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तमाशे के लिए कहीं घर ही न जला दें अजय राय

उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों पर चुनावी तैयारी की बात भले ही कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष कर रहे हैं, पर सच्चाई यह है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में I.N.D.I.A. गठबंधन की कमान अखिलेश यादव के हाथ में ही रहेगी।

लोकसभा चुनाव-2024 के करीब आने के साथ-साथ सियासत के रंग भी बदलते दिख रहे हैं। उत्तर प्रदेश की राजनीति में एनडीए के खिलाफ विपक्षी गठबंधन फिलहाल आर-पार की लड़ाई के मंसूबे के साथ लगा हुआ है। उत्तर प्रदेश जिस गठबंधन के साथ जाएगा उसे लोकसभा में स्वभाविक रूप से बड़ी बढ़त मिल जाएगी। विपक्ष का गठबंधन I.N.D.I.A. बनने के ठीक बाद समाजवादी पार्टी ने उत्तर प्रदेश की घोसी विधानसभा जीतकर यह भी बता दिया है कि सत्तारूढ़ भाजपा नीति गठबंधन एनडीए को, विपक्षी गठबंधन को अब हल्के में नहीं लेना चाहिए। विपक्षी खेमें में भी इस उपचुनाव की जीत से उत्साह बढ़ा है। इस उत्साह में न सिर्फ घोसी विधानसभा जीतने वाली समाजवादी पार्टी उत्साह में दिख रही है, बल्कि गठबंधन की दूसरी पार्टी कांग्रेस भी उत्साहित दिख रही है। चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस ने पूर्वांचल के नेता अजय राय को कांग्रेस का नया प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया था। कांग्रेस के नवनियुक्त अध्यक्ष अजय राय ने बिना देरी किए घोसी चुनाव में कांग्रेस कार्यकर्त्ताओं को पूरी ताकत लगाकर सपा प्रत्याशी सुधाकर सिंह को चुनाव जिताने की अपील की थी। फिलहाल, चुनाव हुआ और ‘इंडिया’ का प्रत्याशी भारी बहुमत से जीतने में कामयाब रहा। इस जीत ने सपा का आत्मविश्वास निश्चित रूप से बढ़ाया होगा पर उससे ज्यादा आत्मविश्वास अजय राय का बढ़ता हुआ दिखा। आनन-फानन में अजय राय ने कहा कि कांग्रेस उत्तर प्रदेश की सभी 80 सीटों पर चुनाव लड़ने को तैयार है।

अजय राय ने यह बयान अपनी पार्टी के कार्यकर्त्ताओं का उत्साह बढ़ाने के लिए दिया था या फिर 2024 में चुनावी सीटों पर अपनी पार्टी की हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए सौदेबाजी का आधार मजबूत बनाने के लिए था, इसका ठीक उत्तर तो वही दे सकते हैं, पर समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने अजय राय के बयान को लेकर कहा है कि सीटों के बँटवारे पर पार्टी के केंद्रीय नेता बात कर रहे हैं, इस बारे में उन्हें कुछ नहीं बोलना चाहिए। दरअसल, अजय राय को पार्टी की प्रदेश इकाई की कमान तो मिल गई है पर संगठन की स्थिति इतनी कमजोर है कि पिछले प्रदेश अध्यक्ष बृजलाल खाबरी प्रदेश कार्यकारिणी भी नहीं बना सके थे। लोकसभा चुनाव 2009 के बाद से प्रदेश में पार्टी का वोट प्रतिशत और सीट प्रतिशत दोनों ही लगातार गिरता जा रहा है। लोकसभा चुनाव 2014 में कांग्रेस ने जहां दो सीटें जीती थीं, वहीं 2017 चुनाव में कांग्रेस सिर्फ 1 सीट पर सिमट गई थी। 2014 की दो सीटों में एक सीट सोनिया गांधी की थी तथा दूसरी सीट राहुल गांधी की थी। जबकि 2019 में राहुल गांधी अमेठी की अपनी पारंपरिक सीट भी नहीं बचा पाये थे। सन 2022 के विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस महज 6 प्रतिशत वोट और कुल मिलाकर महज 2 सीट हासिल कर पाई थी। इस खराब प्रदर्शन ने कांग्रेस को उत्तर प्रदेश की राजनीति में पूरी तरह से हाशिये पर पहुंचाने का काम किया था।

