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माले गाँव बम विस्फोट के पीछे के ‘मोटिव’ को पुलिस ने क्यों नज़रअंदाज़ किया

पंद्रह साल पहले  30 सितंबर के दिन  मालेगांव बम ब्लास्ट को अंजाम दिया गया था। इसकी प्राथमिक जांच मैंने की थी और उसके बाद मैने बहुत तल्खी के साथ एसपी राजवर्धन से कहा था ‘कि मालेगांव ब्लास्ट के बाद आपने अपराधियों में सिर्फ मुस्लिम समुदाय के लोगों को ही पकड़ा है। आखिर क्या बात है  […]

पंद्रह साल पहले  30 सितंबर के दिन  मालेगांव बम ब्लास्ट को अंजाम दिया गया था। इसकी प्राथमिक जांच मैंने की थी और उसके बाद मैने बहुत तल्खी के साथ एसपी राजवर्धन से कहा था ‘कि मालेगांव ब्लास्ट के बाद आपने अपराधियों में सिर्फ मुस्लिम समुदाय के लोगों को ही पकड़ा है। आखिर क्या बात है  कि मारे गए सभी चालीस लोगों में भी मुस्लिम समुदाय के लोग और आरोपियों में भी सिर्फ मुस्लिम समुदाय के लोग हैं? इनको गिरफ्तार करना आपकी राजनीतिक मजबूरी है लेकिन क्या मजबूरी है यह मुझे मालूम नहीं। लेकिन आप खुद हैदराबाद के सरदार पटेल पुलिस अकादमी से ट्रेनिंग लेकर पुलिस अफसर बने हैं। किसी भी घटना के पीछे सबसे पहले मोटिव को देखना अनिवार्य होता है। जांच करने वाले की यही सबसे पहली जिम्मेदारी होती है। क्या आपको अन्य लोगों पर जरा भी शंका नहीं हुई? ज्यादातर मामलों में इसी तरह की कोताही बरतने की वजह से मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाया गया है।’

इसलिए मालेगांव बम ब्लास्ट करने वाले लोगों का मोटिव क्या रहा होगा? इस प्राथमिक बात को नजरअंदाज करके सिर्फ मुस्लिम समुदाय के लोगों को ही आनन-फानन में गिरफ्तार कर लिया गया। जबकि जिस जगह पर बमब्लास्ट किया गया था वह मुस्लिम समुदाय का कब्रिस्तान है। उस दिन ‘शबे बारात’ के लिए, मालेगांव के लगभग हर घर के मुसलमान लाखों की संख्या में अपने पुरखों के लिए प्रार्थना करने हेतु इकठ्ठा हुए थे। इस ओर संकेत करते हुये मैंने एस पी राजवर्धन को कहा कि ‘आपको एक बार भी नहीं लगा कि इस घटना को अंजाम देने वाले कोई और भी हो सकते हैं? आपने 115 लोगों को गिरफ्तार किया है और सभी मुस्लिम समुदाय के हैं।’  राजवर्धन इन सवालों पर चुप्पी साधे बैठे रहे और इस बात की शेख़ी बघार रहे थे कि पुलिस ने कैसा बंदोबस्त किया था। उनसे विदा लेने के पहले मैंने साफ-साफ कहा कि ‘मुझे मालूम नहीं आपकी मजबूरी क्या है लेकिन आप अपनी ड्यूटी ठीक से नहीं निभा रहे हैं। इतनी बात पक्की है।

बाद में हेमंत करकरे को महाराष्ट्र एटीएस का प्रमुख बनाया गया और उन्होंने अपनी जांच में प्रज्ञा सिंह ठाकुर की मोटर साइकिल ढूंढकर निकालने के बाद आगे के एक-एक सुराग को खोज निकाला। सबसे अहम बात यह कि अभिनव भारत नामक संगठन, जो कभी आजादी के पहले बैरिस्टर सावरकर ने स्थापित की थी, लेकिन अपनी मृत्यु के पहले ही ( 1966 ) उन्होंने इसे बर्खास्त भी कर दिया था। लेकिन कर्नल पुरोहित और मेजर उपाध्याय ने मिलकर हिमानी सावरकर (बैरिस्टर सावरकर की बहू और गोपाल गोडसे की बेटी) को अध्यक्ष बनाया और इस संगठन को पुनर्जीवित किया। हेमंत करकरे की जांच में मालेगांव बम ब्लास्ट के केस के सिलसिले में कोर्ट में अभिनव भारत की बैठकों का जो विवरण पेश किया गया था, उसमें इस संगठन की भोपाल और उज्जैन तथा पचमढ़ी में हुई बैठकों के मिनट्स शामिल थे। इन बैठकों में प्रज्ञा सिंह ठाकुर, संघ के कश्मीर इकाई के प्रमुख इंद्रेश कुमार, वर्तमान संघ सरकार्यवाह मोहन भागवत, शिवराज सिंह चौहान तथा राजनाथ सिंह  भी शामिल थे। ये खबरें भोपाल के अखबारों के पहले पन्नों पर फोटो के साथ छपी थीं।

