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मीडिया ट्रायल और एकतरफा बयानबाजी कहाँ ले जाएगी देवरिया के इंसाफ को?

राजनीति और समाज में दोनों के मुंहाने पर नजर डाली जाय तो यह समय पिछड़ी जातियों के लिए किसी संक्रमण काल की तरह है। बिहार की जातीय जनगणना ने जहां सामाजिक तौर पर पिछड़ी जातियों को एक सांख्यिकीय बहुलता वाले सामाजिक समूह के रूप में चिन्हित कर दिया है, वहीं उत्तर प्रदेश में पिछड़ी जाति […]

राजनीति और समाज में दोनों के मुंहाने पर नजर डाली जाय तो यह समय पिछड़ी जातियों के लिए किसी संक्रमण काल की तरह है। बिहार की जातीय जनगणना ने जहां सामाजिक तौर पर पिछड़ी जातियों को एक सांख्यिकीय बहुलता वाले सामाजिक समूह के रूप में चिन्हित कर दिया है, वहीं उत्तर प्रदेश में पिछड़ी जाति के लोगों पर लगातार हमले हो रहे हैं। ये हमले प्रत्यक्षतः भले ही सुनियोजित हमले नहीं हैं, पर इनके पीछे सत्ता के समर्थन का रुतबा पुरअसर ढंग से काम कर रहा है, यह कहने में हिचिकिचाहट नहीं होनी चाहिए। पिछड़ी जातियों पर विगत एक सप्ताह में प्रदेश के कई जिलों में जानलेवा हमले किए गए हैं। इन हमलों में एक पक्ष पिछड़ी जाति का है तो दूसरा पक्ष ब्राह्मण समाज से ताल्लुक रखता दिख रहा है।

ब्राह्मण समाज के लिए उत्तर प्रदेश में नैसर्गिक मान्यता है कि वह राज्य की सत्ताधारी पार्टी का समर्थक है और उसी सत्ता के रुतबे पर वह दबंग बना हुआ है। इस मामले में सत्ता की सापेक्षता भी कई बार सतह पर साफ-साफ दिखती है कि वह पिछड़ी जाति को कटघरे में खड़ा करने और सामान्य जाति के बचाव का उपक्रम करती दिखती है। इस मामले में सबसे ज्यादा चर्चित घटना देवरिया जिले की है। जहां 2 अक्तूबर को एक ऐसी घटना घटी जिसने पूरे प्रदेश को हिलाकर रख दिया।

घटना में सबसे पहले यह पहलू सामने आया कि एक ही परिवार के पाँच लोगों समेत छः लोगों की हत्या। पाँच और एक बराबर छः की इस हत्या में पाँच लोग ब्राह्मण समाज के थे और शेष एक पिछड़ी जाति के यादव समाज से। अब सामान्य रूप से पूरी संवेदना का केंद्र पाँच लोगों की मौत की तरफ मीडिया से लेकर सरकारी सिस्टम द्वारा स्थापित किया जाने लगा।

देवरिया में छः लोगों की हत्या के बाद जांच करती पुलिस।

अब इस घटना को थोड़ा स्थिति के अनुरूप देखते हैं कि इतना बड़ा कांड घटित कैसे हुआ? अब तक प्राप्त जानकारी के अनुसार देवरिया के ग्राम लेहड़ा के प्रेमचंद यादव ने घर के बगल के ही ज्ञान प्रकाश दुबे से जमीन खरीदी थी। 2014 में ज्ञान प्रकाश ने जमीन का बैनामा प्रेमचंद यादव के नाम कर दिया था। इसी खरीद को लेकर ज्ञान प्रकाश दुबे के भाई सत्य प्रकाश को आपत्ति थी। यह मामला तब से चल रहा था। सत्य प्रकाश दुबे ने लोन पर एक ट्रैक्टर भी ले रखा था जिसकी किश्त वह नहीं भर पा रहे थे और उसकी RC कट चुकी थी। जानकारी के मुताबिक, इस बात की ख़बर जब प्रेमचंद को हुई तो उन्होंने इसे मामला सुलझाने का एक मुफीद मौका समझा और सुबह-सुबह ही अकेले सत्य प्रकाश दुबे के घर पहुँच गए। घटना के एक चश्मदीद के अनुसार, प्रेमचंद यादव ने सत्यप्रकाश दुबे से कहा कि पंडित जी कोर्ट कचहरी करने, मुकदमा लड़ने से कोई फायदा नहीं है। यह कई पीढ़ी तक चलेगा। आपको रुपये की जरूरत है। हम रुपये दे देंगे, आप कर्ज चुका दीजिए। सुलह कर लीजिए।

