Tuesday, July 2, 2024
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ग्रीन क्रेडिट की पहल क्या बचा पाएगी भारत के पर्यावरण को

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 2028 में संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन या संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन यानी COP-28 में COP-33 की मेजबानी भारत में करने का शुक्रवार को प्रस्ताव रखा और लोगों की भागीदारी के माध्यम से ‘कार्बन सिंक’ बनाने पर केंद्रित ‘ग्रीन क्रेडिट’ पहल की शुरुआत की। दुबई में संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन के […]

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 2028 में संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन या संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन यानी COP-28 में COP-33 की मेजबानी भारत में करने का शुक्रवार को प्रस्ताव रखा और लोगों की भागीदारी के माध्यम से ‘कार्बन सिंक’ बनाने पर केंद्रित ‘ग्रीन क्रेडिट’ पहल की शुरुआत की।

दुबई में संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन के दौरान राष्ट्राध्यक्षों और शासनाध्यक्षों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि मैंने हमेशा महसूस किया है कि कार्बन क्रेडिट का दायरा बहुत ही सीमित है, और ये फिलॉसफी एक प्रकार से व्यावसायिक हित से प्रभावित रही है। मैंने कार्बन क्रेडिट की व्यवस्था में सामाजिक जिम्मेदारी का जो भाव होना चाहिए, उसका बहुत अभाव देखा है। हमें होलिस्टिक तरीके से नई फिलॉसफी पर बल देना होगा और यही ग्रीन क्रेडिट का आधार है।

प्रधानमंत्री ने जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने और अनुकूलन के बीच संतुलन बनाए रखने का आह्वान किया और कहा कि दुनिया भर में ऊर्जा परिवर्तन ‘न्यायसंगत और समावेशी’ होना चाहिए। उन्होंने विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन से निपटने में मदद करने के लिए अमीर देशों से प्रौद्योगिकी हस्तांतरित करने का आह्वान किया।

प्रधानमंत्री ‘पर्यावरण के लिए जीवन शैली (लाइफ अभियान)’ की पैरोकारी कर रहे हैं, देशों से धरती-अनुकूल जीवन पद्धतियों को अपनाने और गहन उपभोक्तावादी व्यवहार से दूर जाने का आग्रह कर रहे हैं।

पर्यावरण के लिए कितनी अनुकूल हैं स्थितियाँ

प्रधानमंत्री के इस आग्रह के परिप्रेक्ष्य में भारत की स्थिति को जब हम देखते हैं, तब भारत की स्थिति पर्यावरण के मामले में लगातार खराब होती हुई दिखती है। फिलहाल, इस दिशा में आगे बढ़ते हुए भारत जब इस समिट के तैंतीसवें अध्याय यानी COP-33 का मेजबान भी बनने जा रहा है। तब यह जरूरी सवाल बन जाता है कि COP-33 भारत के लिए सिर्फ एक इवेंट होगा या फिर वहाँ तक पहुँचने से पहले भारत में पर्यावरण को संतुलित बनाने की दिशा में कोई व्यापक प्रभाव भी देखने को मिलेगा। यह सवाल इसलिए महत्वपूर्ण है कि भारत में भी विकास के नाम पर पेड़ों की कटाई बदस्तूर जारी है। नदियों का पानी फैक्ट्रियों से उत्सर्जित होने वाले अपशिष्ट पदार्थ और गंदे नाले की वजह से खतरनाक स्तर तक दूषित हो चुका है।

मार्च 2022 में भारत सरकार द्वारा भारत की पर्यावरण स्थिति रिपोर्ट 2022 के माध्यम से भी इस स्थित की भयावहता देख सकते हैं। यह रिपोर्ट सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरनमेंट और ‘डाउन टू अर्थ’ (पत्रिका) का एक वार्षिक प्रकाशन है। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि दुनिया भर के 192 देशों में से भारत 120वें स्थान पर है। पिछले वर्ष की तुलना में यह 3 पायदान की गिरावट है, क्योंकि पिछले वर्ष भारत 117वें स्थान पर था। इस वर्ष भारत का स्कोर 100 में से 66 है। उपरोक्त वर्णित मोर्चों पर पाकिस्तान को छोड़कर भारत अन्य सभी दक्षिण एशियाई देशों से पीछे है। दक्षिण एशियाई देशों में भूटान 75वें, श्रीलंका 87वें, नेपाल 96वें और बांग्लादेश 109वें स्थान पर है। इस रिपोर्ट के अनुसार, भारत के राज्यों में केरल सबसे ऊपर है, तमिलनाडु और हिमाचल प्रदेश क्रमशः दूसरे और तीसरे स्थान पर हैं। जबकि झारखण्ड व बिहार के प्रदर्शन को सर्वाधिक निराशाजनक बताया गया है।

