डीएमके के उदयनिधि स्टालिन के सनातन धर्म सम्बन्धी टिप्पणी के कुछ दिन बाद ही भाजपा ने एक बार फिर हमलावर रुख अख्तियार कर लिया है। इस बार उसके निशाने पर शिवसेना (यूबीटी) के नेता उद्धव ठाकरे हैं, जिन्होंने राम मंदिर से जुड़ा एक बयान देकर उसे आक्रोशित कर दिया है। महाराष्ट्र के पूर्व सीएम उद्धव ठाकरे ने रविवार (10 सितम्बर) को जलगांव में 24 जनवरी को कहा था कि आने वाले दिनों में राम मंदिर का भव्य उद्घाटन होगा। संभावना है कि उद्घाटन के लिए देशभर से भारी संख्या में लोगों को बुलाया जाएगा। सम्भावना है कि सरकार राम मंदिर उद्घाटन के लिए यहां से बसों और ट्रकों में बड़ी संख्या में लोगों को आमंत्रित कर सकती है और समारोह खत्म होने के बाद लोगों के लौटने पर वे गोधरा कांड जैसा कुछ कर सकते हैं!’
उद्धव ठाकरे के इस बयान पर ही भाजपा ने हमलावर रुख अपना लिया है। इस सिलसिले में केंद्रीय मंत्री और बीजेपी नेता अनुराग ठाकुर ने कहा है, ‘उद्धव ठाकरे की सत्ता जब से गई है, तब से वे अनाप-शनाप बयानबाजी कर रहे हैं।’ ठाकुर ने आगे कहा है, ‘उद्धवजी से मेरा सवाल है कि कांग्रेस और उसके सहयोगी दल के नेता हिंदुओं का अपमान, सनातन धर्म की तुलना एचआईवी एड्स, डेंगू, मलेरिया से कर रहे हैं, क्या आप इससे सहमत हैं? क्या ये बाबासाहेब आंबेडकर के संविधान का अपमान नहीं है? क्या ये कांग्रेस और उद्धव ठाकरे को स्वीकार है?’ ठाकरे के बयान पर भाजपा के पूर्व केन्द्रीय मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने कहा है कि ‘मैं बस इतना कहना चाहूँगा कि यह पूरा गठबंधन, जो पीएम मोदी के खिलाफ है, वोट के लिए किसी भी हद तक जा सकता है। मैं भगवान राम से प्रार्थना करना चाहूँगा कि उन्हें कुछ सदबुद्धि दें। ये एक शर्मनाक और अशोभनीय टिप्पणी है। हम इसकी निंदा करते हैं।’
बहरहाल, भाजपा वाले चाहे जितना विरोध करें, सच तो यह है कि उद्धव ठाकरे की चेतावनी में एक तरह से कोटि-कोटि लोगों की भावना का प्रतिबिम्बन हुआ है। हो सकता है, राम मंदिर के उद्घाटन के बाद गोधरा जैसा कांड न हो, पर भाजपा के अतीत को देखते हुए दावे के साथ कहा जा सकता है कि 2024 के लोकसभा चुनाव को दृष्टिगत रखते हुए वह इसके जरिये नफरत की उस राजनीति को तुंग पर पहुँचाने से पीछे नहीं हट सकती, जिसको हवा देकर मोदी-राज में चुनाव दर सफलता अर्जित करती गयी है। चूँकि पहले ही सरकारी संस्थाओं को बेच एवं सवर्णपरस्ती को तुंग पर पहुँचाकर बहुसंख्य लोगों की नज़रों में बेहद अलोकप्रिय बन चुकी भाजपा का इंडिया के उदय के बाद 2024 में सम्भावना अत्यंत क्षीण हो चुकी है तथा 2025 में संघ की स्थापना पर हिन्दू राष्ट्र घोषित करने तथा निजीकरण का बचा-खुचा लक्ष्य पूरा करने के लिए लोकसभा चुनाव जीतना पहले से भी ज्यादा जरुरी हो चुका है। इसलिए वह 2024 में हेट पॉलिटिक्स की सारी हदें, पार कर जाएगी, इसका कयास लगाकर लोग पहले से