वाराणसी। भीषण ठंड और शीतलहरी के बीच पांडेयपुर-पहड़िया फ्लाईओवर के नीचे मात्र एक कम्बल ओढ़कर गीता अपने अपने तीन बच्चों (छह, चार और तीन वर्ष) के साथ गुज़र-बसर कर रही हैं। यहाँ उनका परिवार आठ महीने पहले आया है। इसके पहले वह लोग पुलिस लाइंस तिराहे पर रहते थे लेकिन उन्हें वहाँ से खदेड़ दिया गया।
गाँव के लोग डॉट कॉम के ग्राउंड रिपोर्ट में सामने आया कि गीता जैसे हजारों लोग बनारस में खुले आसमान के नीचे फुटपाथ पर सोने को मजबूर हैं, क्योंकि सरकार और प्रशासन की तरफ से उन्हें किसी प्रकार की कोई मदद नहीं मिली है। यह हाल जिले के कई स्थानों पर देखा जा सकता है।
कड़ाके की ठंड को देखते हुए यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ के निर्देश पर शहरी विकास मंत्री द्वारा पूरे प्रदेश में ‘मिशन मोड’ अभियान चलाया जा रहा है। इसके अंतर्गत जगह-जगह पर शेल्टर होम और रैन बसेरा बनाए जा रहे हैं। महिलाओं और पुरुषों के लिए अलग-अलग शेल्टर होम बनाने का आदेश था।
‘मिशन मोड’ की सच्चाई जानने के लिए संवाददाता ने पांडेयपुर, सारनाथ, आशापुर, अंधरापुल के पास रोड किनारे फुटपाथ पर सो रहे लोगों से बात की। उनका कहना है कि प्रशासन की तरफ से मदद मिली होती तो शायद हम मजबूरी में यहाँ नहीं सो रहे होते। फुटपाथ पर महिला और पुरुष के साथ ही छोटे-छोटे बच्चे भी खुले आसमान में सो रहे हैं। कड़ाके की ठंड से बचने के लिए लोग आग का सहारा ले रहे हैं।
बनारस शहर में अस्थायी रैन बसेरा तो कहीं-कहीं बनाए गए हैं लेकिन उसका लाभ सिर्फ बाहरी यात्रियों को मिल रहा है। बसेरा के ठीक बगल में वंचित और गरीब तबके के लोग आग सुलगाकर सर्द रातें गुज़ारते नजर आ रहे हैं।
ऐसी ही रातों ज़िक्र करते हुए गीता बताती हैं, ‘ठंड तो काफी लगती है। कुछ दिन पहले हुई बारिश में बच्चे काँप रहे थे तो ज़मीन पर एक कथरी बिछाकर बच्चों को कम्बल ओढ़ा दिया। उसके अंदर भी बच्चे दाँत कटकटाते रहे थे तो मैंने उन्हें अपनी गोद में छिपा लिया।
‘रैन बसेरा बगल में ही है लेकिन वहाँ का रख-रखाव करने वाला हम लोगों से आधार कार्ड माँगता है। सिर्फ रात गुज़ारने के लिए भी हमें रैन बसेरा में घुसने नहीं देता। इसलिए सड़क पर ही आग तापकर बच्चों के साथ रात गुज़ार लेती हूँ।’
भीषण ठंड में गीता अपने बच्चों को दूसरों के दिए हुए कपड़ों पहनाती है। उसके पास इतने पैसे नहीं कि सभी के लिए कनटोपी खरीद सके। खुद का दुशाला भी बच्चों को ओढ़ा देती हैं। कभी-कभार निज़ी संस्थाएँ या शादी-ब्याह वाले रात का खाना पहुँचा देते हैं।
पांडेयपुर फ्लाईओवर के नीचे बने अस्थायी रैन बसेरा में 24 बेड लगे हैं। 15 दिसम्बर को इसे नगर निगम ने बनवाया था। एक निगमकर्मी भी यहाँ तैनात कर दिया गया, ताकि संदिग्ध लोग इसमें न आ सकें। उसी रैन-बसेरा के ठीक बगल में गीता के साथ 30-35 लोग फुटपाथ पर अपनी रात गुज़ारते हैं। निगमकर्मी के अनुसार, उसे यह आदेश मिला है कि बसेरा में लगे बिस्तरों की सफाई व्यवस्था बनी रहे।
महंगाई और बेरोज़गारी के कारण आ गए यहाँ
तीस वर्षीय गीता मूलत: सिंधौरा के एक गाँव की रहने वाली हैं। पति अर्जुन क्षेत्र में ही दूसरे के खेतों में मजदूरी करते थे। पहले महंगाई उसके बाद बेरोज़गारी से ये लोग आज़िज हो गए। वहाँ काम की किल्लत देख अर्जुन परिवार के साथ बनारस आ गए और परिचितों के जुगाड़ से लेबर मंडी में खड़े होने लगे। वहाँ कभी-कभार बमुश्किल काम मिल जाता है।
अर्जुन प्रतिदिन गाँव नहीं जा सकते, क्योंकि उनकी कमाई का बड़ा हिस्सा सिर्फ किराए में खत्म हो जाएगा। वह बताते हैं, ‘महंगाई के कारण किराए के कमरा भी नहीं ले सकता। इसलिए बनारस में इधर-उधर रूक जाता हूँ। फिलहाल, पांडेयपुर फ्लाइओवर के नीचे रहता हूँ। रैन बसेरा में रहने के लिए आधार कार्ड माँगा जाता है। दूसरे जिले का आधार कार्ड कहाँ से लाऊँ?’
