कई साल पहले की बात है। 22 जुलाई 2014 को एक प्रतिष्ठित अखबार हिंदुस्तान में एक लेख छपा था — कांवड़ यात्रा और शिवलिंग की स्थापना। इस लेख के अनुसार रावण ने हिमालय की गुफा में शिवजी की घोर तपस्या करते हुए, अपने एक-एक सिर तलवार से काट कर, उनके सामने अर्पण कर रहा था, दसवां सिर अर्पण करने से पहले शिवजी खुश होकर प्रकट हो गए और उसके कटे हुए नौ सिरों को फिर से जोड़कर इस तरह की तपस्या का कारण जानना चाहा।
रावण ने शिव के लिंग को ही प्राप्त करने का वरदान मांग लिया। विचित्र स्थिति पैदा हो गई, फिर भी हिंदू धर्म में वरदान तो वरदान होता है! देना ही पड़ेगा। एक शर्त पर शिवजी लिंग देने को तैयार हो गए कि इस लिंग को किसी भी सूरत में, कहीं भी, जमीन पर नहीं रखना होगा। अन्यथा जहां कहीं भी इसे रख दोगे, वहीं यह स्थापित हो जाएगा।
शर्त मंजूर करते हुए रावण लिंग को लेकर चल दिया। सभी देवताओं को चिंता होने लगी और वे सभी लोग विष्णु भगवान के पास गए। विष्णु ने गंगा, जमुना और सरस्वती तीनों नदियों को ऑर्डर दिया कि तुम तीनों रावण के पेट में प्रवेश कर जाओ। वे तीनों रावण के पेट में घुस गईं। रास्ते में ही अब रावण को बहुत तेज पेशाब लगी। साथ चल रहे गड़रिया के वेशधारी विष्णु को रावण ने जमीन पर न रखने की शर्त पर, लिंग सौंप दिया और पेशाब करने चला गया। स्वाभाविक है, नदियों का पानी था तो पेशाब इतनी हुई कि वहाँ एक सरोवर बन गया, जिसे शिवगंगा कहा जाता है। पेशाब करने में थोड़ी देर भी हो गई। गड़रिए ने शिवलिंग को वहीं जमीन पर रख दिया। लौटने पर रावण को बहुत गुस्सा आया और उसने गुस्से में लिंग पर ही एक जोरदार हाथ जड़ दिया, शिवलिंग आधा धंस गया और वहीं स्थापित हो गया।
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हिन्दुस्तान के अनुसार जहां लिंग स्थापित हुआ, उसे वैद्यनाथ धाम कहा जाता है। यह भगवान शंकर के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक बताया जाता है। सवाल उठता है कि, अन्य 11 ज्योतिर्लिंग कहां और कैसे स्थापित हुए?
काँवड़ यात्रा शूद्रों को मंदबुद्धि साबित करने का पर्व है
काँवड़ यात्रा, हिन्दुओं का बहुत बड़ा मूर्खतापूर्ण पर्व है। अधिकतर लोग बिना सही जानकारी के शिवलिंग पर, कांवड़ के द्वारा गंगा नदी से जल लाकर जलाभिषेक करते हैं। सोशल मीडिया से सर्वे करने पर यह भी मालूम पड़ा कि इसमें सिर्फ शूद्र समाज के मंदबुद्धि, गरीब, लाचार, मजदूर आदि ही शामिल होते हैं, जिनके दिमाग में यह बैठा दिया गया है या अपने आप बैठ गया है कि उनकी गरीबी और बदहाल जिन्दगी से उद्धार भोलेनाथ की शरण में जाने से हो सकता है। जब कांवड़ यात्रा इतना फलदायी है तो शूद्रों को यह एहसास क्यों नहीं हो रहा है कि, उन्हीं के समाज के नेता, विधायक, सांसद, मंत्री, आईएएस, आइपीएस, कलक्टर, एसपी आदि उनके साथ कांवड़ यात्रा में शामिल क्यों नहीं होते जा रहे हैं?
