का कहना है कि ‘पानी टेस्ट के लिए किट दी गई थी। कुछ घरों में हम लोगों ने पानी को टेस्ट किया, लेकिन उस काम के एवज में हमको कोई भुगतान नहीं किया गया इसलिए टेस्ट को वहीं पर ही रोक दिया गया। इससे गांवों के नलों और तालाबों के पानी का टेस्ट नहीं हुआ। मानक के अनुसार इस टेस्ट में पास हुये बिना आगे कनेक्शन नहीं दिया जाना था। इसके बावजूद कनेक्शन किए जा रहे थे।’

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पार्वती देवी

महिलाओं ने आरोप लगाया था कि ‘जब हम लोगों ने अपने भुगतान के लिए जब बात की तब  कोई अधिकारी बोलने को तैयार नहीं हुआ कि हमें भुगतान होगा या नहीं। हमको लगा कि छोटा साहब से काम नहीं होगा तो बड़ा साहब से कहें लेकिन वहाँ भी इस मामले में कुछ नहीं हुआ।’

सिटी ब्लॉक के भोड़सर ग्राम सभा की महिलाओं ने इस बात का खुलासा करते हुए तब हड़कंप मचा दिया था। इस पर संबंधित विभाग के अधिकारियों ने जवाबदेही से बचने के लिए पर्दा डालना शुरू कर दिया था। महिलाओं ने आरोप लगाते हुए कहा था कि ‘यह केवल सिटी विकास खंड या भोड़सर ग्रामसभा का हाल नहीं है, बल्कि पूरे जिले में इसी तरह से जांच कराई गई और कोई भुगतान नहीं किया गया।’

यह हर घर नल जल योजना की मिर्ज़ापुर जिले की एक बानगी है। अख़बारी नज़रिये से देखें तो फिलहाल इससे भव्य और दिव्य कोई परियोजना ही नहीं है लेकिन जरा सा कहानी के अंदर घुसेंगे तब पता चलेगा कि कितना बड़ा पोल है। असल में यह योजना मज़ाक बन कर रह गई है। यह तुगलक की राजधानी को दिल्ली से दौलतबाद ले जाने की कहानी लगने लगी है।

मिर्ज़ापुर जिले में पानी के लिए संघर्ष

चार तहसीलों और बारह ब्लॉकों में विभाजित मिर्ज़ापुर जिले की आधी से ज़्यादा ज़मीन पहाड़ी और पथरीली है। यहाँ जीवन पूरी तरह प्रकृति के ऊपर निर्भर है। पानी बरसा तो धान बोया जा सकता है। सूखा पड़ने पर कुछ भी संभव नहीं। इसके दो परिणाम स्वाभाविक हैं। एक तो इन इलाकों में गाँव दूर-दूर और दुर्गम रास्तों पर बसे हैं और दूसरे यह कि वन विभाग द्वारा जंगलों से स्थानीय निवासियों को दूर रखे जाने के कारण ज़्यादातर लोग कुपोषण के शिकार हैं।

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मिर्ज़ापुर शहर के एक मोहल्ले में जल जीवन मिशन के पानी के इंतज़ार में बैठी महिलाएं

जिले में समतल ज़मीन अपेक्षाकृत कम है और यहाँ ज्यादा नजदीक गाँव और आबादी है। नहर की सुविधा है और अगर उनमें पानी आता रहे तो दो से तीन फसलें आराम से उगाई जा सकती हैं। शहर के रूप में मिर्ज़ापुर एक बड़े कस्बे जैसा है।  जिले में अनेक कस्बे हैं। आमतौर पर वे बढ़ते जा रहे हैं। स्थानीय और बाहरी आबादी की बसावट घनी हो रही है।

सन 2001 की जनगणना में जहां आबादी का घनत्व प्रति वर्ग किलोमीटर 476 था वहीं 2011 की जनगणना के अनुसार यह 567 दर्ज किया गया। जिले का कुल क्षेत्रफल 4405 वर्ग किलोमीटर है। जिले की प्रमुख समस्या पानी की उपलब्धता है। ज़्यादातर इलाकों में सूखे की स्थिति रहती है। कुछ नदियों में बरसात के दिनों में पानी रहता है लेकिन बाद में वे प्रायः सूखी रहती हैं।

