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बिन बिजली सब सून, छोटे उद्यमी और किसान ‘कटौती’ से परेशान

प्रयागराज। प्रदेश में बिजली की अघोषित कटौती चल रही है। नहरें सूखी पड़ी हैं। डीजल 90 रुपये लीटर बिक रहा है। बिजाई (नर्सरी) डालने का समय निकला जा रहा है। पहले ही एक सप्ताह की देरी हो चुकी है। जिन्होंने बिजाई कर भी दिया है, उनकी बेहन गर्मी के कारण ठीक से नहीं आई है […]

प्रयागराज। प्रदेश में बिजली की अघोषित कटौती चल रही है। नहरें सूखी पड़ी हैं। डीजल 90 रुपये लीटर बिक रहा है। बिजाई (नर्सरी) डालने का समय निकला जा रहा है। पहले ही एक सप्ताह की देरी हो चुकी है। जिन्होंने बिजाई कर भी दिया है, उनकी बेहन गर्मी के कारण ठीक से नहीं आई है और जो आई भी है वो पर्याप्त नमी न होने के चलते सूख कर कांटा हो रही है। समय पर बिजली न रहने के चलते सिंचाई नहीं कर पा रहे हैं। वहीं, मवेशियों के लिए बोई गई चरी की पत्तियां बकौल साहित्यकार गुलाबराय ‘ऐंठ-ऐंठकर बातियां बन गयी हैं।’

बाज़ार से धान का बीज ख़रीदकर लौट रहे एक बुजुर्ग किसान बहुत मायूस होकर बताते हैं कि अभी उन्होंने बिजाई नहीं किया है। सरकार और ईश्वर दोनों से नाराज़गी जाहिर करते हुए वह कहते हैं- “आसमान से अंगरा बरस रहा बा और यही मा सरकारौ मरत अहै। लागत अहै एहू सीजन के धान न बोआय पाये। जब बेहनै न पड़े तौ धान कहां से लागे। अउर जौ बाजरा मक्का, योगी के मारे न बचिहें किसानन कै तौ हर तरह से हानि बा।”

बाजार से धान-बीज खरीदकर लौटे किसान ने बताई अपनी व्यथा

खेत तैयार करने में जुटे नरई ग्रामसभा का एक किसान बताता है कि बिजली देर-सवेर, कट-पिटकर चार-छह घंटे के लिए आ भी रही है तो वोल्टेज बहुत कम रहता है। तीन फेस वाले पम्पिंगसेट तो चल ही नहीं पाते। मोनो ब्लॉक भी पानी नहीं उठा रहे। छोटी जोत वाले किसान मशीनों से भू-जल निकालकर खेत भर रहे हैं। लेकिन बिजली लगातार नहीं आती कि उससे भी बिजाई के लिए खेत तैयार हो सकें।

वहीं दूसरी ओर, नहरें भी सूखी पड़ी हैं। अमूमन अगेती क़िस्म के धान की नर्सरी मई महीने की आखिरी सप्ताह में ही डाली जाती है। जबकि लम्बी अवधि के धान की प्रजातियों की नर्सरी जून के पहले और दूसरे सप्ताह तक हर हाल में डाल ली जाती हैं। इससे देर करके नर्सरी डालने पर पैदावार पर असर पड़ता है। अमूमन अगेती क़िस्म के धान की रोपाई किसान उन खेतों में करते हैं, जिन्हें अक्टूबर तक खाली करके आलू आदि की फसल उगानी होती है। लेकिन आज यानी 17 जून तक नहर सूखी पड़ी हैं। ऐसे में नर्सरी सही समय पर नहीं पड़ पा रही है। आनापुर रजबहा, इलाहाबाद रजबहा, भदरी रजबहा और बेरावां माइनर, मोहरब माइनर, अंधियारी माइनर, कोरारी माइनर, सस्वतीपुर माइनर आदि नहरों में विगत तीन महीनों से जलापूर्ति ठप है। बिजली का हाल यह है कि मानों वो आंख मिचौली खेल रही हो।

नर्सरी के लिए महंगा पानी ख़रीदने को विवश हैं किसान

एक काश्तकार बताते हैं कि एक डीजल इंजन एक घंटे में एक लीटर डीजल पीता है। डीजल इस समय 90 रुपये लीटर है। तो जिनके पास अपना खुद का भी इंजन है, उन्हें भी इंजन से सिंचाई करने पर 100 रुपये का खर्च प्रति घंटे के दर से आ रहा है। जो किसान पैसे देकर सींच रहे हैं, उन्हें 150 रुपये प्रति घंटे की दर से पैसा देना पड़ रहा है।

