हर गली के चौराहे पर पुलिस व फौज की बंदूकें थीं। हर सड़क पर कंटीले तार बिछा दिये गये थे। टेलीफोन सेवा बंद कर दी गयी थी। मुझे नहीं पता कि भारतीय हुकूमत ने तब यह सोचा था या नहीं कि जब लाखों लोग अपने-अपने घरों में नजरबंद कर दिए जाएंगे तब वे खाएंगे क्या? लाखों बच्चे जो खेलना चाहते होंगे, वे खेलेंगे कैसे और लाखों युवा जिनके पास भविष्य के लिए कुछ सपने होंगे कि वे किसी प्रतियोगिता परीक्षा में भाग लेंगे और कोई ना कोई नौकरी हासिल करेंगे, उनका क्या होगा?
वे तमाम ऐसे काम नहीं करते हैं जिसमें श्रम शामिल होता है। भारतीय समाज चूंकि वर्णाश्रम को मानता है तो ब्राह्मणों के लिए अन्यों का होना अनिवार्य है। मेरे कहने का मतलब यह कि यदि घाटी में ब्राह्मण होंगे तो वहां धोबी भी होंगे, चमार भी होंगे, बनिए भी होंगे, यादव भी हाेंगे, खेती-बड़ी करनेवाले कुशवाहा-कुर्मी समाज के लोग भी होंगे। आखिर इन लोगों का क्या हाल रहा होगा 1990 के दशक में और अभी वे किस तरह के हालात में जी रहे होंगे?