Friday, December 27, 2024
Friday, December 27, 2024




Basic Horizontal Scrolling



पूर्वांचल का चेहरा - पूर्वांचल की आवाज़

होमराजनीतिLok Sabha Election : भाजपा और कांग्रेस ने सिर्फ 13-14 फीसदी महिलाओं...

इधर बीच

ग्राउंड रिपोर्ट

Lok Sabha Election : भाजपा और कांग्रेस ने सिर्फ 13-14 फीसदी महिलाओं को ही टिकट दिया, महिला आरक्षण के दावे हवा-हवाई

लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर उम्मीदवारों की घोषणा जारी है। हैरान करने वाला तथ्य यह है कि भाजपा और कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव 2024 के लिए अभी तक मुस्लिम समुदाय की एक भी महिला को अपना उम्मीदवार नहीं बनाया है।

दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में लोकसभा चुनाव जारी है। भारत के सबसे बड़े आम चुनावों में देश की आधी आबादी का प्रतिनिधित्व गायब है। देश के दो सबसे बड़े राजनीतिक दल भाजपा और कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव 2024  के लिए अभी तक सिर्फ 13-14 फीसदी महिलाओं को ही उम्मीदवार बनाया है। 10 अप्रैल तक भाजपा द्वारा घोषित 428 उम्मीदवारों में महिला उम्मीदवारों की संख्या सिर्फ 56 है। कांग्रेस की बात की जाए तो 14 अप्रैल तक घोषित 278 उम्मीदवारों में महिला उम्मीदवारों की संख्या सिर्फ 37 है। 

महिला आरक्षण विधेयक (नारी शक्ति वंदन अधिनियम) बन चुका है कानून

गत वर्ष मानसून सत्र के खत्म होने के बाद सरकार ने संसद का विशेष सत्र बुलाने की घोषणा की। देश भर में राजनीतिक सरगर्मियाँ तेज हो गईं। सभी की जुवान पर एक ही सवाल था कि इस विशेष सत्र को बुलाए जाने की क्या वजह है ? क्या खास होने वाला है ? सरकार क्या करने वाली है ? इस दौरान तमाम कयास लगाए जाते रहे। इन कयासबाजियों के बीच 18 सितंबर भी आ गया और संसद का विशेष सत्र शुरू हुआ। 18 सितंबर को महिला आरक्षण से संबंधित बिल नारी शक्ति वंदन अधिनियम को मंत्रिमंडल से मंजूरी दी गई। 19 सितंबर को यह लोकसभा में पेश किया गया। इस बिल का लगभग सभी राजनीतिक दलों ने समर्थन किया। 20 सितंबर को यह बिल लोकसभा में भारी बहुमत से पारित हो गया। 21 सितंबर को यह बिल राज्यसभा में पारित हुआ। 29 सितंबर को राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद नारी शक्ति वंदन अधिनियम कानून बन गया। भारत में महिला आरक्षण से संबंधित दशकों पुरानी मांग पूरी हो जाने के दावे किए गए। इस कानून के तहत संसद और विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 फ़ीसदी आरक्षण देने का प्रावधान किया गया है।

महिलाओं के साथ छल ?

कानून बनने के बाद सरकार ने महिला आरक्षण कानून को 2024 के लोकसभा चुनाव में लागू करने में असमर्थता भी जता दी । सरकार का तर्क है कि परिसीमन के बिना महिला आरक्षण को लागू नहीं किया जा सकता। परिसीमन यानि निर्वाचन क्षेत्रों की सीमा तय करने की प्रक्रिया। ये निर्वाचन क्षेत्र प्रस्तावित जनगणना से प्राप्त आंकड़ों के आधार पर तय किए जाएंगे। नियमानुसार यह जनगणना 2021 में होनी थी लेकिन कोविड-19 के कारण नहीं हो पाई। जनगणना 2022 में भी टाल दी गई और 2023 में भी नहीं कराई गई। जनगणना कब होगी इस बारे में अभी कोई पुख्ता सूचना नहीं है। कब जनगणना होगी, कब परिसीमन होगा और कब महिला आरक्षण कानून लागू होगा? इस बारे में कुछ भी निश्चित तौर पर नहीं कहा जा सकता। माहिला आरक्षण से संबंधित बिल पेश हुआ, पारित हुआ, कानून बना लेकिन लागू नहीं हुआ। जो कानून लागू ही नहीं हुआ उस कानून का क्या मतलब ? 

