इस सर्वेक्षण में कोविड-19 के प्रभाव के कारण वंचित महिलाओं के बीच ‘बहुत कम’ पोषण स्तर का पता चलने के बाद चार थारू गांवों सहित छह गांवों में 35 स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) की इन सदस्यों ने अपनी जरूरतों को खुद पूरा करने की मंशा से इस दिशा में काम करना शुरू कर दिया।विश्व वन्यजीव कोष, इंडिया (डब्लूडब्लूएफ) के वरिष्ठ परियोजना अधिकारी दबीर हसन ने ‘भाषा’ को बताया कि ‘कोविड-19 के बाद, सर्वाधिक महिलाओं को महामारी से हुए नुकसान का आकलन करने के लिए किये गये एक सर्वेक्षण में पाया गया कि उनके पोषण का स्तर बहुत कम था और यह महसूस किया गया कि उनके लिए कुछ करने की आवश्यकता है।’
इस परियोजना का संचालन कर रहे दबीर हसन ने कहा, ‘पोषण से प्रभावित महिलाओं को सब्जियों के माध्यम से पौष्टिक भोजन प्रदान करने का विचार आया और इन सब्जियों को उनके घर के आंगन में उगाया जा सकता है।’उन्होंने कहा कि पोषण के महत्व पर जोर देते हुए महिलाओं के साथ बार-बार संपर्क किया गया, तो उन्हें अपने घरों में सब्जी उगाने का यह विचार पसंद आया जो उनके दैनिक जीवन को प्रभावित नहीं करता है। हसन ने कहा, ‘शुरुआत में 75 महिलाएं अपनी रसोई में जैविक बागवानी के लिए तैयार हुईं और फिर धीरे-धीरे उनकी संख्या बढ़ती गयी और अब दो सत्रों के बाद, इन महिलाओं ने परियोजना लागत में 25 प्रतिशत का योगदान देना भी शुरू कर दिया है। इसके पहले डब्ल्यूडब्ल्यूएफ परियोजना की पूरी लागत को वहन कर रहा था।’ उन्होंने कहा कि इन महिलाओं के स्वास्थ्य पर इस परियोजना के प्रभाव की जांच करने, घर-घर सर्वेक्षण करके उनकी पोषण संबंधी आवश्यकता से संबंधित नवीनतम डेटा एकत्र करने और इसकी तुलना पूर्व के सत्र में किये गये पहले सर्वेक्षण के परिणाम से करने में उत्तर प्रदेश का स्वास्थ्य विभाग शामिल है। दबीर हसन ने कहा कि इन महिलाओं और उनके परिवार के सदस्यों के पोषण स्तर से जुड़ा डेटा एकत्र करने से संबंधित सर्वेक्षण करने के लिए हाल ही में एएनएम, आशा और आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं के स्तर पर स्वास्थ्य विभाग के कार्यकर्ताओं के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। उन्होंने कहा कि इस सर्वेक्षण से आगे कैसे बढ़ना है, इसके बारे में मदद मिलेगी।
फकीरपुरी गांव की थारू मीरा देवी अपने घर के आसपास पालक, मेथी, फूलगोभी, मटर, धनिया, मूली, गाजर, शलजम जैसी सब्जियां उगा रही हैं और इनकी पैदावार भी अच्छी है। मीरा ने कहा ‘हमने दो बार पालक उत्पादन किया है और फिर से यह कटाई के लिए तैयार है। अभी हम इसका स्वयं के लिए उपयोग करते हैं, लेकिन पैदावार अधिक होने पर हम उसे बेचते हैं। फूलगोभी तैयार हो रही है और हम इसे बेचेंगे क्योंकि उपज हमारी आवश्यकता से अधिक है।’
