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बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाओं से आज भी वंचित हैं गाँव

अक्सर यह माना जाता है कि कोई भी सरकारी योजनाएं अथवा बुनियादी सुविधाएं देश में एक समान लागू तो की जाती है, लेकिन वह शहरों तक ही सीमित रह जाती है। विकास का पहिया शहरों और महानगरों में ही अटक कर रह जाता है। बात चाहे सामाजिक क्षेत्र की हो, टेक्नोलॉजी के फायदे की बात […]

अक्सर यह माना जाता है कि कोई भी सरकारी योजनाएं अथवा बुनियादी सुविधाएं देश में एक समान लागू तो की जाती है, लेकिन वह शहरों तक ही सीमित रह जाती है। विकास का पहिया शहरों और महानगरों में ही अटक कर रह जाता है। बात चाहे सामाजिक क्षेत्र की हो, टेक्नोलॉजी के फायदे की बात हो, आर्थिक उन्नति का मामला हो या फिर विकास के अन्य रास्ते हों, शहरों से निकल कर ग्रामीण क्षेत्रों तक पहुंचने में उसे दशकों का समय लग जाता है। दूसरी ओर, ग्रामीण क्षेत्र बुनियादी आवश्यकताओं से लगातार वंचित रह जाते हैं। बात अगर देश के दूर-दराज़ ग्रामीण क्षेत्रों की करें तो यह परेशानी और भी अधिक बढ़ जाती है। जहां के निवासियों को स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए भी शहरों का रुख करना पड़ता है। जहां गांव में प्राथमिक अस्पताल तो होते हैं, लेकिन उनमें अक्सर प्राथमिक उपचार की भी सुविधा नदारद होती है।

लेकिन अब बदलते समय में ग्रामीण क्षेत्रों में भी इन सुविधाओं की पहुंच होने लगी है। विशेषकर सड़कों के बन जाने से कई समस्याओं का हल आसानी से निकालना आसान हो गया है। इसमें स्वास्थ्य की सुविधा भी प्रमुख है। पहले की अपेक्षा मौजूदा समय में ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे में काफी सुधार आया है। स्वास्थ्य केंद्र के भवन अच्छे हो गए हैं। कई प्रकार की सुविधाएं मिलनी लगी हैं। लेकिन डॉक्टरों की कमी इन सभी सुविधाओं को बेमानी बना देती है। देश के कई ऐसे ग्रामीण क्षेत्र हैं, जहां केवल इसलिए बेहतर इलाज की सुविधा नहीं मिल पाती है, क्योंकि वहां कोई डॉक्टर नहीं होता है। इसका एक उदाहरण राजस्थान के बीकानेर जिला स्थित बीझरवाली गांव है। जिला हेडक्वार्टर से करीब 30 किमी दूर लूणकरणसर ब्लॉक स्थित इस गांव में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र डॉक्टरों का अभाव झेल रहा है। 400 की आबादी वाले इस गांव का प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र एक एएनएम के भरोसे चल रहा है।

ऐसे में किसी इमरजेंसी के समय गांव वालों को बीकानेर के जिला अस्पताल का रुख करना पड़ता है। आर्थिक रूप से पिछड़े इस गांव के लोगों को केवल डॉक्टरों की कमी से ही नहीं, बल्कि एम्बुलेंस नहीं होने की कमी से भी जूझना पड़ रहा है। इस संबंध में गांव की एक 27 वर्षीय महिला लाली बताती हैं कि गांव के अस्पताल में डॉक्टरों की कमी के कारण सबसे अधिक परेशानी गर्भवती महिलाओं को होती है। जिन्हें प्रसव के दौरान आने वाली समस्या के समय बीकानेर ले जाना पड़ता है। अस्पताल में एंबुलेंस की सुविधा नहीं होने के कारण गांव वालों को निजी वाहन करने पड़ते हैं, जो उनके लिए काफी खर्चीला साबित होता है। लाली बताती हैं कि गांव वालों की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है। ज़्यादातर ग्रामीण दैनिक मज़दूरी या लघु किसान हैं जिनकी आमदनी बहुत कम है। ऐसे में उनके लिए प्राइवेट गाड़ी कर शहर जाना उन्हें साहूकारों का कर्ज़दार बना देता है। वहीं एक ग्रामीण मनीराम मेघवाल बताते हैं कि पहले की अपेक्षा इस गांव के अस्पताल की स्थिति में काफी सुधार आया है। लेकिन अभी भी किसी आपातकाल के समय यहां से किसी प्रकार की मदद नहीं मिल पाती है। विशेषकर प्रसव के दौरान गर्भवती महिलाओं के लिए जिन्हें डॉक्टर की सख्त ज़रूरत होती है, लेकिन उन्हें समय पर मदद नहीं मिल पाती है। जिससे कई बार ऐसी महिलाओं की मौत भी हो चुकी है।

