Tuesday, December 3, 2024
Tuesday, December 3, 2024




Basic Horizontal Scrolling



पूर्वांचल का चेहरा - पूर्वांचल की आवाज़

होमग्राउंड रिपोर्टग्राम प्रहरी उर्फ़ गोंड़इत अर्थात चौकीदार : नाम बिक गया लेकिन जीवन...

इधर बीच

ग्राउंड रिपोर्ट

ग्राम प्रहरी उर्फ़ गोंड़इत अर्थात चौकीदार : नाम बिक गया लेकिन जीवन बदहाल ही रहा

इस सरकार ने जमीनी तौर पर कोई काम किया हो या न किया हो, कह नहीं सकते लेकिन नाम बदलने का काम बहुत किया है। इलाहाबाद का नाम प्रयागराज, योजना आयोग हो गया नीति आयोग, विकलांग हो गए दिव्याङ्ग और चौकीदार हो गए ग्राम प्रहरी। लेकिन नाम बादल देने से कुछ बदलने वाला नहीं है। ग्राम प्रहरी उर्फ़ गोंड़इत अर्थात चौकीदारों के सामने आज जीवन चलाने का बड़ा संकट खड़ा है। सरकार उन्हें कर्तव्य तो बताती है लेकिन अधिकार से महरूम रखती है। पढ़िये ग्राम प्रहरियों की वास्तविक स्थिति की पड़ताल करती संतोष देवगिरि की ग्राउंड रिपोर्ट।

बहुत ज्यादा साल नहीं बीते हैं जब भाजपा का हर समर्थक ‘मैं भी चौकीदार’ मार्का टोपी पहनकर नरेन्द्र मोदी के बचाव में उतरा था और इस जुमले ने 2019 के चुनाव में मोदी को फ़तेह दिलाई थी। गौरतलब है कि मोदी ने दस साल पहले अपने आपको देश का चौकीदार कहा था और इस बात का दावा किया कि मैं देश नहीं बिकने दूँगा। लेकिन उनके पहले कार्यकाल में ही रफ़ाएल घोटाले की गूँज पूरे देश में सुनाई पड़ी थी और राहुल गाँधी ने यह कहना शुरू किया कि; ‘चौकीदार चोर है।’

ज़ाहिर है यह बात मोदी के लिए बहुत संगीन आरोप थी लेकिन सत्ता की हनक में एक तो रफ़ाएल घोटाले की जांच जहाँ की तहाँ रह गई, दूसरे मोदी ने अपनी चौकीदारी को चुनावी स्लोगन बना दिया।

लेकिन वास्तव में चौकीदारों की क्या स्थिति है इस पर कभी गौर कीजिये तब पता चलेगा कि वे गुलामों की तरह जीवन बसर कर रहे हैं। आज भी उन्हें मात्र 2500 रुपये मानदेय मिलता है और वह भी महीने के शुरू में नहीं बल्कि अंत में। इसके बदले में उन्हें थानों के कई ऐसे काम करने पड़ते हैं जो उनकी जिम्मेदारी में नहीं होते बल्कि डांट-डपट और प्रताड़ना के माध्यम से उनसे जबरन कराया जाता है।

यह कहानी उत्तर प्रदेश के सत्तर हज़ार चौकीदारों की है। अंग्रेजों के ज़माने विलेज गार्ड अब योगीराज में ‘ग्राम प्रहरी’ के नाम से जाने जाते हैं जिनका काम गाँव की हर घटना-दुर्घटना की सूचना थाने तक पहुँचाना है। ये लोग गाँवों और पुलिस प्रशासन के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी हैं लेकिन हालात का शिकार होकर लगातार बदरंग होते जा रहे हैं।

munna dharkar gram prahari-gaonkelog
बुजुर्ग चौकीदार मुन्नर धरकार, दिन बदलने की उम्मीद आज भी है

