Saturday, July 27, 2024
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अंतरिम बजट में विकास के ढिंढोरे के बावजूद किसानों और युवाओं के लिए कुछ भी नहीं – प्रियंका गांधी

वाराणसी। लोकसभा चुनाव से पहले सरकार ने अंतरिम बजट पेश करते हुए जहां इसे लोकोन्मुखी बताते हुए किसानों, गरीबों और महिलाओं का हितैषी घोषित किया, वहीं दूसरी तरफ विपक्ष, किसान नेताओं और छात्रों ने इसे वास्तविकता से दूर बताया। समाज के प्रबु़द्धवर्ग के लोगों ने भी कुल मिलाकर इस अंतरिम बजट को हवा-हवाई बताया। वित्त […]

वाराणसी। लोकसभा चुनाव से पहले सरकार ने अंतरिम बजट पेश करते हुए जहां इसे लोकोन्मुखी बताते हुए किसानों, गरीबों और महिलाओं का हितैषी घोषित किया, वहीं दूसरी तरफ विपक्ष, किसान नेताओं और छात्रों ने इसे वास्तविकता से दूर बताया। समाज के प्रबु़द्धवर्ग के लोगों ने भी कुल मिलाकर इस अंतरिम बजट को हवा-हवाई बताया।

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट भाषण कहा कि हमारी 10 साल की सरकार में 25 करोड़ लोग गरीबी से बाहर आए हैं। उनका कहना था कि अगले फाइनेंशियल ईयर यानी 2024-25 में सरकार की कमाई 30.80 लाख करोड़ (उधारी छोड़कर) और खर्च 47.66 लाख करोड़ रुपए रहने का अनुमान है।

वित्तमंत्री ने कहा कि अगले वित्त वर्ष में सरकार को टैक्स कलेक्शन से कुल 26.02 लाख करोड़ मिलने का अनुमान है।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बताया, 10 साल में इनकम टैक्स कलेक्शन तीन गुना बढ़ गया है। मैंने टैक्स रेट में कटौती की है। 7 लाख की आय वालों को कोई कर देय नहीं है। 2025-2026 तक घाटा को और कम करेंगे। राजकोषीय घाटा 5.1% रहने का अनुमान है। कुल 44.90 लाख करोड़ रुपए का खर्च होगा और 30 लाख करोड़ का रेवेन्यू आने का अनुमान है।

पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा, ‘ये बजट विकसित भारत के युवा, गरीब, महिला और किसान पर आधारित है। ये देश के निर्माण का बजट है। इसमें 2047 के भारत की नींव को मजबूत करने की गारंटी है। मैं निर्मला जी और उनकी टीम को बहुत बधाई देता हूं। इसमें भारत की यंग एस्पिरेशन का प्रतिबिंब है।’

प्रियंका गांधी ने की बजट की आलोचना 

कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाद्रा ने शुक्रवार को आरोप लगाया कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अंतरिम बजट पेश करते हुए बेरोजगारी के बारे में एक शब्द नहीं बोला।

प्रियंका गांधी ने ‘एक्स’ पर पोस्ट किया, ‘‘दिन पर दिन महंगाई बढ़ती जा रही है और इसका सबसे ज़्यादा बोझ महिलाएं उठाती हैं। दूसरी तरफ, महिलाओं के खिलाफ अपराध बढ़ रहे हैं और कार्यस्थल पर भी उनके साथ भेदभाव होता है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘सरकारी एजेंसी पीएलएफएस के अनुसार, महिला अस्थायी कामगारों को एक जैसे काम के लिए पुरुषों की तुलना में 48 प्रतिशत कम पैसे मिलते हैं। वहीं, स्थायी महिला कामगारों को पुरुषों के मुकाबले 24 प्रतिशत कम पैसे मिलते हैं।’’

कांग्रेस महासचिव ने कहा, ‘इन परिस्थितियों के बीच, सबसे दुर्भाग्यपूर्ण बात ये है कि इन विसं​गतियों को दूर करने के लिए बजट में कोई बात नहीं की गई।’ उन्होंने आगे कहा, ‘भारत की जनता जिन दो सबसे बड़ी मुसीबतों का सामना कर रही है, वो है बेरोजगारी और महंगाई। केंद्र सरकार के बजट में इन दोनों मुसीबतों से निपटने के क्या उपाय हुए?’

