Friday, October 18, 2024
Friday, October 18, 2024




Basic Horizontal Scrolling



पूर्वांचल का चेहरा - पूर्वांचल की आवाज़

होमसामाजिक न्यायस्त्रीमासिक धर्म के दौरान स्वच्छता है जरूरी

इधर बीच

ग्राउंड रिपोर्ट

मासिक धर्म के दौरान स्वच्छता है जरूरी

हमारे समाज और गांव घरों में खासतौर से अभी भी यह रूढ़िवादी धारणाएं बनी हुई हैं कि मासिक धर्म के दौरान महिलाओं और किशोरियों को अलग रखना चाहिए। धीरे-धीरे लोगों की सोच में परिवर्तन हो रहा है। हमारे गांव में अब किशोरियों को अलग रखना बंद कर दिया गया है। थोड़ी बहुत अब भी यह कुप्रथा जारी है। धीरे-धीरे यह भी बदल जाएगा। सरकार द्वारा चलाई गई योजना सही साबित हो रही है क्योंकि आशा वर्कर मासिक धर्म और उसकी साफ-सफाई के बारे में लोगों को जागरूक करती हैं।

उत्तराखंड। मासिक धर्म की शुरुआत का अर्थ है किशोरियों के जीवन का एक नया चरण। हालांकि यह पूरी तरह से प्राकृतिक प्रक्रिया है। लेकिन इसके बावजूद देश के कुछ ऐसे इलाके हैं, जहां जागरूकता के अभाव में इस प्राकृतिक प्रक्रिया को बुरा और अपवित्र समझा जाता है। इस दौरान किशोरियों को कलंक, उत्पीड़न और सामाजिक बहिष्कार जैसी कुप्रथाओं का सामना करना पड़ता है। उत्तराखंड के बागेश्वर जिला स्थित गरुड़ ब्लॉक का लमचूला गांव भी इसका एक उदाहरण है। जहां किशोरियों और महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान कई प्रकार के भेदभाव से गुजरना पड़ता है। इस मुद्दे पर गांव की किशोरियां गीता और रजनी का कहना है कि हमारे गांव-घरों में मासिक धर्म को लेकर आज भी लोग जागरूक नहीं हैं। मासिक धर्म को लेकर बहुत शर्मिंदा महसूस करते हैं। इस पर बात तक नहीं करते, जिस जगह बात ही करने में शर्म महसूस होती है वहां साफ-सफाई का कौन ख्याल रखेगा?

वहीं, दूसरी ओर कुमारी कविता का कहना है कि मासिक धर्म पर आज भी हमारे गांव में भेदभाव किया जाता है। इससे जुड़ी स्वच्छता के बारे में भी स्वयं महिलाओं को ज़्यादा कुछ पता नहीं है। यही कारण है कि नई पीढ़ी की किशोरियां भी इस मुद्दे पर अनभिज्ञ रहती हैं। हालांकि सरकार के साथ-साथ कुछ गैर सरकारी संस्थाओं के प्रयासों से परिस्थिति बदल रही हैं। अब किशोरियां मासिक धर्म और इस दौरान स्वच्छता से जुड़े मुद्दों पर पहले से अधिक जागरूक होने लगी हैं। इसमें दिल्ली स्थित चरखा डेवलपमेंट कम्युनिकेशन नेटवर्क का बहुत बड़ा योगदान है। जबसे किशोरियां चरखा संस्था के दिशा प्रोजेक्ट के साथ जुड़ी हैं तब से काफी चीजें समझ रही हैं। उन्होंने यह जाना कि यह मासिक धर्म होना स्वाभाविक प्रक्रिया है। इसमें कोई भेदभाव नहीं होनी चाहिए। किशोरियां न केवल स्वयं जागरूक हुईं बल्कि उन्होंने परिवार को भी जागरूक किया। अब कई घरों में मासिक धर्म के दौरान किशोरियों के साथ भेदभाव नहीं किया जाता है। नेहा बताती हैं कि मासिक धर्म के दौरान मेरे परिवार वाले 5 दिन हमें अलग गाय की गौशाला में रखते थे। लेकिन जब से मैं चरखा संस्था के प्रोजेक्ट दिशा से जुड़ी और चीजों को समझा और फिर अपने परिवार वालों को समझाया, तब से मेरे परिवार वालों की सोच में काफी बदलाव आया है। अब हमें माहवारी के दौरान गौशाला में रहने की ज़रूरत नहीं पड़ती है।