टूटे-फ़ूटे हुए शब्दों में अपनी आपबीती बताते हुए 75 वर्षीय बुजुर्ग चौकीदार मुन्नर धरकार की आंखें भर आती हैं, कंठ से निकलने वाली आवाज़ लड़खड़ाने लगती है। थोड़ा संभलने के बाद वह फिर से बोलते हैं, ‘मैं मवैया गांव का चौकीदार (ग्राम प्रहरी) हूं।  इंदिरा गांधी, राजीव गांधी के जमाने से 11 रुपया पर आप लोगों का सेवा करते आ रहे हैं। कांग्रेस और मुलायम सिंह से लेकर मोदी जी की सरकार, किसी ने भी एक आवास तक नहीं दिया है। 11 रुपया से 32 रुपया, फिर सौ रुपया अब 25 सौ रुपया हुआ।

‘कहीं ‘अंते’ (घर-गांव से दूर) कुछ करता तो घर-परिवार के लिए कुछ कर लिया होता, लेकिन यहाँ कुछ कर नहीं पाया। लड़के भी ऐसे-तैसे पल रहे हैं। इतनी पगार में घर-परिवार चलाऊँ कि बेटों को पढ़ाऊं-लिखाऊं? पूरा जीवन खपा दिया चौकीदारी में। अब तो कुछ बचा ही नहीं है। जो पहले हाल था आज उससे भी बदतर हाल हो उठा है।’

ग्राम प्रहरी के पेशे से जुड़ा हुआ हर व्यक्ति अपनी बदहाली भरी जिंदगी की ऐसी ही कहानी सुनाता है। उसका सबसे बड़ा सवाल है कि एक चौकीदार के रूप में उसे क्या हासिल हुआ है? वह अपनी ही नहीं अन्य चौकीदारों की व्यथा-कथा को भी शब्द दे देता है क्योंकि सभी की कहानियां एक ही हैं। प्रायः चौकीदारों का कहना होता है कि ‘हम गरीब लोग हैं, हालात के मारे हुए हैं, इसलिए हम लोगों की कहीं कोई सुनवाई नहीं होती है। न ही हम लोगों की बदहाली किसी को दिखाई देती है।’

चौकीदार अपनी ड्यूटी को शिद्दत से निभाते आ रहे हैं, इसके बावजूद उन्हें वे सुविधाएं आज भी मयस्सर नहीं हो पाई हैं जिनकी उन्हें दरकार है। तमाम धरना-प्रदर्शनों, जिला मुख्यालय से लेकर राजधानी तक गुहार लगाने के बाद भी कोरे आश्वासनों के सिवा कुछ भी हासिल नहीं हो सका है।

यह भी पढ़ें –आखिर कम क्यों नहीं हो रहे हैं महिलाओं के खिलाफ अपराध

अंग्रेजों के ज़माने में जिस पगड़ी का खौफ़ होता था, अब उसका रंग उड़ चुका है

‘चौकीदार’ शब्द ज़ेहन में आते ही सिर पर लाल पगड़ी (साफा) बांधे हुए व्यक्ति का चेहरा सामने आ जाता है, जिन्हें आम बोलचाल की भाषा में ‘गोंड़इत’ और ‘पहरा देने वाला’ अथवा ‘पहरी’ भी कहा जाता है। मौजूदा समय में योगी सरकार ने इन्हें ‘ग्राम प्रहरी’ का नाम दे दिया है। नया नाम तो जरूर दे दिया गया है, लेकिन इनकी माली हालत आज भी पहले जैसी बनी हुई है। मैले कुचैले-कपड़े, पैरों में घिस चुके जूते-चप्पल और सिर पर बंधी हुई पहचानपरक लाल पगड़ी का उड़ा हुआ रंग इनकी दीन-हीन दशा को दूर से ही दर्शाता है।

गांव से पुलिस थानों और चौकियों तक जाने-आने के लिए साइकिल का सहारा, काम के नाम पर हुजूर की चाकरी, थानों के कमरों की साफ-सफाई से लेकर हर वह विधि विरुद्ध कार्य जो चौकीदार का नहीं होता फिर भी करना पड़ता है। ग्रामीण सुरक्षा-व्यवस्था की प्रमुख कड़ी और सूचना का सहायक पूरी तरह उपेक्षित है। उसे हर कहीं से निराशा हाथ लगी है।

उनसे अधिक चुनावी जुमलों का दर्द कौन जानता होगा? 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले ‘चौकीदार’ को लेकर जब देश में सियासत तेज हुई थी और भाजपा ने इसे चुनावी मुद्दा बना दिया था। सोशल मीडिया पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में ‘मैं भी चौकीदार’ कैंपेन लांच किया गया।