छोटे उद्योग भी प्रभावित

महाजन पटेल, सजीवन, बबलू आदि ने शहर में नवनिर्मित घर में वॉयरिंग का ठेका लिया है। महाजन कहते हैं कि ठेके पर काम लिया है, लेकिन बिजली ने रुला दिया है। बिजली न आने से पूरा-पूरा दिन बेकार चला जाता है। कुछ भी काम नहीं होता।

बिजली कटौती से ग्रामीण इलाकों के छोटे उद्योगकर्मी भी परेशान हैं। आलोक कुमार की प्रिटिंग की दुकान है। जहां वो शादी ब्याह, तेरही, जन्मदिन आदि के कार्ड, स्कूलों के विज्ञापन होर्डिंग बैनर आदि प्रिंट करते हैं। वह बताते हैं कि सारा दिन बिजली नहीं रहने से उनका कारोबार बहुत प्रभावित हो रहा है, लोग-बाग शहर ले जाकर कार्ड छपवा रहे हैं। बड़े दुकानदार जेनरेटर रखते हैं। यहां तो इनवर्टर बैटरी रख लिया, वही बहुत है। लेकिन जब बैटरी चार्ज करने भर की बिजली ही न मिले तो इनवर्टर बैटरी किस काम की।

बिना पानी सूख गई चरी

फूलचंद लोहे के दरवाजे खिड़की, चौखट आदि बनाने का काम करते हैं। लोहिया का पूरा काम कटिंग और वेल्डिंग मशीन से होता है। वो बताते हैं कि ये मशीनें बिजली से चलती हैं, लेकिन पूरा दिन बिजली न होने के चलते उनका काम बहुत बुरी तरह प्रभावित हो रहा है। जो बड़े सेठ लोग हैं वह जेनरेटर से काम करते हैं। लेकिन छोटे और टुटपुंजिया दुकानदार बिजली कटौती से कैसे उबरें?

भोले बाबूगंज बाज़ार में पिछले 10 सालों से बिजली से चलने वाली आटा-चक्की चलाते आ रहे हैं। क्षेत्र में वह अकेले थे, जो बिजली से आटा-चक्की चलाते रहे हैं। जबकि बाक़ी लोग डीजल इंजन से आटा-चक्की चलाते हैं। डीजल-इंजन से गेहूं और दरुआ पीसने की दर 2.5 रुपये प्रति किलो है। जबकि बिजली से वह 1.5 रुपये प्रति किलो की दर से पीसते रहे हैं। उनकी दुकान पर ग्राहकों की भीड़ लगी रहती थी। कई बार वह बिजली न रहने पर रात में भी गेहूं की पिसाई करते और लोग दिन में ले या दे जाते। लेकिन बिजली की हालत यह है कि न तो वो दिन में लगातार रह रही है न रात में। वह बताते हैं कि जब लोग उनकी चक्की पर रखा अनाज उठाकर ले जाने लगे, तो उन्हें बुरा लगा। लेकिन उन लोगों के पास भी तो कोई और चारा नहीं था। घर में आटा खत्म है तो चाहिए ही चाहिए, भले ही वह किलो पीछे रुपया डेढ़ रुपया महँगा पीसा जाए। इसी कारण उन्होंने आटा-चक्की एकदम से बंद कर दिया।

बिजली के अभाव में बंद हो गई आटा-चक्की

फोटो-कॉपी करवाकर लौट रहे रमेश बताते हैं कि बिजली से फोटो-कॉपी करने पर प्रति कॉपी एक रुपया लेते हैं। जबकि बिजली न रहने पर दो रुपये प्रति कॉपी वसूल करते हैं। तो बिजली न रहने पर लोगों को जहां एक ओर जबर्दस्ती जेब ढीली करनी पड़ रही है, वहीं दुकानदार का कहना है कि बिजली न होने से लोग केवल बहुत गरज वाली चीजों की ही फोटो-कॉपी करवा रहे हैं। जिसके बिना उनका काम नहीं चल पा रहा है, जिससे उनकी दुकानदारी भी प्रभावित हो रही है। वह बताते हैं कि पर्याप्त बिजली न आने से कई ऑनलाइन काम करने वाले दुकानदार अपनी दुकानें बंद करके घर बैठे हैं।