पेयजल के लिए आमतौर पर कुएँ और हैंडपंप का उपयोग होता है। पहाड़ी इलाकों में मौजूद चुआड़ भी पानी का स्रोत रहे हैं। लेकिन बदलते पर्यावरण ने इन स्रोतों पर गहरा असर डाला है। कुएं वर्ष के कई महीनों तक सूखे रहते हैं और हैंडपंप भी पानी छोड़ देते हैं। कई इलाके तो ऐसे हैं जहां जनवरी से ही पानी चार-पाँच सौ फीट नीचे चला जाता है। कुओं को एक सीमा के बाद गहरा करना संभव नहीं होता। ऐसे में हैंडपंपों की और गहरी खुदाई ही एकमात्र उपाय बचता है।

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हलिया विकास खंड के एक चुआड़ से पानी भरते ग्रामीण

पेयजल की सबसे गंभीर समस्या पहाड़ी इलाकों में देखने को मिलती है। जहां पानी के लिए महिलाओं की कतार लगती है। अक्सर महिलाओं का समूह सिर पर पानी का डिब्बा लिए हुए दिखाई दे जाते हैं। जिले का हलिया ब्लॉक पानी के संकट का एक बड़ा उदाहरण है।

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पानी ढोने का यह दृश्य आम है

मध्य प्रदेश राज्य की सीमा से लगने वाले हलिया विकास खंड के उन गांवों के लोगों को जूझना पड़ रहा है जो पहाड़ी इलाकों से लगे हुए हैं। इनमें कई गांव मध्य प्रदेश सहित प्रयागराज जनपद की सीमा से भी लगे हुए हैं। इसी प्रकार राजगढ़ विकास खंड के वे गांव जो सोनभद्र जिले की सीमा से सटे हुए हैं पानी की समस्या से जूझने को विवश हैं।

क्षेत्र के वरिष्ठ पत्रकार दिनेश सिंह पटेल बताते हैं कि ‘इस एरिया में पानी एक गंभीर चुनौती बना हुआ है। बात चाहे पीने के पानी की हो या खेतों की सिंचाई की यहां के लोगों को दोनों से जूझना पड़ता है। कहने के लिए नहरों का जाल बिछाया गया है लेकिन बिन पानी सभी सूखी पड़ी हुई हैं। कभी समय से नहरों में पानी न आने से किसानों को नहरों में टकटकी लगाए बैठे हुए देखा जा सकता है। ठीक उसी प्रकार से जीवन जीने के लिए पानी को लेकर भी काफी जद्दोजहद करनी पड़ती है।’

प्यास बुझाने के लिए दूषित और मटमैला पानी पीते लोग

मध्य प्रदेश की सीमा से लगने वाले मिर्ज़ापुर के अंतिम छोर पर बसने वाले गांवों में देखा जा सकता है कि किस तरह ऊंची पहाड़ी पर बसे लोग पानी के लिए रतजगा करते हैं। इसके बाद भी पर्याप्त मात्रा में पानी मिल जाना सबकी किस्मत में नहीं होता।

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पहाड़ी इलाके के एक नाले का दूषित पानी पीते हुये ग्रामीण व्यक्ति

हलिया ब्लाक के नौगवां ग्रामसभा के गुरुवान पहरी पर बसे ग्रामीण पहरी के नाले में गड्ढा खोद कर पानी पीने को विवश हैं। बस्ती में लगा हैडपंप एक महीने पहले खराब हो गया, जिसके बाद ग्रामीण गड्ढा खोद कर परिवार का प्यास बुझा रहे हैं।   ग्रामीण  बताते हैं कि महीने दिन पहले हैडपंप खराब हो गया जिसकी सूचना ग्राम प्रधान और ग्राम सचिव को दी गई, लेकिन किसी ने भी उसे सुधरवाने की कोशिश नहीं की। मजबूरन लोग नाले में गड्ढा खोद कर मटमैला पानी पीने लिए विवश हैं। ऐसा कोई पहली बार नहीं हुआ है। जैसे-जैसे गर्मी बढ़ती है, पानी का संकट भी गहरा होता जाता है, जिससे निपटने के लिए ग्रामीण देशी जुगाड़ कर अपनी आवश्यकता पूरी करते हैं। वर्षों के अनुभव के आधार पर उनको पता है कि शिकायत करने के बाद भी सरकारी काम में महीनों लग जाते हैं। लेकिन व्यवस्था सुधारने की  प्रशासनिक पहल शुरू होने तक वे प्यासे रह नहीं सकते। ऐसी स्थिति में ग्रामीण गड्ढे का पानी तक को हलक से नीचे उतार लेते हैं।