अब तक प्राप्त दस्तावेजों से साबित होता है कि अभिनव भारत के पुनर्जीवन का मुख्य उद्देश्य मुस्लिम आतंकवाद के जवाब में हिंदू आतंकवाद को स्थापित करना था। उसके लिए इन लोगों ने नेपाल के तत्कालीन राजा देवेंद्र (राजा महेंद्र और उनके परिवार के सदस्यों की) हत्या की तथा इस्राइल सरकार को पत्र लिखकर मदद करने की भी अपील की। अपने आपको शंकराचार्य मानने वाले दयानन्द पांडे के पास से हेमंत करकरे ने तीन लैपटॉप जप्त किया। लैपटॉप से अभिनव भारत की बैठकों के ऑडियो–वीडियो रिपोर्टों को ट्रांसक्रिप्ट करके कोर्ट में जमा किए गए हैं। मैं ये सभी जानकारियाँ मालेगाँव बम ब्लास्ट के नाम से आनलाइन उपलब्ध फ़ाइलों से लिख रहा हूँ। कोई व्यक्ति चाहे तो उसे डाउनलोड कर सकता है, और देख सकता है कि मालेगांव बम ब्लास्ट केस क्या है?

अभिनव भारत की बैठकों में भारतीय संविधान की अवहेलना करते हुए राष्ट्रध्वज तिरंगे झंडे को नकारा गया है और उसकी जगह पर केसरिया झंडे की वकालत की गई है। पिछले नौ सालों से इन लोगों को लगातार झंडा फहराने का पाखंड क्यों करना पड़ रहा है, यह समझ लेना चाहिए।

महात्मा गाँधी की हत्या से लेकर डॉ. नरेंद्र दाभोलकर, कॉमरेड पानसरे, प्रोफेसर एमएस. कलबुर्गी तथा गौरी लंकेश की  हत्याओं से लेकर, नांदेड़ बम ब्लास्ट (6 अप्रैल 2006) और नागपुर संघ मुख्यालय पर  तथाकथित फिदायीन हमला (जो नांदेड़ से ध्यान हटाने के लिए किया गया था) भारतीय संविधान और धर्मनिरपेक्षता को खत्म करने की दिशा में संघ के सुनियोजित अभियान थे। मैंने नांदेड़ और नागपुर की घटनाओं की भी जांच की है, इसलिए इतने आत्मविश्वास के साथ लिख रहा हूँ। संघ के लोग लाख बोलते रहे कि सभी आतंकवादी में मुस्लिम ही होते हैं लेकिन ये घटनाएँ साबित करती हैं कि सबसे घातक आतंकवादी संघी हिन्दू होते हैं।

यह बात नब्बे के दशक में पाकिस्तान में जनरल जिया के रहते हुईं।  सीआईए की मदद से पाकिस्तानी मदरसों में,  दुनियाभर के लोगों को पैसा लेकर आतंकवाद की ट्रेनिंग देने का काम शुरू हुआ। यह बात आग की तरह सारे देशों में फैल गई। उसी मानसिकता के साथ अभिनव भारत का गठन किया गया। मुस्लिम तालिबान का मुकाबला करने के लिए हिंदू तालिबान बनाने की कोशिश जारी है।

मैंने नांदेड़ बम ब्लास्ट की जांच में पाया कि इसमें राजकोंडावार परिवार के सदस्यों में से नरेश राजकोंडावार, हिमांशु पानसे और विवेक देशपांडे नरेश और हिमांशु आदि शामिल हैं। ये लोग उस ‘नृसिंहनिवास’ में बम बनाने की फैक्ट्री चला रहे थे। पाटबंधारे नगर नांदेड में यह घर राजकोंडावार लोगों का है। 6 अप्रेल को यहाँ बम ब्लास्ट हुआ। यह बम ब्लास्ट बम बनाने के समय कुछ तकनीकी गलती की वजह से हुआ। उसी जगह पर ही नरेश और हिमांशु की मौत हो गई। बम की मारक क्षमता इतनी तगड़ी थी कि नरेश और हिमांशु के शव के चिथड़े-चिथड़े हो गए। दोनों को पहचानना मुश्किल था। उनके अंतिम संस्कार के समय समस्त नांदेड़ के संघ के सदस्य और पदाधिकारियों की उपस्थिति थी।