ही खौफजदा हैं। हर महत्वपूर्ण चुनाव के पहले नफरत की राजनीति को हवा दिए बिना भाजपा रह नहीं सकती। इसका ताजा दृष्टान्त कर्णाटक के ऐतिहासिक चुनाव में हुआ है। इसमें मुसलमानों को ‘आरक्षण के हकमार वर्ग’ में चिन्हित करते हुए हेट पॉलिटिक्स में एक नया एंगल जोड़ा गया था, जिसका असर 2024 में सामने आ सकता है। इसके पहले देश की राजनीति का दिशा तय करने वाले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 में भी इसकी ओर से हेट पॉलिटिक्स को ऊंचाई देते हुए देखा गया था।
यूपी सहित 5 राज्यों के साथ 2024 का लोकसभा चुनाव जीतने की रणनीति के तहत भाजपा कुछेक वर्ष पूर्व अनुच्छेद 370 के खात्मे, सीएए, एनपीआर और एनसीआर के जरिये तयारी कर चुकी थी। इसी मकसद से उसने 2020 के अगस्त में कोरोना के जोखिम भरे दौर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से राममंदिर निर्माण का भूमि पूजन कराया था। इसके पीछे मोदी को हिन्दू-धर्म-संस्कृति के सबसे बड़े उद्धारक नेता की छवि प्रदान करना था। इस दिशा में 13 दिसंबर, 2021 को प्रधानमंत्री द्वारा काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का लोकार्पण एक बहुत ही प्रभावी कदम रहा। इसके जरिये मोदी को मोदी को संभवतः शंकराचार्य से बड़े हिन्दू धर्म के उद्धारक ही छवि प्रदान करने के साथ हेट पॉलिटिक्स को एक नयी उंचाई देने का प्रयास हुआ था। उस अवसर पर मोदी ने यह कहकर एक बड़ा संदेश दे दिया था कि जब-जब औरंगजेब का उभार होता है, संग-संग शिवाजी का भी उदय होता है। इसके जरिये जहाँ उन्होंने औरंगजेब को हिन्दू धर्म संस्कृति का विनाशक चिन्हित किया, वहीं, शिवाजी के उदय की याद दिलाकर खुद को सबसे बड़ा उद्धारक होने का संकेत दे दिया था। इसके बाद तो भाजपा नेताओं में इस दिशा में होड़ ही मच गयी थी।
17 दिसंबर, 2021 को अमित शाह ने लखनऊ में को-ऑपरेटिव बैंक की एक परियोजना का लोकार्पण करते हुए कह दिया था, ‘देश में हिन्दू धर्म को मजबूत करने का विचार केवल प्रधानमंत्री मोदी में आया। किसी अन्य दल ने इस दिशा में सोचा ही नहीं। अन्य दल सिर्फ वोट बैंक के लिए राजनीति करते रहे।’
उसी लखनऊ के रामा बाई आंबेडकर पार्क में लाखों की भीड़ को संबोधित करते हुए शाह ने कहा था, ‘एक ओर अयोध्या में प्रभु रामजी का भव्य मंदिर बनने जा रहा है तो दूसरी ओर श्रीकाशी विश्वनाथ की भव्यता वापस दिलाने का कार्य भी प्रधानमंत्री मोदी कर रहे हैं। हम सबने वर्षों तक प्रभु श्रीराम को तिरपाल के मंदिर में देखा है। आखिर इतने वर्षों तक मंदिर बनाने से किसने रोक रखा था?’ काशी कॉरिडोर के लोकार्पण के पहले उन्होंने 11 दिसंबर को उमिया माता के मंदिर का शिलान्यास समारोह में हिन्दू धर्म के उद्धारक के रूप में मोदी की छवि को चट्खार करते हुए कहा था, ‘हिन्दू आस्था के केन्द्रों को वर्षो तक अपमानित किया गया, उनको महिमा और गरिमा प्रदान करने की परवाह नहीं की गयी। मोदी सरकार सत्ता में आने के बाद हिन्दू आस्था के केन्द्रों की गरिमा बहाल कर रही है।’ लेकिन सिर्फ मोदी की छवि हिन्दू धर्म के उद्धारक के रूप में स्थापित करके नफ़रत की राजनीति को तुंग पर नहीं पहुँचाया जा सकता। इसके लिए जरुरत थी विपक्ष को मुस्लिमपरस्त बताने तथा मुसलमान एवं मुस्लिम शासकों के खिलाफ हिन्दू जन को आक्रोशित करने की। 13 दिसंबर के बाद हेट पॉलिटिक्स को शिखर पर पहुँचाने के लिए यही काम भाजपा व संघ के आनुषांगिक संगठनों के जरिये हुआ। इसके तहत यह बात जोर-शोर से फैलाई गयी कि अखिलेश में जिन्ना का साया और ओवैसी की रूह बसती है। हेट पॉलिटिक्स को तुंग पर पहुँचाने के लिए ही धर्म संसदों से 20 करोड़ मुसलमानों के कत्ले आम का आह्वान किया गया था। इस मकसद से ही शायर अकबर इलाहाबादी को प्रयागराजी किया गया था। नफरत की राजनीति को शिखर प्रदान करने के लिए यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने यूपी चुनाव को 80 बनाम 20 घोषित कर दिया था। यह सच है कि यूपी विधानसभा 2022 में कोई अप्रिय हादसा तो नहीं हुआ, पर नफरत की राजनीति को हवा देने में कोई कमी नहीं की गयी थी।
यह भी पढ़ें…
यूज़ एंड थ्रो के दौर में बहुत कम हो गए चाकू-कैंची पर धार लगानेवाले
बहरहाल, भाजपा ने जो अभूतपूर्व राजनीतिक सफलता अर्जित कर खुद को अप्रतिरोध्य बनाया है, उसके पृष्ठ में आम लोगों की धारणा है कि धर्मोन्माद के जरिये ही उसने सफलता का इतिहास रचा है, जो खूब गलत भी नहीं है। पर यदि और गहराई में जाया जाए तो यह साफ़ नजर आएगा कि उसके पितृ संगठन संघ ने हेट पॉलिटिक्स की सारी पटकथा गुलामी के प्रतीकों की मुक्ति के नाम पर रची है। वैसे तो भारत के चप्पे-चप्पे पर विदेशियों ने गुलामी के प्रतीक खड़े किए हैं, पर संघ के लिए सबसे बड़ा प्रतीक बाबरी मस्जिद रही, जिसकी मुक्ति के लिए उसने भाजपा को सामने रखकर राम जन्मभूमि मुक्ति आन्दोलन छेड़ा। इस मुक्ति अभियान के लिए उसने साधु-संतों के नेतृत्व में राम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति और धर्म स्थान मुक्ति यज्ञ समिति जैसी कई समितियां खड़ी की। इनके प्रयास से सुदीर्घ आन्दोलनों के बाद राम जन्मभूमि मुक्ति अभियान सफल हुआ और 5 अगस्त, 2020 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राम मंदिर निर्माण का भूमि-पूजन किया। अब सामाजिक न्याय की कब्र पर तैयार हो रहे उसी राम मंदिर का लोकसभा चुनाव के कुछ माह पूर्व यानी 24 जनवरी को उद्घाटन होना है। यदि गौर से देखा जाय तो राम मंदिर के भूमि-पूजन से लेकर इसके उद्घाटन तक की निर्भूल परिकल्पना लोकसभा चुनाव 2024 को ध्यान में रखकर की गयी है, ताकि गुलामी के सबसे बड़े प्रतीक की मुक्ति का चुनाव में सदव्यवहार किया जा सके। इस अवसर पर लाखों साधु-संत और राम-भक्त जुटेंगे। इनके विजयोल्लास से न सिर्फ लोकसभा चुनाव के लिए बेहतर माहौल बनेगा, बल्कि