हलिया विकास खंड क्षेत्र के कुछ और गांवों में पानी की किल्लत कहर बन कर टूटी है। क्षेत्र के विभिन्न गांवों में जलस्तर नीचे खिसकने से अधिकांश हैंडपंपों ने पानी देना छोड़ दिया है, जिससे ग्रामीणों को पानी के लिए काफी जद्दोजहद करनी पड़ रही है।

हलिया विकास खंड क्षेत्र की कुल आबादी दो लाख सत्तर हजार के करीब है। यहाँ सर्वाधिक संख्या कोल आदिवासियों की है। हलिया ब्लाक में कुल 79 ग्राम पंचायत और 208 गांव हैं। इनमें कई गांव घोर उपेक्षाओं तले कराहते हुए विकास से कोसों दूर हैं।

इसी विकास खंड क्षेत्र के मध्य प्रदेश की सीमा पर स्थित आदिवासी बहुल भैसोड़ बलाय पहाड़ गांव के लोग भीषण पेयजल संकट से जूझ रहे हैं। बीते कई दिनों से टैंकर से पेयजल आपूर्ति बाधित होने पर ग्रामीण नाले का पानी पीने के लिए विवश हैं। तकरीबन 7 हजार की आबादी वाले भैसोड़ बलाय पहाड़ गांव में पेयजल संकट गहरा गया है। ग्राम पंचायत के दक्षिणी छोर पर स्थित छुइलहा बस्ती के करीब 12 घरों के लोग दो सप्ताह से टैंकर से पेयजल आपूर्ति ठप होने पर बस्ती से तीन सौ मीटर दूर छुइलहा पहाड़ी नाले का पानी लाकर पीने को मजबूर हैं।

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टैंकर से पानी की सप्लाई

 ग्रामीण बताते हैं कि ‘गर्मी के शुरुआत के दिनों से ही गांव के अधिकांश हैंडपंपों ने पानी देना छोड़ दिया। गांव में पेयजल संकट को देखते हुए ग्राम पंचायत द्वारा एक टैंकर के माध्यम से पेयजल आपूर्ति की जा रही है लेकिन इतने कम पानी से इस गर्मी में कैसे गुजारा करते हैं इसे हम लोग ही जानते हैं।

गाँव की जानकी देवी, रूपा, भुअरी देवी, सुमन देवी, श्याम कली, जगदीश कोल, पुष्पा देवी, हरिश्चंद्र आदि ने बताया कि  टैंकर का पानी नहीं आ रहा है, जिससे वे लोग नाले का पानी लाकर पीने के लिए विवश हैं। ग्राम प्रधान और सचिव से टैंकर से पानी देने की गुहार लगाई गई है, लेकिन समस्या पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। प्यास बुझाने के लिए नाले का मटमैला पानी ही सहारा बना हुआ है। नाले का पानी पीने से ग्रामीणों में संक्रामक बीमारियों का खतरा बना हुआ है।

मिर्ज़ापुर जनपद के सर्वाधिक समस्याग्रस्त गांव मतवार की पानी की कहानी थोड़ी जुदा है। यहां के ग्रामीणों का आरोप है कि ‘पानी की समस्या से जूझते आ रहे लोगों को समाधान की बजाए गाली सुनने को मिलती है।’

गाँव के निवासी बताते हैं कि हैंडपंप खराब होने की शिकायत लेकर ग्राम प्रधान के पास पहुंचे लोगों को अपमानित होना और अपशब्दों को सहना पड़ा है। एक ग्रामीण ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि ‘जब जनप्रतिनिधि पानी जैसी मूलभूत सुविधाओं को बरकरार नहीं रख सकता तो फिर किस बात का जनप्रतिनिधि और कैसा जनप्रतिनिधि?’