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मेरे मूर्खतापूर्ण पर्व कहने का तात्पर्य यह है कि पूरे समाज में प्रचलित है कि भगवान शंकर की आराधना उनके लिंग की पूजा करके की जाती है और मंदिरों में उनके लिंग की स्थापना भी की गई है। लेकिन कोई भी यह नहीं बताता है कि हम लोग लिंग की पूजा क्यों करते हैं? इसकी चर्चा भी घर परिवार या समाज में कहीं नहीं होती है। बहुत से लोग तो लिंग का मतलब भी नहीं समझते हैं। सिर्फ यही प्रचार किया जाता है कि भगवान शंकर जी सृष्टि के रचयिता हैं और उनकी आराधना करने से इच्छानुसार फल प्राप्ति होती है।
हिन्दू धर्म में शिवलिंग पूजा का सबसे बड़ा सिद्धांत है कि धर्म और भगवान पर तर्क मत करो। जानो मत, सिर्फ मानो।
शिवलिंग पूजा हिंदू धर्म के इस सिद्धांत का जीता जागता उदाहरण हैं।
वहीं अम्बेडकरवादियों को भला-बुरा इसलिए कहा जाता है कि वे कहते हैं – पहले जानो, परखो, फिर मानो।
तीस साल की उम्र यानी 1983 तक मुझे खुद भी शिवलिंग का अर्थ नहीं मालूम था। लेकिन जब से बाबासाहब के साहित्य को पढ़ा तो कुछ ज्ञान हासिल हुआ और देवी-देवताओं और भगवानों पर तर्क-वितर्क करने का विवेक उत्पन्न हुआ। तब मेरी इस शिवलिंग को जानने और समझने की उत्सुकता बढ़ती गई। मैंने गूगल पर भी सर्च किया, तब जाकर कुछ जानकारी हासिल हुई।
जब शिवलिंग की सही जानकारी हो गई तो, एक दिन मंदिर में जाकर तर्क शुरू किया। शिव का लिंग खड़ा कहां है? किसके ऊपर है? और जिसके ऊपर खड़ा है वहां से बूंद-बूंद पानी क्यों टपकता रहता है? तब मालूम पड़ा कि इसमें संभोग की अंतिम स्थिति को दर्शाया गया है और इसीलिए इसे सृष्टि के रचयिता के रूप में प्रचारित किया जाता है। लेकिन आज के वैज्ञानिक युग में किसी भगवान को सृष्टि का रचयिता मानना सिर्फ कल्पना और मूर्खता है। खजुराहो के मंदिर का अवलोकन मैंने खुद किया है। उसे देखने के बाद यह सत्य साबित होता है कि इसका सृष्टि की रचना से कोई लेना-देना नहीं है। सृष्टि का मतलब दुनिया है और दुनिया किसी व्यक्ति या भगवान के द्वारा नहीं रची गई है बल्कि लाखों साल की प्रक्रियाओं से उसका विकास हुआ है। इसलिए शूद्रो! पहले तर्क से जानो, परखो, संतुष्टि कर लो, तभी मानो।
कुछ प्रतिक्रियाएँ : मैं आत्महत्या कर लूंगा
पिछले साल जब मैं दिनांक 22-03-2021 को अपने गांव अदसंड़ पहुंचा तो मुझसे अशोक कुमार यादव ने कहा कि आपके लेखों ने तो समाज में भारी हलचल पैदा कर दिया है। उन्होंने हंसते हुए एक घटना का उल्लेख किया कि चंदौली जिले के मुड्डा गांव के एक यादव परिवार का लड़का आपके लेख – महाशिवपर्व और कांवड़ यात्रा (दिनांक 11-03-2021) को पढ़ने के बाद अपने परिवार में इस त्योहार को मनाने का विरोध करने लगा। लेकिन ब्राह्मणवादी मानसिकता से ग्रस्त परिवार, सदियों से चली आ रही परम्परा, रीति-रिवाजों और तीज-त्योहारों का हवाला देते हुए, उसी को गलत साबित करने लगा।