मासिक धर्म के समय स्वच्छता नहीं बरतने से बीमारी का शिकार हुई गांव की एक महिला भागूली देवी का कहना है कि हमारे समय में मासिक धर्म के दौरान महिलाओं को बहुत दिक्कतों का सामना करना पड़ता था। हमें पौष्टिक खानों से भी वंचित रखा जाता था। पांच दिन तक एक चटाई में जमीन पर सोना पड़ता था। यहां तक कि नहाने भी नहीं देते थे। सिर पर तेल भी नहीं लगाने देते थे। साबुन का इस्तेमाल नहीं करने देते थे जिसकी वजह से बहुत ज्यादा शारीरिक और मानसिक तनाव झेलना पड़ता था। इसी कारण मुझे बहुत दिक्कत हुई। बच्चेदानी में इन्फेक्शन भी हो गया। शरीर अन्य रोगों से ग्रसित हो गया है। आज भी कुछ जगह यह प्रथा जारी है. जिसकी वजह से किशोरियों को बहुत दिक्कत होती है। गांव की एक अन्य बुजुर्ग गंगोत्री देवी कहती हैं कि हमारे समय में मासिक धर्म में बहुत अधिक छुआछूत होती थी। यहां तक कि हमारे पास इस्तेमाल के लिए साफ़ कपड़ा भी नहीं होता था। जिसकी वजह से हमें बहुत बीमारियां होती थी। लेकिन आज समय बदल चुका है। धीरे-धीरे समाज में बदलाव हो रहे हैं, जो बहुत अच्छा है।

यह भी पढ़ें…

दुनिया की सबसे शोषित महिलाएँ हैं देवदासी प्रथा की शिकार

गांव की आंगनबाड़ी कार्यकर्ता शोभा देवी कहती हैं कि जागरूकता के अभाव और रूढ़िवादी विचारधारा के कारण गांव में मासिक धर्म को बहुत ही ‌बुरा माना जाता था। गांव में टीवी या अन्य इलेक्ट्रॉनिक साधन बहुत कम हैं, जिससे लोग जागरूकता से जुड़ी कई बातें जान नहीं पाते हैं। अशिक्षा और जागरूकता की कमी इसमें सबसे बड़ी बाधा है जिससे लोगों की मानसिकता ऐसी बनी हुई है। लेकिन आज हमारे स्कूलों और आंगनबाड़ियों में आशा बहन द्वारा समाज और गांव में परिवर्तन लाने का प्रयास किया जा रहा है। आंगनबाड़ी के माध्यम से किशोरियों को पैड्स बांटे जाते हैं ताकि उन्हें इंफेक्शन से बचाया जा सके। आशा वर्कर अंबिका देवी कहती हैं कि पहले की अपेक्षा माहवारी को लेकर समाज की सोच में धीरे-धीरे बदलाव आ रहा है। सामाजिक कार्यकर्ता नीलम ग्रैंडी कहती हैं कि मासिक धर्म में स्वच्छता का बहुत बड़ा रोल है। अगर इसको अनदेखा करेंगे तो यह कई बीमारियों को जन्म दे सकता है जो कि किसी भी महिला या किशोरी के जीवन को खतरे में डाल सकता है। यही कारण है कि किशोरियों के साथ इस मुद्दे पर खुलकर बात करनी चाहिए। उन्हें इस दौरान स्वच्छता के महत्व को भी समझाने की ज़रूरत है। जिसके लिए हमें एक माहौल बनाना होगा और पुरानी परंपरागत सोच को बदलना होगा जिससे कि किशोरियां खुलकर और आत्मविश्वास के साथ जीवन गुज़ार सकेंगी।

ग्राम प्रधान पदम राम कहते हैं कि हमारे समाज और गांव घरों में खासतौर से अभी भी यह रूढ़िवादी धारणाएं बनी हुई हैं कि मासिक धर्म के दौरान महिलाओं और किशोरियों को अलग रखना चाहिए। धीरे-धीरे लोगों की सोच में परिवर्तन हो रहा है। हमारे गांव में अब किशोरियों को अलग रखना बंद कर दिया गया है। थोड़ी बहुत अब भी यह कुप्रथा जारी है। धीरे-धीरे यह भी बदल जाएगा। सरकार द्वारा चलाई गई योजना सही साबित हो रही है क्योंकि आशा वर्कर मासिक धर्म और उसकी साफ-सफाई के बारे में लोगों को जागरूक करती हैं। आंगनबाड़ी का पूरा सहयोग रहता है। आज टीवी, फोन के माध्यम से भी गांव की महिलाओं को काफी चीजें सीखने को मिलती हैं। वहीं चरखा जैसी संस्था के प्रयास से भी धीरे-धीरे समाज में परिवर्तन होगा।

प्रेमा आर्या लमचूला (उत्तराखंड) में सामाजिक कार्यकर्ता हैं।
गाँव के लोग
गाँव के लोग
पत्रकारिता में जनसरोकारों और सामाजिक न्याय के विज़न के साथ काम कर रही वेबसाइट। इसकी ग्राउंड रिपोर्टिंग और कहानियाँ देश की सच्ची तस्वीर दिखाती हैं। प्रतिदिन पढ़ें देश की हलचलों के बारे में । वेबसाइट को सब्सक्राइब और फॉरवर्ड करें।
1 COMMENT

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here