हलिया विकास खंड के खंड विकास अधिकारी (बीडीओ) डॉ राजीव शर्मा पानी के इस संकट के बारे में कहते हैं कि ‘भैसोड़ बलाय पहाड़ गांव में पेयजल संकट को देखते हुए टैंकर से पानी की आपूर्ति की जा रही है।  जबकि ग्राम पंचायत सचिव से पूछा जाएगा कि छुइलहा बस्ती में टैंकर से पानी आपूर्ति क्यों ठप हुई है? साथ ही ग्रामीणों को टैंकर के माध्यम से शुद्ध पेयजल आपूर्ति हेतु ग्राम प्रधान और सचिव को निर्देशित किया जाएगा कि जानकारी देते हुए वह आगे कहते हैं कि पहाड़ी क्षेत्र में पानी का संकट देखते हुए हर संभव प्रयास होता है कि कहीं भी कोई पानी की समस्या से न जूझे। फिर भी कहीं समस्या बनी हुई है तो संज्ञान में आने पर फौरन दूर करने का प्रयास किया जाता है।’

हर घर नल जल योजना

‘जल जीवन मिशन’ अंतर्गत हर घर नल जल परियोजना के तहत सोनभद्र व मिर्जापुर में पाइप लाइन योजना का शिलान्यास नवंबर 2020 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए किया था। इस दौरान उन्होंने उत्तर प्रदेश के विंध्य क्षेत्र के मिर्जापुर और सोनभद्र जिलों में 23 ग्रामीण पाइप पेयजल परियोजनाओं की आधारशिला रखी थी। इन परियोजनाओं से 2,995 गांवों के सभी ग्रामीण घरों में नल जल कनेक्शन उपलब्ध होने का दावा किया गया था। साथ ही दोनों जिलों की लगभग 42 लाख आबादी को लाभ पहुंचाने की बात की गई थी। बताया गया कि इन सभी गांवों में ग्राम जल एवं स्वच्छता समितियां गठित की गई हैं तथा संचालन एवं रखरखाव की जिम्मेदारी इन्हीं पर होगी।

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जल जीवन मिशन के लिए बनाई गई पानी टंकी

‘हर घर नल योजना’ का शुभारंभ करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कार्यक्रम के दौरान गांव की जल एवं स्वच्छता समिति के सदस्यों से बातचीत करते हुए कहा, ‘यह क्षेत्र प्राकृतिक संसाधनों से भरा हुआ है, लेकिन आजादी के बाद से इसे हमेशा नजर-अंदाज किया गया। इस क्षेत्र में कई नदियां होने के बावजूद, यह सूखे के लिए जाना जाता है। हालांकि, इस सरकार ने पानी की कमी की समस्या का समाधान किया और परिणामस्वरूप, आज ‘हर घर जल योजना’ शुरू की गई।’

कार्यक्रम में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ ही केन्द्रीय जलशक्ति मंत्री सहित कई नेता सोनभद्र में मौजूद रहे। इस दौरान दोनों जनपदों में दो साल के भीतर इस परियोजना को पूरा करने का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन साढ़े तीन वर्ष बीतने के बाद पूरा होने को कौन कहे अभी भी यह योजना आधी-अधूरी ही है।

सोनभद्र में इस परियोजना के शिलान्यास के साथ ही तत्कालीन जलशक्ति विभाग एवं जल संसाधन, बाढ़ नियंत्रण, लघु सिंचाई, नमामि गंगे एवं ग्रामीण जलापूर्ति विभाग के मंत्री डॉ महेंद्र सिंह ने पत्रकारों को बताया था कि मिर्जापुर में 9 तथा सोनभद्र में 14 स्थानों पर वाटर ट्रीटमेंट प्लांट लगाकर लोगों के घर घर तक पानी पहुंचाने की योजना है। यह अब तक की सबसे बड़ी परियोजना है। उस वक्त जोर-शोर से सभी पंचायतों व आंगनबाड़ी केंद्रों पर टीवी स्क्रीन लगाकर इस कार्यक्रम का प्रसारण किया गया। तब यूपी के तत्कालीन जलशक्ति मंत्री ने कहा था कि मिर्जापुर और सोनभद्र के लिए यह परियोजना वरदान साबित होगी।

लगातार बढ़ता गया है बजट  

‘हर घर नल जल’ योजना के तहत मिर्ज़ापुर जनपद में अलग-अलग परियोजनाओं को मिलाकर कुल 3,49,966  घरों तक पानी पहुंचाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। मिर्ज़ापुर के तकरीबन 387 गांवों में हर घर नल जल योजना का पानी पहुंचाना है। इन परियोजनाओं पर तकरीबन 72.93 करोड़ की लागत बढ़ी है। जबकि इसके पहले ही तीन परियोजनाओं को रिवाइज्ड बजट जल निगम (ग्रामीण) की ओर से भेजा गया था जिसकी मंजूरी भी पहले ही मिल चुकी है।

