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क्या कांग्रेस के जयचंदों के निकलने-उतरने से पार्टी की नाव भंवर से पार हो जाएगी?

कांग्रेस के प्रवक्ता मोदी को इस बात के लिए धन्यवाद दे रहे हैं कि वह कांग्रेस का कूड़ा-कचड़ा साफ कर रहे हैं। बहरहाल कांग्रेस के लोग भले ही अपने दल के प्रतिक्रियावादी नेताओं के पलायन को कूड़ा-कचड़ा मानकर संतोष कर लें, किन्तु खुद कांग्रेस समर्थक राजनीतिक विश्लेषकों में चिन्ता की लहर दौड़ गई है।

राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय समापन की ओर बढ़ रही है। इन पंक्तियों के लिखे जाने के दौरान वह मोदी के गढ़ मे पहुंच कर दहाड़ रहे हैं और उन्हें सुनने के लिए के लिए विशाल हुजूम उमड़ रहा है। लेकिन गुजरात  पहुँचने के पहले जिस तरह उन्होंने 7 मार्च  को राजस्थान के बांसवाड़ा में नौकरी की 30 लाख रिक्तियां भरने के साथ युवाओं के लिए पहली नौकरी पक्की करने, पेपर लीक से मुक्ति, गिग कर्मियों के लिए सामाजिक सुरक्षा व युवा रोशनी के तहत जिलों में स्टार्ट अप के लिए 5 हजार करोड़ रुपये दिए जाने की घोषणा की, उससे 2024 के चुनावी परिदृश्य के बदलने की घोषणा तमाम राजनीतिक विश्लेषकों ने कर डाली। उनकी युवा न्याय के घोषणा की चर्चा आज भी सोशल मीडिया मे जोरों से जारी है। किन्तु इस के विपरीत राष्ट्रवादी मीडिया में मध्य प्रदेश के पूर्व केन्द्रीय मंत्री और कांग्रेस के कद्दावर नेता सुरेश पचौरी का पूर्व सांसद गजेन्द्र सिंह और संजय शुक्ला के साथ भाजपा का दामन थामना चर्चा के बड़ा विषय बन गया है। कांग्रेस छोड़ने के कारणों पर प्रकाश डालते हुए पचौरी ने कहा है, ’कांग्रेस ने भगवान श्रीराम की प्राण प्रतिष्ठा समारोह का आमंत्रण ठुकराकर अनादर किया, जिससे आघात पहुंचा। मैं भगवान राम का अनादर करने वालों के साथ नहीं रह सकता था क्योंकि मैँ सनातनी हूँ। कांग्रेस में आज जो राजनीतिक और धार्मिक निर्णय हो रहे हैं, वह असहज करने वाले हैं।‘ उनके साथ भाजपा ज्वाइन करने वाले गजेन्द्र सिंह और संजय शुक्ल ने कहा है कि वे पीएम नरेंद्र मोदी के विकास कार्यों और पार्टी की विचारधारा से प्रभावित हैं इसलिए भाजपा से जुड़ रहे हैं।

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बहरहाल भाजपा से जुड़ने वाले सिर्फ पचौरी और शुक्ला ही नहीं है, इनके पूर्व ढेरों पुराने कांग्रेसी पारी छोड़कार भाजपा ज्वाइन कर चुके हैं। लेकिन राहुल गांधी की भागीदारी न्याय, किसान न्याय, युवा न्याय, महिला और श्रमिक न्याय से जुड़ी क्रांतिकारी घोषणाओं की लगातार अनदेखी करने वाली पूरी गोदी मीडिया पचौरियों–शुक्लाओं के पलायन के बाद जोर-शोर से संदेश देने की कोशिश कर रही है कि कांग्रेस के पास मुद्दे नहीं है और राहुल गांधी न तो अपने नेताओं को प्रेरित कर पा रहे हैं और न ही भगदड़ को रोकने में कामयाब हो रहे हैं। साथ में जाति जनगणना जैसा व्यर्थ का मुद्दा का मुद्दा उठा रहे हैं, इसलिए पुराने नेता कांग्रेस छोड़कर अपना भविष्य सुरक्षित करने के लिए भाजपा मे शामिल हो रहे हैं। दरअसल गोदी मीडिया से लेकर पूरी भाजपा ही नहीं खुद कांग्रेस में जन्मजात सुविधाभोगी वर्ग के नेता राहुल गांधी की जाति जनगणना से लेकर पाँच न्याय की घोषणाओं से भयाक्रांत हो गए हैं। उन्हें इस बात का इल्म हो चुका है कि राहुल गांधी आजाद भारत के इतिहास में ऐसी विशुद्ध  सम्पूर्ण क्रांति करने जा रहे हैं जो इसके पूर्व किसी ने सोचा भी नहीं था।