इस रिपोर्ट के हवाले से यदि देखा जाए तो संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन या संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में भारत हर बार उत्साह के साथ शामिल होता रहा है। हर बार भारत की तरफ से प्रकृति को बचाने के लिए लंबी-लंबी बातें भी कही गई है और इस वैश्विक मंच पर इसकी सराहना भी हुई है, पर जमीनी तौर पर भारत का पर्यावरणीय माहौल में अभी तक कोई सुधार की स्थिति नहीं बनी है। दिल्ली के हालात किसी से छुपे नहीं है और भारत में शुद्ध हवा एवं शुद्ध पानी तक की बात करना बेमानी हो चुकी है।

जलवायु परिवर्तन के महत्वपूर्ण कारक हैं पेड़

यह पूरी दुनिया में मान्य है कि पेड़ ही हैं, जो पृथ्वी के प्रदूषण को ही नहीं बल्कि, जलवायु परिवर्तन के संकट को कम कर सकते हैं। धरती के कार्बन को अवशोषित करने में पेड़ गंभीर भूमिका निभाते रहे हैं, पर विकास की दौड़ में जिस तरह से पेड़ काटे जा रहे हैं, वह जलवायु परिवर्तन के प्रति मानवीय असंवेदनशीलता को साफ तौर पर दर्शाते हैं।

नेचर मैगजीन में प्रकाशित एक रिपोर्ट में बताया गया है कि दुनिया 34 खरब (34,0000 करोड़) पेड़ हैं। इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि धरती पर पेड़ों की संख्‍या अब आधी बची है। बताया गया है कि हर साल दुनिया में 1500 करोड़ पेड़ काटे जा रहे हैं, जबकि इनके बदले महज 500 करोड़ नए पेड़ लगाए जा रहे हैं और इन लगाए जा रहे पेड़ों का बड़ा हिस्सा भी पौधे से पेड़ बनने के क्रम में दम तोड़ देता है।

हमारे देश भारत की बात करें तो साल 2016 से 2019 की अवधि के बीच भारत में कुल 76.72 लाख पेड़ काटे गये थे। संसद में पेड़ कटाई से संबन्धित एक आंकड़ा पेश करते हुये केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा था कि वर्ष 2020-21 में वन (संरक्षण) कानून 1980 के तहत मंत्रालय द्वारा 30.97 लाख पेड़ों को काटने की मंजूरी दी गई थी।

इस आंकड़े को पेश करने के साथ प्रतिपूरक वनीकरण का भी आंकड़ा पेश किया गया था, दरअसल वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 के तहत प्रतीपूरक वनीकरण करना एक अनिवार्य शर्त है, इसलिए पेड़ कटाई के सापेक्ष यह बताना भी जरूरी हो जाता है कि काटे गए पेड़ के अनुपात में कितने पेड़ लगाए गए?

वर्ष 2020-21 में विभिन्न राज्यों में पेड़ों की कटाई के बदले 3 करोड़ 64 लाख 87 हजार पौधे लगाए गए थे। यह कार्य प्रतिपूरक वनीकरण के तहत किया गया था। यह आंकड़े काटे गए पेड़ के अनुपात में अच्छे लगते हैं, पर रोपे गए पौधे पेड़ बनने तक कि स्थिति पहुंचते हैं या नहीं इसका कोई आंकड़ा नहीं होता है। अनुमान के मुताबिक, महज 20 फीसदी पौधे ही पेड़ बन पाते हैं, जबकि 80 फीसदी पौधे देखभाल के अभाव में सूख कर खत्म हो जाते हैं।