नांदेड़ पुलिस बार-बार बम बनाने की बात से इंकार करती रही। नरेश राजकोंडावार पटाखे की दुकान चलाया करता था, उसका कहना था कि यह घटना पटाखों में आग लगने से हुई है। मैंने कहा कि आप लोग नरेश राजकोंडावार परिवार संघ से संबंधित होने की वजह से ऐसा आकलन कर रहे हो। अगर यही ब्लास्ट किसी मुस्लिम परिवार की पटाकों की दुकानदार में होता, तो आप लोगों ने एटम बम बनाने का आरोप लगाते हुए, उसे और उसके पूरे परिवार के सदस्यों को गिरफ्तार कर, देशद्रोह के आरोप में जेल में डाल दिया होता। जिस प्रकार की ब्लास्ट की तीव्रता थी उसे और नरेश, हिमांशु के शवों की दुर्गति के आधार पर यह साफ नजर आ रहा है कि यह पटाकों के ब्लास्ट की वजह से नहीं हुआ है। जरुर कुछ और ही वजह है। उसके बाद पुलिस ने राजकोंडावार परिवार के ‘नृसिंहनिवास’ पर छापा मारकर तफ्तीश में पाया कि वहाँ पर बम बनाने की फैक्ट्री थी। उसमें कुछ तकनीकी गड़बड़ी की वजह से बम ब्लास्ट हो गया। क्योंकि कुछ बम भी मिले, जो ब्लास्ट वाली जगह से इतर सुरक्षित जगह छुपाए हुए मिले। साथ ही नकली दाढ़ियाँ तथा पठानी ड्रेस और उर्दू अखबारों की रद्दी के ढेर भी। मतलब दाढ़ियाँ लगाकर और पठानी ड्रेस पहनकर और उर्दू अखबारों में बमों को लपेटने से, पुलिस को लगेगा कि यह बम ब्लास्ट मुस्लिम समुदाय के लोगों ने ही किया है। यह सब नांदेड़ बम ब्लास्ट के 6 अप्रैल 2006 के केस में कोर्ट में दर्ज है। यह भी आन लाइन चेक करने से पता चल जाएगा कि नांदेड़ बम ब्लास्ट की केस क्या है?

1 जून 2006 की रात को तीन बजे के आस-पास  चार फिदायीन पाकिस्तान से जम्मू और फिर वहाँ से  पटना होते हुए, नागपुर में एक जून को रात में तीन बजे एक सफेद एंबेसडर गाडी से आए।  उनके पास साथ साढ़े तीन सौ किलोग्राम आरडीएक्स और एके- 45 गन थी। वे संघ मुख्यालय पर हमला करने के लिए आए थे। लेकिन नागपुर पुलिस ने कुछ मीटर की दूरी पर उन्हें रोककर, मुठभेड में चारों फिदायीन को मौत के घाट उतार दिया। ऐसा 2 जून 2006 के अखबारों में प्रथम पृष्ठों पर फोटो और विस्तार से रिपोर्ट देखते हुए पता चला। लोकसत्ता नाम के एक्सप्रेस ग्रुप का मराठी भाषी अखबार में छोटी सी खबर में एक वाक्य था  ‘कि संशयाचे धुके’ (मतलब संशय का कोहरा।) तो मैंने मुख्य संपादक जो मेरे पुराने मित्र भी हैं और आजकल राज्यसभा के सदस्य कुमार केतकर को फोन कर के संशय के कोहरे के बारे में पूछा। उन्होंने  कहा कि तुम नागपुर एडिशन के संपादक प्रवीण बर्दापूरकर से बात करो।  मैंने उन्हें फोन कर के ‘संशय के कोहरे’ के बारे में पूछा। उन्होंने कहा कि ‘मुझे सबसे पहले भाजपा नेता गोपीनाथ मुंडे ने फोन करके पुछा कि  प्रविण यह मामला क्या है?’ और उमा भारती ने कहा कि ‘इतने तंग गलियों में इतनी बड़ी जंग। और वह भी आतंकियों के पास साढ़े तीन सौ किलोग्राम आरडीएक्स का जखीरा। फिर भी वह चारो के चारो मारे गए। मामला आश्चर्यजनक लगता है।’ इन बातों को देखते हुए ‘संशय का कोहरा’ यह वाक्य मैंने खुद ही डाला है। मैंने कहा कि ‘अब मैं इस घटना की जांच करने के लिए एक कमेटी बनाकर जांच करने जा रहा हूँ। तो आपके अखबार को कोट करते हुए हम जांच करने के लिए प्रेरित हूए है। और आप अपनी बात से पीछे नहीं जाओगे, ऐसी उम्मीद करते हैं। तो उन्होंने कहा कि हम अपनी बात पर डटे रहेंगे। आप जरूर जांच कीजिए। हालांकि मुझे कमेटी बनाने के लिए सेक्युलर और वामपंथी दलों के सभी लोगों ने मना किया। इन लोगों ने मुझसे कहा कि ‘भारत के इतने बड़े संगठन के मुख्यालय को उड़ाने के लिए कुछ पाकिस्तानी आतंकवादी हमला करने आए और तुम क्या कर रहे हो?’  तो मैंने कहा ‘इसलिए जांच कर रहे हूँ कि ऐसा कौन सा मुस्लिम संघठन है,  जो गोधरा कांड की इतनी बड़ी त्रासदी झेलने के बावजूद 1925 में स्थापित भारत के कोने-कोने में फैले हुए राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के खिलाफ, जो आज भारत का सबसे बड़ा संगठन है और उसके मुख्यालय को उड़ाने का षडयंत्र रच रहा है। क्योंकि सचमुच ही इस तरह की बात सच होती है तो संघ इस मौके का फायदा उठाकर पूरे भारत में मुसलमानों का कत्लेआम शुरू करवा देगा।