राहुल गांधी आज की तारीख में जाति जनगणना के जरिए भारत की हिस्ट्री में क्रांतिकारी परिवर्तन की सबसे बड़ी लड़ाई लड़ने जा रहे हैं। वह जाति जनगणना को भारत की आजादी, बैंकों के राष्ट्रीयकरण तथा हरित-श्वेत और कंप्यूटर क्रांति की भांति ही सबसे बड़ी क्रांति घोषित कर रहे हैं। इसमें कोई शक नहीं कि जाति-जनगणना भारत में सबसे बड़ी क्रांति साबित होगी। जाति जनगणना के सामने आने के राहुल गांधी सदियों के सामाजिक अन्याय के शिकार: दलित, आदिवासी,पिछड़ों और इनसे धर्मांतरित तबकों को सप्लाई, डीलरशिप, ठेकेदारी, मंदिरों के पुजारियों के साथ वे फिल्म-मीडिया, निजी क्षेत्र की यूनिवर्सिटीज, कंपनियों इत्यादि में हिस्सेदारी दिलाने के साथ धन- संपदा का न्यायपूर्ण बंटवारे की नीति बना सकते हैं । इससे देश में क्रांतिकारी परिवर्तन आ सकता है। उनकी घोषणाओं से दलित, आदिवासी,पिछड़ों और अल्पसंख्यकों मे उस सापेक्षिक वंचना का अहसास भी तुंग की ओर बढ़ता दिख रहा है, जो क्रांतिकारी आंदोलनों मे घी का काम करता है। इससे भारत में लोकतान्त्रिक क्रांति के घटित होने का आसार उभरने लगे हैं।

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सामाजिक आंदोलनों के सिद्धांत पर गहन चिंतन करने वाले विद्वानों का मानना है कि क्रांतकारी आंदोलनों के साथ प्रतिक्रियावादी आंदोलन शुरू होते हैं। क्रांतिकारी और प्रतिक्रियावादी आंदोलन एक-दूसरे के विपरीत हैं। प्रतिक्रियावादी तत्व क्रांतिकारी परिवर्तन पर रोक लगाने के लिए सामान्यतया धर्म और अपनी परंपराओं को हथियार के रूप में इस्तेमाल करने में सर्वशक्ति लगते हैं। यही कारण है जब 7 अगस्त, 1990 को मण्डल की रिपोर्ट प्रकाशित होने के बाद जब हिन्दू धर्म के जन्मजात वंचितों के अभूतपूर्व सशक्तिकरण का मार्ग प्रशस्त हुआ, जन्मजात सुविधाभोगी वर्ग के हितों की चॅम्पियन भाजपा ने राम मंदिर के नाम पर प्रतिक्रियावादी आंदोलन छेड़ दिया। तब परिवर्तन विरोधी साधु-संत, सुविधाभोगी वर्ग के छात्र और उनके अभिभावकों के साथ मीडिया, लेखक-पत्रकार और धन्ना सेठ भाजपा के साथ हो लिए। बाद में भाजपा चुनाव दर चुनाव राम मंदिर का मुद्दा उठा कर अप्रतिरोध्य बनती गई। लेकिन राम मंदिर के जरिए मण्डल से उठी क्रांति को रोकने में भाजपा जरूर सफल हो गई लेकिन आज राहुल की घोषणाओं से जिस तरह 2024 का चुनाव सामाजिक न्याय पर केंद्रित होना शुरू किया है, उससे भारत की चैंपियन प्रतिक्रियावादी दल के अंत का लक्षण दिखने लगए हैं। इससे उसमें हड़कंप मच गई है और प्रधान सेवक पार्टी को हार से बचाने के लिए उद्भ्रांत होकर विपक्ष मे तोड़-फोड़ मचाने से लेकर लेकर संवैधानिक संस्थाओं के दुरुपयोग में  हद से ज्यादे मुस्तैद हो चुके हैं। देश में चल रही चुनावी तैयारियों के मध्य सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अनदेखी कर एसबीआई द्वारा निर्धारित तिथि तक इलेक्ट्रॉल बॉन्ड खरीदने वालों का नाम न बताना तथा चुनाव आयुक्त अरुण गोयल का हतप्रभ करने वाला इस्तीफा उसी की कड़ी है।