अब ‘इंडिया’ गठबंधन के सहारे कांग्रेस एक बार फिर से उत्तर प्रदेश में अपनी खोई हुई जमीन वापस हासिल करने की जुगत में लगी हुई है। इसी कोशिश के तहत कांग्रेस ने पार्टी की राज्य इकाई की कमान अजय राय को थमा दी है। अजय राय वाराणसी के चर्चित नेता हैं और भूमिहार समाज से ताल्लुक रखते हैं। उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में भूमिहार समाज की एक बड़ी राजनैतिक और सामाजिक भागीदारी है एवं इस समाज में अजय राय की अपनी एक पैठ भी है। कांग्रेस अजय राय के बहाने पूर्वांचल में खुद को मजबूत करना चाहती है। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष के रूप में पार्टी के पास ऐसा कोई चेहरा भी नहीं था, जिसे जन समर्थन हासिल हो। ऐसे में बहुत हद तक अजय राय एक बेहतर विकल्प के रूप में सामने आए और प्रदेश अध्यक्ष बनते ही उन्होंने पार्टी का झण्डा मजबूती से संभाल लिया। दूसरी ओर, यह भी एक बड़ी सच्चाई है कि भूमिहार समाज लंबे समय से भाजपा के साथ खड़ा होता रहा है। इन सारी स्थितियों के मद्देनजर एक बड़ा सवाल आता है कि क्या अजय राय प्रदेश कांग्रेस की स्थिति में कोई बदलाव ला पाएंगे? यह कठिन प्रश्न है।

अजय राय आज भले ही कांग्रेस में हैं, पर उनकी राजनीतिक बुनियाद उसी भाजपा के आँगन में पड़ी है, जिसके खिलाफ वह आज चुनावी नगाड़ा बजाने का दम भर रहे हैं। एबीवीपी के साथ छात्र राजनीति से राजनीतिक जीवन शुरू करने वाले अजय राय भाजपा के टिकट पर कोलअसला विधानसभा से तीन बार विधायक बने और बाद में लोकसभा का टिकट ना मिलने पर भाजपा से दूरी बना ली और समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए। 2009 में वह लड़े जरूर सपा के टिकट पर थे, पर अपने विरोधी मुख्तार अंसारी को हराने के लिए उन्होंने भाजपा प्रत्याशी मुरली मनोहर जोशी के पक्ष में हिन्दू वोट के ध्रुवीकरण का पूरा प्रयास किया और फलस्वरूप भाजपा चुनाव जीत गई। मुख्तार अंसारी दूसरे नंबर पर तथा अजय राय तीसरे नंबर पर रहे। इस चुनाव के बाद अजय राय ने सपा का दामन भी छोड़ दिया। लोकसभा चुनाव हारने के बाद कोलअसला विधानसभा से उन्होंने अगला उपचुनाव स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में लड़ा और जीत गए। 2009 के चुनाव में उन्होंने वाराणसी की राजनीति को हिन्दू-मुस्लिम के विभाजनकारी दृष्टिकोण के साथ जिस तरह आगे बढ़ाया था उससे उन्होंने यह बता दिया था कि उनकी पार्टी का झण्डा या नाम कुछ भी हो पर वह हिन्दुत्व के साथ खड़े रहेंगे। अब जबकि एक तरफ कांग्रेस उत्तर प्रदेश में भी अपना कर्नाटक वाला फार्मूला अपनाना चाहती है तब अजय राय का वह मुस्लिम विरोधी चेहरा भी कांग्रेस के लिए नई मुश्किल साबित हों सकता है।