जांच में अगर सचमुच ही निकला कि पाकिस्तानी फिदायीन का हमला था तो हम उसे और जोरों से उजागर करने की कोशिश करेंगे। इसलिए जांच के लिए हम लोगों ने मुंबई उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायमूर्ति बीबी. कोलसेपाटील की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया। कमेटी का संयोजक मैं था। सबसे पहले मुठभेड वाले जगह पर जाकर और वहां के लोगों से बातचीत की। उसके बाद संघ के मुख्यालय में पहुंचे थे,  और वहां जो भी पदाधिकारी मौजूद थे, उनसे बात की, तो उन्होंने कहा कि ‘सुबह के चार बजे के आस-पास पुलिस ने आकर कहा कि सब कुछ ठीक हैं। कोई घबराने की बात नहीं है। हम लोगों ने सब कुछ ठीक कर दिया है। आप निश्चित होकर जाइए।’ उसके बाद उस क्षेत्र के पुलिस स्टेशन ‘सीटी कोतवाली’ में लगभग दो घंटों से अधिक समय तक रहे। क्योंकि स्टेशन इनचार्ज कोर्ट गए हुए थे उनके आने में विलंब को देख

हम लोगों ने पुलिस की फाइल से एफआईआर तथा स्पॉट पंचनामा देखा । पुलिस स्टेशन में ही सामने दो गाड़ियों को ढककर रखा था। पूछा कि  “क्या यही गाडिय़ां मुठभेड में इनवॉल्व थी।’ तो उन्होंने कहा कि ‘हां यह जो टाटा सूमो पुलिस की गाड़ी है, और सफेद एंबेसडर गाड़ी आतंकवादियों की गाड़ी है।

स्टेशन इनचार्ज के इंतजार में बैठे हमने जाकर दोनों गाड़ियों के कवर निकाल कर, उन्हें गौर से देखना शुरू किया।  दोनों गाड़ियों के टायर सुरक्षित है। कांच में सिर्फ गोली छेदकर निकालने भर का सुराक था।

टाटा सूमो के सामने के कांच से बिल्कुल ड्राइवर की सीट पर, और वह भी पेशाब की जगह पर। पुलिस की टाटा सूमो में गोली का छेद था।  तो मैंने पूछा की सूमो में ड्राइवर के बगैर मुठभेड हुई? और कितने पुलिस कर्मियों को चोट आई या मौत हो हुई। उन्होंने कहा कि ‘एक भी पुलिस वालों को कुछ भी नहीं हुआ। मामूली खरोंच है। दोनों गाड़ियों का मुआयना करने के बाद तो बिल्कुल भी नहीं लगा, कि यह सचमुच ही मुठभेड के छेद है। एकदम किसी नाटक के लिए मुठभेड का सीन। और जिस जगह पर यह मुठभेड हुई, वहां के लोगों ने बताया था कि  ‘पुलिस बार-बार धमकी भरे शब्दों में चिल्ला-चिल्ला कर बोल रही थी कि  कोई भी व्यक्ति अपने घर के दरवाजे खिलाड़ियों को खोलेगा नही।  हम लोग डर के मारे सारे दरवाजे खिलाड़ियों को बंद करके घरों में दुबककर बैठे हुए थे। कुछ समय बाद खुद पुलिस ने कहा कि अभी आप लोग खोल सकते हैं तो देखा कि कुछ खून जैसा फैला हुआ था। और वह  दोनों गाडिय़ां खडी थी, जो बाद में टोचन करके ले गए। लेकिन हमें कुछ भी दिखाई नहीं दिया था।’ लेकिन एक पंद्रह-सोलह साल का लड़का तैश में आकर बोला कि ‘सब कुछ नाटक था। पहले से ही कुछ मारे हुए चार लोगों की लाशों को देखा है। और पुलिस खुद ही इधर-उधर गोलियां चला कर कुछ ही समय में निकल गई। उसी समय ऊस लड़के के माँ-बाप ने उसे इतना डांटा कि वह दुबारा घर में से निकाला ही नहीं।’

