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स्कूल होकर भी शिक्षा की कमी

उदयपुर (राजस्थान)। शिक्षा हमारे देश की प्रगति का एक मज़बूत स्तंभ है। यही कारण है कि आज़ादी के बाद से ही सभी सरकारों ने शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए कई तरह की योजनाएं चलाईं। प्राथमिक शिक्षा से लेकर आईआईटी और आईआईएम जैसे उच्च शिक्षण संस्थानों की स्थापना की गई। इसका काफी प्रभाव देखने को […]

उदयपुर (राजस्थान)। शिक्षा हमारे देश की प्रगति का एक मज़बूत स्तंभ है। यही कारण है कि आज़ादी के बाद से ही सभी सरकारों ने शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए कई तरह की योजनाएं चलाईं। प्राथमिक शिक्षा से लेकर आईआईटी और आईआईएम जैसे उच्च शिक्षण संस्थानों की स्थापना की गई। इसका काफी प्रभाव देखने को मिला। प्रत्येक जनगणना के समय देश में साक्षरता का प्रतिशत बढ़ा है। इसके अपेक्षाकृत भारत के साथ आज़ाद हुए देश में शिक्षा का प्रतिशत तुलनात्मक रूप से कम रहा है। हालांकि भारत में भी साक्षरता की दर शहरी क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में कम रही है। इसमें महिला साक्षरता की दर तो सबसे चिंताजनक स्थिति में रही है। यानी शहरों की तुलना में गांव के लोग कम शिक्षित हुए हैं।

ऐसा नहीं है कि सरकार ने गांव में स्कूल नहीं खोले हैं, लेकिन कई बार शिक्षकों की कमी के कारण वह स्कूल केवल कागज़ों तक सीमित रह जाते हैं। इसका एक उदाहरण राजस्थान का मालपुर गांव है। उदयपुर जिला से करीब 70 किलोमीटर और सलुम्बर ब्लॉक से करीब 10 किलोमीटर दूर आबाद इस गांव में शिक्षा के मंदिर की कोई कमी नहीं है। गांव में 4 स्कूल खुले हुए हैं, जिनमें एक उच्च माध्यमिक विद्यालय है, जो 12वीं तक है। वहीं पांचवीं कक्षा तक संचालित होने वाले 2 स्कूल राजीव गांधी स्कूल तथा माध्यमिक स्कूल मालपुर संचालित हैं। इसके अतिरिक्त कक्षा 1 से 4 तक महाबाड़ी प्राथमिक स्कूल भी इसी गांव में बना हुआ है। फिर भी इस गांव में शिक्षा की कमी है। बच्चों को दूर दराज़ के गांवों के स्कूलों में जाकर शिक्षा प्राप्त करनी पड़ती है।

[bs-quote quote=”गांव में शिक्षा की कमी के पीछे कई कारण हैं, जिन्हें नज़रअंदाज़ करके समीक्षा करना कठिन होगा। न तो हम इसके लिए किसी सरकार को अकेले ज़िम्मेदार ठहरा सकते हैं और न ही केवल स्थानीय प्रशासन की उदासीनता कहकर अपनी ज़िम्मेदारी से पल्ला झाड़ सकते हैं। दरअसल, किसी भी योजना की सफलता जनमानस की भागीदारी के बिना अधूरी है। यदि जनता जागरूक होगी तो शिक्षा जैसी व्यवस्था भी ठीक हो सकती है।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

करीब 2200 की जनसंख्या वाले इस गांव में 350 घर हैं। इनमें करीब 500 बच्चे स्कूल और कॉलेज में शिक्षा प्राप्त करने की आयु वर्ग के हैं। इनमें लड़के और लड़कियों की संख्या आधी-आधी है। वहीं गांव की लगभग आबादी गरीबी रेखा से नीचे जीवन बसर कर रही है, जिनकी दैनिक आमदनी काफी कम है। गांव के अधिकतर पुरुष दिहाड़ी पर काम करते हैं। ऐसे में इनकी आर्थिक स्थिति का अंदाज़ा आसानी से लगाया जा सकता है। यही कारण है कि इस गांव में लड़कियों को बहुत जल्द शिक्षा से वंचित होना पड़ता है। जो अभिभावक उन्हें पढ़ाना भी चाहते हैं तो स्कूल दूर होने के कारण उन्हें भेज नहीं पाते हैं। इस संबंध में गांव की किशोरी मनीषा का कहना है कि गांव में स्कूल होने के बावजूद भी हमें 10 किलोमीटर दूर सलुम्बर जाकर पढ़ाई करने पर मजबूर होना पड़ता है। घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है, जिस वजह से मैं बस से सफर नहीं कर सकती हूं। मालपुर गांव से सलुम्बर की सड़क सुनसान होने के कारण मेरे साथ छेड़छाड़ की घटना भी हो चुकी है। इसलिए अब मेरे माता-पिता ने मेरी पढ़ाई को रोकना चाहा था, हालांकि मेरे हौसले के कारण मैं रुकी नहीं, लेकिन इन्हीं सब कारणों से बहुत-सी लड़कियों की पढ़ाई छूट जाती है।

