Tuesday, October 15, 2024
Tuesday, October 15, 2024




Basic Horizontal Scrolling



पूर्वांचल का चेहरा - पूर्वांचल की आवाज़

होमविचारसोने का हिरन दिखा साधू वेश में ठगी की एक और अदा...

इधर बीच

ग्राउंड रिपोर्ट

सोने का हिरन दिखा साधू वेश में ठगी की एक और अदा है महिला आरक्षण

बिना किसी एजेंडे के रहस्यमयी तरीके से  बुलाया गया संसद का विशेष सत्र संसद और विधायिकाओं में महिलाओं को 33% आरक्षण देने का उतना ही रहस्यमयी क़ानून बनाकर और सत्ता पक्ष के ‘जय जय मोदी’ के जयकारों के साथ पूरा हो गया। प्रधानमंत्री मोदी ने इसे देश की लोकतांत्रिक यात्रा का ऐतिहासिक क्षण… नारी शक्ति […]

बिना किसी एजेंडे के रहस्यमयी तरीके से  बुलाया गया संसद का विशेष सत्र संसद और विधायिकाओं में महिलाओं को 33% आरक्षण देने का उतना ही रहस्यमयी क़ानून बनाकर और सत्ता पक्ष के ‘जय जय मोदी’ के जयकारों के साथ पूरा हो गया। प्रधानमंत्री मोदी ने इसे देश की लोकतांत्रिक यात्रा का ऐतिहासिक क्षण… नारी शक्ति का प्रतिनिधित्व और मजबूत करके … उनके सशक्तिकरण के नए युग की शुरुआत  करने वाला, उनकी शक्ति, साहस और सामर्थ्य को नई पहचान देने और न जाने क्या-क्या करने वाला बताया – बस वही नहीं बताया, जो बताना था कि ‘कब मरेगी सासू और कब आयेंगे आंसू’।

27 वर्ष के लम्बे इन्तजार और 8 बार निरस्त होकर 9वीं बार पारित होने वाला यह क़ानून देश के कानूनों के इतिहास में अकेला ऐसा क़ानून है, जो कब से अमल में आयेगा, इस बारे में कुछ भी निश्चित रूप से न कहा गया है, ना ही कहा जा सकता है। बिल को पारित करते समय बताया गया कि अगली जनगणना के बाद संसद का नया परिसीमन होगा, उस परिसीमन के बाद जो लोकसभा इत्यादि की संख्या निर्धारित की जायेगी, उसमें इस आरक्षण को लागू किया जाएगा। कायदे से जनगणना 2021 में होनी थी, जो कोरोना महामारी के चलते नहीं हुई। अब इसे 2026 में किये जाने पर विचार किया जा रहा है; अगर नहीं हुई, तो 2031 तक भी जा सकती है। हुई भी तो, उसकी रिपोर्ट के बनने और अलग-अलग आंकड़ों के विश्लेषण करने में समय लगेगा, फिर उन आंकड़ों के आधार पर परिसीमन में और ज्यादा समय लगेगा; जब यह सारा समय बीत जाएगा, तब कहीं जाकर इस क़ानून को अमल में लाने की प्रक्रिया शुरू होगी।  इस तरह यह स्पष्ट हो जाता है कि इस क़ानून को बनाने के लिए दिखाई गयी चुस्ती और फुर्ती का इरादा महिलाओं को उनके अधिकार देना नहीं है, कुछ और है।

सरकार की इस पहल पर इतना संदेह क्यों? इतना अविश्वास क्यों?  विश्वास न करने की वजहें हैं। यह अविश्वास मौजूदा सरकार ने अपनी कारगुजारियों और कर्मों से कमाया है।

मोदी के बाद बाद पार्टी के दूसरे ताकतवर नेता अमित शाह खुद कह चुके हैं कि चुनाव से पहले कही गयी बातें, किये गए वायदे पूरा करने की चीजें नहीं होतीं, वे भाषण में ताली बजवाने के लिए दिया जुमला होती हैं।