प्रियंका गांधी ने आरोप लगाया, ‘बेरोजगारी सारे रिकॉर्ड तोड़ चुकी है। आईआईएम और आईआईटी जैसे देश के बड़े-बड़े संस्थान प्लेसमेंट की चुनौती से जूझ रहे हैं। बजट में नई नौकरियां सृजित करने और बेरोजगारी से निपटने का न तो कोई विजन है, न कोई योजना। सबसे बड़ा दुर्भाग्य कि वित्त मंत्री जी ने बेरोजगारी पर एक भी शब्द नहीं बोला।’

कांग्रेस महासचिव ने कहा कि इसी तरह, महंगाई से जूझ रही आम जनता को भी इस बजट से निराशा हाथ लगी। उन्होंने कहा, ‘आम गरीब और मध्यम वर्ग पिछले दस सालों से राहत के इंतजार में है। मध्यम वर्ग को कोई टैक्स राहत नहीं दी गई। महंगाई और बेरोजगारी रोक पाने में नाकाम भाजपा सरकार ने हर वर्ग को निराश किया है।’

अंतरिम बजट की बाबत बीएचयू के जाने माने अर्थशास्त्री प्रोफेसर दीपक मलिक कहते हैं इस अंतरिम बजट में किसानों, नौजवानों और समाज के कमजोर वर्ग के लिए कुछ ऐसा नहीं है जिस पर कुछ बात करूं। देखा जाय तो शिक्षा का बजट पहले के मुकाबले कम कर दिया गया। मध्य वर्ग के लिए तो इस बजट में कुछ है ही नहीं। किसानों और नौजवानों के लिए इस बजट में कोई घोषणा नहीं की गई है। किसान इतने दिनों से अपनी फसलों के लिए एमएसपी की मांग कर रहा है लेकिन इस बजट में उसकी कोई गारंटी नहीं है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को लोकसभा चुनाव का भय नहीं है। वह तीन राज्यों में चुनाव जीत चुके हैं। चुनाव से पहले वे हिन्दुत्व के सहारे ही लोकसभा चुनाव की वैतरणी को पार लगाना चाह रहे हैं इसीलिए देश में राम मंदिर का मामला जोरशोर से उछाला जा रहा है।

किसान नेताओं और बुद्धिजीवियों ने बजट को किसान-मजदूर विरोधी बताया 

मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के प्रदेश सचिव हीरालाल यादव ने इस अंतरित बजट को वास्तविता से दूर बताया। वे कहते हैं ‘मोदी किसानों के हित की बात करते हैं लेकिन किसानों की एमएसपी की मांग को आज तक नहीं माने। वे महिलाओं की सुरक्षा की बात करते हैं लेकिन मणिपुर कांड पर आज तक नहीं बोले। युवाओं को रोजगार देने की बात करते हैं लेकिन देश में खाली 10 लाख पदों को अभी तक क्यों नहीं भरा गया। सरकारी संस्थाओं का निजीकरण किया जा रहा है। शिक्षा इतनी महंगी होती जा रही है कि आम आदमी के बच्चे शिक्षा से वंचित हो जाएंगे। सरकारी पदों को खत्म किया जा रहा है।’ हीरालाल यादव आगे कहते हैं कि ‘यह सरकार केवल पूंजीपतियों की हितैषी है और उन्हीं के हित में काम कर रही है। यह सरकार खेती को निजी हाथों में देने की तैयारी में है।’

इस बजट को लेकर प्रधानमंत्री मोदी और वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण के दावे को लेकर बलिया के संयुक्त किसान मोर्चा के नेता बलवंत यादव कहते हैं ‘हालांकि इस बजट को मैंने पढ़ा नहीं है लेकिन इस अंतरिम बजट में इस सरकार से आशा  भी नहीं कर सकते क्योंकि यह सरकार पूरी तरह से नौजवान, किसान और गरीब विरोधी है। यह सरकार दो करोड़ लोगों को रोजगार का वादा करके पकौडे़ तलने की बात करती है। यह सरकार केवल पूंजीपतियों की है और उन्हीं के हित में काम कर रही है।’