इस मुद्दे पर विपक्षी दलों ने सरकार को घेरा। 2024 की लोकसभा में महिलाओं का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित न किए जाने पर सरकार की मंशा पर सवाल उठाए। विपक्षी दलों ने आरोप लगाया कि यह महिलाओं को प्रतिनिधित्व देने के बजाय उनके प्रतिनिधित्व को वर्षों के लिए अटकाने वाला कानून है। 

कांग्रेस पार्टी ने ट्वीट कर आरोप लगाया, ‘महिला आरक्षण बिल की क्रोनोलॉजी समझिए यह बिल आज पेश जरुर हुआ लेकिन हमारे देश की महिलाओं को इसका फायदा जल्द मिलते नहीं दिखता। ऐसा क्यों? क्योंकि यह बिल जनगणना के बाद ही लागू होगा। आपको बता दें, 2021 में ही जनगणना होनी थी, जोकि आज तक नहीं हो पाई। आगे यह जनगणना कब होगी इसकी भी कोई जानकारी नहीं है। खबरों में कहीं 2027 तो 2028 की बात कही गई है। इस जनगणना के बाद ही परिसीमन या निर्वाचन क्षेत्रों का पुनर्निर्धारण होगा, तब जाकर महिला आरक्षण बिल लागू होगा। मतलब PM मोदी ने चुनाव से पहले एक और जुमला फेंका है और यह जुमला अब तक का सबसे बड़ा जुमला है। मोदी सरकार ने हमारे देश की महिलाओं के साथ विश्वासघात किया है, उनकी उम्मीदों को तोड़ा है।’

क्या 18वीं लोकसभा में महिलाओं का एक तिहाई प्रतिनिधित्व सुनिश्चित नहीं किया जा सकता था ? 

जनगणना और परिसीमन जैसी लंबी प्रक्रियाओं का हवाला देकर 18 वीं लोकसभा में महिलाओं के एक तिहाई प्रतिनिधित्व के सवाल को टाल दिया गया। देश के राजनीतिक दलों की मंशा और इच्छाशक्ति होती तो 18 वीं लोकसभा में ही महिलाओं का एक तिहाई प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया जा सकता था। यदि इंडिया और एनडीए गठबंधन सुनिश्चित करते कि वे लोकसभा चुनाव 2024 में 35-40% महिला प्रत्याशियों को हर हाल में अपना उम्मीदवार बनाएंगे, लेकिन ऐसा नहीं किया गया। यह देश के राजनीतिक दलों की राजनीति में महिला भागीदारी को लेकर उदासीनता को दर्शाता है। 

महिला आरक्षण के पैरोकार देश के 2 मुख्य राष्ट्रीय राजनीतिक दल कितने पानी में ?

10 वर्षों से केंद्र में सत्तासीन पार्टी भाजपा की बात की जाए तो लोकसभा चुनाव 2024 में महिलाओं को उम्मीदवार बनाने के मामले में यह पार्टी फिसड्डी रही है। 10 अप्रैल तक भाजपा 428 उम्मीदवारों की घोषणा कर चुकी है। इन 428 उम्मीदवारों में महिलाओं की संख्या सिर्फ 56 है यानि कुल घोषित उम्मीदवारों का सिर्फ 13 प्रतिशत। 

यही हाल देश की दूसरे सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस का भी है। 14 अप्रैल तक कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव हेतु कुल 278 उम्मीदवारों की घोषणा की है। जिसमें महिला उम्मीदवारों की संख्या सिर्फ 37 है। यानी कुल घोषित उम्मीदवारों का सिर्फ 13.3 प्रतिशत। 

यह हाल देश के 2 सबसे मुख्य राष्ट्रीय राजनीतिक दलों का है। ये दोनों ही दल खुद को राजनीति में महिला प्रतिनिधित्व का पैरोकार बताते हैं। ये दोनों ही दल अपने संगठन के अंदर भी और संसद में भी महिलाओं को उचित प्रतिनिधित्व देने में नाकाम रहे हैं।  

दोनों ही राष्ट्रीय दलों की इन महिला उम्मीदवारों में से एक भी महिला उम्मीदवार मुस्लिम समुदाय से नहीं है। यह इन राजनीतिक दलों के दावों के खोखलेपन को दर्शाता है। इसके अलावा अनुसूचित जाति और जनजाति समुदाय की महिलाओं को आरक्षित सीटों से ही उम्मीदवार बनाया गया है। दोनों ही दलों के प्रत्याशियों की सम्पूर्ण घोषणा हो जाने और अंतिम सूची आ जाने के बाद हम अनुसूचित जाति और जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) एवं अल्पसंख्यक समुदाय की महिलाओं की उम्मीदवारी का विश्लेषण भी प्रस्तुत करेंगे। हम बताएंगे कि खुद को महिला आरक्षण का पैरोकार बताने वाले इन दलों ने एससी-एसटी, ओबीसी एवं मुस्लिम समुदाय की कितनी महिलाओं को अपना उम्मीदवार बनाया है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here