इतना सुनते ही सत्यप्रकाश का अहम सामने आ गया और उन्होंने प्रेम को झापड़ मार दिया। संभव है सत्य प्रकाश के हाथ चलाने से प्रेम चंद यादव ने भी हाथ चला दिया हो। पर प्रेमचंद कुछ कर पाते उससे पहले ही किसी ने संभवतः सत्य प्रकाश के पुत्र गांधी ने एक डंडे से प्रेमचंद पर हमला कर दिया। डंडा सर पर लगते ही प्रेमचंद यादव जमीन पर गिर पड़े और उनकी मृत्यु हो गई। जिन लोगों ने यह घटना देखी उन्होंने शोर मचा दिया। शोर सुनकर प्रेम के समर्थक और परिवार के लोग वहाँ पहुंचे और जब जाना कि सत्य प्रकाश दुबे के परिवार ने मिलकर प्रेम चंद की हत्या कर दी है तब वह लोग अपना आपा खो बैठे और सत्य प्रकाश दुबे के परिवार वालों को बेरहमी से पीटने लगे। क्रिया की प्रतिक्रिया के रूप में हुये इस हमले में भीड़ देखते ही देखते उग्र हो गई और सत्य प्रकाश दुबे और उनके परिवार के चार अन्य  सदस्यों की हत्या हो गई। अब अगर इस वाकये पर यकीन किया जाय तो साफ दिखता है कि प्रेमचंद यादव जो कि अब जीवित नहीं हैं वह इस हत्या में कहीं से भी दोषी नहीं हैं और जिन लोगों ने हमला किया उनकी भी कोई अदावत दुबे परिवार से नहीं थी पर अपने करीबी की हत्या देख वह आक्रोश से भर गए और ये सभी हत्याएं उसी आक्रोश का परिणाम बनी।

चालीस मिनट के इस बवंडर में छः लोग मर गए और पूरा राज्य सकते में आ गया। फिलहाल जो रिपोर्टें सामने आ रही हैं उनमें दुबे परिवार द्वारा पहले की गई हत्या को दरकिनार कर यादव समर्थकों द्वारा की गई हत्याओं को आगे रखकर कार्यवाही की जा रही है।

सरकार की कार्यवाही फिलहाल पहले प्रेमचंद यादव के परिवार के खिलाफ ज्यादा सक्रिय तौर पर शुरू की गई थी पर बाद में कार्यवाही की गति धीमी कर दी गई है। अब मुखी मुद्दे से इतर प्रेमचंद के परिवार की राजस्व विभाग द्वारा जांच की जा रही है। इस जांच के अनुसार, प्रेम यादव का मकान खलिहान की भूमि पर बना पाया गया है। इस रिपोर्ट को संज्ञान में लेकर सरकारी जमीन पर बने घरों को तोड़ने के लिए जेसीबी भी बुला ली गई थी पर अज्ञात कारणों से उन मशीनों को मकान पर चलाया नहीं गया, पर राजस्व विभाग द्वारा प्रेमचन्द्र यादव और उनके परिजनों के घर के बाहर शुक्रवार को मकान ध्वस्तीकरण की नोटिस चस्पा कर दी गई। नोटिस के माध्यम से आरोपियों पर जुर्माना लगाने के साथ ही जवाब देने के लिए एक दिन यानी शनिवार तक की मोहलत दी गई और कहा गया कि तय समय के अंदर सरकारी जमीन खाली नहीं की तो प्रशासन का बुलडोजर चल जाएगा। सरकारी जमीन पर आवास बनवाने की वजह से प्रेम यादव पर 31 हजार और चार अन्य आरोपियों पर 39 हजार का जुर्माना लगाया गया है। जुर्माने की राशि जमा करने के लिए शनिवार तक का समय दिया गया था।