इसके बाद भाजपा के तमाम नेताओं ने अपने नाम के आगे ‘चौकीदार’ लगाना शुरू कर दिया था, लेकिन चौकीदारी पर शुरू हुए सियासी शोर के बीच वह असली चौकीदार कहीं गुम हो गया है, जो दशकों से रातों में जागकर समाज की सुरक्षा करता आ रहा है। मनरेगा मजदूरों से भी बदतर जीवन जी रहे और फिर भी अपनी ड्यूटी करते हुए आए इन चौकीदारों की सुध किसी ने नहीं ली है।

आर्थिक, मानसिक और सामाजिक तौर पर होते हैं प्रताड़ित 

चौकीदार संघ (ग्राम प्रहरी) मिर्ज़ापुर के जिलाध्यक्ष शम्भू कहते हैं,  ‘प्रत्येक थानों पर चौकीदार कार्यरत है। सभी को प्रत्येक महीने की 1 या 2 तारीख तक वेतन दिया जाना नितान्त आवश्यक होना चाहिए लेकिन ऐसा हो नहीं रहा है। चौकीदारों को समय से वेतन नहीं दिया जाता है। इन लोगों को वेतन महीने के अन्त में दिया जाता है, जिससे इन लोगों को भुखमरी जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है तथा बच्चों की पढाई-लिखाई में व्यवधान उत्पन्न होता चला आ रहा है।’

gram prahari-gaonkelog
चौकीदार संघ (ग्राम प्रहरी) मिर्ज़ापुर के जिलाध्यक्ष शम्भू

वह आरोप लगाते हैं कि चौकीदारों का काम गांव की सूचना देना और पहरा देना होता है लेकिन चौकीदारों से प्रत्येक थाने की पुलिस द्वारा न केवल पूरे समय ड्यूटी कराई जाती है बल्कि समय के बाद शाम को बुलाकर के झाड़ू-पोंछा और बर्तन की धुलाई का काम कराया जाता है। और तो और नाली की सफाई भी जबरिया कराई जाती है, जो विधि विरुद्ध है। नहीं करने पर चौकीदारों का वेतन काटा जाता है और उन्हें तरह-तरह से प्रताड़ित किया जाता है।’ वह जोर देते हुए कहते हैं कि ‘चौकीदार जिस कार्य के लिए अधिकृत हैं, उनसे वही कार्य करवाया जाय। अनर्गल कार्य नहीं कराया जाना चाहिए। जो लोग चौकीदारों से विधि विरुद्ध  कार्य करवाते हैं उन्हें दण्डित किया जाना चाहिए।’

चौकीदार अमृतलाल, रामदास, कमलेश कुमार, दीपक कुमार कहते हैं ‘सभी चौकीदारों को प्रत्येक महीने की 1-2 तारीख तक वेतन का भुगतान कराया जाय, साथ ही साथ जिस कार्य के लिए वह अधिकृत है वही कार्य कराया जाय और जिस कार्य के लिए वह अधिकृत नहीं है वह कार्य जबरिया या प्रताड़ित करके नहीं कराया जाना चाहिए। इसके लिए सभी थानों की पुलिस को आदेशित एवं निर्देशित कर चौकीदारों को सम्मान दिया जाना चाहिए ताकि गांव समाज में उनके प्रति एक अच्छा संदेश जाए।’

पुलिस रेगुलेशन एक्ट की अनदेखी करते हुए चौकीदारों का मनमाना शोषण एक खतरनाक संकेत है। गौरतलब है कि पुलिस रेगुलेशन अध्याय 9/11.12.13 के अनुसार ग्राम प्रहरियों को गांव की रखवाली और थानों पर वहां की सूचना देने के लिए रखा गया है, किंतु चौकीदारों से बात करने पर पता चलता है कि लगातार थानों-चौकियों पर इनसे बेगारी कराई जाती है। न करने पर इनको धमकाया जाता है और नौकरी से हटाने की धमकी दी जाती है। इतने सबके बाद भी मौजूदा समय में वेतन के नाम पर सिर्फ इनको 2500 रुपए दिए जाते है।

यह भी पढ़ें – Varanasi : 15 साल पहले बनाकर छोड़ दिया सामुदायिक केंद्र, डॉ कहीं और से करते हैं इलाज

