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 मुंगेरी लाल कमीशन के हत्यारों को जानिए (डायरी 20 जुलाई, 2022) 

दुनिया में न कोई शब्द आसमानी है और ना ही कोई मुहावरा। सब मनुष्यों का ही किया धरा है। असल में यह बात मैं इसलिए भी कहता हूं क्योंकि एक तो मैं अनीश्वरवादी हूं और दूसरा यह कि अब तक मैंने ऐसा कोई शब्द नहीं पाया है, जो कहीं से भी लगे कि वह आसमानी […]

दुनिया में न कोई शब्द आसमानी है और ना ही कोई मुहावरा। सब मनुष्यों का ही किया धरा है। असल में यह बात मैं इसलिए भी कहता हूं क्योंकि एक तो मैं अनीश्वरवादी हूं और दूसरा यह कि अब तक मैंने ऐसा कोई शब्द नहीं पाया है, जो कहीं से भी लगे कि वह आसमानी हो। एक मुहावरा है– ‘मुंगेरी लाल के हसीन सपने।’ कई बार मैंने भी इस मुहावरे का इस्तेमाल अपनी रपटों में किया है। लेकिन यह जिज्ञासा हमेशा बनी रही कि आखिर यह मुहावरा आया कहां से है। तब 2010 में पटना के एएन सिन्हा सामाजिक अध्ययन व शोध संस्थान के पुस्तकालय में मुझे मुंगेरी लाल कमीशन की पूरी रपट मिली।
मुंगेरी लाल कमीशन का गठन बिहार में कांग्रेसी हुकूमत ने की थी। यह असल में बिहार में पिछड़े वर्गों के लोगों में बढ़ रही लगातार चेतना और उनके द्वारा बनाए गए जनदबाव का प्रतिफल था कि तत्कालीन सरकार को कमीशन का गठन करने के लिए बाध्य होना पड़ा। यह बिल्कुल वैसे ही था जैसे जवाहरलाल नेहरू हुकूमत ने काका कालेलकर आयोग का गठन किया था।
मैंने पिछड़े वर्गों के लिए गठित तीनों आयोगों – कालेलकर आयोग, मुंगेरी लाल आयोग और मंडल आयोग – को पढ़ा है। लेकिन मुंगेरी लाल आयोग की अनुशंसाएं अन्य दोनों आयोगों की अनुशंसाओं से इस मामले में अधिक बेहतर थी कि वे पिछड़े वर्ग के हितों के साथ न्यायपूर्ण थीं। मुंगेरी लाल कमीशन ने अपनी रपट के प्रारंभ में ही यह स्पष्ट किया था कि आरक्षण का आधार सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ापन है। साथ ही यह भी कि पिछड़े वर्गों की पहचान के लिए जाति आधारित जनगणना आवश्यक है। मंडल आयोग और मुंगेरी लाल आयोग की रपटों में जो समानताएं और अंतर हैं, उनके बारे में विस्तार से कभी लिखूंगा। आज तो मैं जयप्रकाश नारायण और कर्पूरी ठाकुर के बारे में सोच रहा हूं, जिन्हें क्रमश: लोकनायक और जननायक कहा गय।

[bs-quote quote=”1977 में जब जनता पार्टी की सरकार बनी तब बिहार में कर्पूरी ठाकुर मुख्यमंत्री बने। आर एल चंदापुरी जैसे पिछड़े वर्ग के बड़े नेता जो पिछड़ा वर्ग आंदोलन पूरे दमखम के साथ चला रहे थे, और जिनके कारण बीपी मंडल को बिहार का पहला ओबीसी मुख्यमंत्री बनने का अवसर प्राप्त हुआ था, मुंगेरी लाल कमीशन की अनुशंसाओं को हू-ब-हू लागू करवाने के पक्ष में थे। कर्पूरी ठाकुर सरकार पर दबाव वह लगातार बनाते जा रहे थे। लेकिन जयप्रकाश नारायण के कहने पर कर्पूरी ठाकुर इसे टालने की योजना पर काम करते रहे।” style=”style-2″ align=”center” color=”#1e73be” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