जल कल विभाग मिर्ज़ापुर के मुताबिक लेढुकी ग्राम समूह वाइप पेयजल योजना के लिए पूर्व में 225.31 करोड़ से कार्य होना था, लेकिन 43.69 करोड़ रुपए का पुनरीक्षित बजट बढ़ाकर मांग की गई। महादेव ग्राम समूह पाइप पेयजल योजना के लिए पहले 304.90 करोड़ से कार्य होना था, लेकिन इसका भी पुनरीक्षित बजट  29.24 करोड़ रुपए बढ़ाकर भेजा गया, जिसकी मंजूरी अब जाकर मिली है। ऐसे में अब इन दोनों गांव में इन परियोजनाओं के जरिए 387 गांव में पानी जल्द पहुंचने का दावा किया जाता है।

जिले में तकरीबन 6 परियोजनाओं के जरिए हर घर नल जल का पानी पहुंचाने का काम किया जारी है। कार्य अब अंतिम चरण में होना बताया जा रहा है। सभी परियोजनाओं पर 2 हजार करोड़ खर्च हो रहे हैं। इसके माध्यम से 1619 गांवों के करीब 3 लाख 49 हजार 966 लोगों को उनके घर तक पानी पहुंचाने का लक्ष्य है। जिनमें 500 से ज्यादा गांव में अभी भी कमीशनिंग का कार्य चल रहा है।

 जिले में जलकल विभाग के अभियंता (ग्रामीण) राजेंद्र कुमार दावा करते हैं कि ‘कुछ गांवों में कमिशनिंग का कार्य चल रहा है, जल्द ही पानी की आपूर्ति भी टोंटियों के जरिए लोगों के घरों में शुरू कर दी जाएगी।’

वास्तविकता कुछ और है

सरकार हर घर नल जल योजना पर अकेले मिर्ज़ापुर में ही करोड़ों रुपए खर्च कर चुकी है लेकिन योजना पूरी तरह से परवान नहीं चढ़ पाई है। जल जीवन मिशन कार्यक्रम के अन्तर्गत मिर्ज़ापुर के समस्त गांवों में पेयजल आपूर्ति की वास्तविक स्थिति के सत्यापन के लिए 19 जून 2024 को हुई बैठक में समाधान से कहीं ज्यादा समस्याएं और लापरवाही सामने आई। जिलाधिकारी ने सभी संबन्धित पक्षों को निर्देश दिया कि जल आपूर्ति में आनेवाली हर समस्या का तत्काल समाधान करें।

अधिकारियों और विभागीय दावे के उलट जमीनी हकीकत बिलकुल अलग है।  वास्तव में काम होते हुये दिख रहा है लेकिन हो नहीं रहा है। अभी भी ग्रामीण क्षेत्रों- खासकर मिर्ज़ापुर के पहाड़ी इलाकों हलिया, पटेहरा, राजगढ़, मड़िहान, लालगंज, छानबे में पानी की भारी समस्या बनी हुई है और हर घर नल जल योजना अभी तक परवान नहीं चढ़ सकी है।

सरकारी विवरणों के अनुसार राजगढ़ विकास खंड के 161 गांवों, 83 ग्राम पंचायतों में जल जीवन मिशन के तहत पेयजल पाइप लाइन बिछाने का कार्य तेजी से चल रहा है। लोगों को उम्मीद थी कि बरसात होने से पहले पाइप लाइन बिछाने का कार्य पूर्ण कर लिया जाएगा लेकिन वह अभी भी आधा-अधूरा है।

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शहरी इलाके के एक मोहल्ले में कूड़े के पास लगाया गया नलका जिसमें टोंटी ही नहीं है

हलिया विकास खंड में जलजीवन मिशन के तहत 161 गांवों में हर घर नल योजना के तहत कार्य किया जा रहा है, जिसमें धरातल पर केवल साठ गांवों में कार्य पूरा हो पाया है। बाकी गांवों में कार्य प्रगति पर बताया जा रहा है।

गुरुवान पहरी बस्ती में कहने को तो प्रधानमंत्री नल जल योजना का पाइप लाइन बिछ गई है लेकिन कनेक्शन नहीं मिला है न ही टोंटी लगाई गई है। ऐसे में जलशक्ति मंत्री के कथनानुसार यह वरदान कब तक फलित होगा यह कह पाना बहुत मुश्किल है।

संतोष देव गिरि
संतोष देव गिरि
स्वतंत्र पत्रकार हैं और मिर्जापुर में रहते हैं।

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