बहरहाल राहुल गांधी जाति जनगणना सहित पाँच न्याय के जरिए जो क्रांतिकारी परिवर्तन का नक्शा पेश कर रहे हैं, उसमें खुद उनकी पार्टी के सुविधाभोगी वर्ग के नेता तेजी से प्रतिक्रियावादी तत्व में तब्दील होते जा रहे हैं। इन्हीं प्रतिक्रयावादी तत्वों के कारण मध्य प्रदेश के पिछले विधानसभा चुनाव में राहुल गांधी के प्रयासों पर पानी फिर गया: इन्हीं प्रतिक्रियावादी तत्वों के कारण हिमाचल में कांग्रेस संकटग्रस्त हो चुकी है। कांग्रेस के लोग इससे वाकिफ हैं, इसलिए वे प्रतिक्रियावादी जयचंदों को रोकने में कोई रुचि नहीं ले रहे हैं। उलटे कांग्रेस के प्रवक्ता मोदी को इस बात के लिए धन्यवाद दे रहे हैं कि वह कांग्रेस का कूड़ा-कचड़ा साफ कर रहे हैं। बहरहाल कांग्रेस के लोग भले ही अपने दल के प्रतिक्रियावादी नेताओं के पलायन को कूड़ा-कचड़ा मानकर संतोष कर लें, किन्तु खुद कांग्रेस समर्थक राजनीतिक विश्लेषकों में चिन्ता की लहर दौड़ गई है। वे कह रहे हैं राहुल गांधी तो अपना काम ऐतिहासिक अंदाज में अंजाम दे रहे हैं, लेकिन कांग्रेस संगठन पर हावी प्रतिक्रियावादी तत्वों के कारण राहुल का क्रांतिकारी संदेश जनता तक नहीं पहुंच पा रहा है। ऐसे में भाजपा के विदाई की जमीन तैयार करने के बावजूद क्या राहुल गांधी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और इंडिया को विजय दिला  पाएंगे? इस सवाल का जवाब देते हुए देश के वरिष्ठ पत्रकार श्रवण गर्ग ने 7 मार्च को बांसवाड़ा में युवा न्याय की घोषणा के बाद एक चैनल पर प्रतिक्रिया देते हुए जो कुछ कहा  है, वह काबिले गौर है। उन्होनें कहा था, ’अब राहुल का तूफान थमने को नहीं है। कांग्रेस संगठन में प्रतिक्रियावादी तत्वों की भरमार से जो कमजोरी दिख रही है, उससे कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है। अब समय भी नहीं है कि ऐसे तत्वों से पार्टी को मुक्त किया जाए। अब राहुल की लड़ाई जनता की लड़ाई बन चुकी है। ऐसे में कांग्रेस यदि इस लड़ाई से पीछे भी हट जाए तो भी कोई फर्क  नहीं पड़ेगा। जनता अपनी लड़ाई लड़ लेगी।‘

भारत जोड़ो न्याय यात्रा के जरिए जो तूफान आज राहुल गांधी पैदा कर रहे हैं, कभी ऐसा ही  काम महान फिल्म एक्टर , निर्माता और निर्देशक नन्दमूरी तारक रामाराव(एनटीआर) ने किया था। 1983 के विधानसभा चुनावों के नौ माह पूर्व एनटीआर ने 29 मार्च, 1982 को तेलुगु देशम पार्टी का गठन कर पूरे राज्य का दौरा करने के लिए रथ यात्रा निकाला था। इसके लिए उन्होंने अपनी पुरानी शेवरले वैन को ‘चैतन्य रथं’ नाम के रथ में तब्दील कर दिया था, जिसमें घूमने वाली कुर्सी और टेबल जैसी जरूरी सामग्री और आराम करने की सुविधाएं थीं। एनटीआर उस चैतन्य रथं के ऊपर सवार होकर लोगों को संबोधित और राज्य भर के दौरे के दौरान नोटबुक में जरूरी जानकारियाँ नोट करते जाते। जहां भी उनको बीस लोगों तक की भीड़ दिख जाती, वह अपना रथ रोककर लोगों को संबोधित करना शुरू कर देते। देखते ही वहां सैकड़ों की भीड़ जुट जाती। आजाद भारत में पहली रथ यात्रा निकालने वाले एनटीआर तब सड़क किनारे नहाते, खाते और वहीं लोगों के बीच जाकर बात करते। धीरे-धीरे वह यात्रा इतनी चर्चित हुई कि लोग उन्हें सुनने के लिए 72-72 घंटों तक इंतजार करने लगे थे। वह रथ से उतरते तो महिलाएं उनकी आरती उतारतीं।