संघ के पुराने भीड़भाड़ वाले इलाके नागपुर में बनारस के जैसी छोटी-छोटी गलियों में घटित हुई मुठभेड़ का यह सब नाटक है। 1925 में स्थापित संघ के पुराने कार्यालय पर हमले की योजना, बनाने वाले फिदायीन लोगों ने इस जगह को क्यों चुना होगा? क्योंकि संघ का नया मुख्यालय रेशम बाग में है, जहां उन्हीं दिनों में संघ का आखिल भारतीय प्रशिक्षण शिविर जिसे संघ ओटीसी कैंप बोलता है। जिसमें हजार से अधिक संख्या में संघ के संपूर्ण देश के विभिन्न पदाधिकारी शामिल होते हैं। वहीं पर संघ के ज्यादा से ज्यादा लोग रहते हैं। यह पुराना मुख्यालय जो नागपुर के महाल नाम के इलाके में सिर्फ मेमोरियल के जैसे रखा गया है। कुछ समय से नागपुर के बाहरी इलाके में जिसे रेशम बाग बोलते हैं, संघ ने वहां पर हजारों की संख्या में लोग ठहर सकेंगे इस तरह की व्यवस्था बनाई है। और मैदान में संघ के प्रशिक्षण शिविर, जिसमें परेड तथा विभिन्न मैदानी कार्यक्रम होते हैं।  मई के अंतिम सप्ताह से जून के प्रथम सप्ताह तक। मतलब तथाकथित फिदायीन हमला करने की तारीख के समय ही रेशम बाग के मुख्यालय पर आयोजित ओटीसी कैम्प को छोडकर महल के मुख्यालय पर रेकी करने वाले फिदायीन लोगों के आतंकवाद में एक्सपर्ट होने को लेकर भी मेरे मन में शंका पैदा होने की वजह है

हमारी इस जांच को लेकर संघ के मराठी भाषी अखबार तरुण भारत में हमारे खिलाफ तीन संपादकीय लेख लिखे गए हैं। एक का शीर्षक है ‘असत्यांचे सत्यशोधन’ (झुठो का सत्यशोधन।) दूसरे का है तुकाराम महाराज के अभंग की पंक्ति ‘नाठाळाचे माथी देऊ काठी’ (बिगड़े हुए के माथे पर लाठी का प्रहार।) और तीसरे का है, महाराष्ट्र राज्य के गृहमंत्री  आरआर. पाटिल ने तक सज्ञान लिया। और दूसरे तरफ से पाठकों के पत्रों के नाम पर जानबूझकर बहुजन दलित सरनेम से हमारे खिलाफ अनर्गल भाषा में पत्रों की झड़ी लगा दी थी, जो कि उस नाम का कोई भी पत्र लेखक दुनिया में मौजूद नहीं था। सभी पत्र तरुण भारत और अंग्रेजी के हितवाद (वर्तमान पंजाब के राज्यपाल बनवारीलाल पुरोहित का अखबार।) मैं तो बनवारीलाल पुरोहित से जाकर हितवाद के दफ्तर में मिला और दो घंटों से भी अधिक समय उनके साथ माथापच्ची की। उन्होंने खुद इस बात को स्वीकार किया ‘हां यह सब कुछ स्टेज मैनेज किया गया था, और चारों लाशें पहले से ही लाकर रखी गयी थीं। लेकिन इसे फिदायीन हमला बताया गया है।’ लेकिन अंतिम समय में वे बोल गए ‘आप इसे लिखोगे या बोलोगे तो मैं आपको दुनिया का एक नंबर का झूठा आदमी कहूँगा’ वह यह भूल गए कि साथ में दो और साथी हैं,  वह यह सब बातचीत के गवाह हैं।