अजय राय कांग्रेस में शामिल होने के बाद सिर्फ एक बार पिंडरा विधानसभा चुनाव जीत सके हैं, जबकि दो बार कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा का चुनाव हार चुके हैं। ऐसी स्थिति में कांग्रेस के पास उत्तर प्रदेश में अपनी शाख बचाने के लिए कहीं ना कहीं सिर्फ समाजवादी पार्टी की बैसाखी का सहारा है। पिछले विधानसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश, खासतौर पर पूर्वांचल की कमान प्रियंका गांधी ने संभाली थी, उसके बावजूद भी कोई बड़ा परिवर्तन नहीं देखने को मिला था, यहाँ तक कि कई विधानसभा सीटों पर कांग्रेस के उम्मीदवारों की जमानत तक जब्त हो गई थी। ऐसी स्थिति के बावजूद अजय राय जिस तरह से समाजवादी पार्टी के आगे सीटों को लेकर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं, उससे कहीं ऐसा न हो जाये कि प्रदेश अध्यक्ष बड़ा राजनीतिक तमाशा देखने के चक्कर में कांग्रेस का घर ही ना जला दें।

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सीटों के बँटवारे को लेकर अखिलेश यादव ने जिस तरह से कांग्रेस पर पलटवार किया है, उससे यह तो तय हो गया है कि उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी, कांग्रेस के लिए इस बार कोई बहुत बड़ा दिल नहीं दिखाने जा रही है। अखिलेश यादव ने स्पष्ट कर दिया है कि वह उत्तर प्रदेश में किसी से सीटें मांग नहीं रहे हैं, बल्कि वह तय करेंगे की किसे कितनी सीटें देनी हैं। अजय राय अभी उत्साह से भरे हुये हैं और अपनी पार्टी में जान डालने के लिए पूरा ज़ोर लगाए हुये हैं पर पूर्वांचल के बाहर उनकी उपस्थिति राजनीतिक रूप से कांग्रेस को कोई फायदा पहुंचा पाएगी, यह अभी संशयपूर्ण है। ऐसे में अजय राय जिस तरह से समाजवादी पार्टी पर दबाव की राजनीति के बहाने अपना राजनीतिक कद बढ़ाने की कोशिश में लगे हुये हैं, वह कहीं उल्टा ना पड़ जाये।

उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों पर चुनावी तैयारी की बात भले ही कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष कर रहे हैं, पर सच्चाई यह है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में I.N.D.I.A. गठबंधन की कमान अखिलेश यादव के हाथ में ही रहेगी। अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश में सीटों के बँटवारे से पहले मध्य प्रदेश के चुनाव पर फोकस करेंगे और मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में भी गठबंधन के तहत कांग्रेस से ज्यादा सीटों की डिमांड करेंगे। अब अगर मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस, समाजवादी पार्टी के प्रति ज्यादा उदार होती है, तब उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव भी कांग्रेस के लिए उदार हो सकते हैं। अजय राय ने लोकसभा चुनाव में जिस तरह से सीटों के बँटवारे को लेकर पहल की है उससे यह तो तय है कि गठबंधन में सीटों के बँटवारे की गांठ फँसेगी। अजय राय उत्साह में जिस जादुई छड़ी के सहारे उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के चमत्कारिक बदलाव की बात कर रहे हैं, उसका जमीनी असर फिलहाल अभी तो नहीं दिख रहा है। राहुल गांधी के प्रति देश भर में जरूर एक बदलाव आया है। भाजपा के खिलाफ खड़ा वोटर राहुल गांधी के राजनीतिक नेतृत्व में विश्वास व्यक्त करता दिख रहा है, पर उत्तर प्रदेश में राजनीति जिस तरह से जाति केन्द्रित ध्रुवों में बंटी हुई है, उससे यह तो तय है कि उत्तर प्रदेश में अभी भी कांग्रेस के लिए बहुत मुफीद मैदान नहीं बना है। ऐसी स्थिति में अजय राय का सीटों के बँटवारे में पैर डालना कांग्रेस के लिए ना सिर्फ मुश्किल खड़ी करेगा, बल्कि ‘इंडिया’ गठबंधन के भविष्य के संतुलन को भी बिगाड़ेगा। अजय राय के सामने यह राजनीतिक रूप से गहरे संकट का समय है, वह यदि उत्साह में चीजों को आगे बढ़ाते हैं, तब समाजवादी पार्टी उन पर हमलावर हो सकती है और चुप्पी साधे रहते हैं तो उनके होने का अर्थ बेमानी हो सकता है।

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