मैं यह भी सोच रहा हूं कि जब मुंगेरी लाल आयोग ने अपनी रपट में सवर्णों के लिए आरक्षण की बात नहीं कही तो 1978 में जब कर्पूरी ठाकुर ने पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण लागू किया तब उन्होंने महिलाओं और गरीब सवर्णों के लिए 7 प्रतिशत आरक्षण की घोषणा क्यों की?
यह एक ऐसा सवाल रहा, जिसका आंशिक जवाब तो मुझे पता था कि इसके पीछे जयप्रकाश नारायण थे। वह आरक्षण का आधार आर्थिक ही मानते थे। इसलिए पिछड़े वर्ग के नेताओं ने उनका विरोध किया था। इन नेताओं में आज के लालू और नीतीश कुमार टाइप के नेता नहीं थे। ये तो उस समय जेपी के प्रभाव में थे। कर्पूरी ठाकुर तक जेपी के शिकंजे में थे। यह कहना भी अतिरेक नहीं।
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1977 में जब जनता पार्टी की सरकार बनी तब बिहार में कर्पूरी ठाकुर मुख्यमंत्री बने। आर एल चंदापुरी जैसे पिछड़े वर्ग के बड़े नेता जो पिछड़ा वर्ग आंदोलन पूरे दमखम के साथ चला रहे थे, और जिनके कारण बीपी मंडल को बिहार का पहला ओबीसी मुख्यमंत्री बनने का अवसर प्राप्त हुआ था, मुंगेरी लाल कमीशन की अनुशंसाओं को हू-ब-हू लागू करवाने के पक्ष में थे। कर्पूरी ठाकुर सरकार पर दबाव वह लगातार बनाते जा रहे थे। लेकिन जयप्रकाश नारायण के कहने पर कर्पूरी ठाकुर इसे टालने की योजना पर काम करते रहे। फरवरी, 1978 में जयप्रकाश नारायण ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की, जिसमें उन्होंने आरक्षण का आधार आर्थिक बताया। दरअसल, यही वह कसौटी है, जिसके आधार पर हम यह पहचान कर सकते हैं कि कौन ब्राह्मणवादी है और कौन नहीं। आज भी आरएसएस के लोग यही मानते हैं कि आरक्षण का आधार आर्थिक है। आज की नरेंद्र मोदी सरकार ने तो इसी आधार पर सवर्णों के लिए दस फीसदी आरक्षण का प्रावधान भी कर दिया है। 1978 में कर्पूरी ठाकुर ने सवर्णों के लिए 3 फीसदी आरक्षण लागू किया था। लोग आज भी उस आरक्ष्ण को कर्पूरी ठाकुर का फार्मूला कहते हैं, लेकिन असल में वह ब्राह्मणराज के संरक्षक जयप्रकाश नारायण का फार्मूला था।
जयप्रकाश नारायण बड़े शातिर राजनेता रहे। वह यह जानते थे कि केवल उनके कहने से यह बात नहीं बनेगी कि आरक्षण का आधार आर्थिक हो। उन्होंने यही बात तब उपप्रधानमंत्री रहे जगजीवन राम, जे बी कृपलानी और जनता पार्टी के अध्यक्ष रहे चंद्रशेखर के मुंह में डाल दी। लेकिन जयप्रकाश नारायण यह आकलन कर पाने में अक्षम रहे कि पिछड़े वर्ग के लोगों में किस चरम तक राजनीतिक चेतना जागृत हो चुकी थी।

[bs-quote quote=”आरएसएस के लोग यही मानते हैं कि आरक्षण का आधार आर्थिक है। आज की नरेंद्र मोदी सरकार ने तो इसी आधार पर सवर्णों के लिए दस फीसदी आरक्षण का प्रावधान भी कर दिया है। 1978 में कर्पूरी ठाकुर ने सवर्णों के लिए 3 फीसदी आरक्षण लागू किया था। लोग आज भी उस आरक्ष्ण को कर्पूरी ठाकुर का फार्मूला कहते हैं, लेकिन असल में वह ब्राह्मणराज के संरक्षक जयप्रकाश नारायण का फार्मूला था।” style=”style-2″ align=”center” color=”#1e73be” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

