Saturday, July 5, 2025
Saturday, July 5, 2025




Basic Horizontal Scrolling



पूर्वांचल का चेहरा - पूर्वांचल की आवाज़

होमग्राउंड रिपोर्टबिहार में ‘हर घर नल का जल’ की हकीकत : बरमा गांव...

इधर बीच

ग्राउंड रिपोर्ट

बिहार में ‘हर घर नल का जल’ की हकीकत : बरमा गांव की प्यास

पिछले कई वर्षों से हर घर नल जल योजना की धूम मची हुई है और इसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट के रूप में प्रचारित किया जा रहा है लेकिन वास्तविकता प्रचार के बिलकुल उलट है। लगातार बढ़ते साफ पानी के संकट के मद्देनज़र यह योजना एक मज़ाक बनकर रह गई है। बिहार के लाखों ग्रामीण गंदे और ज़हरीले पानी का इस्तेमाल करने को विवश हैं। गया जिले के बरमा गांव में पानी का कैसा संकट है और सरकार की योजना किस हालत में है इस पर नाज़िश मेहताब की रिपोर्ट।

बिहार सरकार की ‘हर घर नल का जल’ योजना, जिसे 2015 में ‘सात निश्चय’ कार्यक्रम के तहत शुरू किया गया था, एक महत्वाकांक्षी पहल थी। इस योजना का उद्देश्य हर घर तक स्वच्छ और सुरक्षित पेयजल पहुंचाना था, जिससे बिहार के लाखों ग्रामीणों को गंदे और ज़हरीले पानी से छुटकारा मिल सके। लेकिन बरमा गांव की सच्चाई सरकार के इन दावों से बिल्कुल अलग है। यहां के लोग आज भी बूंद-बूंद पानी के लिए तरस रहे हैं, और नल-जल योजना महज एक दिखावा बनकर रह गई है।

सूखते नल, बुझती उम्मीदें 

गया जिले के गुरारू प्रखंड के बरमा गांव में स्थिति इतनी ख़राब हो चुकी है कि लोग पानी के लिए दर-दर भटक रहे हैं। इस गांव के वार्ड 14 में ‘हर घर नल का जल’ योजना के तहत लगाए गए नल पिछले छह महीनों से बंद पड़े हैं। जिस योजना का मकसद गांव वालों को राहत देना था, वही अब उनके लिए एक अधूरी उम्मीद बन गई है।

वार्ड सदस्य अंजय कुमार सिंह बताते हैं किइस योजना के तहत 300 से अधिक घरों को पानी की सुविधा मिलनी थी, लेकिन बोरिंग खराब होने के कारण पानी की सप्लाई पूरी तरह से ठप हो चुकी है। गर्मी का मौसम आने वाला है, लेकिन समस्या का समाधान अब तक नहीं हो पाया है। गांववालों को डर है कि अगर जल्द ही इस समस्या का हल नहीं निकला, तो आने वाले दिनों में स्थिति और भी भयावह हो जाएगी।

गंदा पानी, गंभीर बीमारियां 

 बरमा गांव के ज़्यादातर लोग गरीब मज़दूर और किसान हैं। उनके पास रोज़मर्रा की ज़रूरतों के लिए ही पर्याप्त संसाधन नहीं हैं। पानी के लिए उन्हें दूसरे गांव जाना पड़ता है या फिर कुआं का पानी का इस्तेमाल करना पड़ता है। लेकिन कुआं का पानी दूषित है। यह पानी आर्सेनिक से दूषित है, जो गंभीर बीमारियों का कारण बन सकता है। बरमा गांव के लोग पानी की किल्लत के साथ-साथ गंदे पानी से होने वाली बीमारियों का भी सामना कर रहे हैं।

पहली बार 2002 में बिहार के भूजल में आर्सेनिक की पहचान हुई थी, और तब से यह समस्या बढ़ती ही जा रही है। 2003 में केवल दो जिले इससे प्रभावित थे, लेकिन 2011 तक यह संख्या बढ़कर 18 हो गई।

स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार, बिहार के कई इलाकों में आर्सेनिक युक्त पानी पीने से कैंसर, लिवर की बीमारी और हड्डियों की कमजोरी जैसी समस्याएं तेजी से बढ़ रही हैं। रिपोर्ट्स बताती हैं कि गॉल ब्लैडर कैंसर के सबसे अधिक मामले बिहार में ही सामने आ रहे हैं। ऐसे में बरमा गांव के लोग अनजाने में अपनी जिंदगी को खतरे में डाल रहे हैं।