सिर्फ जुमलेबाजी में ही नहीं, मोदी सरकार ने माँगी गयी चीजों से दो गुना देने का कभी पूरा न होने वाला वादा करने के लिए हिंदी भाषा में प्रचलित ढपोरशंख की मिसाल भी पीछे छोड़कर की गयी घोषणाओं से ठीक उलटा करने वाले निचोड़ शंख का नया मुहावरा भी बनाया है। इस मामले में उनका रिकॉर्ड बला का दागदार है।  इसकी मिसालें उतनी ही हैं, जितनी कि इनके द्वारा की गयी घोषणाएं। इन सबको गिनाना शुरू किया, तो सुबह हो जायेगी।

उज्ज्वला योजना के नाम पर रसोई गैस सिलेंडर देने, दुनिया भर में जमा काला धन लाकर उसमें से हर भारतीय को 15-15 लाख रूपये देने, हर वर्ष 2-2 करोड़ नए रोजगार देने, किसानों की आमदनी दो गुनी कर देने जैसी घोषणाएं और उनके ठीक उलट परिणामों को ही देखकर कारपोरेट पूँजी के चूल्हे पर पकती नफरत की हांडी के बाकी चावलों का अंदाज लगाया जा सकता है।

सबका साथ सबका विकास किस तरह अडानी का साथ, अडानी का ही विकास और देश के  विनाश में बदला जा चुका है, यह बात तो अब पूरी दुनिया तक जानने लगी है।

साभार-गूगल

वर्ष 2014 में पहली बार  संसद जाने पर उसकी सीढ़ियों पर शीश नवाने का नतीजा संसद के लिए क्या निकला, यह इस देश के संसदीय लोकतंत्र के इतिहास में उसकी अनदेखी का रिकॉर्ड देखकर पता लग जाता है।

अभी जुम्मा-जुम्मा चंद रोज पहले संसद की नयी बिल्डिंग में जाते समय खुद मोदी ने इस नए संसद भवन में भाषा संयम और देश के सामने मिसाल कायम करने वाली अच्छी-अच्छी बातों की घोषणा की थी। इसके पीछे उनकी मंशा क्या थी, यह उन्हीं की पार्टी के सांसद विधूड़ी ने अपनी घिनौनी भाषा और उसके कहे पर उनके वरिष्ठ नेताओं हर्षवर्धन और रविशंकर प्रसाद की जरासंध और दुशासन अंदाज में ठहाकों मेन ही दिख गया।

देश जान गया कि सावरकर के जन्मदिन 28 मई को शंख फूंक, घंटा-घंटरिया बजाकर उदघाटन किया तो आभासीय था, इस नए संसद भवन का असल उदघाटन तो विधूड़ी ने ही किया है।

दूसरी बात यह कि  महिला आरक्षण क़ानून को नारी शक्ति का वन्दन अभिनन्दन बताने का क्रंदन करके जो आज अपनी पीठ खुद ही थपथपा रहे हैं, वे वही हैं, जिनके राज में महिलाओं के साथ किये जाने वाले अत्याचारों की घटनाओं ने सारे रिकॉर्ड टूटें हैं। इनमें सिर्फ जघन्यताओं की नई नीचाईयाँ ही कायम नहीं की गयीं, बल्कि कठुआ से उन्नाव होते हुए बिल्किस बानो तक खुद सत्ता गिरोह ने इन्हें अंजाम दिया, बिना किसी लाज, शर्म के। इसी सरकार और उसमें बैठी पार्टी भाजपा ने उनकी हर तरह से मदद भी की।

नारी शक्ति के वंदन अभिनन्दन का महिमामंडन वे कर रहे हैं, जिनके नेताओं ने महिला विरोधी बयानों की झड़ी लगा रखी है।

जिनका शीर्षस्थ नेता विपक्षियों के लिए विधवा, जर्सी गाय और पचास करोड़ की गर्ल फ्रेंड जैसे बोल वचन उच्चारने में ज़रा भी नहीं झिझकता।