सबसे हैरत की बात नरेंद्र मोदी ने गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए नागपुर पुलिस को इस फिदायीन हमले में की गई बहादुरी के लिए दस साल पुलिसकर्मियों को दस-दस लाख हरेक पुलिस को देने की घोषणा की थी। जिसका वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर ने हैदराबाद के डेक्कन हेराल्ड में लेख लिखकर नरेंद्र मोदी के इस कृत्य को दूसरे राज्य के कामकाज में हस्तक्षेप के लिए आड़े हाथ लिया है। नागपुर की घटना के पहले अहमदाबाद में भी इशरत जहाँ एंकाऊंटर हूबहू नागपुर के जैसे ही रात के तीन बजे हुआ। उसे भी देखने वाले कोई नहीं था। क्योंकि वह एंकाऊंटर अहमदाबाद के बाहरी रिंग रोड (मुंबई से दिल्ली) पर रात को तीन बजे किया गया था। जिसे कोर्ट ने कहा कि यह फर्जी एंकाऊंटर है और पुलिसकर्मियों को गिरफ्तार करने का आदेश दिया।

हमारे हिसाब से नागपुर संघ मुख्यालय के तथाकथित फिदायीन हमला हू-ब-हू अहमदाबाद के इशरत जहाँ एंकाऊंटर की कार्बन कॉपी है। गुजरात के दंगों के बाद संघ ने तथाकथित आतंकवाद का हौव्वा बनाने की कोशिश शुरू की है। जिसमें सूरत, अहमदाबाद, बडोदरा में पेड़ों से लेकर होर्डिंग्स के उपर पर बम लटका दिए गए, और अक्षरधाम तथा संसद पर हमले करने वालों में कोई भी व्यक्ति को जीवित नही रखा।  सभी को मार डालने की वजह क्या है? तफ्तीश के लिए किसी को तो जिंदा रखा होता।

मुंबई के 26 /11 के घटना पर मेरे मित्र एसएम. मुश्रीफ ने   ‘हूँ कील्ड करकरे’ शीर्षक से अंग्रेजी में किताब लिखी है। जिसका विमोचन करने वाले लोगों में एक मैं भी किताब पर बोलने के लिए दिल्ली के कांस्टिट्युशन कल्ब के हॉल में मौजूद था। मैंने कहा कि ‘इस लेखक ने, इस किताब में, हमारे देश की सबसे महत्वपूर्ण जांच एजेंसियों के ऊपर इसमें मुंबई के 26 /11 के हमले को लेकर बहुत ही संगीन आरोप किए हैं । इसलिए मैं मांग कर रहा हूँ कि ‘इनके ऊपर कारवाई की जाने की आवश्यकता है, अन्यथा हमारे देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी आई बी, सीबीआई की विश्वसनियता पर लोगों लोगों का विश्वास उठ जाएगा’ और यह बात आज से बारह वर्ष पहले की है। मुश्रीफ साहब को अभी तक कोई नोटिस या मामुली पत्र तक नहीं मिला है। हालांकि उनकी किताब के अनुवाद भारत की सभी भाषाओं में हो चुके है। वह धड़ल्ले से बिक रही है।

मैंने 26 /11 के एक वर्ष के उपलक्ष्य में, मुंबई मराठी पत्रकार संघ के आजाद मैदान के हॉल में इसी किताब के मराठी अनुवाद के विमोचन समारोह में मैंने मेरी बात को दोहराया कि ‘अभी तक इस लेखक के ऊपर कोई कार्रवाई नहीं हुई। इसका मतलब यह सब कुछ सही है !’ उसी दिन हेमंत करकरे की शहादत वाली जगह पर दूसरे शहीद पुलिस अफसर अशोक कामटे की पत्नी विनीता कामटे की किताब ‘लास्ट बुलेट’ का भी विमोचन जेएफ रिबेरो के हाथों किया गया है। विनीता ने उस किताब में बहुत ही महत्वपूर्ण सवाल उठाये हैं, जिसका जवाब अभी तक किसी ने भी नहीं दिया है।

वैसे ही संसद के हमले के एक आरोपी अफजल गुरू की वकील नंदिता हक्सर ने भी अपने कीताब (The Many Faces of Kashmiri Nationalism) मे काफी महत्वपूर्ण सवाल अफजल गुरु के संसद हमले के शामिल होने के बारे में उठायें है। लेकिन अफजल गुरु को आनन-फानन मे फांसी देने की वजह से कई रहस्य उसी के साथ दफन हो गए।

