पटना(भाषा)। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने रविवार को कहा कि बिहार सरकार द्वारा कराए गए जाति सर्वेक्षण के संबंध में कुछ मुद्दे हैं और उन्हें उम्मीद है कि राज्य सरकार इनका समाधान कर देगी। पटना में पूर्वी क्षेत्रीय परिषद की बैठक को संबोधित करते हुए शाह ने बिहार में कराए गए जाति-आधारित सर्वेक्षण के बारे में कहा कि केंद्र सरकार का कभी भी जाति आधारित सर्वेक्षण में बाधा उत्पन्न करने का कोई इरादा नहीं रहा।
बिहार में जाति सर्वेक्षण के बाद, नीतीश कुमार सरकार ने राज्य में सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में वंचित जातियों के लिए आरक्षण 50 से बढ़ाकर 65 प्रतिशत कर दिया और केंद्र से बढ़े हुए आरक्षण को संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल करने का आग्रह किया, ताकि इसे कानूनी रूप से चुनौती नहीं दी जा सके।
गृह मंत्रालय की ओर से जारी बयान के मुताबिक, बैठक में शाह ने कहा कि जब उनकी पार्टी राज्य में सत्ता में थी, तभी उसने जाति आधारित सर्वेक्षण का समर्थन किया था। शाह ने कहा, ‘जाति आधारित सर्वेक्षण के संबंध में कुछ मुद्दे हैं और उम्मीद है कि बिहार सरकार उन्हें हल करने में सक्षम होगी।’
करीब तीन घंटे तक चली बैठक में गृह मंत्री ने कहा कि क्षेत्रीय परिषद की बैठक में 1157 मुद्दों का समाधान किया गया है।
उन्होंने कहा कि क्षेत्रीय परिषद की बैठकों में राजनीतिक मामलों पर मतभेद से बचना चाहिए और उदार तरीके से मामलों को सुलझाने का प्रयास करना चाहिए।
शाह ने कहा कि क्षेत्रीय परिषद की बैठक के एजेंडे में राष्ट्रीय महत्व के कई मुद्दे हैं जिनमें पोषण अभियान के माध्यम से बच्चों में कुपोषण को खत्म करना, स्कूल छोड़ने वाले बच्चों की दर को कम करना, त्वरित विशेष अदालतों (एफटीएससी) का संचालन और महिलाओं और बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों के मामलों का त्वरित निपटान शामिल है। उन्होंने कहा कि इन मुद्दों की हर तीन महीने में मुख्यमंत्री, मंत्री और मुख्य सचिव के स्तर पर समीक्षा की जानी चाहिए।
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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कार्यकाल के दौरान क्षेत्रीय परिषद की बैठकों की संख्या में हुई बढ़ोतरी का जिक्र करते हुए शाह ने बताया कि 2004 से मई 2014 तक क्षेत्रीय परिषदों और इनकी स्थायी समितियों की बैठकों की कुल संख्या मात्र 25 थी और उस दौरान हर वर्ष औसतन 2.7 बैठकें आयोजित हुई, लेकिन जून 2014 से अब तक पिछले नौ वर्षों में, कोविड-19 महामारी के बावजूद, क्षेत्रीय परिषदों और इनकी स्थायी समितियों की कुल 56 बैठकें हुईं और हर साल औसतन 6.2 बैठकें आयोजित हुईं।
उन्होंने कहा कि इस वर्ष अभी तक कुल नौ बैठकें हुई हैं जिसमें क्षेत्रीय परिषदों की चार और स्थायी समितियों की पांच बैठकें शामिल हैं। पूर्वी क्षेत्रीय परिषद में बिहार, पश्चिम बंगाल, ओडिशा और झारखंड राज्य शामिल हैं।
बैठक के दौरान बिहार के मुख्यमंत्री ने कहा, ‘राज्य में सर्वसम्मति से कराए गए जाति आधारित गणना के आंकड़ों के आधार पर भाजपा समेत सभी पार्टियों की सहमति से समाज के सभी कमजोर वर्गों के सामाजिक उत्थान के लिए आरक्षण में इनकी भागीदारी बढ़ाने का निर्णय लिया गया।’
उन्होंने कहा, ‘राज्य में आरक्षण की सीमा 50 से बढ़ाकर 65 प्रतिशत कर दी गई है। इसके लिए कानून पारित हो गया है। सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिए पूर्व से ही 10 प्रतिशत आरक्षण उपलब्ध है। सभी को मिलाकर कुल आरक्षण 75 प्रतिशत हो गया है। हमारी सरकार ने केन्द्र सरकार से आरक्षण के नये कानून को संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल करने का अनुरोध किया है। आशा है केन्द्र सरकार इसे शीघ्र ही संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल करेगी।’
मुख्यमंत्री ने कहा, ‘जाति आधारित गणना में लोगों की आर्थिक स्थिति की जानकारी ली गयी है। सभी जातियों में गरीब परिवार मिले हैं, जिनमें 25.09 प्रतिशत सामान्य वर्ग के, 33.16 प्रतिशत पिछड़े वर्ग के, 33.58 प्रतिशत अति पिछड़े वर्ग के 42.93 प्रतिशत अनुसूचित जाति तथा 42.70 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति वर्ग के लोग गरीब हैं। सभी वर्गों में गरीब परिवारों की कुल संख्या 94 लाख है।’
उन्होंने कहा, ‘गरीब परिवारों को आगे बढ़ाने के लिए इसके एक सदस्य को रोजगार के लिए दो लाख रुपये तक की सहायता की योजना बनायी गयी है और जिन परिवारों के पास आवास नहीं है, उन्हें जमीन खरीदने के लिए दी जाने वाली राशि को 60 हजार रुपये से एक लाख रुपये कर दिया है। मकान बनाने के लिए एक लाख 20 हजार रुपये दिये जायेंगे।’
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उन्होंने कहा, ‘वर्ष 2018 से ‘सतत जीविकोपार्जन योजना’ के तहत अत्यंत निर्धन परिवार को रोजगार के लिए वित्तीय सहायता दी जा रही है। एक लाख रुपये की सहायता राशि को बढ़ाकर दो लाख रुपये कर दिया गया है। इन सब कार्यों में कुल मिलाकर दो लाख 50 हजार करोड़ रुपये लगेंगे, जिसे अगले पांच सालों में पूरा कर लिया जायेगा। यदि केन्द्र सरकार द्वारा बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दे दिया जाए तो हम इस काम को बहुत कम समय में ही पूरा कर लेंगे। हम वर्ष 2010 से ही बिहार के लिए विशेष राज्य के दर्जे की मांग कर रहे हैं।’
बिहार सरकार द्वारा गांधी जयंती 2 अक्तूबर को जाति सर्वे की रिपोर्ट जारी की गई थी। बिहार की जाति गणना की रिपोर्ट आने के बाद देश के अन्य प्रदेशों की विपक्षी पार्टियां भी राज्य और केंद्र सरकार के सामने जाति गणना कराने की मांग उठा रही हैं। राजनीतिक गलियारे में मान जा रहा है कि आगामी लोकसभा चुनाव में जाति गणना और हिस्सेदारी के अनुसार भागीदारी की बात मुख्य मुद्दा बन सकती है। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और विधान सभा नेता विपक्ष अखिलेश यादव लगातार उत्तर प्रदेश में जहां इस सवाल को उठा रहे हैं वहीं तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन जनगणना के साथ ही जाति गणना कराने की मांग कई बार विभिन्न मंचों से उठा चुके हैं।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी भी जाति गणना कराने के साथ हिस्सेदारी के अनुसार भागीदारी की बात कर रहे हैं।
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