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क़ानून न्याय दिलाने के लिए है न कि किसी को फंसाने के लिए

  महिमा कुशवाहा एक तेज-तर्रार और सामाजिक सरोकारों वाली इलाहाबाद हाईकोर्ट की वरिष्ठ अधिवक्ता हैं जो समाज के दबे-कुचले लोगों, पिछड़ों-दलितों, आदिवासियों और अल्पसंख्यकों को न्याय दिलाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। वे पुरुष-वर्चस्व के बावजूद वकालत पेशे में अपनी अलग जगह बनाने में कामयाब हुईं। उन्होंने बीएचयू से एलएलबी करने के बाद 1995 से इलाहाबाद […]

 

महिमा कुशवाहा एक तेज-तर्रार और सामाजिक सरोकारों वाली इलाहाबाद हाईकोर्ट की वरिष्ठ अधिवक्ता हैं जो समाज के दबे-कुचले लोगों, पिछड़ों-दलितों, आदिवासियों और अल्पसंख्यकों को न्याय दिलाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। वे पुरुष-वर्चस्व के बावजूद वकालत पेशे में अपनी अलग जगह बनाने में कामयाब हुईं। उन्होंने बीएचयू से एलएलबी करने के बाद 1995 से इलाहाबाद हाईकोर्ट से वकालत शुरू की। उन दिनों बहुत कम संख्या में महिलाएं इस पेशे में थीं। आमने-सामने की खास मुलाक़ात में उन्होंने अपर्णा के साथ अपने जीवन और पेशे की बहुत सारी बातें साझा की। इसके अलावा यह बातचीत न्याय व्यवस्था के वर्तमान हालात और उसके संकटों पर भी अच्छा प्रकाश डालती है। देखिये इस बेबाक बातचीत में एक अधिवक्ता और उसके सामाजिक सरोकार की कहानी उन्हीं की जुबानी।

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