गांव की अन्य किशोरियां तुलसी और रुपजी मीणा बताती हैं कि गांव में शिक्षा की उचित व्यवस्था नहीं होने के कारण मनीषा के माता-पिता उसकी पढ़ाई छुड़वा कर उसकी शादी करवाना चाहते थे। मनीषा ने सभी प्रकार की मुश्किलों और बाधाओं का डट कर सामना किया और अपनी शिक्षा को जारी रखा। 12वीं की परीक्षा में मनीषा को 88 प्रतिशत अंक प्राप्त हुए हैं। जिसके बाद उसे कालीबाई योजना के तहत स्कूटी भी प्राप्त हुई है। मनीषा के इसी हौसले देखते हुए अब उसके माता-पिता ने उसे उच्च शिक्षा प्राप्त करने की इजाज़त दे दी है और उसकी शादी की योजना भी टाल दी है। लेकिन गांव की सभी लड़कियों की किस्मत और हौसले मनीषा की तरह नहीं हैं।

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गांव में स्कूल का उचित रूप से संचालन नहीं होने के कारण जागरुकता की कमी साफ़ देखी जा सकती है। जिसका खामियाज़ा सबसे अधिक लड़कियों को भुगतना पड़ रहा है। शिक्षा प्राप्त करने की उम्र में उनकी शादी कर दी जा रही है। जागरुकता के अभाव में अधिकतर किशोरियों के अभिभावकों का मानना है कि लड़कियों को शिक्षा प्राप्त करने से अधिक वैवाहिक जीवन को बेहतर बनाने के बारे में सोचनी चाहिए। पढ़ाई से अधिक सुसराल जाकर उनकी सेवा करनी चाहिए। इन्हीं सब कारणों से हमेशा लड़कियों को ही अपने भविष्य में परेशानियों का सामना करना पड़ता है। लड़की को घर से दूर शिक्षा प्राप्त करने के लिए भेजने से अधिक उनकी शादी पर ज़ोर दिया जाता है। अधिकतर लड़कियों की शिक्षा बीच में ही छुड़वाकर उनकी शादी करा दी जाती है।

ग्रामीण गंगाराम का कहना है कि गांव में लड़कियों के कम पढ़ने की वजह से बाल विवाह का ग्राफ अधिक है। दरअसल, जागरुकता के अभाव में यहां के लोगों का मानना है कि शादी के बाद तो लड़की को गृहणी ही बनना है, ऐसे में उसे शिक्षा से अधिक घर का काम सीखने की ज़रूरत है। इसलिए अभिभावक उनकी शिक्षा के प्रति अधिक गंभीर नहीं होते हैं। इसका प्रमुख कारण गांव में स्कूल होने के बावजूद उसमें शिक्षकों का अभाव होना है। गांव में 4 स्कूल होने के बाद भी लड़कियां बहुत मुश्किल से 12वीं तक ही पढ़ पाती हैं, क्योंकि उच्च शिक्षा के लिए अभिभावक उन्हें बाहर भेजना तो दूर, उदयपुर भी भेजने को तैयार नहीं होते हैं। गांव के नारायण का कहना है कि मालपुर में शिक्षा की कमी का प्रमुख कारण गुणवत्तापूर्ण टीचर की कमी है। 4 स्कूल होने के बावजूद भी किशोर और किशोरियां पढ़ नहीं पाते हैं, जो पढ़ना चाहते भी हैं तो घर की आर्थिक स्थिति उन्हें इस बात की इजाज़त नहीं देता है कि वह ब्लॉक सलुम्बर में रहकर भी शिक्षा प्राप्त कर सकें। ऐसे में यह कल्पना करना बेमानी है कि इस गांव की सभी लड़कियां उच्च शिक्षा प्राप्त कर लेंगी। वहीं नरेंद्र का कहना है कि शिक्षा की कमी होने के कारण गांव में शिक्षा का स्तर भी कम होता जा रहा है, जिसकी वजह से पढ़े लिखे लोगों की संख्या कम है।

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बहरहाल, गांव में शिक्षा की कमी के पीछे कई कारण हैं, जिन्हें नज़रअंदाज़ करके समीक्षा करना कठिन होगा। न तो हम इसके लिए किसी सरकार को अकेले ज़िम्मेदार ठहरा सकते हैं और न ही केवल स्थानीय प्रशासन की उदासीनता कहकर अपनी ज़िम्मेदारी से पल्ला झाड़ सकते हैं। दरअसल, किसी भी योजना की सफलता जनमानस की भागीदारी के बिना अधूरी है। यदि जनता जागरूक होगी तो शिक्षा जैसी व्यवस्था भी ठीक हो सकती है। मालपुरा गांव में भी जनता को जागरूक होना पड़ेगा ताकि 4 तरह के स्कूल होकर भी नई पीढ़ी को शिक्षा जैसे मूलभूत अधिकारों से वंचित न होना पड़े।

केवाराम/ प्रियंका, उदयपुर, राजस्थान में युवा समाजसेवी हैं।

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