उत्तर प्रदेश की पुलिस के इक़बाल पर 2023 में कई बार सवाल उठे हैं। इसकी मुख्य वजह राज्य पुलिस की मौजूदगी या संरक्षा में हुई हत्याएं हैं। पुलिस की मौजूदगी में चार हत्याओं के बाद से प्रदेश में इस बात का चर्चा शुरू हो गई कि अगर पुलिस की मौजूदगी में ही हत्याएं हो जा रही हैं, तो आम जनता प्रदेश में कितनी सुरक्षित है?
इस साल फरवरी से जून के बीच पुलिस मौजूदगी में उमेश पाल, अतीक अहमद, अशरफ अहमद और संजीव माहेश्वरी उर्फ जीवा की हुई हत्याओं ने कई सवाल खड़े कर दिए। इन हत्याओं के बाद एक समय तो कहा जाने लगा था कि प्रदेश में माफ़िया राज वापस आ गया है।
इन हत्याओं पर कांग्रेस और समाजवादी पार्टी जैसी विपक्षी पार्टियां समय-समय पर प्रदेश की भाजपा सरकार पर हमला करती रही हैं। क़ानून व्यवस्था पर बहस तो प्रयागराज में दिनदहाड़े पुलिस सुरक्षा में हुई उमेश पाल की हत्या के बाद से ही तेज़ हो गई थी।
अपराध की दुनिया से राजनीति में आए पूर्व सांसद अतीक अहमद और उनके भाई अशरफ की हत्या के बाद कहा जाने लगा कि क्या मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की विवादास्पद बुलडोज़र और एनकाउंटर नीति अपराध पर लगाम लगाने में विफ़ल है?
इलाहाबाद से लखनऊ तक
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में योगी आदित्यनाथ के दूसरे कार्यकाल (मार्च 2017 से अब तक) में सरकारी दावे के अनुसार, राज्य की पुलिस ने 183 कथित अपराधियों को एनकाउंटर में मार गिराया। इसके बावजूद सवाल खड़े हो रहे हैं कि अधिकतर मामलों में उत्तर प्रदेश की ‘एनकाउंटर स्पेशल’ पुलिस हत्यारों को सामने देखकर अपनी बंदूक तक बाहर नहीं निकाल पाती है।
प्रदेश सरकार ने अपनी बुलडोज़र कार्रवाई और एनकाउंटर का श्रेय लेने का हमेशा प्रयास किया है। वहीं, विपक्षी पार्टियां लगातार आरोप लगाती आ रही हैं कि मुख्यमंत्री योगी की ‘ठोंक दो’ नीति से क़ानून व्यवस्था और अपराध पर न पहले लगाम लगी थी और न अब।
प्रशासन द्वारा बुलडोज़र की तमाम कार्रवाइयां और एनकाउंटर किए गए, लेकिन सरकार की सख्ती से बेख़ौफ युवकों ने पुलिस की मौजूदगी में चार बार ताबड़तोड़ गोलियां चलाईं। इन घटनाओं की शुरुआत बहुजन समाज पार्टी के विधायक राजू पाल हत्या मामले (2005) में मुख्य गवाह उमेश पाल की 24 फ़रवरी को प्रयागराज में दिनदहाड़े की गई हत्या से हुई।
जिस समय इस सनसनीखेज़ घटना को अंजाम दिया गया, उस समय उमेश पाल पुलिस सुरक्षा में था। सरेआम हुई इस घटना में न सिर्फ़ उनकी जान गई, बल्कि उनके सुरक्षाकर्मी भी मारे गए।
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इस घटना का आरोप उस समय अहमदाबाद की जेल में बंद माफ़िया एवं पूर्व सांसद-विधायक अतीक अहमद, उसके परिवार और गुर्गों पर लगा। मृतक उमेश पाल की पत्नी की शिकायत पर अतीक, उसके भाई अशरफ़, पत्नी शाइस्ता, बेटे असद, शूटर अरमान, गुलाम, गुड्डू मुस्लिम और साबिर समेत नौ लोगों पर मुक़दमा दर्ज किया गया।
इसके क़रीब दो महीने बाद 15 अप्रैल को प्रयागराज में दूसरी बड़ी अपराधिक घटना हुई। माफ़िया और पूर्व सांसद-विधायक अतीक अहमद और उसके भाई ख़ालिद अज़ीज उर्फ़ अशरफ़ की हत्या 15 अप्रैल को पुलिस हिरासत में मीडिया से बात करते समय हो गई, जिसने पूरे प्रदेश में सनसनी फैला दी।
बेख़ौफ अपराधियों ने पुलिस घेरे में घुसकर अतीक और अशरफ पर ताबड़तोड़ गोलियों की बारिश की थी। इस दोहरे हत्याकांड को अंजाम देने वाले अरुण मौर्या, सनी और लवलेश तिवारी इतना बेख़ौफ थे कि उन्होंने मीडिया के कैमरों के सामने करीब 18 राउंड गोलियां चला दी थीं। हत्या को अंजाम देने के बाद अपराधियों ने हिन्दुत्व के नारे ‘जय श्री राम…’ को लगाकर प्रदेश के साम्प्रदायिक सौहार्द को ख़राब करने का प्रयास किया, जिससे ऐसा लगता है कि उनको क़ानून और पुलिस का कोई खौफ़ ही नहीं था।