उसके लाख समझाने के बाद भी परिवार पर असर नहीं हो रहा था। उसने यह भी तर्क दिया कि 10वीं फेल ब्राह्मण की बात पर आप लोग यकीन कर लेते हैं, लेकिन आज के वैज्ञानिक युग में अपने समाज के तर्कशील, पढ़े-लिखे विद्वानों की बात पर यकीन क्यों नही करते हैं? उसने इस पाखंडी त्योहार की असलियत को अच्छी तरह समझ लिया था और अपने परिवार को इससे मुक्ति दिलाना चाहता था। लेकिन मूढमति परिवार वालों का विवेक तो घास चर रहा था।
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अंत में, हारता क्या न करता? जब घर की औरतें शिवलिंग पर जलाभिषेक करने की तैयारी करने लगीं तभी उसने सबके सामने कह दिया कि जब आप लोग हमारी बात नहीं मानोगे और जलाभिषेक करोगे तो मैं आत्महत्या कर लूंगा। अंततः उसकी सच्चाई के दृढ़ संकल्प के आगे परिवार को झुकना पड़ा।
यह जानने के बाद मैंने अंधविश्वास और पाखंड के खिलाफ संघर्ष करने वाले इस क्रांतिकारी नवयुवक विजय प्रताप यादव से तीन दिन बाद दिनांक 25-03-2021 को उसके गांव जाकर उसे बधाई व शुभकामनाएं दी। आज हमारे समाज के लिए ऐसे अधिकतम लोगों की जरूरत है।
लेखक शूद्र एकता मंच के संयोजक हैं और मुम्बई में रहते हैं।
ये सब जातिवाद की हीन भावना को बढ़ावा देने से अच्छा है कि बाबा साहब के मूल मंत्र सब सीखो, सब बड़ों पर आप ध्यान दे तो ज्यादा से ज्यादा समाज का उद्धार करवा सकते है क्या बार बार हम सुद्र है, हम ऐसे है हम वैसे है, भाई हम सब कुछ कर सकते है, अगर कोई समाज का बना है तो वो उसकी मेहनत थी आप क्यों उम्मीद करते हो की वो सब भी कावड़ उठाए, ये सब श्रद्धा वाली बात है। अगर असल मेे समाज को आगे बढ़ाना चाहते हो, तो ज्ञानी बनने की तलाश करने को कहो ना की को आप महसूस करते हो वो उनपर धोपो,
ध्यान रहे, शूद्र पैदा होना अलग बात है और हमेशा शूद्र होने की हीन भावना के साथ रहना अलग बात है।
कुरीतियां तो हमेशा बनी रहेगी पर आप क्यों उन्हें हमेशा बटना चाहते है।
कहीं ना कहीं इस प्रकार के लेख ही हम मेे हमेशा शूद्र होने की भावना जगाए रखते है।
रखना हो तो बड़ी सोच रखो, और उसको रखने के तरीकों को बड़वा दो, technology सीखने को बड़वा दो, नशे से दूर रहने को बड़वा दो
धन्यवाद।
पिछले आठ सालों में धर्म के नाम पर जो कुछ भी हो रहा है, वह सूक्ष्म राजनीति है, जिसमें बहुसंख्यक एससी एसटी ओबीसी को फंसाकर उन्हें अनपढ़ और वंचित बनाए रखने का प्रयास किया जा रहा है। एससी एसटी ओबीसी समुदाय के शायद १३१ सांसद हैं। वे सब अपने समुदाय को सिवाय धोखा देने के कुछ नहीं कर रहे हैं। ज़रूरत है, लाखों व्हाट्सऐप ग्रुप बनाकर एससी एसटी ओबीसी समुदाय तक ये संदेश पहुंचाने की कि वे किस तरह फ़र्ज़ी धर्म की फ़र्ज़ी राजनीति के शिकार हो रहे हैं।
[…] काँवड़ यात्रा एक खूबसूरत जाल है जिसमें … […]
शानदार लेख।
ऐसे लेख समाज को नई दिशा देंगे और बदहाली की दशा को बदलेंगे।
जय भीम नमो बुद्धाय
कवि सुरेन्द्र आज़ाद’झनूण’
राज्य सचिव
जन लेखक संघ राजस्थान
कारण है इसका
हमारे पास लेखनी और सिस्टम नहीं है जिसके पास सिस्टम है वही आगे बढ़ेगा
अपना मीडिया होना ही चाहिए।
गलती छात्र की नहीं है
प्रोफेसर का विषय छात्रों को समझ नहीं आता