कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव, तीन बार के विधायक, अजय कपूर के भाजपा में जाने से कानपुर के सियासी समीकरण बदलते नजर आ रहे हैं। अजय कपूर के भाजपा में जाने से कानपुर लोकसभा सीट पर दावा ठोंक रहे दावेदारों में खलबली है तो अजय कपूर के मूल दल यानी कांग्रेस के लोकसभा टिकटार्थी राहत की सांस लेते नजर आ रहे हैं।
राजनीतिक गलियारों में अजय कपूर के भाजपा का दामन थामते ही यह चर्चा तेज हो गयी है कि कानपुर नगर लोकसभा से कपूर को टिकट मिल सकता है। अजय कपूर के समर्थकों ने यहाँ तक कहा है कि उन्होंने कांग्रेस छोड़कर भाजपा की सदस्यता ही इस शर्त पर ली है कि लोकसभा चुनाव में भाजपा उन्हें ही चुनाव मैदान में उतारेगी। स्वाभाविक है कि ऐसी चर्चाएं भाजपा के उन दिग्गजों की नींद उड़ाने वाली है, जो पूरे विश्वास के साथ भाजपा की सीट पर लोकसभा चुनाव में लड़ने का ताना-बाना बुन रहे हैं। वहीं कांग्रेस से टिकट के दावेदार कांग्रेस मुख्यालय और 10 जनपद की परिक्रमा कर अपनी टिकट पक्की कराने की कवायद में जुट गये हैं।
2017 में हार के बाद भाजपा में जाने की चर्चा थी
निर्दलीय पार्षद के रूप में 1989 में अपना सियासी सफ़र शुरू करने वाले अजय कपूर पहली बार वर्ष 2002 में कांग्रेस की टिकट पर गोविन्द नगर विधानसभा (परिसीमन से पहले) से विधायक चुने गये। इसके बाद वह उसी सीट से 2007 में और बदले परिसीमन में किवदई नगर विधानसभा क्षेत्र से वर्ष 2012में कांग्रेस के टिकट पर विधायक चुने गए, लेकिन वर्ष 2017 में मोदी लहर के चलते विधानसभा में मिली करारी हार के बाद से ही अजय कपूर के दल बदल की पटकथा लिखी जाने लगी थी। हालांकि अजय कपूर के दो भाई पहले ही भाजपा के साथ जा चुके हैं।
कानपुर के राजनीतिक जानकार लोगों की माने तो विधानसभा चुनाव 2017 में अजय कपूर ने कांग्रेस छोड़ सपा में जाने का पूरा मन बना लिया था, लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी टिकट की उनकी शर्त भाजपा नेतृत्व ने नहीं स्वीकारी इसलिए वह भाजपा में नहीं गये। इसके बाद ही कांग्रेस ने उन्हें पहले बिहार का प्रभारी और बाद में राष्ट्रीय सचिव तक की जिम्मेदारी सौंपी। 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले एक बार फिर अजय कपूर के भाजपा में जाने की चर्चाओं ने जोर पकड़ा, लेकिन किन्ही कारणों से भाजपा में उनका सशर्त प्रवेश एक बार फिर नहीं हो सका।
हाल ही में सम्पन्न हुए विधानसभा चुनाव के दौरान अजय कपूर और सपा प्रमुख अखिलेश की मुलाक़ात ने उनके सपा में जाने की चर्चाओं को हवा दी, लेकिन यह भी बस हवा ही साबित हुयी। लेकिन कांग्रेस की दरकती जमीन और उत्तर प्रदेश में चुनाव दर चुनाव हो रहे पतन को देख अपने लिए सुरक्षित सियासी जमीन तलाश रहे अजय कपूर ने अन्ततः भाजपा में अपने भविष्य की तलाश कर लिया है। हालाँकि अभी यह तय नहीं है कि यह दल बदल अजय को एक सुरक्षित राजनीतिक भविष्य देगा या नहीं?
कांग्रेस की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य व पूर्व प्रदेश सचिव विकास अवस्थी का कहना है,‘अजय कपूर के भाजपा में जाने से पार्टी पर कुछ खास प्रभाव नहीं पड़ेगा। उन्होंने व्यक्तिगत हितों को हमेशा पार्टी से ऊपर रखा है। वहीं कांग्रेसी विचारधारा से जुड़े तमाम कार्यकर्ता, जो कपूर के व्यवहार से ख़फ़ा हो घरों में बैठे थे, फिर से सक्रिय होने लगे हैं, इसे कांग्रेस के वर्तमान और भविष्य दोनों के लिए अच्छा ही माना जाएगा।’
कांग्रेस की पारंपरिक सीट अब भाजपा की कैसे?
कभी नरेशचंद्र चतुर्वेदी, आरिफ मोहम्मद खान और श्रीप्रकाश जायसवाल जैसे नेताओं को संसद भेजने वाली कानपुर नगर लोकसभा सीट में ऐसा क्या हुआ कि इसपर पिछले दो लोकसभा चुनावों से भाजपा लगातार जीत दर्ज करा रही है? दरअसल शहरी क्षेत्र की इस सीट पर ब्राह्मण वोटर हमेशा से निर्णायक भूमिका में रहे हैं, जो इस संसदीय क्षेत्र में कुल वोटों का लगभग 40 प्रतिशत हैं। राम मंदिर आंदोलन के समय से यह वोट धीरे-धीरे भाजपा की ओर जाने लगा।
वहीं दूसरी तरफ मोदी लहर में यहां का दलित वोट भी बड़ी तादाद में भाजपा के साथ आ गया। नगर का वैश्य और कायस्थ मतदाताओं का बड़ा वर्ग हमेशा से भाजपा के साथ ही रहा है। इनके साथ ब्राह्मण और दलित मतदाताओं से मिला समर्थन ही इस संसदीय क्षेत्र में भाजपा की लगातार जीत का कारण बन रहा है।
कानपुर में अजय कपूर के आने के सवाल पर भाजपा के क्षेत्रीय अध्यक्ष प्रकाश पाल कहते हैं, ‘तीन बार विधायक रहे अजय कपूर के आने से निश्चित रूप से पार्टी और मजबूत होगी। जबकि कांग्रेस सहित समस्त विपक्ष के लिए यह बड़ा झटका साबित होगा।’
आगामी चुनाव को लेकर दोनों दलों के अपने-अपने तर्क हैं लेकिन वास्तविकता यह है कि अजय कपूर के भाजपा में जाने से भाजपा के वोट प्रतिशत में पहले से बढ़ोतरी होती नज़र आ रही है। पंजाबी समुदाय के अजय कपूर का अपने समुदाय के साथ-साथ सिन्धी समुदाय में खासा प्रभाव है। जिसका लाभ भाजपा को मिल सकता है।
कांग्रेस, सपा के सहयोग से इस सीट पर अजय कपूर को उतार कर भाजपा को पटखनी देने का ख्वाब देख रही थी लेकिन अब इण्डिया गठबंधंन के इरादों पर पानी फिर चुका है। हालांकि इण्डिया गठबंधन में कानपुर नगर लोकसभा सीट कांग्रेस के खाते में गई है लेकिन अभी किसी प्रत्याशी का नाम सामने नहीं आया है। देखना दिलचस्प होगा कि कानपुर में भाजपा को रोकने के लिए कांग्रेस कौन सा चेहरा उतारती है?
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