वहीं, शहर के प्राइवेट लाइब्रेरी में जाकर पढ़ने वाले बच्चे भी बिजली कटौती से परेशान हैं। दोपहर का समय यानी सुबह 11 बजे से चार बजे का समय जो कि बिजली कटौती का पीक समय है, इस समय लाइब्रेरी में जाकर पढ़ने वाले बच्चों की संख्या में भारी इजाफा होने के चलते लाइब्रेरी संचालकों ने इस मियाद (11 से 4 बजे तक) के फ़ीस में दोगुना बढ़ोत्तरी कर दी है। इससे कंपटीशन की तैयारी करने वाले बच्चे और उनके माता-पिता भी परेशान हैं। गौरतलब है कि शहरों पर बढ़ते बोझ और संकुचित होते स्पेस के चलते बच्चों के पढ़ने का कमरा खत्म हो गया है।ऐसे में प्राइवेट लाइब्रेरी पिछले पांच सालों में ख़ूब फले-फूले हैं। अमूमन छात्र-छात्राएं अलग-अलग टाइम पर इन प्राइवेट लाइब्रेरी में पढ़ने जाते रहे हैं। लेकिन बेतहाशा बढ़ी गर्मी और बिजली कटौती का पीक टाइम प्राइवेट लाइब्रेरी में बिताने वाले छात्रों की संख्या बढ़ने से प्राइवेट लाइब्रेरी संचालकों ने पैसा कमाने के अवसर के रूप में देखा है। जैसा कि प्रधानमंत्रीजी ने आपदा में अवसर बनाने का नया चलन शुरु किया है।

बिजली कटौती के हैं अलग-अलग कारण

बिजली विभाग में संविदाकर्मी रहे रामसजीवन बताते हैं कि इस समय प्रयागराज जिले के तमाम क्षेत्र में नंगे तारों को उतारकर केबल चढ़ाने का काम चल रहा है, इसी के चलते बिजली कटौती हो रही है। वहीं शहर में वॉयरिंग का काम करने वाला एक ग्रामीण इलेक्ट्रीशियन उनकी बात काटते हुए कहता है कि शहर में कौन-सा केबल चढ़ाने का काम चल रहा है, वहां भी तो बिजली नहीं रहती है।

केबल चढ़ाने के लिए लगाए गए नए पोल

वहीं, कौड़िहार के मंसूराबाद फीडर से जुड़े गांवों को जोड़ने वाली बिजली लाइन के तार की हवाओं से बर्दाश्त करने की क्षमता खत्म हो चुकी है। यही कारण है कि थोड़ी-सी हवा चलती है, तो झट बिजली कट जाती है। इन दिनों तेज हवाओं के चलते सुबह से देर शाम तक बिजली आपूर्ति बाधित रहती है। पांच दशक पुराना तार जर्जर हो चुका है। हवाओं के चलते लोकल फाल्ट की वजह से बिजली चली जाती है। बढ़ती शहरी संस्कृति के चलते लोग बाग पानी के पारंपरिक स्रोतों को छोड़कर टंकी व्यावस्था पर आश्रित हो चुके हैं। जिसे निजी टुल्लू या सबमर्सिबल से भरा जाता है। अतः बिजली जाने से गांवों में भी अब पानी का संकट होने लगा है।

इसी तरह लालतारा विद्युत उपकेंद्र से कई गाँवों में बिजली की सप्लाई की जाती है। गर्मी के प्रचंड रूप में आते ही यहाँ की बिजली व्यवस्था ध्वस्त हो गयी है। कई गांवों में तो ट्रांसफॉर्मर ही एक सप्ताह से फूंके पड़े हैं। जिले में बिजली व्यवस्था के हाल का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि खुल्दाबाद जैसे शहर के व्यापारिक क्षेत्र में स्थित डफरिन अस्पताल के बाहर लगा ट्रांसफॉर्मर फूंकने के बाद नया ट्रांसफॉर्मर लगने में 17- 20 घंटे लग गए। जबकि 14 जून को प्रयागराज शहर में बिजली कटौती की मियाद इतनी लम्बी हो गयी कि स्वरूपरानी अस्पताल का जेनरेटर सिस्टम भी फेल हो गया। सामान्य मरीज से लेकर आईसीयू में भर्ती गंभीर मरीज़ों को बहुत तकलीफों का सामना करना पड़ा। गावों में बिजली व्यवस्था का यह हाल है कि कई ग्रामीण क्षेत्रों में 24 घंटे में महज चार-पाँच घंटे ही बिजली आ रही है। शुक्लपुर बिजलीघर अंतर्गत भभौरा गांव का ट्रांसफॉर्मर कई दिनों तक फूंका पड़ा रहा। नारीबारी शंकरगढ़, मेजा, करछना, मांडा, सोरांव, हंडिया, फूलपुर, धनुपुर, बहरिया, प्रतापपुर आदि क्षेत्रों में बिजली की अघोषित कटौती से जनजीवन अस्त व्यस्त पड़ा है।

गाँव के लोग
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