फिलहाल, समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने इस घटना को लेकर सरकार पर हमला बोला है। उन्होंने माइक्रोब्लागिंग साइट X पर पोस्ट किया है कि देवरिया कांड में अगर किसी भी पक्ष के साथ अन्याय हुआ तो ये भी एक अपराध होगा। शासन-प्रशासन का दायित्व है कि वो वातावरण को तनावमुक्त करे व रखे और ऐसा कोई भी काम न करे जो माहौल बिगाड़े। शांति की कोशिश का अंत किसी की हत्या या हत्या का प्रतिकार नहीं हो सकता और न ही ऐसी वारदातें किसी सत्ता के लिए सियासी फ़ायदा उठाने का मौका होनी चाहिए। वहीं महान दल के अध्यक्ष केशवदेव मौर्य ने भी मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर निष्पक्ष कार्यवाही की मांग की है और इस बात की तरफ विशेष रूप से ध्यान आकर्षित कराया है कि पिछड़ी जाति की वजह से प्रेम यादव के परिजनों को बेवजह परेशान ना किया जाय।

पिछड़ी जाति के दो नेताओं के ये बयान बताते हैं कि राजनीतिक पार्टियां इस बात को समझ और देख रही हैं कि राजनीति में जातियां पार्टियों में बंट गई हैं और पिछड़ी जाति के नेता भी यह नोटिस कर रहे हैं कि वर्तमान सत्ता सामान्य वर्ग को अपने साथ जोड़े रखने के लिए और उसकी तुष्टीकरण के लिए पिछड़ी जाति के लोगों के साथ न्यायपूर्ण व्यवहार करेगी इस पर संशय है।

इसी घटना को लेकर देवरिया सदर के बीजेपी विधायक शलभमणि त्रिपाठी का स्वर भी देखा जाना चाहिए उन्होंने सख्त लहजे में कहा है कि इस मामले में दोषियों पर ऐसी कार्रवाई होगी की वो नजीर बनेगी। उन्होंने लापरवाही बरतने वाले पुलिस-प्रशासन के अधिकारियों को भी चेतावनी दी है कि वह अपनी करनी का फल भुगतने को तैयार रहें। शलभमणि त्रिपाठी पहले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के मीडिया सलाहाकर भी रहे चुके हैं। उन्होंने अपने फेसबुक पेज पर लिखा है कि माननीय मुख्यमंत्री जी को संपूर्ण घटनाक्रम से विस्तार से अवगत करा दिया गया है। वे स्वयं इस घटना पर नज़र रखे हुए हैं। प्रमुख सचिव गृह संजय प्रसाद, स्पेशल DG प्रशांत कुमार, ADG गोरखपुर अखिल कुमार के भी निरंतर संपर्क में हूं। भूमाफियाओं एवं अपराधियों के विरूद्ध निर्णायक जंग लड़ी जाएगी। वे बचेंगे नहीं। चाहे उन्हें किसी की भी सियासी सरपरस्ती हासिल हो।

यह सीधे तौर पर एक राजनीतिक बयान है और यह बयान प्रदेश के पिछड़ी जाति के लोगों के लिए एक तरह की धमकी है। यह बयान विधायक जी की  ब्राह्मणवादी सोच को दर्शाता हुआ और जातीय पक्षधरता करता है। क्या सिर्फ इसलिए वह इस तरह का बयान दे रहे हैं कि प्रतिक्रिया स्वरूप घटी घटना में दुर्भाग्य से पाँच ब्राह्मण मर गए हैं। यदि प्रेमचंद की हत्या जो ब्राह्मण परिवार द्वारा की गई के बाद गाँव और परिवार के लोग दुबे परिवार पर हमला ना करते तब भी क्या विधायक जी इसी अंदाज में प्रेमचंद के हत्यारों के खिलाफ बोलते। शायद नहीं, क्योंकि प्रेमचंद की तरह पिछड़ी जाति के और लोग भी मारे जा रहे हैं उन पर सत्ता के किसी विधायक का स्वर इस त्वरा के साथ सामने नहीं आया है। क्या उत्तर प्रदेश में न्ययपालिका की अब कोई भूमिका नहीं बची हैं सरकार ही फैसला कर रही है, सरकार ही सजा दे रही है। कोर्ट से पहले मीडिया ट्रायल चल रहा है। मीडिया का भी एक बड़ा हिस्सा हाल के दिनों में किसी राजनीतिक पार्टी की तरह खबर परोसता नजर आ रहा है। यह भारतीय मीडिया की विश्वसनीयता को कमजोर करेगा जो वैश्विक मीडिया के समक्ष पहले से ही निचले पायदान पर है।