जिसके नेता सार्वजनिक मंच और आमसभाओं में महिलाओं को कब्र से निकालकर उनके साथ बलात्कार करने का आह्वान करने में तनिक भी नहीं हिचकते।

महिलाओं के वन्दन अधिनियम की दुहाई वे दे रहे हैं, जो पूरी ताकत के साथ अपनी पार्टी के दुराचारी सांसद ब्रजभूषण शरण सिंह की ढाल और तलवार दोनों बनकर खड़े हुए हैं; वही ब्रजभूषण शरण जिसके द्वारा भारत की बेटियों, मैडल जीतने वाली खिलाड़ियों के साथ देश और देश के बाहर किये गए यौन उत्पीड़न के कारनामों, व्यभिचारी इरादों की लम्बी सूची वाली चार्जशीट दिल्ली की विशेष अदालत में खुद पुलिस ने दायर की है।

भाजपा में ये सब अपवाद नहीं हैं, नियम हैं। चुनावी इरादे से या  मजबूरी वश भले वह बिना तारीख वाला स्थगित क़ानून ले आयी हो, महिला विरोध के अपने बुनियादी रुख के प्रति वह पूरी तरह अडिग है। इसी ‘अडिगता’ की अभिव्यक्ति थी, जब इस क़ानून पर लोकसभा में बोलने के लिए पहले वक्ता के रूप में किसी महिला सांसद को खड़ा करने की बजाय आदिवासी और गरीब महिलाओं से लेकर विपक्षी राजनीति से जुडी  महिलाओं के खिलाफ अनर्गल, अशोभनीय, अभद्र और द्विअर्थी टिप्पणियाँ करने वाले सबसे कुख्यात भाजपाइयों में से एक निशिकांत दुबे से ‘नारी शक्ति के वंदन अभिनन्दन’ की आरती की शुरुआत करवाई गयी। क्या यह सब देखकर भी उस झांसे में आया जा सकता है, जिसे इस विशेष सत्र में बने इस क़ानून के जरिये देश की महिलाओं को देने की कोशिश की जा रही है।

तीसरी बात यह कि ये सारे किए धरे कुछ व्यक्तियों के भटकने या अनायास में हो गए मामले नहीं है। यह उस विचारधारा का व्यवहार है, जो स्त्री को समान मानना तो दूर, उसे इंसान तक मानने को तैयार नहीं है। उस विचार को त्यागे और धिक्कारे बिना किया गया दिखावा पाखण्ड के सिवा कुछ नहीं है। संघ संचालित भाजपा, जैसा कि वह स्वयं दावा करती है, बाकी पार्टियों की तरह सामान्य पार्टी नहीं है; वह अलग तरह की पार्टी है, जो अलग तरह का भारत बनाना चाहती है। यह अलग तरह का भारत कैसा होगा, इसे खोखले जुमलों, उलट नतीजों वाली घोषणाओं भर से नहीं, इनके लक्ष्य और उस तक पहुँचने के विचार से समझा जा सकता है। भाजपा और उसके मात-पिता संगठन के अब तक के दोनों बड़े आराध्य सावरकर और गोलवलकर इस विचार के प्रामाणिक व्याख्याकार हैं। महिलाओं को लेकर उनकी धारणाएं क्या हैं? आरएसएस के दूसरे सरसंघचालक, जिन्हें संघ गुरु जी मानता है, वे गोलवलकर कहते हैं कि ‘महिलायें मुख्य रूप से माँ है। उनका काम बच्चों को जन्म देना, पालना पोसना, संस्कार देना है।’ वे यहीं तक नहीं रुकते, इससे आगे जाकर कहते हैं कि ‘एक निरपराध स्त्री का वध पापपूर्ण है, परन्तु यह सिध्दांत राक्षसी के लिए लागू नहीं होता।’ राक्षसी कौन? राक्षसी वह, जो ‘परम्परा’ को न माने। उनके हिसाब से परम्पराएं क्या हैं, इसे बार-बार याद दिलाने की आवश्यकता नहीं।