दिल्ली हो या लखनऊ हर कहीं से सिर्फ जुमले मिले 

पूरे उत्तर प्रदेश में ग्राम प्रहरियों की संख्या लगभग 70,000 है। अपने हक-अधिकार के लिए चौकीदार लंबे समय से संघर्षरत हैं। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में पिछले वर्ष चौकीदारों ने धरना दिया था, जहां कोरे आश्वासन की घुट्टी पिलाकर इन्हें गुमराह कर दिया गया और इन्हें कुछ हासिल नहीं हुआ।

विनोद बिंद, फूलचंद, अमरनाथ, अवधेश आदि आरोप लगाते हैं कि ‘2017 में योगी आदित्यनाथ ने वादा किया था कि यदि उनकी सरकार बनती है तो ग्राम प्रहरियों को 10500 वेतन देंगे। लेकिन बाद में पता चला कि यह केवल जुमलेवाजी भर थी। यूपी की सत्ता पर योगी के दूसरी बार काबिज़ होने के बाद भी चौकीदारों की दीन-हीन दशा में सुधार की कोई गुंजाइश नहीं नज़र आती है।

गांवों में चौकीदार की नियुक्ति अंग्रेजों के समय से ही शुरू हुई थी। उस वक्त ये लोग गांव की रखवाली के साथ ही मुखबिर का भी काम किया करते थे। कमोबेश यही व्यवस्था आज भी बरक़रार है और चौकीदार स्थानीय पुलिस की ख़ुफ़िया तंत्र का एक अहम हिस्सा है। किसी भी वारदात को सुलझाने और अपराधियों को पकड़वाने में आज भी चौकीदारों की मुख्य भूमिका होती है। समय के साथ चौकीदारी का काम गांवों से निकलकर शहर तक जा पहुंचा है। आज शहरों में कई सिक्योरिटी एजेंसियां गार्ड्स मुहैया करा रही हैं, जो घरों, दफ्तर, दुकान और मॉल में अपनी सेवाएं दे रहे हैं, लेकिन गांव के चौकीदारों की माली स्थिति आज भी नहीं सुधरी है। इनमें भी सबसे बुरी स्थिति ग्राम प्रहरी की है क्योंकि उसका वेतन सबसे कम है। शहरी चौकीदार फ़िलहाल दस-बारह हज़ार रुपया महीना वेतन पाते हैं जबकि ग्राम प्रहरी महज़ ढाई हज़ार वेतन पाता है।

एक चौकीदार की पहचान लाल पगड़ी व सुरक्षा के नाम पर डंडे तक ही सीमित है। पहले जहां एक चौकीदार को 1500 रुपए मासिक मिलता था, अब मौजूदा सरकार द्वारा बढ़ाकर 2500 रुपए कर दिया गया है। यह रकम आज के मंहगाई के युग में कहीं से भी पर्याप्त नहीं  है। एक मनरेगा मजदूर से भी गई गुजरी चौकीदार की स्थिति हो चली है।

चौकीदारों को सिर पर बांधने के लिए लाल साफा, टार्च, सर्दी का जैकेट और साइकिल भी सरकार की तरफ से दी जाती है, लेकिन पिछले कई वर्षों से ये सब मिला ही नहीं। सपा सरकार में इन्हें साइकिलें दी गई थीं लेकिन उसके बाद से साइकिल नहीं मिली और न ही साइकिल भत्ता ही मिला है। महेवां गांव के रहने वाले निरहू का कहना है कि उन्होंने सरकार से अन्य सुविधाएं देने के लिए कई बार मांग की है, परन्तु आज तक उनकी कोई भी सुनवाई नहीं हुई है।’