वह 14 मार्च, 1978 का दिन था जब पिछड़े वर्ग के लोगों ने पटना में विशाल प्रदर्शन निकाला। इसका नेतृत्व तब वयोवृद्ध नेता शिवदयाल चौरसिया और आर एल चंदापुरी कर रहे थे। चंदापुरी जी ने अपनी किताब भारत में ब्राह्मणराज और पिछड़ा वर्ग आंदोलन में इस प्रदर्शन का विस्तार से वर्णन किया है। उनके मुताबिक राज्य सरकार के द्वारा तमाम तरह के प्रतिबंध लगाए जाने के बावजूद गांधी मैदान ठसाठस भरा था। पटना पहुंचने के सारे रास्ते पर नाकाबंदी कर दी गयी थी। यहां तक कि गंगा नदी में चलनेवाली स्टीमरों को भी रोक दिया गया था ताकि उत्तर बिहार के लोग प्रदर्शन में शामिल ना हो सकें। लेकिन लोग पहले ही जुट चुके थे और 14 मार्च को जब प्रदर्शनकारी निकले तब पटना के गांधी मैदान से लेकर हार्डिंग पार्क तक पूरी की पूरी सड़क प्रदर्शनकारियों से भर चुकी थी।
चंदापुरी बताते हैं कि जिला प्रशासन ने चिल्ड्रेन पार्क में जनसभा करने की अनुमति दी थी, लेकिन वह भीड़ के हिसाब से बहुत छोटा था। लेकिन लोग थे कि पार्क में चले जा रहे थे। इस बीच राज्य सरकार के इशारे पर पुलिस ने बल प्रयोग कर दिया। दर्जनों लोग घायल हो गए। एक जगह चंदापुरी जी यह भी लिखते हैं कि ‘एक पुलिसकर्मी मेरे उपर भी बंदूक ताने खड़ा था और वह मुझे गोलियां मार देना चाहता था, लेकिन तब मेरे इर्द-गिर्द लोग मौजूद थे और वह पुलिसकर्मी अपने इरादे में सफल नहीं हो पाया।’
खैर, यह एक विशाल प्रदर्शन था। कर्पूरी ठाकुर ने 15 मार्च को विधानसभा में कहा कि पुलिस ने कुछ भी गलत नहीं किया। कोई प्रदर्शनकारी घायल नहीं हुआ। यह एक से गुमराह करनेवाला बयान था। चंदापुरी जी बताते हैं कि ‘मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर के निकट सहयोगी रहे इंद्र कुमार ने फोन कर कहा कि मैं मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर के आदेश पर बोल रहा हूं। पिछड़े वर्ग का कोई भी व्यक्ति चाहे वह किसी पद पर क्यों न हो, आपका अनुयायी है। उन्हें क्षमा करें।’
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चंदापुरी आगे का हाल बताते हैं कि अगले दिन वह कर्पूरी ठाकुर से मिलने गए तो कर्पूरी ठाकुर ने आगे बढ़कर उनकी आगवानी की। इसके बाद वह चंदापुरी जी को अपने साथ लेकर मुख्यमंत्री सचिवालय स्थित अपने कक्ष में ले गए और कहा कि आपके प्रदर्शन ने मेरे लिए राह आसान कर दिया है। जो कुछ भी हुआ, उसके लिए क्षमा करें।
इसके बाद कर्पूरी ठाकुर ने बिहार में पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण की घोषणा की। लेकिन चंदापुरी इसका यह कहकर विरोध करते हैं कि महिलाओं और सवर्णों के लिए सात फीसदी आरक्षण अवैधानिक है। वह मानते थे कि महिलाओं में भी जाति के आधार पर आरक्षण का प्रावधान हो।
खैर, यह पूरी कहानी है मुंगेरी लाल कमीशन की अनुशंसाओं की, जिसकी हत्या जयप्रकाश नारायण के कहने पर कर्पूरी ठाकुर ने कर दी।

नवल किशोर कुमार फ़ॉरवर्ड प्रेस में संपादक हैं।

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