भारत के तापमान में भी लगातार वृद्धि दर्ज की जा रही है। स्टेट ऑफ इंडियाज एनवायरमेंट 2023 रिपोर्ट में बताया गया है कि पिछला दशक (2013–2022) भारत का सबसे गर्म दशक था। 2022 पांचवां सबसे गर्म वर्ष दर्ज किया गया था। इस वर्ष औसत तापमान सामान्य (1981-2010 के औसत के मुकाबले) से 0.51 डिग्री सेल्सियस ऊपर रहा।

यह सामान्य नहीं है। इसका मुक़ाबला करना देश के लिए तब तक आसान नहीं होगा जब तक जलवायु परिवर्तन को लेकर सिर्फ इवेंट होते रहेंगे। देश और दुनिया के लिए जलावायु परिवर्तन एक गंभीर चुनौती है जिससे बाहर आने के लिए बहुत ही संवेदनशील होने की आवश्यकता होगी।

फिलहाल, प्रधानमंत्री ने इस निपटने के उपाय के तौर पर ग्रीन क्रेडिट की एक पहल की है, यह धरातल पर कितना स्कारात्मक प्रभाव दिखाएगी यह तो वक्त ही बताएगा।

क्या है ग्रीन क्रेडिट

ग्रीन क्रेडिट एक निर्दिष्ट जीवन शैली की पक्षधरता करता है। जिसका सरोकार पर्यावरण पर सकारात्मक प्रभाव डालना है। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने एक अधिसूचना में कहा, ‘विभिन्न हितधारकों के पर्यावरणीय कार्यों को प्रोत्साहित करने के लिए ग्रीन क्रेडिट के लिए प्रतिस्पर्धी बाजार-आधारित दृष्टिकोण का लाभ उठाने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एक ग्रीन क्रेडिट कार्यक्रम शुरू किया जा रहा है। यह कार्यक्रम LIFE (पर्यावरण के लिए जीवन शैली) अभियान का अनुवर्ती पयास है।

अधिसूचना में आगे कहा गया है कि नया कार्यक्रम स्वैच्छिक है। इसे चार श्रेणियों में विभाजित किया गया है, पहला- वृक्षारोपण, जिसका उद्देश्य पूरे देश में हरित आवरण को बढ़ाने के लिए गतिविधियों को बढ़ावा देना है। दूसरा- जल प्रबंधन, जिसका उद्देश्य जल संरक्षण, जल संचयन और जल उपयोग दक्षता या जल बचत को बढ़ावा देना है, जिसमें अपशिष्ट जल का उपचार और पुन: उपयोग शामिल है। तीसरा है- सतत कृषि जिसका मतलब उत्पादकता, मिट्टी के स्वास्थ्य और उत्पादित भोजन के पोषण मूल्य में सुधार के लिए प्राकृतिक और पुनर्योजी कृषि प्रथाओं और भूमि बहाली को बढ़ावा देना है। अपशिष्ट प्रबंधन का उद्देश्य अपशिष्ट प्रबंधन के लिए चक्रीयता, टिकाऊ और बेहतर प्रथाओं को बढ़ावा देना है, जिसमें संग्रह, पृथक्करण और पर्यावरण की दृष्टि से सुदृढ़ प्रबंधन शामिल है।

इसके साथ वायु प्रदूषण को कम करने और अन्य प्रदूषण उपशमन गतिविधियों तथा मैंग्रोव के संरक्षण और पुनर्स्थापन के उपायों को बढ़ावा देना है। ग्रीन क्रेडिट प्राप्त करने के लिए किसी को वेबसाइट के माध्यम से को पंजीकृत करना होगा। फिर गतिविधि को एजेंसी द्वारा सत्यापित किया जाएगा और उसकी रिपोर्ट के आधार पर प्रशासक आवेदक को ग्रीन क्रेडिट का प्रमाण पत्र प्रदान करेगा। अधिसूचना में कहा गया है कि किसी भी गतिविधि के संबंध में ग्रीन क्रेडिट की गणना वांछित पर्यावरणीय परिणाम प्राप्त करने के लिए आवश्यक संसाधन आवश्यकता, पैमाने की समानता, दायरे, आकार और अन्य प्रासंगिक मापदंडों की समानता पर आधारित होगी।

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