गांव के अमित बताते हैं किहमें पानी के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है, और जो पानी मिल भी रहा है, वह साफ़ नहीं है। मेरे चाचा को पेट की गंभीर बीमारी हो गई है, डॉक्टर ने कहा कि यह गंदे पानी की वजह से हुआ है। लेकिन हमारे पास कोई और विकल्प ही नहीं है।

सरकारी दावे बनाम हकीकत 

बिहार सरकार ने 2020 में ‘हर घर नल का जल’ योजना के दूसरे चरण की शुरुआत की थी। सरकार का दावा था कि 2020 तक 60% से अधिक काम पूरा हो चुका था , और 2022-23 में इस योजना के लिए ₹1,110 करोड़, जबकि 2024-25 में ₹1,295 करोड़ का बजट निर्धारित किया गया।

इसके अलावा, लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण मंत्री रामप्रीत पासवान ने 2022 में घोषणा की थी कि अगर किसी को पानी की समस्या हो, तो वह टोल-फ्री नंबर 18001231121 पर शिकायत दर्ज करा सकता है , और 12 घंटे के अंदर समाधान किया जाएगा।

लेकिन जब हमने दिए गए टोल फ्री नंबर पर बात करने की कोशिश की तो कॉल ही नहीं लगा, ये व्यवस्था साफ़ दर्शाता है की ज़मीनी स्तर पर योजना का क्या है।

jal jivan mission-gaonkelog

गर्मी में होता है बुरा हाल 

गर्मी का मौसम शुरू होते ही बरमा गांव में संकट विकट हो जाती है। बिना पानी के जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती, लेकिन इस गांव के लोग इसी स्थिति का सामना कर रहे हैं।

गांव की 50 वर्षीय सरस्वती देवी  कहती हैं किहमारा तो यही था कि सरकार ने नलजल योजना दी है तो अब पानी की चिंता नहीं करनी पड़ेगी। लेकिन अब तो यही पानी मिलना बंद हो गया है। हमारे बच्चे प्यासे रहते हैं, कहां से लाएं पीने का पानी?”

इसी तरह रमेश यादव जो पेशे से मजदूर हैं, बताते हैं किमुझे अब 5-10 किलोमीटर दूर जाना पड़ता है सिर्फ़ कुछ बाल्टी पानी भरने के लिए। दिनभर मेहनत करने के बाद जब शाम को पानी के लिए भटकना पड़ता है, तो ऐसा लगता है कि मेहनत का कोई मतलब ही नहीं है। हमारे गांव का विकास सिर्फ़ कागजों पर हुआ है।

बरमा गांव और अन्य प्रभावित क्षेत्रों के लिए सरकार को तुरंत कार्रवाई करनी होगी। जल्द से जल्द बोरिंग की मरम्मत कराई जाए, ताकि नल-जल योजना फिर से चालू हो सके। गांव में टैंकर के जरिए पानी की अस्थायी व्यवस्था की जाए, ताकि गर्मी के दिनों में लोगों को राहत मिल सके। आर्सेनिक युक्त पानी की जांच और शुद्धिकरण के लिए विशेष अभियान चलाया जाए। योजना की नियमित निगरानी हो, ताकि भ्रष्टाचार और लापरवाही को रोका जा सके।

सिर्फ योजना नहीं, एक बुनियादी अधिकार

बरमा गांव का संकट सिर्फ इस एक गांव तक सीमित नहीं है। बिहार के कई इलाकों में ‘हर घर नल का जल’ योजना असफल होती नज़र आ रही है। सरकारी आंकड़ों और वादों की हक़ीक़त ज़मीन पर बिल्कुल अलग है। लोगों को पीने का साफ पानी तक नहीं मिल पा रहा, तो कैसा विकास और कैसी तरक्की?  सरकार को यह समझना होगा कि नल-जल योजना सिर्फ़ एक योजना नहीं, बल्कि लोगों के जीवन से जुड़ा एक बुनियादी अधिकार है।

नाजिश महताब
नाजिश महताब
पटना स्थित युवा पत्रकार हैं।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Bollywood Lifestyle and Entertainment