फकीरपुरी की ही एक अन्य महिला सुजरानी ने कहा, ‘विशेषज्ञों के मार्गदर्शन से, हमारे पास बेहतर उत्पाद हैं। हम पहले भी अपने दम पर सब्जियां उगाते थे, लेकिन तब पौधे उतने स्वस्थ नहीं थे, जितने अब हैं। अगर हमें अधिक मदद मिलेगी, तो हम कड़ी मेहनत करने और अधिक सब्जियां उगाने के लिए तैयार हैं।’
रामपुरवा गांव की सीमा देवी ने कहा, ‘हमें डब्ल्यूडब्ल्यूएफ से बीज मिला और उपज अच्छी है। टमाटर, मटर और फूलगोभी सभी अच्छी तरह से विकसित हो रहे हैं। देखते हैं कि जो पौधे हमने लगाए हैं, वे तैयार हो जाते हैं तो फलों की क्या स्थिति होती है।’ उन्होंने कहा कि वह भविष्य में अपने काम का विस्तार कर उत्पादन बढ़ा सकती हैं और अधिक मदद मिलने पर इसे बेच सकती हैं। डब्ल्यूडब्ल्यूएफ भारत उन्हें तकनीकी सलाह देने के लिए बागवानी विभाग और कृषि विज्ञान केंद्रों की मदद से संसाधन उपलब्ध करा रहा है।
दबीर हसन ने कहा कि विभाग समय-समय पर प्रशिक्षण भी आयोजित करता है और उन्हें उचित सलाह देने के साथ ही सिंचाई, बाड़ लगाने और अन्य चीजों के लिए तकनीकी जानकारी देता है।
परियोजना में सक्रिय रूप से शामिल क्षेत्र के बागवानी निरीक्षक ए के वर्मा ने कहा कि उनका विभाग सब्जियों और फलों के अच्छी गुणवत्ता वाले बीज और पौधे उपलब्ध कराता है जिनका उपयोग स्वयं सहायता समूहों की महिलाएं कर रही हैं। उन्होंने कहा, ‘जहां भी आवश्यकता होती है हम प्रशिक्षण कार्यक्रम भी आयोजित करते हैं और समय-समय पर उनका मार्गदर्शन करते हैं।’
ये महिलाएं भविष्य में इस परियोजना से कैसे आर्थिक रूप से लाभान्वित हो सकती हैं? इस सवाल के जवाब में हसन ने कहा, ‘जैविक चीजों के प्रति बढ़ती जागरूकता के साथ, उनके द्वारा उगाई गई सब्जियों और अन्य वस्तुओं से अतिरिक्त आय अर्जित करने की काफी गुंजाइश है।’ परियोजना प्रभारी ने कहा, ‘अब हम इसे आत्मनिर्भर बनाने के लिए बागवानी विभाग और कृषि विज्ञान केंद्रों के साथ जोड़ने की योजना बना रहे हैं क्योंकि डब्ल्यूडब्ल्यूएफ इसे पायलट आधार पर चलाकर एक मॉडल विकसित करने के लिए काम कर रहा है।’ हसन ने कहा कि उत्पादों की खेती करने के लिए उनका मार्गदर्शन करने का प्रयास किया जाएगा। उन्होंने कहा कि इस सत्र में कुछ महिलाओं ने मशरूम उगाना भी शुरू कर दिया है।
लखनऊ (भाषा)। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से करीब 128 किलोमीटर दूर पड़ोसी देश नेपाल की सीमा पर स्थित बहराइच जिले में लगभग 200 महिलाएं, जिनमें ज्यादातर थारू जनजाति की हैं, जैविक खेती के माध्यम से सब्जियां उगाकर अपने परिवारों की पोषण संबंधी जरूरतों की पूर्ति कर रही हैं। वे इसे अतिरिक्त आय के संभावित साधन के रूप में देखती हैं। वैश्विक महामारी कोविड-19 के बाद सर्वाधिक वंचित महिलाओं पर उसके दुष्प्रभावों को लेकर किये गये एक सर्वेक्षण के बाद एक संस्था ने यह पहल की।