gram prahari-gaonkelog
ज्ञापन देने के लिए एकत्रित ग्राम प्रहरी

एक चौकीदार को जहां किसी भी घटना की जानकारी तुरंत देनी होती है, वहीं सामान्य हालात में भी उसे संबंधित गांव की जानकारी प्रति सप्ताह थाने में देनी होती है। चौकीदार की उपस्थित के लिए कोई रजिस्टर नहीं बनाया जाता है, बल्कि एक तख्ती पर ही उपस्थिति दर्ज की जाती है। इसमें भी उनके साथ मनमानी की जाती है। स्थिति तब और बुरी हो जाती है जब थानों में सिपाहियों की कमी के कारण चौकीदारों की जिम्मेदारी काफी बढ़ जाती है। जिन गांवों में गोलबंदी के कारण तनाव की स्थिति बनती है अथवा अपराधिक घटनाएं घटती हैं, तब इस सबके पीछे चौकीदार की कर्तव्य के प्रति लापरवाही माना जाता है। इन्हें कसूरवार ठहरा दिया जाता है, जबकि आज के आधुनिक तकनीक वाले युग में चौकीदारों को कितनी सुविधाएं और संसाधन दिए गए हैं इस पर कोई सामने आकर बोलने को तैयार नहीं होता है। अपराधी और बदमाश जहां हर सुविधाओं से लैस मिलते हैं वहीं चौकीदारों को कोई संचार सुविधा भी नहीं दी गई है, ऐसे में वह कैसे इनका मुकाबला कर सकते हैं और कैसे त्वरित सूचना के सारथी साबित हो सकतें हैं कल्पना किया जा सकता है।

लखनऊ के रहने वाले अन्नू त्रिपाठी ग्रामीण चौकीदार संघ की लड़ाई लड़ते आए हैं। वह चौकीदारों की समस्यायों के बारे में पूछे जाने पर बताते हैं कि ‘चौकीदारों की कोई एक समस्या हो तो बताई जाए, यहां तो समस्याओं का अंबार लगा हुआ है।’

वह कहते हैं कि पहले भी दिल्ली के जंतर-मंतर पर उत्तर प्रदेश ग्रामीण चौकीदार संघ की तरफ से विभिन्न मांगों को लेकर एक दिवसीय धरना-प्रदर्शन का आयोजन किया गया था। जंतर-मंतर पर जुटे ग्रामीण चौकीदार संघ के लोगों ने देश के ‘चौकीदार प्रधानमंत्री’ से गुहार लगाई। चौकीदारों की वेतन वृद्धि और राज्य कर्मचारी का दर्जा देने की मांग प्रमुखता से उठाई गई, लेकिन अभी तक कोई भी संतोषजनक जवाब नहीं मिला है, न ही कोई विचार किया गया।

gram prahari-gaonkelog
लखनऊ के अन्नू त्रिपाठी ग्रामीण चौकीदार संघ की लड़ाई का नेतृत्व करते

ग्राम प्रहरियों द्वारा सम्मानजनक वेतन की मांग 

उत्तर प्रदेश ग्राम प्रहरी चौकीदार संघ की तरफ से धरने की अध्यक्षता करने वाले सुरेमन पासवान कहते हैं ‘उत्तर प्रदेश के लगभग 70000 ग्राम प्रहरी चौकीदार 2500 अल्प वेतन में निरंतर गाँवों की निगरानी रखवाली करते हुए, आपराधिक गतिविधियों की सूचना थाना पर देते हैं। ग्राम प्रहरी महंगाई की मार को झेलते हुए कई वर्षों से अपनी मांग को शासन-प्रशासन तक पहुंचाते रहे हैं, लेकिन अभी तक हमारी मांगों पर गंभीरता से विचार करने की बजाए उन्हें नजरंदाज ही किया गया है।’

वह बताते हैं कि उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने से पहले चौकीदार संघ के अध्यक्ष एवं प्रतिनिधियों को भाजपा नेताओं ने लखनऊ में बुलाकर यह वादा किया था कि आप मेरा साथ दीजिए, सरकार बनने पर आप सभी ग्राम प्रहरियों की वेतन वृद्धि करते हुए आपको राज्य कर्मचारी का दर्जा दिया जाएगा। सरकार बनने पर केंद्र सरकार द्वारा 10500 प्रति माह दिलाया जाएगा। लेकिन दु:खद है कि उत्तर प्रदेश के ग्राम प्रहरियों ने दो बार सरकार बनाने में अपनी अहम भूमिका निभाई, लेकिन सरकार द्वारा चौकीदार पद का नाम बदलने के अलावा कोई मांग पूरी नहीं की गई। मायूस होकर ग्राम प्रहरी अपनी मांग के साथ दिल्ली के जंतर मंतर पहुंचे थे. उन्होंने अपना मांगपत्र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह को संबोधित ज्ञापन के साथ सौंपा, लेकिन वहां से भी निराश ही होना पड़ा है।’