वैसे ही मेरे मित्र सुभाष गाताडे ने लिखी हुई ‘गोडसेज चिल्ड्रेन’ किताब के विमोचन के लिए मुझे दिल्ली के गांधी शांति प्रतिष्ठान के सभागार में आयोजित विमोचन कार्यक्रम में मैं भी एक पहुंचा। सुभाष गाताडे के किताब के लिए मैरे द्वारा किए हुए सभी जांच रिपोर्ट जिसमें मालेगांव के दोनों बम ब्लास्ट, नांदेड़ के बम ब्लास्ट तथा नागपुर संघ के मुख्यालय पर आयोजित फिदायीन हमला करने वाली जांच के सभी दस्तावेजों को मैंने सुभाष गाताडे को किताब छपने के पहले दे दिए थे।  उन्होंने, अपनी किताब में वह सभी दस्तावेजों को  कोट भी किया है। और ‘गोडसेज चिल्ड्रेन’ के विमोचन के समय भी मैंने भारत में कुछ दिनों से चल रहे तथाकथित आतंकवादी गतिविधियों की जांच हमारे देश के एक से बढकर एक रिटायर्ड पुलिस अफसर तथा न्यायमूर्ति जिन्होंने अपने कर्तव्यों का पालन करने के लिए अपने जीवन को दांव पर लगा दिया। जीवन में किसी भी तरह का समझौता नहीं किया। अपने देश के प्रति अपनी वफादारी का पालन कर रहे हैं।  ऐसे लोगों के द्वारा सभी आतंकवाद की घटनाओं को क्लब करके, उनकी जांच करने से पता चल जाएगा कि, उन आतंकी हमलों के पीछे कौन लोग हैं?

जैसे आजकल पुलवामा हमले को लेकर सतपाल मलिक तथा मेरे अजिज मित्र फिरोज मिठीबोरवाला ने कई महत्वपूर्ण मुद्दों को उठाने की शुरुआत की है। मेरा मानना है कि भारत के ज्यादातर आतंकवाद की घटनाओं को सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करने के लिए अंजाम दिया गया है, जिसकी स्वतंत्र रूप से जांच होनी चाहिए। और यह मांग मैं मेरे हर बार  जांच रिपोर्ट के अंत में एक पैराग्राफ़ लिखकर की है।

हालांकि मुझे तिस्ता सीतलवाड ने बार-बार आग्रह किया था कि उस लड़के को मै मुंबई लेकर आऊ। लेकिन मुझे इतने छोटे लडके की जिंदगी को दांव पर लगाना ठीक नहीं लगा। बड़ोदरा की बेस्ट बेकरी कांड की एकमात्र बची हुई लड़की जिसने बाद में भाजपा के लोगों के दबाव में कैसे पलटी  का मामला भी मालूम था। इसलिए तीस्ता नाराज भी हुई थी लेकिन मेरे काम करने के तरीकों में सभी का ख्याल रखना प्रथम है। मुझे भागलपुर दंगों के गुनाहगारों के साथ भी, बातचीत करने का अवसर मिला है, लेकिन मैंने कभी भी उसका दुरूपयोग नहीं किया।  मैंने जिंदगी में एक भी गुनाहगारों को शिक्षा दिलाने के लिए कभी भी कुछ नहीं किया हूँ। इस पर कोई मुझे भला-बुरा कह सकते। लेकिन मुझे उसकी परवाह नहीं है क्योंकि मेरा मुख्य मकसद एनाटॉमी  ऑफ ह्यूमन डिस्ट्रक्टिव्हनेस’ की खोज करना है। व्यक्तिगत तौर पर किसी को सजा दिलाने से मूल समस्या का समाधान नहीं हो सकता है । कारणों की जांच कर के उस परिस्थिति को समझकर दोबारा नहीं हो, उसके लिए कोशिश करना मेरे काम के तरीके में आता है। और सबसे महत्वपूर्ण बात मैं  एनिमि कॉन्सेप्ट को ही नहीं मानता हूँ। इसलिए व्यक्तिगत रूप से बदला लेने जैसे फिल्मी तरीके मुझे बेहद नापसंद है।

आतंकवाद विश्व की सबसे बड़ी समस्या है सभी आतंकवादी मुसलमान ही क्यों होते हैं? यह भ्रांति संघ लगातार फैला रहा है। विधूड़ी का भरी संसद में यह बोलना उसका ताजा उदाहरण है।

