आखिरकार मोहम्मद जुबैर को कल राहत मिली। ‘आल्ट न्यूज’ के संस्थापक व संपादक मोहम्मद जुबैर को कल सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम जमानत दी और उन्हें केवल बीस हजार रुपए का निजी मुचलका भरने को कहा गया। इसके बाद कल ही तिहाड़ जेल में बंद जुबैर को रिहा कर दिया गया। अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने जुबैर के खिलाफ सभी दर्ज मामलों की सुनवाई दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा किये जाने का आदेश दिया। उन्होंने जुबैर द्वारा मामलों को खारिज करने की अपील को भी खारिज किया तथा उन्हें इसके लिए दिल्ली हाईकोर्ट में अपील करने को कहा। साथ ही जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने यह भी कहा कि अब यदि जुबैर के खिलाफ समान तरह का कोई नया मुकदमा दर्ज किया जाता है तब भी उन्हें गिरफ्तार नहीं किया जाएगा।
जुबैर के लिहाज से देखें तो उन्हें बड़ी राहत मिली है। महत्वपूर्ण बात यह कि जस्टिस चंद्रचूड़ ने भी कल कहा कि जुबैर को श्रृंखलाबद्ध कार्यवाहियों के तहत उलझाकर रखा गया। उन्होंने यह भी कहा कि आखिर किसी को ऐसे कब तक जेल के अंदर रखा जा सकता है।
[bs-quote quote=”लेकिन कल जो जुबैर के मामले में सुप्रीम कोर्ट में हुआ वह एक लिहाज से ऐतिहासिक है। ऐतिहासिक इस मायने में कि जस्टिस चंद्रचूड़ ने उत्तर प्रदेश सरकार की इस अपील को खारिज कर दिया कि न्यायालय जुबैर को ट्वीट करने से रोके। उत्तर प्रदेश सरकार के वकील का कहना था कि जुबैर पत्रकार नहीं हैं और वह स्वयं को ‘फैक्ट चेकर’ कहते हैं। उनके ट्वीट से समाज में गलत असर पड़ता है। इस पर जस्टिस चंद्रचूड़ ने जो कहा, वह वाकई एक नजीर ही है। उन्होंने कहा कि ‘हम किसी पत्रकार को लिखने से नहीं रोक सकते हैं।'” style=”style-2″ align=”center” color=”#1e73be” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]
अभी बहुत दिन नहीं हुए जब गुजरात के दलित विधायक जिग्नेश मेवाणी को भी आसाम पुलिस ने ट्वीट करने के आरोप में ही रातों-रात गुजरात जाकर गिरफ्तार किया था। जुबैर पर भी ट्वीट करने के आरोप ही हैं। जिग्नेश के मामले में भी आसाम पुलिस ने लगभग यही आचरण किया। उसने तो जिग्नेश को जेल में बंद रखने के लिए एक महिला पुलिसकर्मी द्वारा झूठा मुकदमा तक दर्ज करवाया। लेकिन बाद में आसाम की निचली अदालत के एक जज ने जिग्नेश को राहत दी और राज्य पुलिस की आलोचना की।
लेकिन कल जो जुबैर के मामले में सुप्रीम कोर्ट में हुआ वह एक लिहाज से ऐतिहासिक है। ऐतिहासिक इस मायने में कि जस्टिस चंद्रचूड़ ने उत्तर प्रदेश सरकार की इस अपील को खारिज कर दिया कि न्यायालय जुबैर को ट्वीट करने से रोके। उत्तर प्रदेश सरकार के वकील का कहना था कि जुबैर पत्रकार नहीं हैं और वह स्वयं को ‘फैक्ट चेकर’ कहते हैं। उनके ट्वीट से समाज में गलत असर पड़ता है। इस पर जस्टिस चंद्रचूड़ ने जो कहा, वह वाकई एक नजीर ही है। उन्होंने कहा कि ‘हम किसी पत्रकार को लिखने से नहीं रोक सकते हैं।’
जस्टिस चंद्रचूड़ के इस एक वाक्य को महसूस करिए और जेलों में बंद डेढ़ दर्जन से अधिक पत्रकारों के बारे में सोचिए, जिनकी अपील निचली अदालतों में पड़ी हैं और कोई सुननेवाला नहीं है। उनके पास इतनी संपत्ति नहीं है कि उनके परिजन सीधे सुप्रीम कोर्ट में अपील कर सकें। जुबैर ने यह सुप्रीम कोर्ट में अपील किया तो सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें राहत दी। लेकिन जो सुप्रीम कोर्ट नहीं पहुंच सकते, वे नहीं पहुंचने का दंड भोग रहे हैं।
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कल देर रात यह कविता जेहन में आयी।
सूअर चरानेवालों,
कपड़े साफ करनेवालों,
गंदी नालियां साफ करनेवालों,
सुलभ शौचालयों को चमकानेवालों,
सड़क बुहारनेवालों,
दफ्तरों में झाड़ू-पोंछा करनेवालों,
मरी हुई गायों का क्रियाकर्म करनेवालों,
मेरा सवाल तुमसे है।
तुम कभी पूछते क्यों नहीं कि
किस बात का जुर्माना भर रहे हो तुम सदियों से?
नवल किशोर कुमार फ़ॉरवर्ड प्रेस में संपादक हैं।
[…] जस्टिस चंद्रचूड़, कृपया अपने इस वाक्य … […]
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