इस माहौल में साधु-संतों को बाकी बचे गुलामी के प्रतीकों की मुक्ति लिए प्रेरित किया जा सकेगा, ताकि गुलामी के प्रतीकों की मुक्ति का संघर्ष भविष्य में भी भाजपा के सत्ता का मार्ग प्रशस्त करता रहे। इस क्रम में साधु-संत राम जन्मभूमि मुक्ति की सफलता से उत्साहित होकर लोकसभा 2024 को ध्यान में रखते हुए वाराणसी के ज्ञानवापी और मथुरा श्रीकृष्ण जन्मभूमि मुक्ति आन्दोलन को नई ऊँचाई देकर माहौल को उतप्त करने में पीछे नहीं रहेंगे, इसकी सहज कल्पना की जा सकती है। इससे लोकसभा चुनाव के पूर्व देश का सांप्रदायिक माहौल बुरी तरह बिगड़ सकता है और ऐसे माहौल में कुछ अप्रिय घटनायें सामने आ सकती हैं। शायद इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखकर उद्धव ठाकरे ने राष्ट्र को चेताने का काम किया है।
यह भी पढ़ें…
भूविस्थापितों ने खदान और सायलो पर किया कब्जा, एसईसीएल को करोड़ों का नुकसान
इस बातको ध्यान में रखते हुए अमन-चैन प्रिय अवाम को लोकसभा चुनाव 2024 के लिए मानसिक प्रस्तुति लेनी होगी। इस क्रम में यह नहीं भूलना होगा कि जो गुलामी के प्रतीक भाजपा के लिए सत्ता का मार्ग प्रशस्त करते हैं, उनमें जौनपुर की अटाला मस्जिद, अहमदाबाद की जामा मस्जिद, बंगाल के पांडुआ की अदीना मस्जिद, खजुराहो की आलम-गिरी मस्जिद भी संघ की लिस्ट में हैं, जिनके विषय में भाजपा का दावा है कि वे मंदिरों को ध्वस्त कर विकसित किए गए हैं। बहरहाल, अगर मुसलमान शासकों ने असंख्य मस्जिद और दरगाह खड़े किए तो ईसाई शासकों के सौजन्य से दिल्ली में संसद भवन तो प्रदेशों में विधानसभा भवनों सहित असंख्यक महत्वपूर्ण इमारतों, सड़कों, रेल लाइनों, देवालयों, शिक्षालयों, चिकित्सालयों और कल-कारखानों के रूप में भारत के चप्पे-चप्पे पर गुलामी के असंख्य प्रतीक खड़े किए हैं। ऐसे में संघ-भाजपा गुलामी के एक प्रतीक को मुक्त करेगा तो दूसरे के मुक्ति अभियान में जुट जाएगा। इस तरह मानकर चलना पड़ेगा कि गुलामी के प्रतीकों के मुक्ति-अभियान की रात का अंत नहीं है। यह अनंतकाल तक चलता रहेगा और इसके जोर पर भाजपा अनंतकाल तक सत्ता का मार्ग प्रशस्त करती रहेगी। पुराने संसद भवन की जगह सेंट्रल विस्टा का निर्माण और इंडिया की जगह भारतके नामकरण का मुद्दा गर्माकर भाजपा ने अंग्रेजों द्वारा खड़े किए गए गुलामी के प्रतीकों की मुक्ति का भी अभियान शुरू कर दिया है।
I’vе been exploring foг a little foг ɑny һigh-quality
articles or blog posts іn thіs sort ᧐f
space . Exploring in Yahoo І at lɑst stumbled ᥙpon this site.
Reading tһiѕ іnformation S᧐ i’m hɑppy to convey thаt I have an incredibly ցood uncanny
feeling Ι cаme uρon just what Ӏ needed. I such
a lot for sure will make ⅽertain tⲟ don?t
disregard this site and provides іt a look regularly.
Here is my site … livestab (http://Livestab.com/)