ग्राम प्रहरियों की मांग है कि वेतन वृद्धि करते हुए उन्हें राज्य कर्मचारी का दर्जा दिया जाए। पुलिस के अनुरूप वर्दी एवं अन्य सभी सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएं। पुलिस रेगुलेशन के अनुसार ग्राम प्रहरियों से कार्य लिया जाए। उत्तर प्रदेश के 70000 ग्राम प्रहरी लगभग 35 लाख वोट का प्रतिनिधित्व करते हैं। उनकी मांग है कि उन्हें सम्मान भरी नजरों से देखा जाए तथा उनकी समस्याओं का निराकरण किया जाए।

योगी ने दिया नया नाम, पर किया कुछ नहीं

6 मार्च 2019 में लखनऊ के लोकभवन में आयोजित उत्तर प्रदेश ग्राम प्रहरी सम्मेलन के दौरान उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ग्राम चौकीदारों का पदनाम बदलकर ‘ग्राम प्रहरी’ करते हुए कहा था कि उनकी (ग्राम प्रहरी) भूमिका सुरक्षा के दृष्टि से महत्वपूर्ण कड़ी है।’

उन्होंने कहा कि ‘ग्रामीण क्षेत्रों में होने वाले अपराध की सूचना पुलिस अफसरों तक पहुंचाने में ग्राम चौकीदार अहम भूमिका निभा सकते हैं।’

सम्मेलन में चौकीदारों को महीने में डेढ़ हजार के बजाय 2500 रुपये मानदेय देने की भी घोषणा की गई थी। हर 10 वर्ष में नई साइकिल और उसकी देखरेख के लिए सालाना 600 रुपये भत्ता भी घोषित किया गया। साथ ही उन्हें नई वर्दी, जूते, डंडा और सीटी भी दिए जाने की घोषणा की गई थी। वेतन तो मिलना शुरू हो गया लेकिन अन्य सुविधाएं आज तक नहीं मिलीं।

gram prahari-gaonkelog
पुलिस के साथ मीटिंग करते ग्राम प्रहरी

लखनऊ के लोकभवन में आयोजित उत्तर प्रदेश ग्राम प्रहरी सम्मेलन के दौरान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि ‘कोई भी अधिकार हो-हल्ला से नहीं मिलता है। अधिकार पाने के लिए अपनी उपयोगिता साबित करनी पड़ती है। आप भी करें। गांव में होने वाली सामान्य व असामान्य हर तरह की गतिविधि की सूचना अपने थानेदार को दें।’ उन्होंने इस दौरान आह्वान किया कि  जहरीली शराब, अवैध खनन, संदिग्धों की आवाजाही जैसी कोई भी सूचना हो, उसे थाने से जरूर साझा करें। सीएम ने कहा कि गांव में आपको पार्टी नहीं बनना है ईमानदारी से अपना काम करना है।

सीएम के इस वक्तव्य पर पलटवार करते हुए चौकीदार कहते हैं कि ‘हम कितना भी ईमानदारी से काम करें। अपराधी से लेकर गांव के लोगों के निशाने पर हम सीधे तौर पर होते हैं। हमारे पास ऐसा कोई भी ठोस संसाधन नहीं होता है, जिससे हम मुकाबला कर सकें।

अखिलेश यादव की सरकार के बाद साइकिल की दरकार है, मेंटनेंस खर्च का भी कोई पता नहीं। यही हाल अन्य मिलने वाली सुविधाओं का भी है। गांव में किसी प्रकार की घटना हुई तो सबसे पहले सूचना देकर गांव में दुश्मनी मोल लें, थाने पर पहुंचने में लेट हुई तो हुजूर लोगों की फटकार सुननी पड़ती है। ऊपर से काम के नाम पर न कोई सम्मान, न ही संतोषजनक पगार, साहब (थानेदार) की चाकरी और थानों की साफ सफाई न करें तो दंड फटकार अलग से सहनी पड़ती है।

संतोष देव गिरि
संतोष देव गिरि
स्वतंत्र पत्रकार हैं और मिर्जापुर में रहते हैं।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here