गांव की आशा वर्कर कंचन कहती हैं कि गांव का यह अस्पताल डॉक्टर की कमी से जूझ तो रहा ही है, कई बार दवाइयों की कमी के कारण भी महिलाओं और किशोरियों को परेशानियों का सामना करनी पड़ती है। उन्हें आयरन और कुछ ज़रूरी दवाईयां निजी मेडिकल से खरीदनी पड़ जाती हैं। कई बार पैसे की कमी के कारण महिलाएं ज़रूरत होने के बावजूद समय पर दवाईयां खरीद नहीं पाती हैं, जिसका असर उनकी प्रेगनेंसी पर पड़ता है। अस्पताल में तैनात एकमात्र एएनएम कमलेश बताती हैं कि डॉक्टरों की कमी के कारण वह अक्सर गंभीर स्थिति वाले मरीज़ों को बीकानेर भेज देती हैं, हालांकि वह नॉर्मल डिलेवरी कर देती हैं। लेकिन अस्पताल में एकमात्र बिस्तर होने के कारण कई बार नॉर्मल डिलीवरी वाली महिलाओं को भी वह शहर भेजने के लिए मजबूर हो जाती हैं। इसके अलावा इस अस्पताल में सभी प्रकार के टीकाकरण की सुविधा भी उपलब्ध है, जिसे वह खुद अपनी निगरानी में पूरी करती हैं। कमलेश बताती हैं कि यदि इस अस्पताल में डॉक्टरों की तैनाती हो जाए तो गांव की गरीब महिलाओं को शहर जाकर पैसे खर्च नहीं करने पड़ते।

गांव की सामाजिक कार्यकर्ता हीरा शर्मा बताती हैं कि पहले की अपेक्षा गांव के अस्पताल में काफी सुधार आया है। करीब एक दशक पूर्व गांव की 83 प्रतिशत महिलाओं की डिलीवरी घर पर ही होती थी, जो काफी गंभीर विषय था। सड़कों की खस्ताहाल, सुविधाओं की कमी और आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होने के कारण लोग गंभीर स्थिति में भी घर पर ही प्रसव प्रक्रिया पूरी करवाते हैं, जिससे कई महिलाओं की मौत भी हो जाती थी। लेकिन अब नॉर्मल डिलीवरी के लिए अस्पताल में सभी सुविधाएं उपलब्ध हैं, इसके अलावा यहां संपूर्ण टीकाकरण की सुविधा भी उपलब्ध है। ऐसे में सरकार को नियमित रूप से यहां डॉक्टरों की तैनाती भी करनी चाहिए, ताकि गरीब गांव वालों को शहर जाकर इलाज करवाने का अतिरिक्त आर्थिक बोझ न पड़े। बहरहाल, इस वक़्त राज्य में विधानसभा चुनाव की सरगर्मियां तेज़ हैं, ऐसे में यहां अस्पताल एक चुनावी मुद्दा भी बन सकता है।

(सौजन्य से चरखा फीचर)

आरती बीकानेर (राजस्थान) में सामाजिक कार्यकर्ता हैं।

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