वे एलानिया उस मनुस्मृति के दिन वापस लाना चाहते हैं, जिसमें लिखा गया है कि ‘परिवार में पुरुषों को चाहिए कि वे औरत को दिन-रात अपना गुलाम बना कर रखें और जब भी वे इंद्रिय भोग का सुख लेना चाहें, लें और स्त्री को हमेशा अपने  वश में रखें।’ जिसे संघ भारत का संविधान बनाना चाहता रहा है और आज भी यह इरादा नहीं छोड़ा है, वह मनुस्मृति ऐसा ग्रन्थ है, जो पूरे विस्तार के साथ महिलाओं की स्थिति के बारे में नियम निर्धारित करता है। इसके अध्याय नौ में 300 से ज्यादा श्लोक हैं, जिनमें महिलाओं के साथ किए जाने वाले बर्ताव के बारे में पूरे विस्तार से प्रावधान किए गए हैं। इसका एक श्लोक कहता है कि ‘सभी जातियों में इस कार्य को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिए कि  पत्नियों और महिलाओं पर चौकसी रखी जाये।’ एक और श्लोक में कहा गया है कि ‘ईश्वर ने महिला को बनाते वक्त उसमें जिस तरह की मनोवृत्ति जोड़ी थी, उस को ध्यान में रखते हुए यह जरूरी हो जाता है कि पुरुष पूरे ध्यान से उन पर निगरानी रखें।’ मनुस्मृति का एक और कुख्यात श्लोक महिलाओं के बारे में यह प्रावधान करता है कि ‘बचपन में उसे अपने पिता के संरक्षण में, युवा काल में पति के संरक्षण में और बुढ़ापे में अपने पुत्रगणों के संरक्षण में रहना चाहिए। एक औरत कभी भी स्वाधीन रहने के काबिल नहीं होती।’ इसमें कहा गया है कि ‘पति चरित्रहीन, लम्पट, निर्गुणी क्यों न हो, स्त्री का कर्तव्य है कि वह देवता की तरह उसकी सेवा करे।’

जिनके जन्मदिन को नए संसद भवन के उदघाटन के लिए चुना गया था, उन सावरकर  के अनुसार ‘मनुस्मृति वह शास्त्र है, जो हमारे हिन्दू राष्ट्र के लिए वेदों के बाद सबसे अधिक पूजनीय है और जो प्राचीन काल से ही हमारी संस्कृति-रीति-रिवाज, विचार और व्यवहार का आधार बना हुआ है। सदियों से इस पुस्तक ने हमारे राष्ट्र के आध्यात्मिक और दैवीय पथ को संहिताबद्ध किया है। आज भी करोड़ों हिन्दू अपने जीवन और व्यवहार में जिन नियमों का पालन करते हैं, वे मनुस्मृति पर आधारित हैं। मनुस्मृति हिंदू कानून है। यह मौलिक है।’ जबकि असलियत यह है कि मनुस्मृति धार्मिक ग्रन्थ नहीं- यह वर्णाश्रम की पुनर्व्याख्या नहीं है- यह मूलतः स्त्री के विरुद्ध है-  यह ऐसी शासन प्रणाली है, जिसका झंडा लाल किले या पार्लियामेंट के ध्वज स्तम्भ पर नहीं, स्त्री की देह में गाड़कर खड़ा किया जाता है। शूद्रों के खिलाफ वीभत्सतम बातें लिखने के साथ यह स्त्री को शूद्रातिशूद्र बताती है- मतलब उनसे भी जायदा वीभत्सतम बर्ताव की हकदार। नारी शक्ति वंदन अभिनन्दन का घड़ियाली रुदन करने वाले मोदी और उनका विचार-कुटुंब क्या इस मनुस्मृति को त्यागने और धिक्कारने के लिए तैयार है? अगर नहीं तो सीधे-सीधे द्रुतगति से दक्षिण की ओर दौड़ते जाते हुए उत्तर में पहुंचने का यह दावा झांसे के राजा की नई शिगूफेबाजी के सिवा कुछ नहीं है।