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उन्होनें 9 महीने के दौरान 40,000 किलोमीटर की यात्रा की और पूरे राज्य का चार बार चक्कर लगाया। उन्होंने अपनी रथ यात्रा तब रोकी जब जनवरी 1983 में विधानसभा चुनावों की घोषणा हुई। उस रथ यात्रा ने उन्हें ऐसी प्रसिद्धि दिलाई कि  294 सीटों वाली  विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी 201 सीटे जीतने में कामयाब रही। कल्पना किया जा सकता कि नव निर्मित उनकी पार्टी का नौ महीने में कायदे का कोई संगठानिक ढांचा तक खड़ा नहीं पाया होगा, फिर भी वह प्रचंड विजय हासिल करने में सफल रहे। उन्होंने अपनी यात्रा के जरिए तेलुगु लोगों की गरिमा को बहाल करने का अभियान चलाया और सरकार और आम लोगों बीच घनिष्ठ संबंध की वकालत किया था। वह तेलुगुवाली आत्मा गौरव(तेलुगु लोगों का आत्मसम्मान) के नारे के साथ चुनाव में उतरे थे। इसके पीछे आंध्र प्रदेश को तत्कालीन राष्ट्रीय कांग्रेस के भ्रष्ट और अयोग्य शासन से छुटकारा दिलाने की ऐतिहासिक जरूरत पूरा करने की भावना थी।

अब यदि एनटीआर के  यात्रा की तुलना राहुल गांधी की यात्रा से की जाए तो डेढ़ साल के दरम्यान राहुल गांधी ने दक्षिण से उत्तर और पूरब से पश्चिम भारत की दो यात्राएं की हैं।  पहली भारत जोड़ों यात्रा और दूसरी  भारत जोड़ों न्याय यात्रा। एनटीआर के पास तो संगठन नहीं के बराबर था,पर राहुल गांधी की पार्टी का तो पूरे देश में संगठन खड़ा है, भले ही उसमें जयचंदों की भरमार हो। दूसरी बात है राहुल के पीछे ऐसी पार्टी का छाता है, जिसने देश को आजाद कराने से लेकर को असंख्य  स्कूल,कॉलेज, हॉस्पिटल, अनुसंधान केंद्र और सरकारी कंपनियां खड़ी करने का गौरव प्राप्त है: गौरव प्राप्त है दलित आदिवासियों के जीवन में बेहतर बदलाव के साथ उनको मनुष्य के रूप में गरिमा प्रदान करने का। सबसे बड़ी बात है कि एनटीआर के पास सिर्फ तेलुगु गरिमा को बहाल करने और कांग्रेस के अयोग्य व भ्रष्टाचारी शासन निजात दिलाने का मुद्दा था, जबकि राहुल गांधी के पास जितनी आबादी- उतना हक के जरिए वंचितों को शक्ति के समस्त स्रोतों में संख्यानुपात में हिस्सेदारी दिलाने के साथ किसानों ,युवाओं और श्रमिक के जीवन मे सुखद बदलाव का अभूतपूर्व एजेंडा है । दूसरी बात है एनटीआर का लक्ष्य सीएम बनाना था, जबकि राहुल में पीएम का भरपूर मैटेरियल होने के बावजूद निजी सत्ता की कोई चाह ही नहीं हैं। ऐसे में आशावादी हुआ जा सकता है कि राहुल गांधी कमजोर संगठन के बावजूद 1983 के एनटीआर के चुनावी सफलता का इतिहास दोहरा सकते है। अगर किन्हीं कारणों से वह 2024 के चुनाव में सफल नहीं हो पाते हैं तो भी उन्होंने पाँच न्याय के जरिए सुनिश्चित कर दिया है कि आने वाले दिनों में कांग्रेस की एकछत्र सत्ता कायम होने जा रही है । दरअसल भारत जोड़ों यात्रा के दौरान जिस तरह राहुल गांधी का कद एवरेस्ट सरीखा हुआ है; जिस तरह कांग्रेस की एकछत्र सत्ता कायम होने के लक्षण उभरे हैं, उससे खुद इंडिया गठबंधन में शामिल दलों में भारी असुरक्षाबोध पैदा हो गया है। इससे जिस तरह कांग्रेस के प्रतिक्रियावादी नेता पार्टी छोड़ रहे हैं, उस तरह इंडिया में शामिल दल भी राहुल गांधी को अकेला छोड़ने का मन बना सकते हैं। लेकिन इससे बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ने को है, क्योंकि राहुल का तूफान अब थमने वाला नहीं है!

एच एल दुसाध
एच एल दुसाध
लेखक बहुजन डाइवर्सिटी मिशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं.

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