देवरिया के शिक्षा अधिकार मंच के नेता चतुरानन ओझा बजट की बाबत कहते हैं कि ‘यह सरकार किसान और नौजवान विरोधी है। इस अंतरिम बजट में किसानों और युवाओं के लिए कुछ भी नहीं है। बेरोजगार युवा दर-दर की ठोकर खा रहे हैं। इस सरकार में जो सरकारी संस्थान बचे हुए हैं उनके निजीकरण की कोशिशें लगातार चल रही है। इसकी शुरुआत सरकारी स्कूलों में शुरू भी हो गई है । इस सरकार में गरीब लगातार गरीब होता जा रहा है और अमीर और अमीर।’

वाराणसी के जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता मनीष शर्मा बजट की बाबत कहते हैं ‘इस सरकार के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती रोजगार को लेकर है लेकिन उस पर यह सरकार फेल नजर आ रही है। रोजगार के सवाल पर सरकार चुप्पी साध लेती है। यही नहीं इस सरकार के समक्ष महंगाई की चुनौती मुंह बाए खड़ी है लेकिन उससे निकलने का सरकार के पास कोई ठोस रणनीति नहीं है।’

मनीष आगे कहते हैं कि ‘इस बजट में ऐसा कुछ भी नहीं है जिस पर चर्चा की जाय। यह बजट एड्रेस ही नहीं कर रहा है। अर्थव्यवस्था पर यह सरकार बहस ही नहीं कराना चाहती।’ वे आगे कहते है कि ‘सही मायने में कहा जाय तो यह सरकार केवल लोगों को बरगला रही है। कभी धर्म तो कभी आस्था को हथियार बनाकर यह सरकार युवाओं के भविष्य से खिलवाड़ कर रही है।’ मनीष आगे कहते हैं कि ‘मुझे लगता है सरकार को विश्वास है कि वह राम मंदिर, हिन्दू-मुस्लिम और भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने पर जो काम कर रही है वह सरकार के लिए काफी है उसे अलग से शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार पर काम करने की जरूरत नहीं है।’

वाराणसी के पिंडरा निवासी, वंचित समुदाय से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ता प्रेम कुमार नट इस बजट की बाबत कहते हैं कि जब यह सरकार ही गरीब विरोधी है तो बजट में उनका कहां से ख्याल रखेगी। यह सरकार तो कार्पोरेट हितैषी है और केवल उन्हीं का ख्याल रख रही है। यह सरकार नौजवान और किसान विरोधी है।’ प्रेम कुमार आगे बताते हैं कि ‘अभी पिंडरा में काशी द्वार के नाम पर 10 गांवों के किसानों की 975 एकड़ जमींन ले रही है। गांव के लोगों को इस बाबत नोटिस भी दे दी गई है। यह जमींन बहु फसली उपजाऊ भूमि है। यही नहीं, फूलपुर में अमूल फैक्ट्री के लिए तो यहां के किसानों की जमींने ली गईं लेकिन स्थानीय लोगों को नौकरी के बजाय बाहरी लोगों के अलावा गुजरात के ज्यादातर लोगों को नौकरियां दी जा रही हैं।

आइसा के युवा छात्र सुनील मौर्य अंतरिम बजट की बाबत कहते हैं ‘इस बजट में ऐसा कुछ भी नहीं है जिस पर बात की जाए। किसानों की दृष्टि से देखें तो इस बजट में उनके लिए कुछ भी नहीं है। सरकार की प्राथमिकताओं में किसान और युवा नहीं हैं। आज रोजगार मांगने पर युवाओं को लाठियां मिल रही हैं। दूसरी तरफ किसानोंं की जमींने जबरदस्ती ले ली जा रही हैं और किसान कुछ भी नहीं कर पा रहे हैं। सरकार किसान की समस्याओं को हल करने और युवाओं की रोजगार देने के बजाय मंदिर बनवाने में ज्यादा व्यस्त है। उसी के बल पर वह चुनाव जीतने की भी सोच रही है।

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