कुछ ऐसी ही कहानी है सारनाथ में फुटपाथ पर रहने वाली अनीता की। हवेलिया चौराहे पर अनीता अपने पति और बच्चों के साथ खुले आसमान के नीचे जीवन बसर कर रही हैं। उनके पति सीवर सफाई का काम करते हैं। वह बताती हैं कि ‘भीषण ठंड में बड़ी मुश्किल में ज़िंदगी गुजारनी पड़ती है। कोई हमारी समस्या पूछने वाला नहीं है।’
वह कहती हैं कि हवेलिया चौराहे के पास हमारी झोपड़ी प्रशासन ने उजाड़ दी। हम विरोध भी नहीं सकें। फुटपाथ पर हमें भगवान भरोसे छोड़ दिया गया। तिरपाल डालकर दोबारा रहना शुरू किया तो फिर हटा दिया गया। तीसरी मर्तबा जी20 के समय हमें खदेड़ दिया गया। तब से अब तक हम सड़क के किनारे ही किसी तरह से समय काट रहे हैं।
वाराणसी में वंचितों को खदेड़ने का यह पहला मामला नहीं हैं, बल्कि यहाँ विकास के नाम पर विस्थापन की त्रासदकथा का इतिहास नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद शुरू हो जाती है। कभी पुलिस लाइंस, राजातालब, मिर्जामुराद, चंदापुर, बड़ा लालपुर, मवइया, लहरतारा, कैंट, नमो घाट, खिड़किया घाट, लहरतारा-चौकाघाट फ्लाईओवर, काशी-विश्वनाथ कारीडोर, सारनाथ स्टेशन आदि के लोग विकास के नाम पर उजाड़े गए हैं।
ठंड के प्रकोप में ज़िंदगी काट रहे ‘फुटपाथ वाले’
पिछले हफ्ते से ठंड और शीतलहरी का प्रकोप यूपी में काफी बढ़ गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र में हजारों लोग सड़क पर ही अपनी ज़िंदगी गुज़ारने को विवश हैं। उन्हें न सरकारी योजनाएँ मिलती हैं न अन्य कोई लाभ। प्रतिदिन मजदूरी करके जो कमाई होती है, उससे दो वक्त की रोटी मिल जाती है। बच्चों की शिक्षा से लेकर दवाइयों के खर्च का जुगाड़ नहीं हो पाता। इसलिए शिक्षा उनके लिए ‘सपना’ ही हो गई है।
वंचित और गरीब तबके के यह लोग सर्दी के सितम को अपने कलेजे पर झेलते हैं। ठंड ज़्यादा होने पर आसपास के कूड़ा-करकट, प्लास्टिक को इकट्ठा करते हैं और उसे जलाकर ठंड के साथ अपने दुखों को भी राहत पहुँचाते हैं। लेकिन यह सहूलियत रोज़ नहीं मिल पाती और ठंड में ही खुद को सिकुड़कर इन्हें रात गुज़ारनी पड़ती है।
अंधरापुल के फुटपाथ पर बच्चों के साथ रहने वाले राजू और उनकी पत्नी मधु के साथ ही अन्य लोगों से जब बात की गई, तो उनका कहना है कि प्रशासन अगर मदद करता तो, हम यहाँ क्यों सोते? हम बच्चों और अपना पेट पालने के लिए इधर-उधर कमा कर फुटपाथ पर सोते हैं।
इन लोगों का यह भी कहना है कि अगर सोने की बेहतर जगह मिल जाए तो वह खुले आसमान के नीचे इस कड़ाके की ठंड में क्यों सोना पसंद करेंगे? आज कोई व्यवस्था उनके पास नहीं है। फुटपाथ पर बच्चों के साथ मजबूरी में सो रहे हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र बनारस में काम-धंधे की तलाश में बड़ी तादाद में आकर लोग रहते है। किसी के पास कोई स्थाई रोजगार नहीं होता। कभी भीख माँग कर तो कभी मेहनत-मजदूरी कर जीवनयापन करने वाले ऐसे बेसहारा और आवासहीन लोगों के सामने सर्द रात गुज़ारना सबसे बड़ी चुनौती होती है।