चौथी बात यह कि इन दिनों सनातन को अपने हिन्दू राष्ट्र का पर्याय और उसकी जीवन शैली बताते-बताते गला बिठा रहे इन सनातनियों के अनुसार उनके पवित्र सनातनी ग्रन्थ रामायण और महाभारत स्त्री के बारे में कितने ‘मौलिक’ विचार रखते हैं, इसकी बानगी के लिए दो उदाहरण काफी हैं। रामचरित मानस में तुलसी कहते हैं कि ‘महावृष्टि चली फुट किआरी / जिमि सुतंत्र भये बिगड़ें नारी।’ महाभारत में कहा गया है कि   ‘पति चाहे बोदा, बदसूरत, अमीर या गरीब कुछ भी हो, स्त्री के लिए उत्तम भूषण है।’ और यह भी कि ‘बेवक़ूफ़ और मूर्ख पति की सेवा करने वाली स्त्री अक्षयलोक को प्राप्त करती है।’  ये बात अलग है कि अक्षयलोक हो या स्वर्ग या जन्नत- पुरुष के लिए अप्सराएं हैं, परियां हैं, हूरें हैं-  स्त्री के लिए बेड़ियाँ हैं, श्राप हैं, नरक हैं।

इनके सनातनी राष्ट्र के स्टार ब्रांड एम्बेसडर बागेश्वर धाम का प्रवाचक नौकरियाँ करने और उनके हिसाब से परिधान श्रृंगार न पहनने वाली महिलाओं को खाली प्लाट बता ही चुका है। वे अकेले नहीं हैं–  महिलाओं को अपने संगठन में शामिल न करने वाले संघ ने अलग से एक राष्ट्र सेविका समिति बनाई हुई है। इसकी सरकार्यवाहिका सीता गायत्री आनन्दन ने अभी हाल ही में कहा था कि ‘हमारी परम्पराओं में महिला अधिकारों के बीच संतुलन चाहिए। पिता की संपत्ति में हिस्सा हमारी संस्कृति नहीं है। शास्त्रों में जिस तरह लिखा है, वैसा ही किया जाना चाहिए। वैवाहिक बलात्कार नाम की कोई चीज नहीं होती, यह पाश्चात्य धारणा है। समता, बराबरी, लोकतंत्र सब पाश्चात्य धारणाएं हैं।’

क्या मोदी और उनका कुनबा इस सबसे मुकर रहा है? अगर नहीं, तो यह 2024 के चुनावों की बदहवासी है। थैंक्यू मोदी जी, स्वागत-सत्कार, फूल मालाएं, पुष्प वर्षा, होर्डिंग, विज्ञापन, गोदी मीडिया की भाटगीरी के बावजूद इस चुनाव में हार का डर है, इसलिए  जुमलों और झांसों की बहार है। ठीक वैसी ही, जैसी अभी दो दिन पहले लखनऊ में सरसंघचालक मोहन भागवत ने मस्जिद, चर्च और गुरुद्वारों में जाने की बात करके की है।

जुमलेबाज भूल रहे हैं कि सोने का हिरन दिखा साधू वेश में ठगी करना बार-बार नहीं आजमाया जा सकता। जब दरिया झूम के उठते हैं, तो उन्हें इस तरह के तिनकों से नहीं टाला जा सकता।

गाँव के लोग
गाँव के लोग
पत्रकारिता में जनसरोकारों और सामाजिक न्याय के विज़न के साथ काम कर रही वेबसाइट। इसकी ग्राउंड रिपोर्टिंग और कहानियाँ देश की सच्ची तस्वीर दिखाती हैं। प्रतिदिन पढ़ें देश की हलचलों के बारे में । वेबसाइट को सब्सक्राइब और फॉरवर्ड करें।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here