इस घटना के बाद प्रदेश में विपक्ष ने सरकार पर क़ानून और व्यवस्था संभालने में विफ़ल होने का आरोप लगाया, लेकिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 18 अप्रैल को अपने शासनकाल की उपलब्धियां गिनवाते हुए कहा कि अब कोई पेशेवर अपराधी और माफ़िया किसी को डरा-धमका नहीं सकता है।
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इसके लगभग दो महीने बाद अपराधियों ने एक बार फ़िर सरकारी दावों को चुनौती दी और राजधानी लखनऊ की एक अदालत में गैंगस्टर संजीव महेश्वरी उर्फ़ जीवा की हत्या कर दी गई है। संजीव जीवा सुनवाई के लिए 7 जून को पुलिस हिरासत में अदालत पहुंचा था और इसी दौरान वकील के भेस में आए एक हमलावर ने उसे गोली मार दी। गोली के लगते ही जीवा अदालत परिसर में गिर गया और वहीं उसने दम तोड़ दिया।
हत्याओं में समानताएं
अतीक-अशरफ़ और जीवा की हत्याओं में काफ़ी समानताओं को भी देखा गया है। तीनों की हत्याओं को अपराधियों ने भेस बदलकर अंजाम दिया। पूर्व माफिया अतीक और उसके भाई अशरफ़ की हत्या में तीन हत्यारे शामिल थे, जो ‘पत्रकार’ के भेस में आये थे और जीवा की हत्या करने के लिए अदालत आया हत्यारा वकील के भेष में था, अर्थात काला कोट पहन कर आया था।
प्रयागराज में अतीक-अशरफ़ की हत्या में हत्यारों ने 9 एमएम की ऑटोमेटेड पिस्टल (जिगाना पिस्टल) का इस्तेमाल किया गया था और बताया जाता है कि जीवा हत्याकांड में ‘मैग्नम अल्फा’ 357 बोर की ऑटोमेटेड पिस्टल का इस्तेमाल किया गया। दोनों घटनाओं में हत्यारों ने घटनास्थल से भागने का प्रयास नहीं किया।
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दोनों घटनाओं के किसी बड़े अधिकारी के विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं हुई, केवल कुछ छोटे पुलिसकर्मी सस्पेंड कर दिए गए।
साख पर सवाल
पुलिस सेवा में आला पद पर रहे अधिकारी भी मानते हैं कि इन घटनाओं से पुलिस की साख पर सवाल उठे हैं। उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक सुलखान सिंह कहते हैं कि उमेश पाल की हत्या में सावधानी की कमी साफ़ नज़र आती है, हालाँकि इस घटना में पुलिसकर्मियों की जान भी गई है। लेकिन सुलखान सिंह मानते हैं कि अतीक, अशरफ़ और जीवा, तीनों हत्या के समय मृतक पुलिस सुरक्षा में थे, इसलिए इन घटनाओं की ज़िम्मेदारी भी पुलिस की है, और घटनास्थल पर मौजूद पुलिसकर्मियों के खिलाफ़ सख़्त कारवाई होना चाहिए है।
नौकरशाहों और राजनेताओं का हस्तक्षेप
पूर्व पुलिस महानिदेशक कहते हैं कि पुलिस कार्यों में नौकरशाहों और राजनेताओं के हस्ताक्षेप के कारण पुलिस सुधार सम्भव नहीं हो सके हैं। सुलखान सिंह कहते हैं किसी भी पार्टी की सरकार हो, वह पुलिस सुधार नहीं चाहती है, क्योंकि सभी पार्टियाँ पुलिस को अपने हथियार की तरह उपयोग करती हैं।
पुलिस सरकार की एजेंट
उधर, विपक्षी दल भी इन घटनाओं को लेकर सवाल कर रहे हैं। कांग्रेसी नेता अंशु अवस्थी कहते हैं कि अपराधियों के मन से क़ानून और पुलिस का डर निकल गया है और इसीलिए वह दिनदहाड़े, पुलिस की मौजूदगी में हत्या करते भी नहीं डरते हैं। अवस्थी इसका कारण बताते हुए कहते हैं कि योगी सरकार पुलिस को अपने एजेंट की तरह इस्तेमाल कर रही है, जैसा कि उसने नागरिकता संशोधन क़ानून विरोधी आंदोलन और हाथरस कांड आदि के बाद किया था।
प्रमुख विपक्षी पार्टी सपा का कहना है कि प्रदेश में जंगल राज है और अपराध पर कोई नियंत्रण नहीं है। पार्टी के नेता राजपाल कश्यप कहते हैं कि बुलडोज़र लेकर चलने वाली और एनकाउंटर में माहिर प्रदेश पुलिस अपने सामने हत्याओं को नहीं रोक पा रही है। उन्होंने कहा कि इस समय सरकार सिर्फ़ एक काम कर रही है, अपने विरोधियों को अपराधी घोषित करना और अपने समर्थकों को निर्दोष साबित करना। क़ानून व्यवस्था बनाए रखने में उसकी कोई दिलचस्पी नहीं है।
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