लंदन (भाषा)। आयरलैंड के लेखक पॉल लिंच को उनके उपन्यास प्रॉफेट सॉन्ग के लिए लंदन में आयोजित एक कार्यक्रम में बुकर पुरस्कार 2023 से सम्मानित किया गया। लिंच ने लंदन में रहने वाली भारतीय मूल की लेखिका चेतना मारू के पहले उपन्यास वेस्टर्न लेन को पछाड़कर यह पुरस्कार अपने नाम किया।
लिंच (46) ने ‘प्रॉफेट सॉन्ग’ में निरंकुशता की चपेट वाले आयरलैंड की तस्वीर पेश की है। यह उपन्यास एक परिवार की कहानी बताता है जो एक ऐसी भयानक नयी दुनिया से जूझ रहा है जिसमें वे लोकतांत्रिक मानदंड गायब होने लगते हैं, जिनका वह आदी है। लिंच ने 50,000 पाउंड इनामी राशि वाला यह प्रतिष्ठित पुरस्कार जीतने के बाद कहा, ‘‘मैं आधुनिक अराजकता को देखने की कोशिश कर रहा था। मैंने पश्चिमी लोकतंत्रों में अशांति को देखने की कोशिश की। सीरिया की समस्या, शरणार्थी संकट का पैमाना और पश्चिम की उदासीनता…।’
लिंच यह पुरस्कार जीतने वाले आयरलैंड के पांचवें लेखक बन गए हैं। इससे पहले आयरलैंड के आयरिस मर्डोक, जॉन बैनविले, रॉडी डॉयल और ऐनी एनराइट ने यह प्रतिष्ठित पुरस्कार जीता था। लिंच को लंदन के ओल्ड बिलिंग्सगेट में आयोजित पुरस्कार समारोह में श्रीलंकाई लेखक शेहान करुणातिलका ने यह पुरस्कार दिया। करुणातिलका द सेवेन मून्स ऑफ माली अल्मेडा के लिए पिछले साल के बुकर विजेता थे।
इस साल पुरस्कार के लिए जो छह लेखक दावेदार थे, उनमें केन्या में जन्मी चेतना मारू भी शामिल हैं। मारू का उपन्यास ‘वेस्टर्न लेन’ ब्रिटिश गुजराती परिवेश पर आधारित है। बुकर पुरस्कार के विजेता का चयन करने समूह के सदस्यों ने जटिल मानवीय भावनाओं के रूपक के तौर पर स्क्वैश के खेल के उपयोग के लिए इस उपन्यास की प्रशंसा की थी।
इसके अलावा सारा बर्नस्टीन का उपन्यास ‘स्टडी फॉर ओबिडिएंस’, जोनाथन एस्कोफरी का ‘इफ आई सर्वाइव यू’, पॉल हार्डिंग का ‘द अदर ईडन’, और पॉल मरे का ‘द बी स्टिंग’ इस बार पुरस्कार के दावेदार थे। पुरस्कार की अंतिम सूची में जगह बनाने वाले हर दावेदार को 2,500 पाउंड दिए जाएंगे।
सन 2022 में गीतांजलि श्री के उपन्यास ‘टूम ऑफ सैंड’ विश्व की उन 13 पुस्तकों में शामिल थी, जिन्हें अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार के लिए शॉर्ट लिस्ट किया गया था। टूम ऑफ सैंड पहली हिन्दी ही नहीं बल्कि किसी भी भारतीय भाषा की पहली किताब थी जिसे बुकर सम्मान से सम्मानित होने का गौरव हासिल हुआ था। बुकर पुरस्कार दुनिया के सबसे स्म्मानित पुरस्कारों में से एक माना जाता है। गीतांजली श्री को यह पुरस्कार मिलना न सिर्फ हिन्दी साहित्य के लिए गर्व का विषय बना था बल्कि यह संपूरण भारतीय साहित्य के लिए गर्व करने का मौका बना था।