इन्हीं में से एक हैं गोविंद, जो किराए की ट्रॉली चलाते हैं, जिसका एक दिन का किराया सौ रुपये है। जब काम मिलता है तब ही गोविंद ट्रॉली लेते हैं। सारनाथ चौराहे के फुटपाथ पर रहने वाले गोविंद बमुश्किल अपनी बेटी की शादी कर चुके हैं। बेटा किराए के एक कमरे में रहता है, लेकिन गोविंद बेटे पर बोझ नहीं बना चाहते हैं। इसलिए खुद कमाकर ज़िंदगी गुज़ार रहे हैं।
सुबह चाय-ब्रेड और रात में निजी संस्थाओं द्वारा दिए जाने वाला खाना खाकर गोविंद सर्द रातों में ज़मीन पर एक कथरी बिछाकर सोते हैं। एक सवाल के जवाब में वह कहते हैं कि ‘…ज़मीन रहेगी तभी पीएम आवास मिलेगा। ‘आवास’ का सपना देखना अब मैंने छोड़ दिया। 60 बरस उम्र हो गई है। अब तो बस दुनिया से रुखसत होने का इंतज़ार है। बाकि ज़िंदगी तो सड़क पर कट ही गई है।’
बनारस में फुटपाथ पर गुज़र-बसर कर रहे लोगों के बाबत सारनाथ निवासी एक्टिविस्ट सौरभ सिंह बताते हैं कि जिले में प्रशासन द्वारा बहुत ही सुनियोजित तरीके से वंचित तबकों को हटाया जा रहा है। राजघाट में फुटपाथ पर रहने वाले लोग डुमरी चले गए। महमूरगंज में फुटपाथ पर रहने वाले लोग रोहनिया चले गए। आशापुर, सारनाथ में फुटपाथ पर रहने वाले लोग चिरईगाँव चले गए। पांडेयपुर में फुटपाथ पर रहने वाले लोग शिवपुर, कादीपुर, सिंधोरा चले गए। वंचित तबके को शहर से गाँव की ओर धकेल दिया जा रहा है, जहाँ वह नए सिरे से अपनी ज़िंदगी शुरू करेंगे। अब वह नई परेशानियों का सामना करेंगे।
सौरभ कहते हैं कि सड़क और विकास से जुड़े अन्य योजनाओं के नाम पर फुटपाथ पर रहने वाले लोगों को ही खदेड़ा गया। शहर का विकास हर तबके का आदमी चाहता है, लेकिन उसके लिए समाज के एकदम निचले वर्ग की उपेक्षा कर देना सही नहीं लगता। एक्टिविस्ट सौरभ इन दिनों फुटपाथ पर रहने वाले लोगों में गर्म कपड़े-कम्बल वगैरह बांट रहे हैं। ताकि शीतलहरी से होने वाली कोई जनहानि न हो सके।
सामाजिक कार्यकर्ता बीना सिंह कहती हैं कि सरकार ने वंचित समाज को मेन स्ट्रीम से जोड़ने के लिए कई योजनाएँ तो बनाई हैं, लेकिन इन लोगों को लाभ उन्हें क्यों नहीं मिल पा रहा है, यह शोचनीय है और बड़ा सवाल भी। बीना कहती हैं कि पिछले एक हफ्ते से शीतलहर चल रही है। बारिश से जनजीवन बेहाल है। ठंडी हवाओं के झोकों से आम आदमी जमता हुआ नजर आ रहा है। ऐसे में फुटपाथ पर रहने वाले लोग खुले आसमान के नीचे फटे-पुराने कपड़े लपेटकर गुज़र-बसर कर रहे हैं। रैन बसेरों की बदइंतजामी इन गरीबों का एक और इम्तिहान ले रही है।
यूपी में चलाए जा रहे ‘मिशन मोड’ के अंतर्गत योगी सरकार ने फुटपाथ और खुले में सोने वालों पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाने का निर्देश दिया था। पर बनारस में सरकार के इस मिशन का कहीं पर भी असर ज़मीन पर दिखाई नहीं दे रहा है।