आज 29 सितंबर 2008 के दिन हुए, मालेगांव बम ब्लास्ट को 15 साल हो रहे हैं लेकिन उन आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई को काऊ कहे, हमारे देश के सबसे बड़े सभागृह की सदस्या बनाकर, भाजपा और उसके मातृ संघठन संघ ने देश और दुनिया को दिखा दिया कि वह आतंकवाद के बारे में कितने ईमानदार है। नाथूराम गोडसे को प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने सब से बड़ा देशभक्त बोलते हुए भोपाल के चुनाव प्रचार में अपनी भूमिका स्पष्ट कर दी थी। हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीजी के ‘उसे मैं  कभी भी माफ नहीं करुंगा’ जैसा बयान देने के बावजूद संघ के कैडर ने भोपाल में घर-घर जाकर उसे जिताने के लिए एडीचोटी एक कर दी थी। भारत के कानून-व्यवस्था की जिम्मेदारी संभालने वाले गृहमंत्री अमित शाह ने भोपाल में जबरदस्त रोड शो करते हुए, इस महिला को 3 लाख से अधिक वोट से भोपाल जैसे मुस्लिम बहुल क्षेत्र से चुनाव जिताकर संसद में पहुंचवाया और उसके बाद उसे रक्षा मंत्रालय जैसे संवेदनशील विभाग की संसदीय समिति में शामिल करने का मतलब क्या है? क्या हमारे देश के प्रधानमंत्री सचमुच हमारे देश की सुरक्षा के बारे में गंभीर है?

प्रज्ञा सिंह ठाकुर को सांसद बनाकर हमारे देश के कानून बनाने का अधिकार दे दिया है। वह मोहतरमा उसी संसद भवन में बैठी हुई हैं  और उसी संसद भवन में विधूड़ी ने बीएसपी के सांसद दानिश अली को संबोधित करते हुए, उन्हें बार-बार आतंकी बोल रहे थे क्योंकि संसद की छत के नीचे सभी सदस्यों को विशेषाधिकार होने की वजह से विधूड़ी के ऊपर कानूनी कार्रवाई नहीं हो सकती। इसी विशेषाधिकार का फायदा उठाकर विधूड़ी गैर जिम्मेदाराना बयान दिए जा रहे थे। मतलब मुस्लिम नाम होने से ही वह भाजपा की नजर में आतंकी है। और हिंदू महात्‍मा गांधी की हत्या करने से लेकर मालेगांव ब्लास्ट, नांदेड बम ब्लास्ट, हैदराबाद की मक्का मस्जिद से लेकर अजमेर शरीफ,  समझौता एक्सप्रेस में विस्फोट करने के बाद, सिर्फ सवा सौ लोगों के ही मरने पर नाराजगी जताने वाली प्रज्ञा सिंह ठाकुर भारत के सबसे उच्च सदन की सदस्या हैं  दानीशअलि का नाम मुस्लिम है ! इतनी सी बात पर विधूड़ी भरी संसद में दानिश अली को, आतंकवादी बोलने वाले विधूड़ी के ऊपर कारवाई करना तो दूर की बात है।

उसे राजस्थान के टोंक नाम के जिले का प्रभारी बनाया गया है । टोंक में हिंदू-मुस्लिम भाईचारा काबिले तारीफ है। यही भाजपा की आंखों की किरकिरी बना है। तो विधूड़ी जैसे घोर सांप्रदायिक सांसद को सजा देने की जगह, उसे पुरस्कृत किया गया है और यही भाजपा की राष्ट्रीयता की व्याख्या है?

दक्षिण बंगलुरु से लोकसभा सदस्य तेजस्वी सूर्या,  उमा भारती, विनय कटियार, प्रमोद मुतालिक, संभाजी भिडे, मिलिंद एकबोटे और कुछ गेरुए कपड़े और दाढ़ी बढाए हुए तथाकथित साधु और कुछ साध्वियां जिसमें प्रज्ञा सिंह ठाकुर तथा रुतांबरा किस तरह की सांप्रदायिकता फैलानी वाली बातें करते हैं? लेकिन इनके ऊपर कोई कार्रवाई होने की जगह  इन्हें राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण संवैधानिक पदों पर बैठाया जा रहा है।

शायद यही देखकर और भी लोगों को लगता है कि घोर सांप्रदायिक आचरण या व्यवहार करने से, अपना राजनीतिक करियर बनाया जा सकता है तो विधूड़ी जैसे लोग अपनी जबान पर जहर का फाया लगाकर बोल रहे है और पार्टी उसे रोकने की जगह उसे और प्रमोट कर रही है। भाजपा आतंकवाद विरोधी होने का दावा भी किया करती  है। यह बहुत बडा पाखंड है। यही आलम जारी रहा तो भारत की एकता और अखंडता को जबरदस्त खतरा पैदा करने की गलती भाजपा और संघ परिवार टुच्ची सत्ता के लिए देशद्रोही कृत्य किए जा रही है। इसे हर-हाल में रोकना हमारे देश के हर नागरिक का सब से बड़ा कर्तव्य है, जिसे मैं  पिछले पचास वर्षों से भी अधिक समय से निभाने की कोशिश कर रहा हूँ।

गाँव के लोग
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