देवरिया जैसी जघन्य घटना कानपुर देहात में भी घटी हैं। नवभारत टाइम्स कि खबर के मुताबिक यह घटना गजनेर थाना क्षेत्र की है। शाहजहांपुर निनायां गांव निवासी मोहन शुक्ला के पास पिकअप (लोडर) है। वह रात में पिकअप लेकर लौटा। उसने घर के पास ही रामवीर के घर के सामने खड़ा कर दिया। रामवीर (60) व इनके भाई सत्यनरायन शर्मा (70) ने विरोध किया। इस पर मोहन गाली गलौज करता हुआ चला गया। कुछ ही देर बाद वह परिवार के कई अन्य लोगों के साथ लाठी डंडों से लैस होकर आ गया। सत्यनारायन व रामवीर को लाठी डंडे से पीटना शुरु कर दिया। बुजुर्ग सत्यनारायन की मौके पर ही मौत हो गई जबकि गंभीर रुप से घायल रामवीर ने कानपुर हैलट में दम तोड़ दिया। आरोपियों ने रामवीर की पत्नी मधु, बेटी मीनू, काजल व बेटा संजू समेत छह लोगों को पीटकर घायल कर दिया। इनका कानपुर हैलट में उपचार चल रहा है।

कानपुर देहात मामले में तफ़तीश करती पुलिस।

फिलहाल, पुलिस इस मामले को अपनी तरह से देख रही है, उस पर हम कोई सवाल नहीं उठा रहे हैं पर बढ़ई जाति के दो लोगों की हत्या जब एक ब्राह्मण परिवार द्वारा कर दी जाती है तो सिर्फ पुलिस ही कार्यवाही कर रही है। इस मामले में सत्ता का कोई ब्राह्मण विधायक ताल ठोंक के यह नहीं कह रहा है कि इस घटना पर ऐसी कार्यवाही होगी की नजीर बनेगी। इसी तरह वाराणसी जनपद में भी पिछले महीने एक युवक को सरे राह सकार्पियो सवार लोगों ने रोक कर मार दिया था। वह युवक भी यादव जाति से था और जिन पर आरोप लगा था वह सभी सामन्य वर्ग की ठाकुर जाति से थे।

यह बड़ी घटनाएं हैं जो चर्चित हैं पर एक आम जीवन में यह संघर्ष किसी धौंस की शक्ल में चल रहा है। सत्ता से अपनी करीबी दिखाकर पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक समाज पर दबाव बनाया जा रहा है। इस तरह के माहौल से तात्कालिक तौर पर वोट जुटाये जा सकते हैं पर समाज जिस तरह से विखण्डित हो रहा है और सत्ता जाति से अपनी पहचान कायम कर रही है वह विकास के तमाम प्रतिमान हासिल कर लेने पर भी एक खराब समाज का ही निर्माण करेंगे। फिलहाल आने वाला समय राजनीतिक तौर पर निश्चित रूप से जाति के स्वर को नाद में बदलेगा। जाति की जनगणना और संख्यात्मक हिस्सेदारी के अनुरूप भागीदारी की मांग और तेज होगी। बहुत हद संभव है कि लोकसभा चुनाव -2024 पूरी तरह से जाति के मुद्दों पर केन्द्रित हो जाये। यह एक ऐसा मुद्दा बनता दिख रहा है जिसका विपक्ष को फायदा होता दिख रहा है और सत्ता जिन जातियों के सहारे सत्ता में बने रहने का उपक्रम करती दिख रही है वह जाति संख्या के स्तर पर उस अनुपात में नहीं है जिसके सहारे सत्ता की कुर्सी पर रहा जा सके। अब तक जो जातियाँ सत्ता के साथ खड़ी थी अब जातीय जनगणना और अपनी भागीदारी के अनुरूप हिस्सेदारी की बात वह भी करेंगी। ऐसे में इन जातियों के हक पर पर्दा डालकर या हक पर कुंडली मारकर सत्ता में बने रहना अब ज्यादा संभव नहीं होगा क्योंकि बिहार की जनगणना ने वंचित समाज के सामने भी उनके वजूद और स्थिति का आंकड़ा तो रख ही दिया है।

कुमार विजय गाँव के लोग डॉट कॉम के एसोसिएट एडिटर हैं।

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